मेरे मन में एक सपना था
जब मैं तुम्हारे पास
पहली बार आया था
मैंने सोचा
दिन भर ड्यूटी के बाद आराम कर
सुबह प्यारी प्यारी धूप
सूरज का लाल रूप
देखना ही काम होगा बाकी आराम होगा
सपना तो टूटा ही
देखते विशाल घरों के घेरे से
खण्ड खण्ड आसमान
मन भी थक गया
सो गया उस विशाल सागर में
जहाँ कभी कभी लहरें जन मानस में
उद्वेलित होती थीं
उस महानिशा के घोर अंधकार में
कानों के पर्दे भेद कर
परेशान करने वाला शोरोगुल
थमा हुआ तभी जगाती सी
कोई सीटी गूँज उठी
कर्कश भोंपू की आवाज़
दिल में गहरे पैठकर
घटना दुर्घटना का आभास देती
चक्कर लगा रही
अरे अरे यह क्या
यह तो मिल स्वदेशी है
अंदर हैं कामगार
बाहर पी ए सी है
अंदर तैयारी बाहर से मोर्चा
बीच में लगा हुआ बंद है
लोहे का गेट भारी
बाहर सैकड़ा अंदर हज़ार लोग
मुकाबला ये कैसा है
खाकी पर कामगार हाथ आज
हक़ के लिए अपने जारी है
एक रात बीती बीता दूसरा दिन
दोनों ओर चौकसी तभी दूसरी रात
गड़ियाँ भर भर कर और अधिक
पी ए सी आने लगी
गोलियाँ चलीं और बिछ गया खून
जैसे चाँदनी रात में दूर दूर
बिखरा दिया गया हो गुलाब
और उस मखमली सेज पर
दौड़ दौड़ निशाना भागते लोगों पर
ठहरो तुम्हारे पैरों के निशान सबूत हैं
रहेंगे इनका मैं उपयोग करूँगा
आगामी लड़ाई में
मन कुछ हहरा ठहरा और सोचा इस निश्चय पर बार बार
मेरे बगीचे में एक हरसिंगार है
उसके नीचे जमीन खूब साफ है
दूब भी नहीं ढकती गँवई स्मृतियों को
घर परिवार और व्यक्तिगत संबंधों को
उस हरसिंगार पर फूलों को खोज खोज
निशाना लगाया जाय रात भर
और सुबह जमीन वह फूलों से भरी हो
वैसे ही मन कुछ भर गया निर्णय से
उठा और सूरज को देखने की फ़िक्र मैंने छोड़ दी
लेकिन तुम्हारा भी धंधा अजीब है
रात के एकांत में परेशान कवि को
खींचती है तान कोई दूर की
उसी तरह फूल हरसिंगार के
मुरझाते हैं और अपने ही बीच
जमीन खाली छोड़ जाते हैं
भरे हुए ताल के किनारे जब लोग
प्रतिबिंबों के बीच भी कुछ खोजने की चाह किया करते हैं
तब मैं तैरकर
ताल के बीच में खिलते कमल की
पंखुड़ियाँ बिखराकर
पराग उसके अंदर का सूँघ लूँ
ऐसा जी करता है
भँवर जब नाव को घुमाकर तली में बैठाती है
तब मैं साँस रोक
ऊपर आने की प्रतीक्षा करता हूँ
इतने में जबकि मैं ढूँढ़ रहा
निशान उन पैरों का मैंने सुना
देश का महामहिम मारा गया
और इसके साथ ही देश मेरा रुई के
एक बड़े पहाड़ में बदल गया
कोई उस पहाड़ में अफ़वाहों का लाल एक
भभूका छोड़ गया
अफ़वाहें घूम घूम किवाड़ों पर दस्तक सी देने लगीं
छुरे, कटार और सरिया, तलवार लेकर
चौराहे जम गईं खोज फिर होने लगी
ऐसे में अट्टहास भीषण ज्वालामुखी सा
उठा और आकाश में छा गया
मैंने देखा वह एक राक्षस था
लपेटकर देश को अदृश्य हाथों से
खून खींच मुख से उगलता था
उसकी ही आँखों से देखने से कुछ ऐसा लगता था
जैसे नीचे एक बड़ा सा टैंक हो
और उस टैंक में तमाम फल फूलों को
शराब बनाने के लिए सड़ाया जा रहा हो
और उस सड़न में कीड़े बलबलाते हुए
आपस में निरर्थक लड़ रहे हों
राक्षस ने खून के साथ ही
कुछेक शब्द भी जमीन पर गिराए थे
और मेरे देश के लोग उन शब्दों के इर्द गिर्द नाचकर
विध्वंस का मिथक रच रहे थे
सच मानिए उन तीन दिनों में
देश की एकता और अखंडता जितनी मजबूत हुई
वह अभूतपूर्व थी और अकल्पनीय थी
प्रत्येक गली में प्रत्येक नुक्कड़ पर
मेरे प्यारे देश के भीतर पनप रहे एक और
देश के विदेशियों को खोज खोज मारकर
उनकी संपत्ति लूटकर जलाकर
देश के निवासियों को सुरक्षा के खतरे का
पहला परिचय कराया गया था
मुझे लगा रात में शहर मेरा एक बड़ा आँवा है
और उसके चारों ओर निकल रहे धुवें से
पवित्र की हुई वेदी पर
मानव रक्त की भूखी देवी की आत्मा की
शांति को यज्ञ एक वृहद आयोजित है
उन तीन रातों में लगता था जिन्होंने कत्ल किया
वे महानायक हैं और हम निरीह प्राणी
किसी भयानक कांड के मुजरिम हैं
हमको ये सजा है अगर आप कमरे से
बाहर भी निकले तो गोली आपके सीने के पार है
मुझे लगा मानव मांस का भोज एक आयोजित है
और पिशाच पिशाचिनियाँ कंकाल मात्र
हाथों में खप्पर उठाए हुए
दाँतों से चीर चीर आनंद से खलबलाते हैं
लाल लाल लपटें चारों ओर फैली हुई
उनमें से एक डायन खप्पर उठाए हुए
शहर में चक्कर लगा रही
और कुछ दरवाजों पर रुक रुक
मसान जगा रही
और मित्र मेरे रातों को जागकर मैंने गहराइयों में
देखा कि दुश्मन की पहचान बहुत आसान है
लेकिन दोस्त तो पाना ही मुश्किल है
कानों में एक आवाज आई अनपेक्षित सी
बाहर अब सड़क पर आपका स्वागत है
निकल पड़ा दृश्य मैं देखने कुतूहल से
सड़क के चौराहों पर जली हुई गाड़ियाँ
फैले हुए बाल और कटी हुई दाढ़ियाँ
टूटे हुए शटर और बिखरी जिंदगानियाँ
लूले अपंग लोग टूटी हुई चूड़ियाँ
आखिर ये किसकी आत्मा के विकार हैं ?
और उस शहर के चिड़िया के पूत की भी
आत्मा की पहचान मेरी कुछ गहरी हुई
भोंपू की आवाज सायरन की सीटी
वही फिर पुरानी जिंदगी का ढर्रा चला
लेकिन अब सावधान मैं एक मिल पर बैठकर
प्रत्येक मजदूर के चेहरे का अध्ययन करता हूँ
कभी कभी आत्मा पर मेरी
कुहासा एक फैल जाता है लगता है
दूर दूर देशों से काई और फिसलन
ढूँढ़कर रास्ते पर मेरे फैला रहा हो कोई
सुबह सुबह आँखें मलते हुए पहला कदम रखते ही
गहरे अंधकार में गिरने वाला ही होता हूँ
तभी दो बलिष्ठ हाथ कमर से पकड़कर
कंधे पर बिठा लेते हैं
हाथ वे कौन हैं? अक्सर ऐसा मेरे साथ हुआ है
जब कभी हाथों से बचना चाहता हूँ
तभी वे नए नए रूप पकड़ साथ मेरे होते हैं
मित्र मेरे रूप तेरे नानाविध देखे हैं
पहली बार तुम एक मजदूर थे
पूछा था मैंने दुनिया ये कैसी है
उत्तर तुम्हारा था मेरे मिल जैसी है
देखने में तो सीधी बहुत सीधी है
चलने में पेचीदा है और कहीं कुछ गड़बड़ हो जाती है
तो उस नुकसान की जिम्मेदारी सारी हमारी है
लगता है इसको ही देखना इरादा है
लेकिन ऐसे तो ज्ञान इसका आधा है
चलने में इसके साथ कुछ सचाई है
और कहीं से ठप करने की कोशिश गहराई है
जैसे कि कई कई फ़िल्मों की रील कहीं घूम गई
हजारों कबूतर पंख फड़फड़ाकर उड़े आसमान में
या कि ये आसमान एक बड़े मैदान में बदल गया
और मरे हुए कबूतर बिछ गए हों चारों ओर
सफेद पेट ऊपर को
पाँव भीतर की ओर कुछ सिकुड़े से
चोंच कुछ खुली हुई आँखें पथराई सी
उसी तरह मन मेरा नाच गया फिरकी सा
दिमाग से कुहासा खंड खंड हो बिखर गया
और मैं नतग्रीव घुटनों पर बैठ गया
मेरे और अनजाने मित्र के एकालाप में
रोक लगाते हुए शोर कुछ उठने लगा
नहीं नहीं राणा प्रताप को इस तरह
झुकने नहीं दिया जा सकता
मन का मेरा वह संकोच ही रूपाकार ग्रहण कर
प्रत्यक्ष एक मनुष्य में बदल गया
और उस मनुष्य का एक हाथ गोरा
कंधे पर मेरे आकर टिक गया
उठो उठो यार क्या नानसेंस फैलाते हो
घर चलो रास्ते में आराम से बातें करते हैं
देखो मुझे रोज मैं कपड़े बदलता हूँ
कमाने को तो महीने में चार हजार कमा सकता हूँ
पर तुम जानते हो पालिटिकल वर्क है
आओ आओ सिगरेट पिओ
और यार मित्र लोगों का काम तो मुफ़्त में
करना ही पड़ता है घर में देखोगे
जो भी सामान है दोस्तों की कृपा है
जब कभी मन उचाट घर में आ जाया करो
वैसे तो घर में एक और होलटाइमर रहता है
पर यार तुमको भी एडजस्ट किया जा सकता है
धन्यवाद आपकी सिंपैथी गहरी है
लेकिन एडजस्टमेंट की पालिसी कुछ बहरी है
और फिर टेलीफ़ोन आपरेटर की तरह से
दिल के तारों को और कहीं जोड़ने की चाह थी
इतने में दूर से सड़क जहाँ जाकर खो सी गई थी
जर्जर साइकिल पर बैठकर स्निग्ध वर्ण पुरुष एक
अलख जगाता सा गुनगुनाता हमारे ही दिल में
आँखों पर तर्क का चश्मा लगाए हुए
हाथों में विश्व संज्ञान का कोश दबाए हुए
चला आ रहा है
उसका उत्साह तो हाथों से आँखों से
पैरों से वाणी से और कई जगहों से
छलकता ही रहता था
और कामरेड आपके हाथों में क्या है
नजदीक आने पर देखा कि वह तो एक झंडा है
जहाँ दस उंगलियाँ झंडे का आधार
पकड़ने को तत्पर थीं वहीं दस अपनी भी मैंने लगा दीं
यह क्या बीस उंगलियों की सख्त पकड़ में से
उड़ा वह झंडा और आकाश लाल लाल
मानो कि अंगारे उसमें से निकलने वाले हों
सागर के पेटे में हलचल
पर्वत भी डगमग सा
और जैसे आसमान फटे और उसके बीच से
बिजली की चमक एक निकले और धरती में समा जाए
और फिर सागर के पेटे को भेदकर तलवार बनकर
कामरेड के हाथों में आ जाए
और मैं उनके आगे हाथ दोनों जोड़कर
गर्दन झुकाकर कहूँ कि
आपका अनुमान ही सत्य है
मेरे हाथ में कहीं एक छल था
अब क्या करूँ मैं अब तो मैं प्रस्तुत हूँ
मार भी डालिए तो एक झंझट से छुट्टी मिले
करो प्रतिज्ञा कि कठिनाई से भागकर कहीं नहीं जाओगे
उनका आदेश कुछ ऐसा ही अनुभव था
कभी कभी मुझे ऐसा कुछ लगता है
मैं ही वह रावण हूँ जिसके जितने सिर काटे जायँ
उतने हजार सिर नए नए उगते हैं
या कि जिजीविषा प्रचंड कुछ इतनी है
सर मेरा काटकर क्रांति के यज्ञ में
समर्पित भी हो जाय तो इच्छा शक्ति से
गर्दन के ऊपर फिर एक सर निकल आय
वैसे ही दोस्तो तुम्हारी ही यादों से आलोकित मेरा मन
शहर के एक एक नुक्कड़ पर फैला है
आत्मा का यह विस्तार भी अजीब है
कि शहर के किसी कोने जब कोई गोली खाता है
तो आत्मा में मेरे विद्रोह ही जगाता है
और जब कभी कहीं जनता के हाथ दुश्मन की गर्दन
पर कसते हैं तो लगता है आत्मा में चुभी हुई
काँटे की फाँस निकल गई हँसते हैं
मन की भावनाएं बखूबी कही हैं .... पर कविता की दृष्टि से कुछ ज्यादा लंबी लगी
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसंगीता जी कि बात से सहमत हूँ बहुत ही लंबी है।
ReplyDeleteऐसे लंबा लेखन हमेशा उबाऊ ही नहीं होता लेकिन ये कविता है ।
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