Sunday, April 22, 2012

विद्रोह



इन पूरे दो वर्षों तक
किसी अज्ञात मांत्रिक के हाथों
शापित आत्मा की तरह
मैं अंधे कुएँ में
लटका दिया गया था
एक समूचे विद्रोही व्यक्तित्व को
बहुत धीरे धीरे अनजाने
तुम्हारे प्यार ने झुका लिया था
और मैं नतशिर तुम्हारे पीछे पीछे
फिर से हिंदू बन जाने के स्वप्न सँजोए चलता रहा
जबकि दुनिया बहुत आगे बढ़ी
हमारे देश के साथ षड़यंत्र करने वाले
बारहा रंगे हाथ पकड़े गए
झूठे विरोधियों की कतार नंगी होती रही
नई आत्मा गढ़ने वाले इंकार में उठे हाथ मुझे बार बार पुकारते रहे
मैं तुम्हारी माँग में सिंदूर भरकर सुहागन बनाने के सपने देखता रहा
मेरा अतीत और मेरे दोस्तों की याद मेरी आत्मा से लिपटे रहे
जिंदगी की हर हकीकत मुझसे सवाल पूछती रही
मेरे बगल में हत्याएँ होती रहीं और जवान उम्मीदें खुदकुशी करती रहीं
जिंदगी की धड़कन तेज से तेजतर होती गई
शांति आक्रमण के थे ये दो वर्ष
ये दो वर्ष मेरे साथियों ने मेरे बिना हर मोर्चे पर खून गिराते हुए बिताए
तूफानी बहसों और आतंक की आँधी से टकराते रहे मेरे मित्र
मैं तुम्हारी मुस्कान पर न्योछावर होता रहा
तुम्हारी पीली सलवार समीज हरी ड्रेस और सलेटी साड़ी की मैचिंग देखकर खुश होता रहा
रात दिन तुम्हारे खुश और नाखुश होने की कशमकश झेलता रहा
ज्ञान के वृहत्तर आयाम खोते गए
आत्मा के विश्वासों की सबसे गाढ़े समय बलि होती रही
जैसे सारी दुनिया से अनजान एक सामान्य आदमी हूँ नियति के हाथों मजबूर
सब कुछ देखकर भी चुप रहने को अभिशप्त
तुम्हारे साथ टूर करता रहा औरतों से छेड़खानी और ठिठोली के अनुभव
हासिल करने की कसम ही खा ली थी मानो
लेकिन नहीं मेरे सबसे प्यारे सपनों का रंग लाल है
घर परिवार भाई बहन जाति बिरादरी के समाज
में शामिल होते हुए देखा कि इसके लिए
सबसे जरूरी है भीतर के आदमी को मार डालना
इसके लिए नहीं बना मैं
मैं तो भविष्य के किसी देश का नागरिक
आहिस्ता आहिस्ता मेरे हाथ से
तुम्हारा हाथ छूटता चला गया है
जिंदगी के बहुत छोटे मोड़ पर हम दोनों ने अलग
रास्ते अपना लिए महज एक साल बाद
तुम देखोगी हम चाहकर भी एक दूसरे को
देख भी नहीं पाएँगे साथ बैठकर बातचीत
संभव नहीं रह जाएगी तुम्हारा ड्राइंग रूम मेरे बगैर ही आबाद रहेगा
मैं कहीं और भटक रहा होऊँगा जानता हूँ
तुम वहाँ मेरे साथ नहीं हो सकती
लेकिन मेरे रास्ते वही हैं संभव है
इस सफर में कभी कोई साथी न मिले
किसी अनजाने के हाथ अपने को सौंप न पाऊँ
फिर भी लौट नहीं सकता
तुम अपनी खुशियों में मगन रह सकती हो
मेरे भाग्य पर दया भी कर सकती हो
लेकिन फिसलन भरी डगर पर
रात दिन शंकित आत्मा की तरह
अपने आपको गलत समझते हुए
चलने की बेवकूफ़ी मेरे वश की बात नहीं
अपने सबसे प्यारे और पिघलते हुए
क्षणों की याद के बावजूद
मैं तुमसे विदा माँगता हूँ

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