Wednesday, April 18, 2012

पिड़िया की कथा

कुकुरा भूँकि गइल, सियरा जाग गइल । हाथ क हाथ रहे, मुँह क मुँह रहे । रखिया पतिया घुरवा लड़ा दिहली । बजर क केवाड़ देइ परि हरि रहली । जब इन्नर क सभा उठल । तब निगही क पाट टूटल । तब चीत क काठी टूटल । तब चेरिया क ओड़ा भरल । तब चेरिया घरे चलल । देखे त घूर पर बेटवा लोढ़ता पोढ़ता, खनी बजावता, माझा गावता । बेटवा देखि के झारि झूरि कोराँ उठा लिहली । आहो माइ रनिया क शान देख । घोड़ा घोड़िआइत, काँड़ कूँड़ देइत, सियार माकुर आइत त फार फूर खाइत । रानी रानी केवाड़ उघार । कइसे हम केवाड़ उघारीं हमके त हत्या लागल बा । चेरिया तूँही ठेल दे । चेरिया बोलल हमरा माथे ओड़ा काँखे बेटा कइसे हम ठेलीं । बेटवा क नाँव सुनि के सोहर के गोड़ ले परली । अरे चेरिया तूँ कवन नेम कइली, कवन धरम कइली । काँहे तोर जियाछ भइल काँहे हमार मराछ भइल ।

चेरिया कहलसि नेम धरम क बात हम का जानीं । हम त तोहार जूठ खाए जानीं, तोहार छाड़ी पहिरे जानीं । हम त गोबरा पथलीं तहों कहनी सुनलीं । पानी भरलीं तहों कहनी सुनलीं । तू त राजा क रानी । पान फूल कढ़लू, तबो मुँह जूठ कइलू घी गुर कढ़लू, तबो मुँह जूठ जूठिअवलू । तब तू कहनिया सुनलू । ओही से तोहार मराछ भइल । ओही से हमार जियाछ भइल । अरतर सोग न परतर सोग । न गाई क बछिया सोग । न बाट क दुबिया सोग । न भइया क बहिनी सोग । हरसू बो के सात जनम सात जुग नाहीं सोग । सोग सोग करेली । सोग जाँस घूर भार । पूत अस कोराँ । पिड़िया गोसाईं प्रसन्न ।

1 comment:

  1. अरे वाह!!
    माताजी ने सुन कर कहा कि तू ई कहाँ से ईयाद क लिहल ! वास्तविकता जान कर देर तक हंसती रहीं !!

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