Thursday, April 26, 2012

जे एन यू की एक शाम



साथियों आप कहीं जाने की जल्दी में हों
तब भी यह बताना चाहता हूँ
कि लोहे और पत्थरों और अजनबियों से भरे
इस शहर में पूरे साल में
एक बार और सिर्फ़ एक ही बार
सुहानी शाम आई थी
सूरज से पहले ही चिड़ियों ने
इसके बारे में जान लिया था आपने नहीं सुना
मौसम यहाँ बहुत तेजी से बदल जाता है
इसलिए ध्यान दीजिए खूबसूरत दिनों की सूचना पर
देखिए न कुछ ही दिन पहले
जंगल बबूल की गंध से भर उठा था मीठी कसैली प्यारी गंध
और अब कहीं पत्ते ही नजर नहीं आते
बारिश और ओलों की आवाज अब तक कानों में बजती है
शीशे की खिड़कियों पर टीन की छतों पर झोपड़ियों की प्लास्टिक पर
तेज पानी और ओलों की आवाजें
अब कहीं बादल दिखाई ही नहीं पड़ते
ठंड का मौसम तो कल की बात है
इसीलिए आपको ध्यान देना चाहिए था सुबह की धूप पर
जो जबरदस्ती पूरी पृथ्वी पर फैल गई थी
हवा नम भी थी और कुछ गर्म भी साफ हवा
जिसे फगुनहट के सिवा कुछ नहीं कह सकते
आपको सोचना चाहिए था
पूरे दिन नंगे पेड़ों के सूखे फल
तालियाँ बजाकर आने वाली शाम का स्वागत करते रहे
आपने कान तक नहीं दिया
और शाम उतरी पूरी शान से
विधवा की माँग की तरह सूनी सड़क रंगों से पट गई
लाल पीले नीले गुलाबी सभी रंग चटख हो उठे
चेहरे ट्यूबलाइट की रोशनी में चमकने लगे
साड़ियाँ जैसे पहनाकर इस्तरी की गई हों
पत्थर मुलायम हो गए और संगीत की एक उन्मत्त धारा फूट पड़ी
मेरा मन एक अजीब एकांत की ओर धकेल दिया गया
इस सब कुछ से बातचीत करने को मैं व्याकुल हो उठा
चिल्ला चिल्लाकर कहता रहा दोस्तो
आज की शाम आपको कहकहों की दावत देना चाहता हूँ
लेकिन किया क्या जा सकता है मैं और आप
थपेड़ों की जिंदगी जी रहे हैं
लेकिन ठहरिए सुनिए तो
यह शाम जैसे आसमान से धीरे धीरे ओस बरस रही हो
और धरती से हौले हौले उठ रही हो
भाप

5 comments:

  1. वाह,गोपालजी!आप तो बहुत अच्छे कवि भी हैं! वाह!

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  2. विधवा की मांग सी सूनी सड़क? बिम्ब खटक रहा है सर. और फिर उसका रंगों से भर जाना! आप लोगों से सीखा है सो यह चीजें डराती हैं.

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  3. बधाई ! कुल मिलाकर कविता अच्छी है,उस एक बिम्ब को छोड़कर जिसकी बात समर ने भी की है।

    वैसे कविता तो आपके profile message में भी है-

    कम्युनिस्ट हूँ
    थोड़ा... पुराने किस्म का

    अध्यापक हूँ पेशे से

    दोस्ती अच्छी लगती है
    जल्दी ही बोझ बन जाता हूँ.....

    तनाव और विडम्बना बोध और वैसी ही लय गति। कम्यूनिस्ट तो नये समाज के स्वप्नदर्शी और निर्माणकर्ता होते हैं। उनका पुराना पड़ जाना conceptually inconsistent है। कविता में ही ऐसी inconsistency का निर्वाह कर सकती है।

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  4. आखिरी वाक्य को फिर से पढ़ें-

    कविता में ही ऐसी inconsistency का निर्वहण संभव है।

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  5. आप सबकी टिप्पणियों के लिए शुक्रिया ।

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