Sunday, December 19, 2010

सिलचर डायरी


पूर्वोत्तर भारत के बारे में लिखने से पहले भारत नामक देश के बारे में एक छोटी सी टिप्पणी । असम विश्वविद्यालय के एक अध्यापक रमेश कुमार मुजु मूलतः काश्मीरी हैं । उन्होंने काश्मीर में आतंकवाद के संबंध में मजेदार कथा सुनाई । यह कथा काश्मीर में विश्वास की तरह प्रचलित है । उनके मुताबिक काश्मीरी लोग मिठाई की जगह नमकीन ज्यादा पसंद करते हैं और शादी में ज्यादा धूम धड़ाका नहीं करते । लेकिन उन्होंने बताया कि पिछली सदी के अस्सी दशक में श्रीनगर में मिठाई की दुकानों और टेंट हाउसों की बाढ़ आ गयी थी । आखिर ये कौन लोग थे और उन्हें अपना व्यवसाय चलाने के किये धन कहाँ से मिलता था ? उनका कहना था कि ये उत्तर प्रदेश और बिहार से आये बाहरी लोग थे और उनके जरिये ही घाटी में आतंकवाद आया ।

एक दूसरे अध्यापक अद्रासुपल्ली नटराजु आंध्र प्रदेश के हैं । उन्होंने बताया कि नवोदय विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को राष्ट्रीय एकता के लिये भारत भर मेंभेजा जाता है । एक बार आंध्र के पंद्रह बच्चों का चुनाव बिहार भेजने के लिये हुआ । सभी बच्चों ने नवोदय विद्यालय से अपना नाम कटवाकर प्राइवेट स्कूलों में दाखिला ले लिया । न नवोदय विद्यालय में रहेंगे न बिहार जाना पड़ेगा । गोरख पांडे ने अपनी कविता उठो मेरे देश में इस देश के लिये बहुत ही आकर्षक रूपक खड़ा किया है विराट बौना ।

हिमालय से कन्याकुमारी और

कच्छ से ब्रह्मपुत्र की लहरों तक

फैला हुआ

विराट शरीर कटा हुआ

वर्ग संप्रदाय और जाति के

टुकड़ों में बँटा हुआ

एक अंग से नष्ट करता हुआ दूसरे अंग को

आत्मघाती बौना हूँ

विराट बौने को मानो पहली बार देखा

जिस इलाके में दुनिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है, जहाँ दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप है, जिसे भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है, जहाँ जैव विविधता का अपार भंडार है, नृजातीय समृद्धि है उसे हुआ क्या कि कालापानी समझा जाने लगा । आखिर किसकी नजर इस खूबसूरत इलाके को लगी कि विद्यार्थी भी सड़क से आने जाने की बजाय हवाई जहाज से चलना सुरक्षित समझते हैं । उत्तर के लिये मैं आपसे इस इलाके में आने का अनुरोध करता हूँ । निवेदन बस इतना है कि टूरिस्ट की तरह मत आइए, न अपने से भिन्न लोगों के प्रति भय और नफ़रत लेकर आइए ।

पहली बार जब मैं सिलचर स्थित असम विश्वविद्यालय में अध्यापक होकर आया तो दिल्ली से चले हरेक बेवकूफ़ की तरह राजधानी एक्सप्रेस से आया । ए सी के नये यात्री की तरह दोपहर का खाना खाकर परदे लगाकर सोने की कोशिश में वह ब्रह्मपुत्र नहीं देख सका जिसे संस्कृत ग्रंथों में नदी न कहकर नद कहा गया है । इसी नद में जोरहाट के नजदीक माजुली द्वीप है जिसे दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप माना जाता है । इसका कुल क्षेत्रफल तकरीबन 750 वर्ग किलोमीटर है । आबादी तकरीबन सात या आठ लाख । विशालता का अनुमान इसी से करिये कि हाल में उसका उत्तरी किनारा काटकर दक्षिण में ब्रह्मपुत्र ने नई मिट्टी डाली है । इस नये भूभाग की लंबाई 18 किलोमीटर और चौड़ाई 4 किलोमीटर है । बाद मेंजाना कि यह द्वीप पहले शंकरदेव के संप्रदाय का केंद्र हुआ करता था । स्वतंत्रता आंदोलन में यहाँ के एक सत्राधिकार ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था । शंकरदेव का महापुरुषिया संप्रदाय मूलतः निर्गुण संप्रदाय है । इसमें नामजप की प्रतिष्ठा है । इसलिये असम में मंदिर की जगह नामघर मिलते हैं । नामघर से जुड़ा हुआ समूचा धार्मिक प्रतिष्ठान सत्र कहलाता है और उसका मुखिया सत्राधिकार ।

बहरहाल अगर आँख खुली हो तो गौहाटी स्टेशन पर भी भिखारियों की अत्यल्प उपस्थिति महसूस कर सकते हैं । पूरे उत्तर पूर्व में भिखारियों की गैर मौजूदगी बाद में समझ में आई । यहाँ की सभी जनजातियाँ - नागा, मिजो, मणिपुरी इस पर गर्व का अनुभव करते हैं । चरम गरीबी और भुखमरी के बावजूद भिक्षा नहीं

स्टेशन से बाहर आकर दो दो यात्रियों के बैठने की जगह वाली बस पकड़ी । इन बसों की सीटें पीछे की ओर झुक जाती हैं इसलिये सोते जागते सुबह सिलचर । रास्ते में जब जब आँख खुली हरे रंग से साबका पड़ा । प्रकृति की हरियाली से अलग मानव क्रिया कलाप में दो पेशों में इस रंग की बहुतायत है । एक जान लेने का है, दूसरा जान बचाने का । ऊपर से कितने समान किंतु सर्वथा विपरीत । रास्ते भर फ़ौजी भाई बस रोक रोक कर तलाशी करते रहे । बाद में जाना 1958 में नागालैंड में पहली बार भारत के प्रथम प्रधान मंत्री और समाजवादी किस्म के समाज के ख्वाहिशमंद जवाहरलाल नेहरू ने फ़ौज भेजी थी । उनकी तैनाती नागा विद्रोहियों को काबू में करने के लिये की गयी थी । तबसे आज तक भारत के ये सुरक्षा प्रहरी मुस्तैदी से पूरे उत्तर पूर्व में तैनात हैं । स्वाभाविक है कि पहरेदार को कुछ विशेषाधिकार भी देने होंगे । ये विशेषाधिकार आर्म्ड फ़ोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट के रूप में विद्यमान हैं । कहते हैं कभी आस्ट्रेलिया में चूहों की आबादी बेतरह बढ़ गयी थी । उन्हें नियंत्रित करने के लिये बिल्लियाँ लायी गयीं । शुरू में तो बिल्लियों ने चूहों पर हमला किया । लेकिन धीरे धीरे चूहों से उनकी दोस्ती हो गयी । यही हाल फ़ौज का भी समझिए । तलाशी में बेदाग निकलने की कीमत तय हो गयी है । विद्रोहियों और फ़ौज के हित एक दूसरे से जुड़ गये हैं । विद्रोह जितना फैलेगा उतनी ही अधिक फ़ौज की तैनाती होगी । ईमानदारी से पूछा जाए तो आज उत्तर पूर्व में कोई भी आतंकवाद का खात्मा नहीं चाहता । फ़ायदेमंद धंधा है । नेताओं को इसके कारण केंद्र से फ़ौज मँगाने में आसानी होती है । जिन सरकारी कार्यालयों से उग्रवादियोंको चंदा जाता है वहाँ के अफ़सर एक हिस्सा पहले अपनी जेब के हवाले करते हैं । अगर ठीक से तलाशी हो तो ढेर सारे फ़ौजी हथियार उग्रवादियों के पास मिल जायेंगे ।

बात हिंदुस्तान की ही नहीं है । पूरी दुनिया में लोग फ़ौज के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं । अल्बर्ट आइंस्टाइन ने लिखा कि जब मैं ढेर सारे लोगों को एक साथ पैर पटककर चलते देखता हूँ तो मुझे लगता है मस्तिष्क नामक अंग इन लोगों को व्यर्थ ही मिला है । उत्तर पूर्व में फ़ौज की तैनाती से इस समाज को बलात्कार जैसी चीज का अनुभव पहली बार हुआ । इनकी संस्कृति में ऐसी कोई चीज कभी थी ही नहीं । आर्म्ड फ़ोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट अंग्रेजों के जमाने के एक कानून का पुनरावतार है । नये अवतार में कुछ विशेषता तो होनी ही चाहिए । पहले अशांति फैलाने का शक (सिर्फ़ शक) होने पर लोगों को गोली मारने का अधिकार कमीशंड अफ़सरों को था नये अवतार में यह अधिकार लोकतांत्रिक होकर सामान्य हवलदार को भी प्राप्त हो गया । इस कानून के तहत हुई किसी ज्यादती का विरोध करने अगर आप अदालत जाना चाहते हैं तो इसके लिये केंद्र सरकार की पूर्वानुमति होनी चाहिए । अब आप कल्पना कर सकते हैं कि इतने अधिकार मिलने पर ये सुरक्षा प्रहरी क्या क्या कर सकते हैं !

मणिपुर के एक गाँव में लोग मुखिया का चुनाव करने के लिये इकट्ठा थे । सहसा फ़ौजी जीपोंसे आये । लोग डरकर बगल में एक सूखे तालाब में कूद गये, छिपने की कोशिश करने लगे । वहाँ जाकर फ़ौजियों ने एक औरत, उसके पति और बच्चे को गोली मारी । विरोध की आशंका को देखते हुए नजदीकी रिश्तेदारों को हरेक मौत पर दो दो लाख रुपया देकर मामला दबाया गया । एक मंत्री के नजदीकी रिश्तेदार को असम राइफ़ल्स नामक अर्धसैनिक बल ने उठाया । सुबह गोलियों से छलनी उसकी लाश मिली । यह सब इराक में नहीं हिंदुस्तान के ही एक प्रांत में घटित हो रहा था ।

विश्वविद्यालय में मुझे सलाह दी गयी कि जल्दी से जल्दी पहचान पत्र बनवा लीजिये । कहीं भी कभी भी आपको रोका जा सकता है तब यही काम आयेगा । लेकिन कितना ? गर्मियोंकी छुट्टी में घर लौटते वक्त ट्रेन पकड़ने गौहाटी आना था । सुमो में वे काश्मीरी अध्यापक भी थे । गौहाटी शहर में एक ठुल्ले ने सुमो रोकी । कहा जा रहा है कि यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हैं । किसी ने कहा- आई कार्ड दिखा दीजिये । एक तो उत्तर पूर्व में ऊपर से काश्मीरी ! घर कहाँ है? सवाल आया । दिल्ली । जाना कहाँ है ? दिल्ली । दिल्ली में कहाँ?साउथ दिल्ली । इनके सामान की तलाशी लो । कुछ नहीं है साहब । ठीक है जाओ । यह नजारा गौहाटी रेलवे स्टेशन पर भी दिखाई पड़ सकता है ।

सिलचर में रहते हुए और भी बातों का पता चला । तीन लाख की आबादी वाला यह शहर उत्तर पूर्व के बड़े शहरों में से एक है । यह असम का ऐसा हिस्सा है जिसे बंगाल का छूटा इलाका भी कह सकते हैं । सिर्फ़ चाय की ढुलाई में सुविधा के नाते यह असम से जुड़ा है अन्यथा सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से पूरी तरह भिन्न । असम भौगोलिक और मानसिक रूप से दो हिस्सों में विभाजित है- ब्रह्मपुत्र घाटी और बराक घाटी । दोनों एक दूसरे से पूरी तरह अलग । सिलचर बराक घाटी का केंद्रीय नगर है और सिलहट से अलग होकर भारत में आया । लाल, बाल, पाल मेंसे तीसरे यानी विपिनचंद्र पाल सिलहट के ही रहनेवाले थे । ठीक ही आधुनिक भारत का इतिहास 1947 में खत्म हो जाता है क्योंकि उसके बाद के इतिहास से पूर्ववर्ती इतिहास को मिलाना दुष्कर होगा । यहाँ बांगला भाषा का एक विशेष रूप सलेटी चलती है । लेकिन केवल बोलचाल में लिखित में वही जो कलकत्ते में सुनाई पड़ती है । भारत की भाषा नीति के तहत यहाँ की प्रादेशिक भाषा भी असमीया ही होनी चाहिये थी पर 1961 में 19 मई के दिन दिनों लोगों की शहादत के कारण बराक घाटी में विशेष प्रावधान के तहत भाषा बांगला है । मानव संकुल होने के बावजूद चारों ओर फैली प्रकृति का हस्तक्षेप यहाँ निरंतर दिखाई पड़ता है । किसी ने बताया कि पृथ्वी पर जीवित बचा रहने अंतिम जीव मकड़ी होगी । इस बात पर यहाँ आये बगैर भरोसा होना मुश्किल है । जैसे मराठी मच्छरों को मच्छर कहने से उनकी मारकता का पता नहीं चलता इसलिये उन्हें डाँस कहते हैं उसी तरह मकड़ी को यहाँ माँकुश बोलते हैं । मकड़ी जीवन भर में उतना रेशा पैदा करती है जिससे पूरी पृथ्वी को लपेटा जा सकता है इस तथ्य पर विश्वास दिलाने के लिये सुबह से शाम तक घर में एक जाला जरूर बना देती है । इस जाले में फँसकर ही आप जानेंगे कि दुनिया का सबसे मजबूत रेशा यही है । जीवन रक्षक जैकेट इसी से बनाये जाते हैं । सिर्फ़ इसी रूप में नहीं अन्य रूपों में भी प्रकृति का हस्तक्षेप जारी रहता है । यहीं आकर जाना कि भारत में गर्मियों में बारिश होती है । फ़रवरी से शुरू होकर सितंबर तक निरंतर बारिश । और बारिश भी ऐसी जिसे पाब्लो नेरुदा ने अपने संस्मरणों में टोरेंशियल रेंस कहा है । बिजली साफ आसमान में गरजती और कड़कती है तो गरज और कड़क का मतलब समझ में आ जाता है । हवा चलेगी तो लगेगा ताड़ के सिर उड़ जायेंगे । ऐसे में गरीबों के मकान रोज ध्वस्त होते और बनते हैं । वाटर वाटर एवरीह्वेयर नाट ए ड्राप टु ड्रिंक अचरज की बात नहीं । अत्यधिक जलजमाव से पानी पेय नहीं रह जाता । ऐसे में हिंदी साहित्य कैसे समझायें । वसंत आता ही नहीं तो उसके वर्णन कैसे स्पष्ट हों । वर्षा भी साल भर होने के कारण वर्षारंभ का सूचक नहींरह जाती न ही हर्ष का विषय । तकरीबन प्रतिदिन बारिश जरा सी धूप को भी असह्य बना देती है । छाता बारिश से बचने के लिये नहीं धूप की तेजी से रक्षा के लिये लेकर चलना जरूरी हो जाता है । धूप की तेजी को सिर्फ़ अंग्रेजी शब्द स्कार्चिंग से ही समझा जा सकता है ।

सिलचर को जो सड़क गौहाटी से आती है उससे बारह घंटे के सफ़र में आप कुल दो घंटे ही असम में रहते हैं बाकी दस घंटे मेघालय में । सिलचर से एक सड़क इम्फाल जाती है थोड़ा पहले बदरपुर से अगरतला और तीसरी मिजोरम । रात भर रास्ते में ट्रक चलते दिखाई देते रहे । समूचा सामने का हिस्सा रंग बिरंगी बत्तियोंसे आलोकित मानो क्रिसमस ट्री झूमता चला आ रहा हो । याद आया दीफू के सांसद जयंत रोंगपी बता रहे थे कि यदि ब्रह्मपुत्र से व्यापारिक नौपरिवहन शुरू हो जाये तो उत्तर पूर्व में चीजों की कीमत कई गुना घट जायेगी । लेकिन ट्रक ट्रांसपोर्ट लाबी ऐसा होने नहीं देती । बस ट्रांसपोर्ट लाबी की साजिशों के कारण सिलचर से गौहाटी तक ब्राडगेज रेल लाईन का काम बरसों से अटका पड़ा है ।

कभी राजीव गांधी ने कहा था कि केंद्र से अगर किसी काम के लिये सौ रुपया भेजा जाता है तो सात रुपये ही सही जगह पर पहुँचते हैं । इसी आँकड़े को आप सात पैसा कर लें तो सच्चाई के करीब होंगे । इस इलाके के विकास के लिये जो इतना धन केंद्र सरकार खर्च करती है वह आखिर जाता कहाँ है । इस धन ने सिर्फ़ एक काम किया है । पूरे उत्तर पूर्व के प्रत्येक प्रांत में इसने लूट की कमाई से धनी बने लोगों का दलाल तबका खड़ा किया है जिनमें ठेकेदार, सरकारी अधिकारियों के साथ राजनेता और आतंकवादी भी शामिल हैं । यही लोग यहाँ की राजनीति में मुख्य भूमिका निभाते हैं । पार्टियोंके रंग अलग हो सकते हैं लेकिन सत्ता की मलाई खाने वाला एक ही वर्ग । दलबदल इसीलिये यहाँ इतनी आसानी से हो जाता है । आमतौर पर केंद्र में जिस पार्टी के हाथ सत्ता हो प्रदेश भी सुविधाजनक ढंग से उधर ही ढुलक जाता है । प्रदेश में सरकार के हाथ बँधे रहते हैं । कोई भी प्रांतीय सरकार रत्ती भर स्वतंत्रता का दावा नहीं कर सकती । नकेल राज्यपाल के हाथों में, फिर फ़ौज के अधिकार और उसके अलावा केंद्रीय खुफ़ियातंत्र के अधिकारी । पूरे उत्तर पूर्व में नियम की तरह फ़ौज से सेवानिवृत्त अफ़सरों को राज्यपाल बनाया जाता है । इनमें वैसे भी नागरिक प्रशासन और लोकतंत्र के प्रति नफ़रत भरी रहती है ।

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