आरम्भिक कदम
28 सितंबर 1864 को लंदन के बीचोबीच स्थित सेंट मार्टिन हाल लगभग दो हजार मजदूरों की मौजूदगी
से खचाखच भरा हुआ था । वे लोग इंग्लैंड के ट्रेड यूनियन नेताओं और यूरोपीय महाद्वीप
के कुछ श्रमिक समूहों की ओर से बुलाई गई सभा में शरीक होने के लिए आए थे । अग्रिम सूचना
में कहा गया था कि ‘पेरिस के कामगारों का एक प्रतिनिधिमंडल’
आया है और वह ‘अपने अंग्रेज भाइयों के उद्बोधन
का जवाब देगा तथा जनता के बीच बेहतर समझदारी की योजना प्रस्तुत करेगा’ । असल में एक साल पहले लंदन में जब जुलाई 1863 में कई
फ़्रांसिसी और अंग्रेज मजदूर संगठन जार के विरोध में पोलिश जनता के साथ एकजुटता जाहिर
करने के लिए मिले थे तो उन्होंने मजदूर वर्ग आंदोलन के प्रमुख उद्देश्यों के बारे में
एक घोषणा की थी । मशहूर यूनियन नेता जार्ज आडगर (1813-77) ने
फ़्रांसिसी मजदूरों के नाम अंग्रेजों की ओर से एक उद्बोधन तैयार किया था जो बी-हाइव नामक द्विसाप्ताहिक में छपा था ।
“मजदूरों की भलाई के लिए जनगण का साथीपन
बहुत जरूरी है क्योंकि हमने पाया कि जब कभी हम काम के घंटे कम करने के जरिए या मेहनत
की कीमत बढ़ाने के जरिए अपने सामाजिक हालात को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं तो हमारे
मालिक कम मजदूरी पर हमारा काम करने के लिए फ़्रांसिसी, जर्मन,
बेल्जियन या अन्य लोगों को लाने की धमकी देते हैं; और हमें दुख है कि ऐसा हुआ भी । हालांकि इसका कारण यह नहीं था कि हमारे महाद्विपीय
भाई हमें कोई नुकसान पहुंचाना चाहते थे बल्कि इसका कारण तमाम देशों के औद्योगिक वर्गों
के बीच नियमित और व्यवस्थित संचार का अभाव था । हमारा उद्देश्य कम मजदूरी पाने वालों
की मजदूरी को यथासंभव उनकी मजदूरी के करीब ले आना है जिन्हें बेहतर मजदूरी मिलती है
ताकि हमारे मालिक हमें एक दूसरे से लड़ा न सकें और अपनी लालच पूरी होने लायक न्यूनतम
मजदूरी तक न ले जा सकें ।”
इस पहलकदमी के संगठनकर्ताओं की कल्पना नहीं थी,
न ही उनको अनुमान था कि कुछ ही दिनों बाद इसका क्या नतीजा निकलेगा ।
उन्होंने सोचा था कि ऐसा अंतर्राष्ट्रीय मंच बनाया जाए जहां मजदूरों पर असर डालने वाली
प्रमुख समस्याओं पर विचार विमर्श किया जाएगा लेकिन उसमें मजदूर वर्ग की ट्रेड यूनियन
और राजनीतिक कार्यवाहियों को संयोजित करने वाले संगठन की स्थापना की बात शामिल नहीं
थी । इसी तरह उनकी विचारधारा में शुरू में वर्ग संघर्ष और सुपरिभाषित राजनीतिक लक्ष्य
की जगह लोगों के बीच भाईचारा और विश्व शांति का महत्व जैसे सामान्य मानवीय तत्व व्याप्त
थे । इन्हीं सीमाओं के कारण सेंट मार्टिन हाल की सभा भी तत्कालीन ढेर सारी अमूर्त लोकतांत्रिक
पहलकदमियों जैसी ही होती जिनका कोई नतीजा नहीं निकलता । लेकिन इसने तो मजदूर आंदोलनों
के सभी संगठनों हेतु ऐसे आदर्श रूप (इंटरनेशनल वर्किंग मेन’स एसोसिएशन) को जन्म दिया जिसका अनुसरण बाद में सुधारवादियों
और क्रांतिकारियों, दोनों ने संदर्भ विंदु की तरह किया ।
जल्दी ही समूचे यूरोप में इसने भावावेग की लहर
उठा दी । वर्गीय एकजुटता को इसने साझा आदर्श बना दिया और दुनिया बदलने जैसे सबसे क्रांतिकारी
लक्ष्य के लिए संघर्ष करने हेतु भारी संख्या में स्त्री-पुरुषों को प्रेरित किया । इसी वजह से 1868 में ब्रसेल्स
में आयोजित इंटरनेशनल की तीसरी कांग्रेस के मौके पर टाइम्स के मुख्य लेखक ने इस प्रोजेक्ट
का मकसद ठीक ही बताया था:
“केवल सुधार पर ही विचार नहीं हुआ,
बल्कि जागरण और वह भी महज एक देश के नहीं बल्कि समूची मानव जाति के जागरण
पर विचार हुआ । ईसाई चर्च को छोड़कर किसी भी संस्था ने शायद ही कभी इतना व्यापक लक्ष्य
अपने लिए तय किया होगा । संक्षेप में इंटरनेशनल वर्किंगमेन’स
एसोसिएशन का यही कार्यक्रम है ।”
इंटरनेशनल के कारण मजदूर आंदोलन पूंजीवादी उत्पादन
पद्धति की स्पष्ट समझ हासिल कर सका, अपनी ताकत के बारे
में अधिक सचेत हुआ तथा संघर्ष के नए और अधिक उन्नत रूप विकसित कर सका । इस संगठन की
प्रतिध्वनि यूरोप की सीमाओं के परे सुनाई पड़ी तथा इससे ब्यूनस आयर्स के कारीगरों और
कलकत्ते के शुरुआती मजदूर संगठनों में एक दूसरी दुनिया संभव होने की उम्मीद पैदा हुई
। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के मजदूर समूहों ने भी इसकी सदस्यता के लिए आवेदन किया
।
इसके उलट शासक वर्गों में इसकी स्थापना की खबर
से भय व्याप्त हो गया । इतिहास में मजदूर भी सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं इस खयाल
से ही उनकी रीढ़ में झुरझुरी पैदा हो गई और ढेर सारी सरकारों ने इंटरनेशनल के खात्मे
को अपना ध्येय बना लिया और उपलब्ध सारे साधनों के जरिए इसे अंजाम दिया ।
No comments:
Post a Comment