आसमान की लाली छाई कैसे मेरे मन में
आसमान की धुंध कट गई कैसे मेरे मन में
आशाओं की किरणें बरसीं कैसे मेरे मन में
तेज क्रोध का सूरज निकला कैसे मेरे मन में
तीक्ष्ण धूप में खौल खौल कर नदी नालियाँ सूखीं
पानी भाप हो गया सारा धरती हो गई भूखी
बादल छाए आसमान में भूखी जनता नाची
जन पुकार से विह्वल होकर बादल बरसा पानी
सूखा था फिर बाढ़ आ गई कैसे मेरे मन में
धरती और आकाश उतर गए दोनों मेरे मन में
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