Saturday, April 5, 2014

निराला की उपन्यास कला का शिखर 'कुल्ली भाट'



         
नागार्जुन ने अपनी किताब 'निराला: एक युग एक व्यक्तित्व' में लिखा, 'कुल्लीभाट और बिल्लेसुर बकरिहा हिंदी में बेजोड़ हैं ही, भारत की किसी भी भाषा में इनका मुकाबला करनेवाले पात्र दुर्लभ ही होंगे । यथार्थ का यह सप्ततिक्त रसायन अभी युगों तक भारतीय कथा साहित्य को स्फूर्ति और ताजगी देता रहेगा ।' अनेक कारणों से कुल्ली भाट की चर्चा वर्तमान समय के लिए उपयोगी है ।
कुल्ली से निराला की मुलाकात ससुराल में हुई थी । कुल्ली का असली नाम पंडित पथवारीदीन भट्ट था अर्थात वे जाति से ब्राह्मण थे लेकिन गाँव में उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार होता था । इसके कारण का संकेत निराला ने किया है जिसके आधार पर यह रचना और भी समकालीन हो जाती है । कुल्ली समलैंगिक थे । पारंपरिक भारतीय समाज में समलैंगिकता कोढ़ जैसी चीज मानी जाती है लेकिन समलैंगिक लोग इस समाज के हाशिए पर हमेशा से रहे हैं । ऐसे कुल्ली में निराला ने नायकत्व देखा और उसे दर्ज किया, यही निराला की महानता है । सभी जानते हैं कि निराला स्वभाव से ही नहीं साहित्य में भी विद्रोही थे । उनके विद्रोही स्वभाव के कारण कुल्ली से उनकी दोस्ती होती है । उपन्यास भी उपन्यास के ढाँचे को तोड़कर लिखा गया है । इसे आप संस्मरण और आत्मकथा को मिलाकर तैयार की हुई कोई नई चीज समझ सकते हैं । संस्मरण कुल्ली का और आत्मकथा निराला की । निराला के काव्य पर तो बहुत बात होती है लेकिन उनका गद्य भी उतना ही रोचक और प्रासंगिक है । इसके लिए उपन्यास को थोड़ा गौर से देखना होगा । अनेक जगहों पर निराला का गद्य व्याख्या भी माँगता है इसलिए समय समय पर उसकी भी कोशिश की जाएगी ।
उपन्यास की शुरुआत ही एक विचित्र समर्पण से होती है 'इस पुस्तिका के समर्पण के योग्य कोई व्यक्ति हिंदी साहित्य में नहीं मिला; यद्यपि कुल्ली के गुण बहुतों में हैं, पर गुण के प्रकाश में सब घबराए ।' निराला के मन में बहुत दिनों से एक जीवन चरित लिखने की इच्छा थी लेकिन कोई मिल नहीं रहा था 'जिसके चरित में नायकत्व प्रधान हो' । उन्हें आम तौर पर ऐसे लोग मिले जिनमें 'जीवन से चरित ज्यादा' । जिनके जीवन चरित उन्होंने देखे उनमें 'भारत पराधीन है, चरित बोलते हैं' । इससे उन्हें समझ में आया कि जीवन में अगर कमजोरी है तो उसके बखान में प्रतिक्रियास्वरूप बढ़ चढ़ कर बोला जाता है । इससे चरित्र का अंधकार तो छिप जाता है लेकिन उसे छिपाकर जो प्रकाश पैदा किया जाता है वह सत्य को देखने नहीं देता सिर्फ़ चकाचौंध पैदा करता है । ऐसे ही चरित कई 'महापुरुषों' ने अपने हाथों लिखे हैं । इसका व्यंग्य स्पष्ट है ।
निराला की चिंता यह है कि इन जीवन चरितों को पढ़कर सामान्य लोग प्रेरणा लेते हैं और अगर ये चरित झूठ हुए तो लोग भी इनसे झूठ ही सीखेंगे । उनकी हालत वही होगी कि फ़िल्मों में सिनेमा स्टारों को सर्र से दीवार पर चढ़ने की करामात देखकर कोई इसकी नकल उतारे और अपनी कमर तुड़वा ले । निराला के मुताबिक ऐसे चरितों में सत जोड़कर लेखक अपने आपको सच्चरित्र तो बना लेते हैं लेकिन इनसे 'सिर्फ़ साफ़ होता है और वह भी कपड़ा ।'
निराला को इनके मुकाबले कोई सच्चा नायक चाहिए था । नायक अर्थात जो आगे ले जाए और निराला के जीवन में कुल्ली की यही भूमिका पुस्तक का विषय है । निराला कुल्ली के लिए एक ही सही लेखक समझते है और वे हैं गोर्की 'पर दुर्भाग्य से अब वह इस संसार में रहा नहीं' । कुल्ली जीवन भर अपने वतन डलमऊ से बाहर नहीं निकले लेकिन 'गड़ही के किनारे कबीर को महासागर कैसे दिखा मैं समझा'
शुरू में ही निराला बताते हैं कि इस उपन्यास में हास्य प्रधान है । आगे का प्रसंग निराला के अपने जीवन से जुड़ा हुआ है और इसमें हास्य के साथ व्यंग्य भी है । खासकर हिंदी समाज के हास्यास्पद रीति रीवाजों को लेकर । इसी में से एक रस्म है कि विवाह के बाद पत्नी पिता के ही घर रह जाती है और दो चार साल बाद गौना होता है । पिता के साथ निराला गौना कराकर पत्नी को ले आने ससुराल जाते हैं । पत्नी के आने के पाँचवें दिन ही निराला के ससुर अपनी लड़की को बिदा कराकर ले गए । निराला के पिता को यह बात बुरी लगी तो उन्होंने दूसरे विवाह की धमकी दे डाली । सास सुनकर घबराईं । वापस भेजने के लिए दामाद को पत्र दिया । पिता ने सलाह दी कि जल्दी विदा कर दें इसके लिए खूब खाना और खर्च कराना । इसके बाद लंबा प्रसंग निराला की ससुराल यात्रा का है जो बंगाल के एक युवक की उत्तर प्रदेश की गर्मी से पाला पड़ने का खुलासा है । स्टेशन पर कुल्ली से मुलाकात और उनकी धज का वर्णन भी उसी हास्य से सराबोर है ।
ससुराल में सास और पत्नी दोनों ही निराला से कुल्ली के एक्के पर आने की बात पूछती हैं । इस पूरे प्रसंग में निराला की खूबी यह है कि वे सबकी बातचीत का विवरण देते चलते हैं और उनके जरिए ही रहस्य के उद्घाटन का पाठक को इंतजार कराते हैं । सास के पूछने पर निराला को लगता है कि सास छूत के विचार से पूछ रही हैं । निराला का उत्तरआजकल वह सब चला गया हैउन्हें और भी परेशान कर देता है । पूरा प्रसंग ही इशारों में होनेवाली बातचीत और निराला की उससे अनभिज्ञता के जीवंत विवरण से भरा हुआ है । अंततः निराला की जिद पर उनकी सास झल्लाकर कहती हैंतुम लड़के हो, माँ-बाप की बात का कारण नहीं पूछा जाता ।    
कुल्ली के बहाने निराला का विद्रोही स्वभाव हमारे सामने खुलकर आता है । ससुराल में सभी कुल्ली के साथ निराला को जाने से रोकते हैं और निराला को जिस काम से रोका जाए वही आकर्षित करता है । अपने इस स्वभाव का निराला विस्तार से वर्णन करते हैं और बताते हैं कि बचपन में गाँव की एक पतुरिया के यहाँ खाना खाने से घर के लोग मना करते थे लेकिन निराला ने खाया तो पिता की भयानक मार भी खानी पड़ी थी । इसी स्वभाव के कारण मना करने के बावजूद वे कुल्ली के साथ जाते हैं । सास उनके साथ एक नौकर लगा देती हैं । कुल्ली निराला को गाँव घुमाते हैं और बार बार नौकर को साथ भाँपकर परेशान होते हैं । निराला नौकर को रूह लाने के लिए भेज देते हैं । कुछ कुछ यह देखने की उत्सुकता भी थी कि कुल्ली आखिर इतना बदनाम क्यों हैं । कुल्ली निराला को गाँव का टूटा किला घुमाते हैं और निराला के वापस लौटने की बात करने पर उन्हें अपने घर ले आते हैं । घर पर वे निराला के मन की थाह लेने की कोशिश करते हुए कहते हैंमान लो कोई बुरी लत हो तो दूसरों को इससे क्या ? अपना पैसा बरबाद करता हूँ ।निराला संदर्भ जाने बगैर आम बात समझकर कहते हैंदूसरों की ओर उंगली उठाए बिना जैसे दुनिया चल ही नहीं पाती ।कुल्ली इसे सकारात्मक संकेत मान लेते हैं और निराला को पान देते समय उनकी उंगली दबा देते हैं । निराला इसे ससुराल के संबंध से ग्रहण करते हैं । कुल्ली उत्साहित होकर दूसरे दिन मिठाई खाने का न्यौता देते हुए हिदायत देते हैंकिसी से कहना मत क्योंकि यहाँ लोग सीधी बात का टेढ़ा अर्थ लगाते हैं ।बहरहाल ससुराल लौटते हुए निराला नौकर को कहते हैं कि घर पर बताना मत कि हम सब साथ नहीं थे । नौकर थोड़ा बेवकूफ़ था सो निराला की सास पूछताछ करके जान जाती हैं कि वह साथ नहीं था । घर पर लोग आशंकित तो थे ही इस खबर से निराला के प्रति उनका रुख ठंडा हो गया ।
घर में फैले तनाव का भी निराला ने मजे ले लेकर ब्यौरा दिया है । फिर भी निराला कुल्ली के यहाँ गए । उन्हें आते देखकर कुल्ली निश्चिंत हो गए । समलैंगिकता की अपनी आदत के चलते वे निराला की ओर आकर्षित होते हैं । निराला को घर ले आते हैं लेकिन बंगाल में रहे निराला उनकी बातों का अर्थ नहीं समझ पाते । यह प्रसंग इतना रोचक है कि जो बंगाल से परिचित नहीं वे इसका आनंद नहीं उठा सकते । उदाहरण के लिए प्रेम शब्द का बंगाल में इतनी प्रचुरता से इस्तेमाल होता है कि कुल्ली जब कहते हैं किमैं तुम्हे प्यार करता हूँतो उतनी ही सहजता से निराला जवाब देते हैंप्यार मैं भी तुम्हें करता हूँ। कुल्ली बिना कुछ समझे कहते हैंतो फिर आओनिराला कोसमझ में न आया कि कुल्ली मुझे बुलाते क्यों हैं। उत्तर दियाआया तो हूँ ।कुल्ली हार गएपस्त जैसे लत्ता हो गए । 
निराला की महानता इस बात में है कि उनकी पत्नी ने उन्हें हिंदी सीखने की प्रेरणा दी यह बात उद्घोष के साथ उन्होंने कही है । उन्होंने ही इनका परिचय खड़ी बोली के आधुनिक साहित्य से कराया । ऊपर की घटना के कुछ दिन बाद ससुराल में गीत गायन का सार्वजनिक आयोजन हुआ । उसमें निराला की पत्नी ने गाना गया । दूसरे दिन निराला बंगाल चले आए । हिंदी सीखने की धुन सवार थी । तभी तार आया कि पत्नी सख्त बीमार हैं ।स्त्री का प्यार उसी समय मालूम दिया जब वह स्त्रीत्व छोड़ने को थी ।और अनेक वर्ष बाद जब ससुराल जाते हैं तो पत्नी का देहांत हो चुका होता है । इस प्रकरण में प्लेग की भयंकरता का उनका वर्णन बेजोड़ है और बहुत संभव है कि अकेला हो । दुखी निराला कलकत्ते लौट आते हैं और नौकरी करने लगते हैं लेकिन स्वभाव जैसा था उसमें नौकरी चल नहीं पाती । इस बार ससुराल आने पर कुल्ली से मुलाकात होती है तो कुल्ली बदल चुके थे । असहयोग आंदोलन के प्रभाव ने कुल्ली को नेता बना दिया था । 'इधर कुल्ली अखबार पढ़ने लगे थे । त्याग भी किया था । अदालत के स्टांप बेचते थे, बेचना छोड़ दिया था । महात्मा जी की बातें करने लगे ।' कुल्ली का किसी मुसलमान स्त्री से प्रेम हुआ था । उन्होंने निराला को बताया । निराला को क्या आपत्ति हो सकती थी । यहीं से कुल्ली का नायकत्व शुरू होता है । कुल्ली ने विवाह किया । बहुत विरोध हुआ लेकिन निराला उनके साथ डटे रहे । फिर कुल्ली ने अछूत पाठशाला खोली । असर रसूख वाले स्थानीय लोग कुल्ली का विरोध करते । सरकारी अफ़सर भी उनसे दूर ही रहने में अपनी भलाई समझते । उनकी राय को निराला ने दर्ज कियाअछूत लड़कों को पढ़ाता है, इसलिए कि उसका एक दल हो; लोगों से सहानुभूति इसलिए नहीं पाता; हेकड़ी है; फिर वह मूर्ख क्या पढ़ाएगा ? ---तीन किताब भले पढ़ा दे । ये जितने कांग्रेस वाले हैं; अधिकांश में मूर्ख और गवाँर । फिर कुल्ली सबसे आगे है । खुल्लमखुल्ला मुसलमानिन बैठाए है ।कुल्ली निराला को अपनी पाठशाला ले गए । निराला गए और उनके प्रति अपनी उछ्छल भावनाओं को निस्संकोच व्यक्त कियाइनकी ओर कभी किसी ने नहीं देखा । ये पुश्त दर पुश्त से सम्मान देकर नत मस्तक ही संसार से चले गए हैं । संसार की सभ्यता के इतिहास में इनका स्थान नहीं ।---फिर भी ये थे, और हैं ।भाव रोके नहीं रुक रहेमालूम दिया, जो कुछ पढ़ा है, कुछ नहीं; जो कुछ किया है, व्यर्थ है; जो कुछ सोचा है, सवप्न । कुल्ली धन्य है । वह मनुष्य है, इतने जम्बुकों में वह सिंह है । वह अधिक पढ़ा-लिखा नहीं; लेकिन अधिक पढ़ा-लिखा कोई उससे बड़ा नहीं ।अछूतों में स्पर्श के प्रति जो भय था उसे दूर करते हुए निराला ने उनके हाथ से फूल ग्रहण किए ।
अगले दिन की निराला और कुल्ली की बातचीत बहुत कुछ वर्तमान माहौल की याद दिला देती है । निराला कुल्ली को बताते हैंकुछ सरकारी अफ़सरों से मेरी मुलाकात हुई थी । वे आपसे नाराज हैं, इसलिए किवे नौकर होकर सरकार हैं, यह सोचते हैं; आप उन्हें याद दिला देते हैं, वे नौकर हैं; उन्हें रोटियाँ आपसे मिलती हैं ।कुल्ली ने कहाऔर भी बातें हैं । भीतरी रहस्य का मैं जानकार हूँ, क्योंकि यहीं का रहनेवाला हूँ । भंडा फोड़ देता हूँ ।कुल्ली को लगता हैयहाँ कांग्रेस भी नहीं है । इतनी बड़ी बस्ती, देश के नाम से हँसती है, यहाँ कांग्रेस का भी काम होना चाहिए ।निराला को लगाकुल्ली की आग जल उठी । सच्चा मनुष्य निकल आया, जिससे बड़ा मनुष्य नहीं होता ।
कुछ दिनों बाद ससुराल आने पर निराला को कुल्ली के बीमार होने की खबर मिली । अब तक वे प्रसिद्ध हो चले थे । ससुराल वाले बताते हैंकुल्ली बड़ा अच्छा आदमी है, खूब काम कर रहा है; यहाँ एक दूसरे को देखकर जलते थे, अब सब एक दूसरे की भलाई की ओर बढ़ने लगे हैं; कितने स्वयंसेवक इस बस्ती में हो गए हैं !’ निराला उनसे मिलना चाहते थे । साले साहब जाकर कुल्ली को ले आए ।कुल्ली स्थिर भाव से बैठे रहे । इतनी शांति कुल्ली में मैंने नहीं देखी थी जैसे संसार को संसार का रास्ता बताकर अपने रास्ते की अड़चनें दूर कर रहे हों !’ निराला कुल्ली से महात्मा गांधी को लिखी चिट्टी की याद दिलाते हैं तो कुल्ली मुस्कराकर रह जाते हैं । इसी बहाने वे एक ऐसी बात कहते हैं जो नेता और कार्यकर्ता का द्वंद्व उभारती है ।कहने से भी बाज न आएँगे कि सिपाही का धर्म सरदार बनना नहीं है । लेकिन सरदार सरदार ही रहेंगे- सैकड़ों पेंच कसते हुए, ऊपर न चढ़ने देंगे ।निराला फिर गांधी जी की चिट्ठी की बात पूछते हैं । कुल्ली जवाब में बताते हैंमैंने सत्रह चिट्ठियाँ (सत्रह या सत्ताईस कहा, याद नहीं) महात्मा जी को लिखीं लेकिन उनका मौन भंग न हुआ । किसी एक चिट्ठी का जवाब महादेव देसाई ने दिया था । बस, एक सतर- इलाहाबाद में प्रधान आफ़िस है, प्रांतीय, लिखिए ।कुल्ली ने बताया कि जवाब में उन्होंने लिखामहात्मा जी, आप मुझसे हजार गुना ज्यादा पढ़े हो सकते हैं, तमाम दुनिया में आपका डंका पिटता है, लेकिन---आपको बनियों ने भगवान बनाया है, क्योंकि ब्राह्मणों और ठाकुरों में भगवान हुए हैं, बनियों में नहीं ।कुल्ली आजादी के पहले के नेताओं को कठघरे में खड़ा कर देते हैं । उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को भी लिखा । खुद उनके ही मुख से सुनिएपहले तो सीधे सीधे लिखा,---लेकिन उनका उत्तर जब न आया- तब डाँटकर लिखा । अरे, अपने राम को क्या, रानी रिसाएँगी, अपना रनवास लेंगी ।   
कथा के अंत में हमें निराला बताते हैं कि कुल्ली की तबीयत कराब होने पर उनकी सहायता के लिए कांग्रेस की स्थानीय शाखा धन देने को तैयार नहीं जबकि विजयलक्ष्मी जी के स्वागत के लिए स्थानीय नेता सब कुछ करने को तैयार हैं । तब की कांग्रेस भी आज की कांग्रेस से बहुत जुदा नहीं थी । छल से निराला कुछ पैसे ले आते हैं लेकिन कुल्ली बचते नहीं । उनकी मृत्यु के बाद की नौटंकी तो जैसे विद्रोही से समाज का अंतिम बदला हो । ‘दाह के लिए कुल्ली वंश के कोई दीपक बुलाए गए हैं, उनकी स्त्री चूँकि विवाहिता नहीं, इसलिए उसके हाथ से अंतिम संस्कार न कराया जाएगा ।‘ उनकी स्त्री के हाथों पिंडदान कराने को कोई राजी नहीं । हारकर निराला खुद यह जिम्मेदारी उठाते हैं ।
यह उपन्यास प्रेमचंद की परंपरा में निराला को स्थापित करता है । इसमें हम एक सामान्य मनुष्य को ऊँचा उठते हुए देखते हैं । न सिर्फ़ इतना बल्कि वह अपने साथ ही कथाकार को भी ऊपर उठा लेता है । यह उपन्यास निराला की रामकहानी का एकमात्र प्रामाणिक स्रोत है । इसमें उनकी विद्रोही चेतना तो अभिव्यक्त हुई ही है कुल्ली के बहाने उनकी सामाजिक सचेतनता भी स्पष्ट रूप से उजागर हुई है । भाषा के मामले में जितने स्तर इस उपन्यास में हैं उतने शायद ही हिंदी के किसी एक उपन्यास में हों । एक सामान्य दागदार मनुष्य की कहानी उसके रूपांतरण को दर्ज करती हुई अंत में उस समय की कांग्रेसी राजनीति की आलोचना तक पहुँचती है ।            

3 comments:

  1. ज्ञानवर्धक लेख। आभार।
    निराला के कथा साहित्य पर भी काम होना चाहिए। बेजोड़ लिखा है उन्होंने।

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  2. तहे दिल से आपको साधुवाद देता हूं आप जो भी है आप इस प्रयास के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ये गागर में सागर वाली संक्षिप्त विवरण है

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  3. बहुत अच्छा संयोजन

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