Friday, April 27, 2012

कविता और मैं



रात हो जाती है
जब दुनिया कहीं खो जाती है
तुम चुपचाप मेरे पास आती हो
हृदय में आनंद सी भर जाती हो
समूचे वजूद पर बादल सी छा जाती हो
मैं तुमको गढ़ता जाता हूँ
शब्द दर शब्द पंक्ति दर पंक्ति
थोड़ी देर में मेरे सामने
मुझसे बड़ा एक महल खड़ा हो जाता है
दूसरे ही क्षण तुम पानी बनकर जमीन पर आ जाती हो
मुझसे होकर औरों तक पहुँचने के लिए
मेरे मन में तोप के गोलों की आवाज हो या आँखों में अपमान के आँसू
हृदय में भविष्य के मीठे सपने हों या बदन में टूटता हुआ दर्द
तुम मुझे बहका लेती हो
मैं तुम्हारे साथ ढलता जाता हूँ
गढ़ता जाता हूँ खुद को चुपचाप

1 comment:

  1. khubsurat...... kavita ka bahut hi marmik aur swedenshil rishta kavi ke sath kayam ho payaa......

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