Tuesday, December 20, 2016

इंटरनेशनल का यूरोप व्यापी विकास और फ़्रांको-प्रशियाई युद्ध का विरोध


1860 दशक का उत्तरार्ध और 1870 दशक का पूर्वार्ध सामाजिक टकरावों से भरा हुआ समय था । जिन ढेर सारे मजदूरों ने विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया उन्होंने इंटरनेशनल से संपर्क साधने का फैसला किया । इंटरनेशनल की कीर्ति चारों दिशाओं में फैल रही थी और सीमित साधनों के बावजूद जनरल कौंसिल ने अपने यूरोपीय प्रभागों के साथ एकजुटता की अपीलों का जवाब देने और चंदा एकत्र करने में कभी कोताही नहीं बरती । उदाहरण के लिए जब मार्च 1869 में ऐसा ही हुआ जब बासेल में 8000 रेशम के रंगरेजों और फीता बुनकरों ने समर्थन की अपील की । जनरल कौंसिल अपने कोश से तो मात्र 4 पौंड ही भेज सकी लेकिन इसके द्वारा जारी सर्कुलर के चलते विभिन्न देशों में अनेक मजदूर समूहों ने 300 पौंड एकत्र किया । इससे भी महत्वपूर्ण था न्यूकैसल के इंजीनियरिंग मजदूरों का काम के घंटे 9 तक ही सीमित रखने का संघर्ष जिसमें इंटरनेशनल के भेजे दो दूतों, जेम्स कोन (कोहेन, आज्ञात) और इकारियस ने मालिकों द्वारा महाद्वीप से अन्य मजदूर ले आने की कोशिशों को रोकने में प्रमुख भूमिका निभाई । इस हड़ताल की सफलता पूरे देश में समारोह में तब्दील हो गई और इससे अंग्रेज पूंजीपतियों को चेतावनी मिली । उसके बाद से उन्होंने समुद्र पार से मजदूर भर्ती करना छोड़ दिया ।
1869 में समूचे यूरोप में इंटरनेशनल का प्रचुर विस्तार हुआ । बहरहाल इस मामले में ब्रिटेन अपवाद रहा । अगस्त में बर्मिंघम में संपन्न ट्रेड्स यूनियन कांग्रेस ने संस्तुति की कि इसके सभी सदस्य संगठन इंटरनेशनल में शामिल हो जाएं । लेकिन यह अपील अनसुनी रही और संबद्धता का स्तर कमोबेश 1867 के समान ही रहा । हालांकि यूनियन के नेताओं ने साझेदारीवादियों के विरुद्ध मार्क्स का पूरी तरह साथ दिया लेकिन सैद्धांतिक मुद्दों के लिए उनके पास खास समय नहीं था और वे क्रांतिकारी तेवर में पगे भी नहीं । इसी कारण से मार्क्स लंबे समय तक जनरल कौंसिल से अलग इंटरनेशनल के ब्रिटिश संघ की स्थापना का विरोध करते रहे ।
प्रत्येक यूरोपीय देश में जहां भी इंटरनेशनल थोड़ा मजबूत था उसके सदस्यों ने मौजूदा संगठनों से पूरी तरह स्वायत्त नए संगठनों को जन्म दिया, अपनी संख्या के मुताबिक स्थानीय प्रभाग बनाए और/या राष्ट्रीय संघों का निर्माण किया । बहरहाल ब्रिटेन में यूनियनें ही इंटरनेशनल की मुख्य ताकत थीं और स्वाभाविक रूप से उन्होंने अपने सांगठनिक ढांचों को बरकरार रखा । इसके अतिरिक्त लंदन स्थित जनरल कौंसिल को विश्व मुख्यालय और ब्रिटेन के लिए नेतृत्व के दो काम एक साथ करने होते थे । जो भी हो ट्रेड यूनियनों की संबद्धता के चलते इसके प्रभाव में लगभग 50000 मजदूर थे जबकि उसी समय समूचे महाद्वीप में इटरनेशनल की अग्रगति जारी थी ।
फ़्रांस में द्वितीय साम्राज्य की दमनकारी नीतियों के चलते 1868 का साल इंटरनेशनल के लिए गंभीर संकट का साल बन गया । एकमात्र रुएं को छोड़कर इसके सभी प्रभाग लुप्त हो गए । बहरहाल अगले साल संगठन को पुनर्जीवन मिला । बासेल कांग्रेस के बाद तोलें अब इसका नेता नहीं रह गया था, वार्लिन जैसे नए नेता जिन्होंने साझेदारीवाद से नाता तोड़ लिया था वे नेता बने । 1870 में इंटरनेशनल के विस्तार का चरम क्षण आया लेकिन उसकी असली सदस्य संख्या उस काल्पनिक संख्या से काफी कम थी जो कुछ लेखकों के दिमाग की उपज और लोगों में प्रचारित थी । यह बात भी याद रखनी चाहिए कि पर्याप्त वृद्धि के बावजूद संगठन फ़्रांस में उस समय मौजूद 90 विभागों में से 38 में जड़ें नहीं जमा सका था । यह संभव है कि पेरिस में सदस्यता 10000 तक पहुंच गई रही हो, जिसमें अधिकांश की संबद्धता सहकारी सोसाइटियों, ट्रेड एसोसिएशनों और प्रतिरोध सोसाइटियों के जरिए इंटरनेशनल से थी । कड़ाई से लगाए गए अनुमान रुएं और ल्यों में तीन तीन हजार की संख्या का संकेत करते हैं (इन जगहों पर सितंबर 1870 में विद्रोह के फलस्वरूप जनता के कम्यून की घोषणा हुई थी जिसे बाद में रक्त में डुबा दिया गया) । इनके अतिरिक्त मार्सेलीज मे 4000 से कुछ अधिक सदस्य थे । पूरे देश में कुल सदस्य 30000 से कुछ अधिक होने का अनुमान है । इस तरह हालांकि फ़्रांस में इंटरनेशनल सही मायनों में जन संगठन नहीं बना फिर भी इसका आकार बड़ा था तथा इसमें व्यापक रुचि पैदा हुई थी । इसका अंदाजा हम जनरल कौंसिल को पोजीटिविस्ट प्रोलेतेरियन्स आफ़ पेरिस की ओर से सौंपे गए सदस्यता के आवेदन से लगा सकते हैं । 1870 के बाद से ब्लांकी के कुछ अनुयायियों ने भी प्रूधोंपंथी नरमदली प्रेरणा से बने संगठन के प्रति अपनी शुरुआती हिचक पर विजय पाई और मजदूरों में इसके प्रति उत्साह देखकर खुद भी इसमें शामिल होना शुरू किया । निश्चय ही 1865 के बाद से काफी पानी बह चुका था जब तोलें और फ़्रिबोर्ग द्वारा स्थापित इंटरनेशनल के फ़्रांसिसी प्रभागों को सम्मानजनकअध्ययन सोसाइटीजैसा कुछ समझा जाता था । फ़्रांस में संगठन के निर्देश अब सामाजिक टकराव और राजनीतिक गतिविधि को बढ़ावा देने पर केंद्रित होते थे ।
बेल्जियम में 1868 की ब्रसेल्स कांग्रेस के बाद का समय संघाधिपत्यवाद के उदय, अनेकानेक विजयी हड़तालों और इंटरनेशनल से ढेर सारी मजदूर सोसाइटियों की संबद्धता का समय था । 1870 दशक के पूर्वार्ध में सदस्य संख्या बढ़कर दसियों हजार तक पहुंच गई, शायद समूचे फ़्रांस की सदस्य संख्या को भी पार कर गई । इसी देश में इंटरनेशनल कुल आबादी में सदस्यों की सघनता तथा समाज में प्रभाव के मामले में सर्वोच्च स्थिति में पहुंचा ।
स्विट्ज़रलैंड में भी इस दौरान सकारात्मक विकास दिखाई पड़ा । 1870 में कुल सदस्य संख्या 6000 थी (कुल लगभग 700000 कामगारों में), जिसमें जेनेवा के 34 प्रभागों के 2000 और जूरा इलाके से 800 सदस्य शामिल हैं । बहरहाल कुछ ही दिनों बाद बाकुनिन की गतिविधियों ने संगठन को दो बराबर हिस्सों में बांट दिया । अप्रैल 1870 में रोमान्डे फ़ेडरेशन की कांग्रेस में दोनों हिस्सों का टकराव ठीक इसी सवाल पर हुआ कि इंटरनेशनल एलायंस फ़ार सोशलिस्ट डेमोक्रेसी को फ़ेडरेशन में शामिल किया जाए या न किया जाए । जब सिद्ध हो गया कि दोनों पक्षों में कोई समझौता होना असंभव है तो दो समानांतर कांग्रेसों की कार्यवाही चलती रही । जनरल कौंसिल के हस्तक्षेप के बाद ही सुलह करने पर सहमति हुई । लंदन से जुड़ा हुआ समूह थोड़ा छोटा तो था लेकिन रोमान्डे फ़ेडरेशन का उसी के हिस्से आया । बाकुनिन से जुड़े हुए समूह को जूरा फ़ेडरेशन नाम अपनाना पड़ा हालांकि इंटरनेशनल के साथ इसको फिर से संबद्धता प्रदान कर दी गई ।
रोमान्डे फ़ेडरेशन के नेता निकोलाई उतिन (1845-83), जिन्होंने जेनेवा में इंटरनेशनल के पहले रूसी प्रभाग की स्थापना की थी, और जोहान्न फिलिप बेकर थे जिन्होंने 1868 की गर्मियों से लेकर फ़रवरी 1870 तक बाकुनिन के साथ जुड़ाव के बावजूद ध्यान रखा कि समूचा स्विस संगठन उनके हाथों में न चला जाए । जो भी हो, जूरा फ़ेडरेशन की मजबूती से इंटरनेशनल के भीतर अराजक-संघाधिपत्यवादी धारा के निर्माण के महत्वपूर्ण दौर का पता चलता है । इसके सबसे प्रमुख व्यक्तित्व युवा जेम्स गिलौमे (1844-1916) थे जिन्होंने लंदन के साथ विवाद में मुख्य भूमिका निभाई ।
इस दौर में बाकुनिन के विचार अनेक नगरों में फैलना शुरू हुए । खासकर वे दक्षिण यूरोप में फैले लेकिन जिस देश में वे सबसे तेजी से पनपे वह था स्पेन । असल में आइबेरियाई द्वीप समूह में इंटरनेशनल का विकास पहली बार नेपल्स के अराजकतावादी जिसेप फ़नेली की गतिविधियों के जरिए हुआ जिसने बाकुनिन के अनुरोध पर अक्टूबर 1868 से वसंत 1869 के बीच इंटरनेशनल के प्रभागों और एलायंस फ़ार सोशलिस्ट डेमोक्रेसी (जिसका वह सदस्य था) के समूहों की स्थापना में मदद के लिए बार्सिलोना और मैड्रिड की यात्राएं कीं । उसकी यात्राओं का मकसद पूरा हुआ । लेकिन उसने अक्सर सभी व्यक्तियों को एक साथ दोनों अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के दस्तावेज पढ़ने के लिए दिए । यह तरीका तत्कालीन बाकुनिनवादी भ्रम और सैद्धांतिक संग्रहवाद का अच्छा नमूना है । स्पेनी मजदूरों ने इंटरनेशनल की स्थापना एलायंस फ़ार सोशलिस्ट डेमोक्रेसी के सिद्धांतों के साथ की । फिर भी फ़नेली ने अनसेल्मो लोरेन्ज़ो (1841-1914) जैसे महत्वपूर्ण कार्यकर्ताओं को इंटरनेशन की ओर खींच लाने सफलता पाई । पहले लोरेन्ज़ो ने प्रूधों की किताबें पढ़ी थीं जिनका स्पेनी अनुवाद भविष्य के स्पेनी राष्ट्रपति फ़्रांसिस्को पी वाइ मार्गल (1824-1901) ने किया था । हालांकि इंटरनेशनल के विचारों का ढेर सारा मिलावटी रूप प्रचारित था फिर भी वे संगठित होने और संघर्ष के लिए उत्सुक पंख तौल रहे मजदूर आंदोलन तक पहुंचने में कामयाब रहे । बासेल कांग्रेस में स्पेनी प्रतिनिधि रफ़ाएल फ़ार्गा पेलिकेर (1840-90) ने दर्जनों प्रभागों की मौजूदगी की बात बताई ।
उत्तरी जर्मन महासंघ में मजदूर आंदोलन के दो राजनीतिक संगठनों- लासालपंथी जनरल एसोसिएशन आफ़ जर्मन वर्कर्स और मार्क्सवादी सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी आफ़ जर्मनी- की मौजूदगी के बावजूद इंटरनेशनल को लेकर कोई उत्साह नहीं था तथा इससे जुड़ने के लिए भी बहुत कम अनुरोध आए । इसके शुरुआती तीन सालों में जर्मन लड़ाकुओं ने अधिकारियों द्वारा दमन के भय से वस्तुत: इसके अस्तित्व की उपेक्षा की । लेकिन 1868 के बाद तस्वीर कुछ हद तक बदली जब इंटरनेशनल की ख्याति और सफलता की गूंज पूरे यूरोप में व्याप्त हो गई । उसके बाद से दोनों प्रतिद्वंद्वी पार्टियां इसकी जर्मन शाखा का प्रतिनिधित्व करना चाहने लगीं । लासालपंथियों के नेता जोहान्न बाप्टिस्ट फ़ोन श्वाइट्ज़र (1833-75) ने अपने जनरल एसोसिएशन को इंटरनेशनल से संबद्ध करने का आवेदन कभी नहीं दिया इसलिए उनके विरोध में लीबक्नेख्त ने मार्क्स के विचारों से अपने संगठन की निकटता का सहारा लेना चाहा लेकिन इंटरनेशनल के साथ उनके संगठन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी आफ़ जर्मनी की संबद्धता वास्तविक की बजाय औपचारिक (या एंगेल्स के शब्दों में एकतरफ़ा) ही थी जिसमें भौतिक और वैचारिक प्रतिबद्धता न्यूनतम थी । इसकी स्थापना के एक साल के भीतर पंजीकृत इसके लगभग 10000 सदस्यों में से निजी तौर पर एकाध सौ ने ही इंटरनेशनल की सदस्यता ली (संबद्धता के प्रशियाई कानूनों के तहत यही प्रक्रिया मान्य थी) । कहा जा सकता है कि जर्मनी में इंटरनेशनल की धीमी प्रगति के लिए किसी भी कानूनी बाध्यता के मुकाबले जर्मन लोगों की कमजोर अंतर्राष्ट्रीयता की भावना अधिक जिम्मेदार थी और 1870 के उत्तरार्ध में उसमें ह्रास ही आया क्योंकि आंदोलन भी आंतरिक मसलों में ज्यादा उलझा रहा ।
जर्मनी की कमजोरी की भरपाई दो अच्छी खबरों से हुई । मई 1869 में नीदरलैंड में इंटानेशनल के पहले प्रभागों की स्थापना हुई तथा एम्सटर्डम और फ़्रीसलैंड में उनका धीरे धीरे विकास शुरू हुआ । इसके बाद जल्दी ही इटली में भी इंटरनेशनल ने दस्तक दी जहां पहले यह कुछेक केंद्रों में ही मौजूद थी जिनका आपस में बहुत कम या कोई सम्पर्क नहीं था ।
इससे भी अधिक या कम से कम प्रतीकात्मक तथा आशाजनक खबर अटलांटिक के दूसरे किनारे की हलचलों की थी जहां हाल के वर्षों में पहुंचे हुए प्रवासियों ने संयुक्त राज्य में इंटरनेशनल के पहले प्रभागों की स्थापना शुरू की । बहरहाल संगठन जन्म से ही दो कमजोरियों से ग्रस्त था जिनसे उसे कभी मुक्ति नहीं मिली । लंदन से बार बार प्रेरित किए जाने के बावजूद यह न तो विभिन्न संबद्ध समूहों की राष्ट्रवादी प्रकृति से ऊपर उठ सका और न ही नई दुनिया में जन्मे मजदूरों को अपनी ओर खींच सका । दिसंबर 1870 में जब उत्तरी अमेरिका के लिए इंटरनेशनल की केंद्रीय कमेटी की स्थापना जर्मन, फ़्रांसिसी और चेक प्रभागों ने की तो यह इंटरनेशनल के इतिहास में इस मामले में विचित्र थी कि इसमें केवल ‘विदेश में जन्मे’ सदस्य थे । इस असंगति का सबसे खटकने वाला पहलू यह था कि संयुक्त राज्य में इंटरनेशनल कभी अंग्रेजी भाषा में पत्र नहीं निकाल सका ।
यूरोप के बीचोबीच टकराव का मतलब यह था कि तत्कालीन राष्ट्रवादी लफ़्फ़ाजी से अलग मजदूर आंदोलन को स्वतंत्र रुख अपनाने में मदद करना सबसे बड़ी प्राथमिकता हो गई । फ़्रांको-प्रशियाई युद्ध के सवाल पर अपने पहले संबोधन में मार्क्स ने फ़्रांसिसी मजदूरों का आवाहन किया कि वे लुई बोनापार्त (1808-73) को भगा दें और 18 साल पहले उसके द्वारा स्थापित साम्राज्य को मिटा दें । दूसरी ओर जर्मन मजदूरों की जिम्मेदारी थी कि वे बोनापार्त की पराजय को फ़्रांसिसी जनता पर हमले में बदल जाने से रोकें:
“आर्थिक परेशानी और राजनीतिक विभ्रम वाले पुराने समाज के विपरीत एक नया समाज पैदा हो रहा है जिसका अंतर्राष्ट्रीय नियम शांति होगा क्योंकि इसका राष्ट्रीय शासक सर्वत्र श्रमिक ही होगा । इस नए समाज का अग्रदूत इंटरनेशनल वर्किंग मेन’स एसोसिएशन है ।”
इस दस्तावेज की 30000 प्रतियां (जेनेवा में छपी 15000 जर्मनी और 15000 फ़्रांस के लिए) विदेश नीति के मसले पर इंटरनेशनल का पहला महत्वपूर्ण वक्तव्य हैं । इसके समर्थन में उत्साह के साथ बोलने वाले अनेक लोगों में से एक जान स्टुआर्ट मिल (1806-73) थे । उन्होंने लिखा: ‘इसमें एक भी शब्द ऐसा नहीं है जो इसमें नहीं होना चाहिए था । इससे कम शब्दों में यह बात कही भी नहीं जा सकती थी ।’

सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी के नेता विलहेल्म लीबक्नेख्त और आगस्त बेबेल (1840-1913) ही उत्तरी जर्मन महासंघ के ऐसे दो संसद सदस्य थे जिन्होंने युद्ध के लिए विशेष बजट पर वोट देने से इनकार किया और इंटरनेशनल के फ़्रांस स्थित प्रभागों ने जर्मन मजदूरों के लिए दोस्ती और एकजुटता के संदेश भेजे । फिर भी फ़्रांस की पराजय ने यूरोप में राष्ट्र-राज्यों के, उनके अंधराष्ट्रवाद समेत, नए और अधिक शक्तिशाली युग के जन्म पर मुहर लगा दी ।

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