Thursday, April 26, 2012

दीपावली



लोग सूरज का इंतजार नहीं करते
बात यह आज की नहीं है
इसकी एक लंबी कहानी है
जाड़ा गर्मी या बरसात
एक होह में बैठे बीस पचीस लोग
अपने में से रोज एक या दो कम करते
सुबह की प्रतीक्षा में काट देते थे रात
देवताओं के लिए सुरक्षित अग्नि
प्रोमेथ्यूने चुराई दंड पाया
वेदों ने उसे देवता बनाया
जाने किस प्रयोग से प्राप्त किया मानवता ने आग
एक लंबे सपने के फल सी बहुतों की कीमत चुकाकर
रातें गर्म हुईं जंगली जानवर दूर हुए
मनुष्य की उम्र बढ़ गई
जंगलों में आग लगी आदमी जले पशु जले
भुने मांस के स्वाद से बुभुक्षित आदमी ने
नियंत्रित किया आग को अन्न और मांस पकाकर स्वादिष्ट बनाया
स्वामित्व की इच्छा और भूख से व्याकुल आदमी ने
लोहे को आग में तपाकर तेज किया बनाया हल बनाई कुल्हाड़ी
गला दिया ढाल दिया लोहे को सोने को ताँबे को
चीर दिया आकाश की निस्सीमता को बनाए हवाई जहाज
नाप लिया अगाध समुद्र को बनाई पनडुब्बी
लाँघ लिए नदी नाले पहाड़ समुद्र तैर गया
बिजली की रोशनी फैलाई रात दिन एक किया
आज फिर इस फल को मेहनत से अलग कर रहे कुछ लोग
लाजिमी है कि आदमी अपनी समूची मेधा के साथ
इन ताकतों से टकरा जाए
इसीलिए ताल के पानी की तरह थिर मेरे गाँव में भी
लोगों ने सूरज का इंतजार नहीं किया
घनी अमावस की शाम और सुबह धरती चमक उठी
दियों से आदमी के उछाह से

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