Saturday, August 2, 2025

आंकड़ों का खतरनाक खजाना

 

                

                                                 

इस बात को सभी जानते हैं कि इस जमाने में शासन प्रशासन के लिए आंकड़ों का भारी महत्व है । पहले भी उत्पादन और वितरण हेतु अनुमान लगाया जाता रहा है । यह अनुमान बहुधा सहज बोध की शक्ल में हुआ करता था । इसे दर्ज करने और संप्रेषित करने के क्रम में ठोस आंकड़ों के नये संसार का उदय हुआ । इन आंकड़ों के आधार पर अनुमान को अधिक प्रामाणिक बनाने से सटीकता आयी जिसने बरबादी को रोकने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । धीरे धीरे प्रत्यक्ष अनुभव की जगह इन आंकड़ों ने लेना शुरू कर दिया । इससे ज्ञाता और ज्ञेय के बीच दूरी बढ़ी और शासन की नीतियों के निर्माण में इसका असर नजर आने लगा ।    

इस असर को नवउदारवाद के देशी संस्करण के आगमन के साथ ही महसूस किया जाने लगा था । सार्वजनिक वितरण प्रणाली की समस्याओं को दूर करने के नाम पर लक्षित समूह को चिन्हित करने के लिए गरीबी रेखा को निर्धारित करने के सिलसिले में पहली बार आंकड़ों की बाजीगरी की अमानवीयता को सबने देखा था । उस समय सरकार ने जितनी आमदनी को गरीबी रेखा से ऊपर माना था उस आमदनी में जीवन बिताने के प्रयोग चर्चित थे । तमाम सरकारी सांख्यिकीविदों ने भारी गणना के बाद माना था कि बीस रुपये प्रतिदिन की आय से मनुष्य गरीबी रेखा से ऊपर उठ जाता है । इस आय के बाद उसे सरकारी मदद की जरूरत नहीं रह जाती ।

बहस से शर्मिंदा होकर सरकार भोजन का अधिकार लेकर आयी लेकिन उसके साथ आधार का झमेला लग गया । आधार खुद ही किसी भी मनुष्य को दस अंकों में बदल देता है । कांग्रेस की सरकार ने जो बीज बोया उसकी जहरीली फसल काटने को तैयार इस सरकार ने तमाम मामलों में आधार को अनिवार्य बनाने के बाद आंकड़ों की अब नयी परियोजना शुरू की है जिसमें माता पिता के जन्म प्रमाणपत्र के आधार पर मनुष्य को हकदार माना जाएगा । आंकड़ों की इस नयी दमघोंटू दुनिया का कब्जा हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू पर होता जा रहा है । इसके कारण हमारे समय को उसी तरह आंकड़ों का समय कहा जा रहा है जैसे मीडिया के आने के बाद के समय को मीडियाकृत समय कहा गया क्योंकि सच को हम नंगी आंखों से देखने की जगह तस्वीरों के सहारे देखने लगे थे । तस्वीरों के इस मायाजाल ने अब झूठ का इतना बड़ा कारोबार बना लिया है कि मंगलयान भेजे जाने के बाद टेलीविजन पर एक समाचारवाचक ने मंगलग्रह का धोखा देने वाली जमीन पर खड़ा होकर चमकीले प्लास्टिक का कपड़ा पहना और खबर पढ़ी । तब इसे हास्य का विषय समझा गया लेकिन तस्वीरों की इस महिमा ने सब कुछ को हास्य में बदल दिया है । दुख यह है कि जिन भी आंकड़ों को सामने लाने की जरूरत थी उनमें से प्रत्येक पर परदा डाल दिया गया । रेल दुर्घटना के शिकारों के सिलसिले में पहले से ऐसा होता आ रहा था क्योंकि सूची केवल आरक्षित यात्रियों की रहती है और सभी मृतकों को मुआवजा देना पड़ता है। अब तो कोरोना के मृतकों से लेकर बेरोजगारी तक के आंकड़ों को जानने का कोई रास्ता ही नहीं रह गया है । ले देकर सूचना के अधिकार के सहारे कुछ आंकड़े एकत्र कर लिये जाते थे जिनका इस्तेमाल कार्यकर्ताओं की ओर से जनपक्षधर नीति निर्माण का माहौल बनाने के लिए होता था लेकिन उस अधिकार को भी चुपचाप दफ़न करने का प्रयास जारी है ।

सामाजिक जीवन में आंकड़ों का इतने बड़े पैमाने के हस्तक्षेप के साथ आधुनिक राज्य की मजबूती जुड़ी हुई है जिसमें राज्य ही सब कुछ हो जाता है तथा समाज और मनुष्य को उसके कानूनों पर पूरी तरह से निर्भर बना दिया जाता है । किसी भी मनुष्य के सभी अनुल्लंघनीय बुनियादी अधिकारों को उसकी नागरिकता से जोड़ दिया जाता है और नागरिकता के निर्धारण में राज्य की भूमिका निर्णायक हो जाती है । आश्चर्य की बात नहीं कि हमारे देश में औपनिवेशिक शासन के दौरान आंकड़ों का खेल जनगणना के साथ शुरू हुआ था । कहने की जरूरत नहीं कि इसने भारतीय समाज में स्थिर पहचानों के निर्माण की ऐसी निर्मम प्रक्रिया शुरू की जिसमें धर्म और जाति के बारे में तमाम धूमिल और परस्पर प्रवेश्य पहचानों को कठोर विभाजक रेखाओं में बदला गया । इसके ही साथ सामाजिक नियंत्रण की वह परियोजना जुड़ी है जिसने औपनिवेशिक शासन पद्धति के बेहद गहरे निशान बाद के दिनों तक कायम रखे । यह जटिल  विरासत आज भी किसी न किसी बहाने हमारा पीछा करती रहती है । सही बात है कि इस प्रक्रिया ने बहुतेरे अलक्षित समूहों की मजबूत उपस्थिति का भान कराया और उनकी समस्याओं पर बात करने के लिए राजनेताओं को मजबूर भी किया लेकिन कुल मिलाकर यह काम औपनिवेशिक शासन की मार्क्स के शब्दों में अनचाही भलाई ही थी ।                  

आंकड़ों के संदर्भ में अन्य प्रसंगों के अतिरिक्त हालिया युद्धों का भी हवाला दिया जा रहा है । पिछले दिनों  के कुछ युद्धों ने साबित कर दिया है कि अब भविष्य के युद्ध पारम्परिक तरीकों से नहीं लड़े जायेंगे । युद्धों में अत्याधुनिक तकनीक का हस्तक्षेप अब किसी विज्ञान कथा की बात नहीं रही, वह समूची दुनिया की नजरों के सामने है । नयी पीढ़ी के युद्धों में मिसाइल, ड्रोन आदि के आगमन ने युद्ध की दुनिया में युद्धरत सेनाओं की पुरानी धारणा भी बदल दी है । हजारों किलोमीटर दूर देश से मशीनगन को संचालित किया जा रहा है । शरीर के तापमान से मनुष्य को भांपकर निशाना लगाया जा रहा है । कुछ ही समय पहले लेबनान में पेजर के जरिये विस्फोट करके उनके उपयोगकर्ताओं को मार दिया गया । ईरान के एक सेनापति की अंगूठी से पहचानकर ड्रोन ने उन्हें निशाना बना लिया । इन सभी युद्धक कार्यवाहियों में संबंधित व्यक्तियों के बारे में जानकारियों का भारी महत्व था । इस अर्थ में भी आंकड़े इस समय सबसे कीमती वस्तु कहे जा रहे हैं । इनका उपयोग शासकों द्वारा समाज को नियंत्रित करने के लिए किया जा रहा है तो साथ ही समाज की समस्याओं के लिए आंदोलन और गोलबंदी करने वाले भी इनका रचनात्मक इस्तेमाल कर रहे हैं ।        

अधिकांश लोग समझते हैं कि आंकड़े पूरी तरह वस्तुनिष्ठ सच का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन असल में आंकड़ों की दुनिया कभी सामाजिक यथार्थ से निरपेक्ष नहीं होती । नस्ल के साथ इसके जुड़ाव को स्पष्ट करते हुए 2001 में यूनिवर्सिटी आफ़ मिनेसोटा प्रेस से तुकुफ़ू ज़ुबेरी की किताब ‘थिकर दैन ब्लड: हाउ रेशियल स्टैटिस्टिक्स लाइ’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि नस्ल बेहद जटिल मामला है और जीव विज्ञान से उसका इतना सीधा रिश्ता नहीं होता जितना समझा जाता है । हाल के दिनों में नस्ल से जुड़े जो भी आंकड़े प्रकाश में आये हैं उनके मामले में नस्लों को वस्तुनिष्ठ तरीके से निर्धारित समझ लिया गया है । इस मान्यता से लेखक सहमत नहीं हैं और कहते हैं कि उसका आधार निश्चित न होने से उसके बारे में निष्कर्ष भी गलत होते हैं । लेखक ने जो बात नस्ल के सिलसिले में कही है वह तमाम पहचानों के सिलसिले में लागू होती है । कठोर मानक हमेशा यथार्थ को विकृत कर देते रहे हैं ।   

एक बार अस्तित्व में आ जाने के बाद आंकड़ा आधारित पद्धति ने स्थिति की विवेचना में अपना इजारा कायम कर लिया । हमारे देश में मानसून पर खेती के निर्भर होने ने जलवायु की जानकारी के क्षेत्र में आंकड़ों का जो प्रवेश कराया वह अब जलवायु संकट को समझने का जरिया हो चुका है । इसकी तस्दीक कराते हुए 2010 में द एम आइ टी प्रेस से पाल एन एडवर्ड्स की किताबए वास्ट मशीन: कंप्यूटर माडेल्स, क्लाइमेट डाटा, ऐंड द पोलिटिक्स आफ़ ग्लोबल वार्मिंगका प्रकाशन हुआ ।

हमारी दुनिया की अस्थिरता ने भी आंकड़ों के दानवाकार भंडार की जरूरत पैदा कर दी है । 2014 में पैराडाइम पब्लिशर्स से विन्सेन्ट मोस्को की किताबटु द क्लाउड: बिग डाटा इन ए टरबुलेन्ट वर्ल्डका प्रकाशन हुआ ।

2014 में विली से राजेश जुगुलुम की किताब ‘कम्पीटिंग विथ हाइ क्वालिटी डाटा: कनसेप्ट्स, टूल्स, ऐंड टेकनीक्स फ़ार बिल्डिंग ए सक्सेसफ़ुल अप्रोच टु डाटा क्वालिटी’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि विगत कुछ सालों में तकनीक की जगह सूचना का महत्व बढ़ा है । तकनीक सस्ता बिकाऊ माल बनी है और जिसे सभी इस्तेमाल कर सकते हैं । असली होड़ अब उसकी जगह आंकड़ों के क्षेत्र में संघनित हो गयी है । इसी वजह से विभिन्न संगठनों को महसूस हो रहा है कि इस होड़ में टिकने के लिए उन्हें आंकड़ों के जखीरे की जरूरत है । इस गलाकाटू युद्ध में आंकड़े और सूचना ही उनकी संपदा होंगे । ऐसे माहौल में तमाम कंपनियां आंकड़ों से सार्थक नतीजे निकालने के लिए विश्लेषण की तकनीक का प्रयोग अधिकाधिक कर रही हैं । यह विश्लेषण तभी प्रभावी होगा जब विश्लेष्य आंकड़ों की गुणवत्ता उत्तम कोटि की होगी ।  

सर्वग्रासी आंकड़ों के इस प्रभुत्व को नागरिक मनुष्य की निजता में हस्तक्षेप समझा जाने लगा है । अत्याधुनिक उपकरणों के इस्तेमाल ने हमारे जीवन के एक एक क्षण को सार्वजनिक बना डाला है । 2015 में नेशन बुक्स से राबर्ट शीयर की सारा बेलादी के साथ लिखी किताब दे नो एवरीथिंग एबाउट यू: हाउ डाटा-कलेक्टिंग कारपोरेशन्स ऐंड स्नूपिंग गवर्नमेन्ट एजेन्सीज आर डेस्ट्राइंग डेमोक्रेसीका प्रकाशन हुआ । लोकतंत्र का सबसे लोकप्रिय और प्रत्यक्ष रूप बालिग मताधिकार पर आधारित चुनाव प्रणाली है । इस चुनाव प्रणाली में आंकड़ों का कारोबार करने वाली कंपनियों का जो हस्तक्षेप हुआ उसका सबसे प्रभावी और बेहद भयावह इस्तेमाल कैम्ब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी द्वारा मतदाताओं के सोशल मीडिया गतिविधियों की जानकारी के सहारे उनको प्रभावित करने के बारे में था । इस सिलसिले में  2020 में स्प्रिंगेर से फ़्रेडेरिक स्टेर्नफ़ेल्ट और एन मेट लारिट्ज़ेन की किताब ‘यूअर पोस्ट हैज बीन रिमूव्ड: टेक जायंट्स ऐंड फ़्रीडम आफ़ स्पीच’ का प्रकाशन हुआ । जो सोशल मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी के पारम्परिक मंचों के खात्मे के बाद प्रभावी मंच के रूप में उभरा था उसके इस चरित्र को कुंठित कर देने की आर्थिकी को स्पष्ट करने के चलते वर्तमान की एक प्रमुख समस्या को किताब ने रेखांकित किया है । तकनीक के क्षेत्र की ये बड़ी कंपनियां नए इजारेदारों के बतौर उभरी हैं और सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन को बड़े पैमाने पर रूपांतरित कर रही हैं । किताब को लिखे जाने के दौरान परिस्थिति में साप्ताहिक बदलाव आ रहा था । 2018 के आरम्भ में ही जर्मनी ने एक कानून बनाया जिसके मुताबिक फ़ेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्कों के लिए जर्मनी के कानून के अनुरूप सामग्री का नियमन अनिवार्य कर दिया गया । मार्च में कैम्ब्रिज एनालिटिका घोटाला खुल गया । यह पता चला कि फ़ेसबुक का इस्तेमाल करने वाले लाखों लोगों के आंकड़ों के आधार पर ब्रिटेन की एक जाली कंपनी ने अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव और ब्रेक्सिट समेत अनेक घटनाओं को प्रभावित किया था । मार्च के अंत तक गूगल ने अपने यहां से झूठी सूचनाओं को हटाने के लिए अलग विभाग ही खोल डाला । अप्रैल और मई में फ़ेसबुक के मालिक को अमेरिकी और यूरोपीय संसद के सामने पेश होना पड़ा । उसमें उन्होंने तमाम महत्व के सवालों पर चुप्पी साध ली । अप्रैल अंत में फ़ेसबुक ने आपत्तिजनक सामग्री हटाने और बहुतेरे संदिग्ध उपभोक्ताओं को काली सूची में डालने की योजना जाहिर की । कहने की जरूरत नहीं कि मतदाताओं के बारे में जानकारी जुटाकर उनको प्रभावित करने का यह संगठित व्यापार अब उनके निर्धारण तक को प्रभावित कर रहा है । अमेरिकी चुनावों का अध्ययन करने वालों ने बताया है कि दस्तावेजों के आधार पर मतदाता सूची के निर्माण ने बहुत ही सोचे समझे तरीके से मतदाताओं की संख्या के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी है जिसमें विपक्ष के सम्भावित मतदाताओं को उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि पहचानकर लक्षित ढंग से बाहर कर दिया जाता है और लोकतंत्र के इस रूप को भी जनता से छीन लिया जाता है । पश्चिमी देशों के इस प्रयोग की नकल अब शेष दुनिया में भी होने लगी है ।                    

तकनीक के हस्तक्षेप ने समूचे मानव जीवन को नयी जगह पर खड़ा कर दिया है । उसके हाथ से कर्ता का बोध छिन गया है । इस बात का संकेत करते हुए 2015 में मेलविल हाउस से कर्टिस ह्वाइट की किताब ‘वी, रोबोट्स: स्टेइंग ह्यूमन इन द एज आफ़ बिग डाटा’ का प्रकाशन हुआ ।

2015 में स्प्रिंगेर से दिर्क हेलबिंग की किताब ‘थिंकिंग अहेड- एसेज आन बिग डाटा, डिजिटल रेवोल्यूशन, ऐंड पार्टिसिपेटरी मार्केट सोसाइटी’ का प्रकाशन हुआ । इसमें लेखक के लेखों को संकलित किया गया है । सबसे पहला 2008 का है जब लेखक को वित्त बाजार की अस्थिरता का अनुमान हुआ । उन्होंने अखबार को यह भेजा । उस समय कोई भी इस सम्भावना की बात सुनना नहीं चाहता था । अखबार ने नहीं छापा । कुछ ही समय बाद लेहमान ब्रदर्स का बुलबुला फूटा और संकट व्याप्त हो गया । इसके बाद लेखक ने आर्थिक समस्याओं और वैश्विक संकटों की जड़ को समझना चाहा ।     

लोकतांत्रिक प्रक्रिया में मतदान ही सब कुछ नहीं होता । मतदान को मतदाता की हैसियत भी प्रभावित करती है । उसकी हैसियत में बढ़ती विषमता उसकी भागीदारी की क्षमता को भी विषम बना देती है । इस प्रक्रिया को उद्घाटित करते हुए 2016 में क्राउन से काठी ओ’नील की किताब ‘वेपन्स आफ़ मैथ डिस्ट्रक्शन: हाउ बिग डाटा इनक्रीजेज इनइक्वलिटी ऐंड थ्रिटेन्स डेमोक्रेसी’ नामक किताब का प्रकाशन हुआ ।

आंकड़ों के जखीरे पर दुनिया भर में राज्य का एकाधिकार कायम हो गया है । इसने राज्य की क्षमता में अपार वृद्धि कर दी है । अब लगभग हर कहीं राज्य द्वारा नागरिकों की निगरानी का व्यवस्थित तंत्र खड़ा हो गया है । 2016 में द ग्रेट कोर्सेज से पाल रोजेनत्सवाइग की किताब ‘द सर्विलान्स स्टेट: बिग डाटा, फ़्रीडम, ऐंड यू’ का प्रकाशन हुआ । नगरीकरण ने नागरिक को थोड़ी आजादी प्रदान की थी । देहाती जीवन की स्थिरता के कारण निगरानी का पुलिसिया ढांचा पर्याप्त हुआ करता था लेकिन शहरी जीवन की गतिशीलता ने राज्य के लिए नयी चुनौती पैदा कर दी थी । इस समस्या का समाधान राज्य ने निगरानी के नये तंत्र में खोज लिया है जिसमें प्रत्येक नागरिक की प्रत्येक गतिविधि को तकनीक आधारित तंत्र देख और दर्ज कर रहा है । 

2017 में आइकन बुक्स से ब्रायन क्लेग की किताबबिग डाटा: हाउ द इनफ़ार्मेशन रेवोल्यूशन इज ट्रान्सफ़ार्मिंग आवर लाइव्सका प्रकाशन हुआ । वर्तमान समय की इस सबसे बड़ी परिघटना को लेखक ने लोकप्रिय तरीके से पतली सी इस किताब में प्रस्तुत किया है । लेखक का कहना है कि अखबारों और अन्य संचार माध्यमों में इस शब्द का इतना जिक्र हुआ है कि इसकी उपेक्षा असंभव है । इसका संबंध व्यवसाय से तो है ही अन्य काम भी इसके सहारे सम्पादित हो रहे हैं । नई तकनीकों की मदद से बड़ी कंपनियों और सरकारों के लिए हमारे बारे में बहुत कुछ जानना संभव हो गया है । इस जानकारी के आधार पर कंपनी को सामान बेचने और सरकार को नियंत्रण कायम करने में सुभीता होगा । लेखक को लगता है कि यह चीज गायब नहीं होने जा रही है इसलिए इसके खतरों और फायदों के बारे में जानना उचित होगा । इसके तहत इस कदर भारी मात्रा में सूचना एकत्र और विश्लेषित की जाती है कि बिना कंप्यूटर के ऐसा करना असंभव हो जाता है । मानव समाज के आरम्भ से ही आंकड़े हमारे जीवन के अंग रहे हैं । लेखन और खाता बही के आने के बाद ये मानव सभ्यता की रीढ़ बन गए । सत्रहवीं-अठारहवीं सदी से ही इनके सहारे भविष्य में झांकने की कोशिश होती रही है । लेकिन उपलब्ध आंकड़ों की मात्रा कम होने और उन्हें विश्लेषित करने की हमारी क्षमता सीमित होने के चलते इसकी पहुंच कम हुआ करती थी । अब यह प्रक्रिया एक नए धरातल पर पहुंच गई है । इसके बाद लेखक ने स्पष्ट किया है कि ज्ञान का आधार आंकड़े रहे हैं । इनके सहारे सूचना का निर्माण होता है । सूचनाओं में आपस में जुड़े हुए आंकड़े होते हैं और इनके जरिए हम संसार के बारे में तमाम सार्थक बातें जान समझ पाते हैं । इसी जानकारी और समझ के सहारे हम सूचनाओं की उपयोगी व्याख्या करते हैं । आंकड़े संख्याओं का संग्रह होते हैं । उदाहरण के लिए यदि हमें किसी खास क्षेत्र में पानी में घंटे के हिसाब से मछलियों की मौजूदगी का पता हो तो इसके आधार पर मछली मारने के बेहतरीन समय का ज्ञान हो सकता है।

2017 में हार्परकोलिन्स से सेठ स्टीफेन्स-दाविदोविट्ज़ की किताब ‘एवरीबाडी लाइज: बिग डाटा, न्यू डाटा, ऐंड ह्वाट द इंटरनेट कैन टेल अस एबाउट हू वी रियली आर’ का प्रकाशन हुआ । किताब की प्रस्तावना स्टीवेन पिंकर ने लिखी है । उनका कहना है कि मानव स्वभाव की कार्यपद्धति को उजागर करने के औजारों की खोज लम्बे दिनों से समाज विज्ञानी कर रहे हैं । स्टीवेन पिंकर मनोवैज्ञानिक रहे हैं और तमाम तरीके आजमाने के बाद भी ऐसा करने में सफल नहीं रहे । मानव चिंतन बहुत ही जटिल संरचना है ।

2017 में न्यू यार्क यूनिवर्सिटी प्रेस से जान चेनी-लिपोल्ड की किताबवी आर डाटा: अलगोरिद्म्स ऐंड द मेकिंग आफ़ आवर डिजिटल सेल्व्सका प्रकाशन हुआ । लेखक के मुताबिक वर्तमान समय में मशहूर लोग ही जीवन जीने का आदर्श हो चले हैं । उनका ही गढ़ा गया व्यक्तित्व सफलता, सौंदर्य, इच्छा और प्राचुर्य का प्रतिमान बन गया है ।

समूची आबादी को आंकड़ों के जरिए नियंत्रित करने की राजकीय मुहिम के विरोध ने नये सरोकारों को जन्म दिया है । 2018 में अटलांटिक मंथली प्रेस से माइकेल शेर्टाफ़ की किताबएक्सप्लोडिंग डाटा: रिक्लेमिंग आवर साइबर सिक्योरिटी इन द डिजिटल एजका प्रकाशन हुआ ।

विरोध की इसी चेतना ने आंकड़ों के आलोचनात्मक अध्ययन के अनुशासन को जन्म दिया है । इसका परिचय देते हुए 2018 में यूनिवर्सिटी आफ़ वेस्टमिंस्टर प्रेस से अन्निका रिचटेरिक की किताब ‘द बिग डाटा एजेन्डा: डाटा एथिक्स ऐंड क्रिटिकल डाटा स्टडीज’ का प्रकाशन हुआ ।

2019 में प्लूटो प्रेस से पीटर ब्लूम की किताब ‘मानिटर्ड: बिजनेस ऐंड सर्विलान्स इन ए टाइम आफ़ बिग डाटा’ का प्रकाशन हुआ ।

2019 में यूनिवर्सिटी आफ़ वेस्टमिंस्टर प्रेस से डेविड शैंडलर और क्रिश्चियन फ़ुश के संपादन में डिजिटल आबजेक्ट्स, डिजिटल सबजेक्ट्स: इंटरडिसिप्लिनरी पर्सपेक्टिव्स आन कैपिटलिज्म, लेबर ऐंड पोलिटिक्स इन द एज आफ़ बिग डाटाका प्रकाशन हुआ । संपादकों की भूमिका के साथ किताब में उन्नीस लेख संकलित हैं । इनको तीन भागों में संयोजित किया गया है । पहले भाग में डिजिटल पूंजीवाद और बिग डाटा पूंजीवाद का विवेचन करने वाले सात लेख हैं । दूसरे भाग में डिजिटल श्रम का विश्लेषण करने वाले छह लेख हैं । तीसरे भाग में डिजिटल राजनीति का विवेचन छह लेखों के सहारे किया गया है । संपादकों के मुताबिक 2017 में ही इकोनामिस्ट ने आंकड़ों को दुनिया का सबसे कीमती संसाधन बताया था । पत्रिका के अग्रलेख में इसे नये समय का तेल कहा गया था । जिस तरह बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में तेल ने दुनिया में भारी समाजार्थिक बदलाव लाया था उसी तरह का बदलाव इक्कीसवीं सदी में आंकड़ों के सहारे आने जा रहा है । उसमें यह दावा किया गया था कि आंकड़ों के जखीरे से ज्ञान के सृजन के नये रास्ते खुलेंगे और नयी सम्भावनाओं का भी जन्म होगा ।   

2019 में हार्परकोलिन्स से ब्रिटेनी कैसर की किताब ‘टार्गेटेड: द कैम्ब्रिज एनालीटिका ह्विसलब्लोअर’स इनसाइड स्टोरी आफ़ हाउ बिग डाटा, ट्रम्प, ऐंड फ़ेसबुक ब्रोक डेमोक्रेसी ऐंड हाउ इट कैन हैपेन अगेन’ का प्रकाशन हुआ ।

2019 में स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से निक कोल्ड्राइ और यूलिसेस ए मेजियास की किताब ‘द कास्ट्स आफ़ कनेक्शन: हाउ डाटा इज कोलोनाइजिंग ह्यूमन लाइफ़ ऐंड अप्रोप्रिएटिंग इट फ़ार कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । लेखकों ने बेहद जीवंत तरीके से ब्राजील के मूलवासियों के साथ हुए छल को उजागर किया है । उद्योग और प्रगति के नाम पर उनकी जमीन छीनने हेतु राइफ़ल का इस्तेमाल किया गया, ईसाई धर्म के सहारे उन्हें सभ्य बनाया गया और उसी समय टेलीग्राफ के जरिए उन्हें शेष देश के साथ जोड़ा गया । यह सब एक साथ उन्नीसवीं सदी के मध्य में हुआ था । कुछ मूलवासी पारम्परिक परिधान छोड़कर पश्चिमी वस्त्र धारण करने लगे और सामुदायिक जीवन छोड़कर एकल परिवार का जीवन चुना । उपनिवेशकों की भाषा उन्होंने सीख ली और टेलीग्राफ का देशव्यापी संजाल खड़ा करने का रोजगार करने लगे । उपनिवेशवाद के बारे में सोचने पर इसी किस्म का इतिहास दिमाग में उपजता है । सच तो यह है कि उपनिवेशवाद के असरात आज भी महसूस होते हैं । आज भी स्थानीय समुदाय विस्थापन, सांस्कृतिक घुसपैठ और नरमेध का विरोध करते हैं । इस विरोध को जाहिर करने हेतु वे उसी टेलीग्राफ के संजाल का उपयोग करते हैं जिसे उन्हें उपनिवेशित करने के लिए बनाया गया था । लेखक इस उपयोग के असर को लेकर बहुत निश्चिंत नहीं हैं । अपना संदेह प्रकट करते हुए वे बताते हैं कि सोशल मीडिया के जरिए व्यक्त विरोध के प्रत्येक कदम से कारपोरेट ताकतों को लाभ मिलता है । एक अन्य घटना का उल्लेख करते हुए वे बताते हैं कि व्यस्तता के चलते कर्मचारी अक्सर पानी पीना भूल जाते हैं । इसकी एक बड़ी वजह कार्यालयों में लगे एयरकंडीशनर भी हैं । इससे पैदा होनेवाली तमाम समस्याओं से बचने के लिए एक तकनीकी समाधान के बतौर फोन में ऐसा समय सूचक लगा दिया गया जिससे पानी पीने की याद आती रहे । इस तरह जो काम निहायत प्राकृतिक था उसे तकनीक के हवाले कर दिया गया । उपनिवेशवादी शोषण की इस दौर में निरंतरता का यही सबूत है कि उस समय पश्चिम ने ही शेष दुनिया पर उसे थोपा था और आज भी वही शोषक की भूमिका में नजर आता है । खास बात कि इस समय उपनिवेशवादी शोषण के कुछ और भी हथियार पैदा हो गये हैं । मानव जीवन पर आधिपत्य जमाने और उसके आधार आजादी के खात्मे के नये तरीके खोज लिये गये हैं । इसी खतरनाक सम्भावना की छानबीन इस किताब में की गयी है ।

2019 में सेज से डेविड बीयर की किताब ‘द डाटा गेज़: कैपिटलिज्म, पावर ऐंड परसेप्शन’ का प्रकाशन हुआ ।

2019 में रटलेज से जैकब जोहानसेन की किताब ‘साइकोएनालीसिस ऐंड डिजिटल कल्चर: आडियेन्सेज, सोशल मीडिया, ऐंड बिग डाटा’ का प्रकाशन हुआ ।

2019 में पोलिटी से आर्ने हिन्ज़, लिना देनकिक और कारिन वाह्ल-जोर्गेनसेन की किताब ‘डिजिटल सिटिजेनशिप इन ए डाटाफ़ाइड सोसाइटी’ का प्रकाशन हुआ । लेखकों का मानना है कि संचार और अर्थतंत्र में डिजिटल प्रक्रिया के प्रवेश के कारण समाजार्थिक और राजनीतिक पर्यावरण के साथ हमारी अंत:क्रिया में बदलाव आया है और सांस्कृतिक व्यवहार भी बदला है । डिजिटल अर्थतंत्र ने व्यवसाय को बदला है, हमारा सामाजिक जीवन बहुत कुछ सोशल मीडिया के जरिये चलता है, राजनीति को इंटरनेट आधारित अभियानों और डिजिटल सक्रियता ने बदला, क्राउडसोर्सिंग ने आर्थिक प्रक्रिया को बदला, नागरिक पत्रकारिता ने खबरों की दुनिया के पदानुक्रम को तोड़ दिया और नीति निर्माण में भागीदारी को इंटरनेट आधारित प्रशासन ने सम्भव किया है । पिछले कुछ ही दशकों में ये सभी बदलाव आये हैं फिर भी इस दुनिया में हम जो कुछ भी करते हैं उससे उत्पन्न आंकड़ों के जखीरे के संसाधन और इस्तेमाल की व्यवस्था और औजार फिलहाल चिंता के केंद्र में हैं ।    

2019 में अफ़्रीकन बुक्स से टिम डेविस, स्टीफेन बी वाकर, मोर रूबेनस्टाइन और फ़ेर्नान्दो पेरिनी के संपादन में ‘द स्टेट आफ़ ओपेन डाटा: हिस्ट्रीज ऐंड होराइज़न्स’ का प्रकाशन हुआ । इसकी प्रस्तावना बेठ सिमोन नोवेक ने लिखी है । किताब में शामिल सैंतीस लेखों को चार हिस्सों में रखा गया है ।

2020 में द एम आइ टी प्रेस से कैथरीन डि’इगनाज़ियो और लारेन एफ़ क्लीन की किताब ‘डाटा फ़ेमिनिज्म’ का प्रकाशन हुआ । भूमिका में उन्होंने आंकड़ों के साथ नारीवाद के रिश्ते को जरूरी बताया है । किताब की कहानी 1967 में नासा की प्रयोगशाला में क्रिस्टीन मान डार्डेन के प्रवेश से शुरू होती है । प्रायोगिक गणित में उनकी योग्यता के कारण उन्हें डाटा विश्लेषक का काम मिला था ।

2020 में द एम आइ टी प्रेस से जथान साडोव्सकी की किताब ‘टू स्मार्ट: हाउ डिजिटल कैपिटलिज्म इज एक्सट्रैक्टिंग डाटा, कंट्रोलिंग आवर लाइव्स, ऐंड टेकिंग ओवर द वर्ल्ड’ का प्रकाशन हुआ ।

2020 में एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी प्रेस से मार्टिन एंगेब्रेट्सेन और हेलेन केनेडी के संपादन में ‘डाटा विजुअलाइजेशन इन सोसाइटी’ का प्रकाशन हुआ । इसकी प्रस्तावना अलबेर्तो कैरो ने लिखी है । किताब में कुल छब्बीस लेख हैं । पहला संपादकों की लिखी भूमिका है । शेष लेख पांच हिस्सों में बांटे गये हैं ।

2021 में ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी प्रेस से राब किचिन की किताब ‘डाटा लाइव्स: हाउ डाटा आर मेड ऐंड शेप आवर वर्ल्ड’ का प्रकाशन हुआ ।

2021 में यूनिवर्सिटी आफ़ मिनेसोटा प्रेस से क्लेयर बिर्चल की किताब ‘रैडिकल सीक्रेसी: द एन्ड्स आफ़ ट्रान्सपेरेन्सी इन डाटाफ़ाइड अमेरिका’ का प्रकाशन हुआ ।

2021 में रटलेज से यास्मीन इब्राहीम की किताब ‘पोस्टह्यूमन कैपिटलिज्म: डांसिंग विथ डाटा इन द डिजिटल इकोनामी’ का प्रकाशन हुआ ।

2021 में द एम आइ टी प्रेस से अलेक्स पेंटलैंड, अलेक्जेंडर लिपटन और थामस हार्डजोनो की किताब ‘बिल्डिंग द न्यू इकोनामी: डाटा ऐज कैपिटल’ का प्रकाशन हुआ । पेंटलैंड का कहना है कि युद्ध, महामारी या किसी बुनियादी तकनीक के आगमन से पैदा संकट में व्यक्ति, व्यवसाय और सरकार के बीच के रिश्तों का पुनराविष्कार करना पड़ता है । प्रथम विश्वयुद्ध से पहले बड़े पैमाने पर निर्माण शुरू होने के चलते नया संतुलन बनाना पड़ा था । इस दौरान काम के हालात और वेतन संबंधी नियम, उत्पादित भोजन से सेहत की रक्षा और एकाधिकार पर रोक लगाने वाले कानून बने । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोपीय उपनिवेशों को मुक्ति मिली, उच्च शिक्षा तक जनता की पहुंच बनी और स्त्री अधिकार तथा नस्ली समानता में प्रगति आयी । इसी समय क्षयरोग और पोलियो पर जैव प्रौद्योगिकी के कारण रोक लगी तथा दवाओं के सख्त नये मानक तय हुए । इसी तरह इस समय दो किस्म के बदलाव समानांतर जारी हैं । एक तो कोरोना महामारी के कारण स्वास्थ्य और अर्थतंत्र को गहरा धक्का लगा है, दूसरी ओर इंटरनेट आधारित गतिविधियों के चलते निजी जीवन के आंकड़ों का जखीरा तैयार हो रहा है और कृत्रिम बुद्धि आधारित अभ्यासों का दैनिक जीवन में हस्तक्षेप गहरा रहा है । नयी तकनीकों से इस वैश्विक महामारी से लड़ने में मदद मिल रही है लेकिन साथ ही इसी तकनीक से चलने वाले सोशल मीडिया पर झूठी अफवाहें और भ्रम भी बहुत फैल रहा है । संक्रमण के प्रसार की जानकारी के लिए तैयार तकनीक को निजी जीवन की सुरागरसी के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है । इस मामले में सामाजिक और सरकारी ढांचों को विचार करना होगा कि भविष्य की महामारी से बेहतर तरीके से निपटने के साथ ही किस तरह आर्थिक लाभ को समूचे समाज में वितरित करके अर्थतंत्र में जान फूंकी जा सके । इस समय अर्थतंत्र, सरकार और स्वास्थ्य के लिहाज से आंकड़ों की भूमिका बहुत महत्व की हो गयी है । इसीलिए उन पर कुछेक लोगों का कब्जा अनुचित है । इनका जखीरा जिनके पास होगा उनके रहमो करम पर ही तमाम समुदायों को निर्भर रहना होगा ।        

2021 में रटलेज से एवेरिस्तो बेन्येरा की किताब ‘द फ़ोर्थ इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन ऐंड द रीकोलोनाइजेशन आफ़ अफ़्रीका: द कोलोनियलिटी आफ़ डाटा’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के अनुसार जैसे जैसे चौथी औद्योगिक क्रांति का प्रसार हो रहा है मनुष्यों और अन्य जीवों की दुनिया अप्रतिरोध्य समाजार्थिक और कानूनी बुनियादी बदलावों की गिरफ़्त में आती जा रही है । इसका बड़ा कारण आंकड़ों द्वारा सामाजिक जीवन का अधिग्रहण है । इस दौर में पूंजीवाद का जोर वस्तुओं की जगह सेवाओं पर बढ़ गया है । सेवा क्षेत्र की यह क्रांति नैनो तकनीक, जैव अभियांत्रिकी और सूचना संचार तकनीक के आपसी मिलन से आयी है । इस प्रक्रिया में इसने भौतिक, डिजिटल और जैविकीय दुनिया के बीच पारम्परिक अंतर को धुंधला दिया है । इसकी वजह से चिंतन और कर्म के नये तरीके पैदा हुए हैं जिनका आधार लोगों के दैनिक जीवन से संग्रहित सूचनाओं और आंकड़ों का विकराल जखीरा है । व्यवहार में इसके कारण हाशिये के समुदायों का फिर से बहिष्करण देखने में आ रहा है ।

2021 में स्प्रिंगेर से चुनलेइ तांग की किताब ‘डाटा कैपिटल: हाउ डाटा इज रीइनवेंटिंग कैपिटल फ़ार ग्लोबलाइजेशन’ का प्रकाशन हुआ ।

2021 में विली ब्लैकवेल से अलेक्स जी गुटमैन और जार्डन गोल्डमायर की किताब ‘बिकमिंग ए डाटा हेड: हाउ टु थिंक, स्पीक, ऐंड अंडरस्टैंड डाटा साइंस, स्टैटिस्टिक्स, ऐंड मशीन लर्निंग’ का प्रकाशन हुआ ।

2021 में एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी प्रेस से लीलियाना बोनेग्रू और जोनाथन ग्रे के संपादन में ‘द डाटा जर्नलिज्म हैंडबुक: टुवर्ड्स ए क्रिटिकल डाटा प्रैक्टिस’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब में चौवन लेख शामिल हैं । इन्हें आंकड़ों के सहारे उठे मुद्दों, आंकड़ों के संग्रह, आंकड़ों के इस्तेमाल, आंकड़ों के अनुभव, आंकड़ों की छानबीन, आंकड़ा पत्रकारों के संगठन, आंकड़ा पत्रकारिता की सीख और आंकड़ा पत्रकारिता की अवस्थिति संबंधी विभिन्न हिस्सों में व्यवस्थित किया गया है । इसमें पत्रकारिता के इस विशेष रूप, इसके मकसद, इसकी क्षमता, सम्भावना और सीमा से जुड़े सवालों का जवाब देने की कोशिश की गयी है । दुनिया भर में इसके व्यवहार, संस्कृति और राजनीति के बारे में भी बताने का भी सामूहिक प्रयोग इसमें हुआ है । पत्रकारिता का यह क्षेत्र विकासमान है इसलिए उसके बारे में एकाधिक आवाजों को इसमें जगह दी गयी है ।

2021 में स्प्रिंगेर से सेर्गियो कोन्सोली, दिएगो रेफ़ोरजियातो रेकुपेरो और मिशेला सैसाना के संपादन में ‘डाटा साइंस फ़ार इकोनामिक्स ऐंड फ़ाइनैन्स: मेथडालाजीज ऐंड अप्लिकेशंस’ का प्रकाशन हुआ । रोबेर्तो रिगोबान ने इसकी प्रस्तावना लिखी है । संपादकों की भूमिका के अतिरिक्त ढेर सारे विशेषज्ञों के लेख इसमें शामिल हैं ।

2022 में प्लूटो प्रेस से मार्क ग्राहम और मार्टिन डिट्टस की किताब ‘जियोग्राफीज आफ़ डिजिटल एक्सक्लूजन: डाटा ऐंड इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।

2022 में यूनिवर्सिटी आफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस से राबर्तो जे गोन्ज़ालेज़ की किताब ‘वार वर्चुअली: द क्वेस्ट टु आटोमेट कनफ़्लिक्ट, मिलिटराइज डाटा, ऐंड प्रेडिक्ट द फ़्यूचर’ का प्रकाशन हुआ ।

2022 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से टोर्बेन इवेर्सेन और फिलिप रेम की किताब ‘बिग डाटा ऐंड द वेलफ़ेयर स्टेट: हाउ द इनफ़ार्मेशन रेवोल्यूशन थ्रिटेन्स सोशल सोलिडरिटी’ का प्रकाशन हुआ ।

2022 में यूनिवर्सिटी आफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस से मेरी एफ़ ई एबेलिंग की किताब ‘आफ़्टरलाइव्स आफ़ डाटा: लाइफ़ ऐंड डेट अंडर कैपिटलिस्ट सर्विलांस’ का प्रकाशन हुआ ।

2022 में स्प्रिंगेर से अलेसांद्रो मान्तेलेरो की किताब ‘बीयान्ड डाटा: ह्यूमन राइट्स, एथिकल ऐंड सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट इन एआइ’ का प्रकाशन हुआ ।

2022 में ओ’रिली से कार्ल आलचिन की किताब ‘कम्युनिकेटिंग विथ डाटा: मेकिंग योर केस विथ डाटा’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के अनुसार आंकड़ों के साथ संप्रेषण इस सदी का कौशल है । पहले इसकी अपेक्षा विशेषज्ञों से ही होती थी लेकिन अब सबसे इस क्षेत्र में कुशलता की अपेक्षा होती है । संप्रेषण में आंकड़ों का प्रयोग होने से दूसरों के फैसलों को प्रभावित किया जा सकता है । इस तरह अपने संगठन का लक्ष्य हासिल करने में सुविधा हो जाती है । इसी मकसद से किताब लिखी गयी है ।

2022 में एलिजाबेथ क्लार्के की किताब ‘एवरीथिंग डाटा एनालीटिक्स: ए बिगिनर’स गाइड टु डाटा लिटरेसी’ का प्रकाशन लेखिका ने ही किया । लेखिका के मुताबिक अंग्रेजी में डाटा में अक्षर तो चार ही हैं लेकिन इनकी ताकत बहुत अधिक है । माना जाता है कि अगर किसी भी व्यवसाय को अपनी बुनियाद मजबूत रखनी है तो उसे आंकड़ों के संग्रह, विकास, विश्लेषण और उनके सार पर ध्यान देना होगा । कंपनियों को भविष्य की योजना बनाने में इससे मदद मिलती है । आंकड़ों के संग्रह और भंडारण पर अरबों डालर का निवेश किया जाता है । इस मामले में उन्होंने कुछ चिंताजनक तथ्यों का भी जिक्र किया है । कंपनियों ने जितने बड़े पैमाने पर आंकड़े एकत्र किये हैं उनमें से लगभग 80 फ़ीसद का विश्लेषण सही इस्तेमाल हेतु नहीं किया जा सका है । जितना आंकड़ा उनको मिलता है उसके 10 फ़ीसद का ही वे विश्लेषण कर पाते हैं । इसका मतलब है कि इस प्रक्रिया में भारी मात्रा में धन की बरबादी होती है । इसका यह भी अर्थ है कि सुधार और विकास की भारी सम्भावना इस क्षेत्र में है । इस कारण आंकड़ों के विश्लेषक हमेशा व्यस्त रहते हैं । वे विश्लेषित आंकड़ों के आधार पर फैसले लेने में मदद करते हैं और अतिरिक्त आंकड़ों को उपयोगी बनाने के तरीके खोजते रहते हैं ।      

2023 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से कारेन लेवी की किताब ‘डाटा ड्रिवेन: ट्रकर्स, टेकनोलाजी, ऐंड द न्यू वर्कप्लेस सर्विलान्स’ का प्रकाशन हुआ । लेखक ने बताया है कि दिसम्बर 2017 में अमेरिका की केंद्र सरकार ने आदेश निकालकर ट्रक चालकों के लिए ऐसा उपकरण लगाना अनिवार्य कर दिया जिससे उनके आवागमन की खबर रखी जा सके । इसका मकसद उनकी थकान से पहले ही आराम की व्यवस्था करना घोषित किया गया था । उनकी थकान की वजह से अधिकांश सड़क दुर्घटनाओं का जन्म होता है इसलिए इसका इलाज जरूरी समझा गया । पहले से ही उनके काम के अधिकतम घंटे तय हैं जिसके बाद उन्हें आराम दिया जाता है । 

2023 में स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से सारा लामदन की किताब ‘डाटा कार्टेल्स: द कंपनीज दैट कंट्रोल ऐंड मोनोपोलाइज आवर इनफ़ार्मेशन’ का प्रकाशन हुआ ।

2023 में द एमआइटी प्रेस से एलिजाबेथ एम रेनिरिस की किताब ‘बीयान्ड डाटा: रीक्लेमिंग ह्यूमन राइट्स ऐट द डान आफ़ द मेटावर्स’ का प्रकाशन हुआ । लेखिका ने किताब एक घटना से शुरू की है जब 2003 में उनके कालेज के दस्तावेजों के संग्रह में सेंध लगाकर किसी ने छात्राओं की तस्वीरों की नकल करके उन्हें वेबसाइट पर डाल दिया था । वेबसाइट ने छात्राओं की तस्वीरों को आकर्षक छवि की प्रतियोगिता के लिए इस्तेमाल किया । इससे कालेज की सूचना नीति का उल्लंघन तो हुआ ही था, छात्राओं को अपनी निजता भी भंग होती महसूस हुई थी । उनकी शिकायतों के बावजूद ऐसा करनेवाले पर कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं हुई । बाद में वही व्यक्ति दुनिया की सबसे ताकतवर कंपनी, फ़ेसबुक का मालिक बना । उसका नाम मार्क ज़ुकरबर्ग था ।  

2023 में ब्रिस्टोल यूनिवर्सिटी प्रेस से जानी मोलेर हार्टली, जानिक किर्क सोरेनसेन और डेविड मैथ्यू के संपादन मेंडाटापब्लिक्स: द कनसट्रक्शन आफ़ पब्लिक्स इन डाटाफ़ाइड डेमोक्रेसीजका प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब के तीन हिस्सों में कुल नौ लेख संकलित हैं । इनमें आखिरी लेख संपादकों का लिखा उपसंहार है ।

2023 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रोफ़ेसर जूड ब्राउने, डाक्टर स्तीफेन केव, डाक्टर एलीनोर ड्रेज और डाक्टर केरी मैकइनेर्नी के संपादन में ‘फ़ेमिनिस्ट एआइ: क्रिटिकल पर्सपेक्टिव्स आन डाटा, अलगोरिद्म्स ऐंड इनटेलिजेन्ट मशीन्स’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब में कुल इक्कीस लेख शामिल किये गये हैं । संपादकों के मुताबिक हाल के दिनों में कृत्रिम बुद्धि के विस्फोट के साथ ही उसके आधार पर कार्यरत तकनीक की आलोचना में भी इजाफ़ा हुआ है । इन आलोचनाओं में नारीवादी चिंतकों ने प्रमुख भूमिका निभायी है ।

2023 में रौमान & लिटिलफ़ील्ड से डेरेक डब्ल्यू गिब्सन और जेफ़री डी काम की किताबडाटा ड्यूप्ड: हाउ टु एवाएड बीइंग हुडविंक्ड बाइ मिसइनफ़ार्मेशनका प्रकाशन हुआ । लेखकों का कहना है कि जीवन के महत्वपूर्ण फैसले लेते समय कोई भी धोखा खाना पसंद नहीं करता लेकिन गलत सूचनाओं और भ्रामक आंकड़ों के चलते सच तक पहुंचना अक्सर मुश्किल हो जाता है । आंकड़ों के ही सम्पर्क में रहने वाले भी बहुधा झूठी जानकारी के शिकार हो जाते हैं । इससे बचने का कोई गारंटीशुदा उपाय नहीं है । इसके बावजूद लेखकों ने मेहनत से इस किताब को तैयार किया है ताकि इस धोखे से कुछ बचाव हो सके । इसके बावजूद उनका कहना है कि पाठक को इसमें सुधार की जरूरत महसूस हो सकती है क्योंकि कोई भी कोशिश कभी पूरी तरह सुरक्षित नहीं होती । इस मामले में सचेत रहना ही सबसे जरूरी बात है । इसके लिए लेखकों ने एक वेबसाइट बना रखी है जिस जगह लगातार अद्यतन जानकारी रहती है ।

2023 में मैनिंग से जान के थाम्पसन की किताब ‘डाटा फ़ार आल’ का प्रकाशन थामस डब्ल्यू डेवनपोर्ट की प्रस्तावना के साथ हुआ ।

2024 में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से माइकेल रिचर्डसन की किताब ‘नानह्यूमन विटनेसिंग: वार, डाटा, ऐंड इकोलाजी आफ़्टर द एन्ड आफ़ द वर्ल्ड’ का प्रकाशन हुआ ।

2024 में द एम आइ टी प्रेस से कैथरीन डिइगनाजियो की किताब काउंटिंग फ़ेमिसाइड: डाटा फ़ेमिनिज्म इन ऐक्शनका प्रकाशन हुआ । किताब को दुनिया भर में आंकड़ों के साथ काम करने वाली स्त्री कार्यकर्ताओं को समर्पित किया गया है जिनके कारण जेंडर हिंसा से मुक्त समाज की कल्पना सम्भव हुई है । पाठकों को आरम्भ में ही मारे गये लोगों के नामों या छवियों की मौजूदगी के प्रति सावधान कर दिया गया है । आभार में लेखिका ने अपनी शिक्षण संस्था की स्थापना के लिए मूलवासियों की जमीन का आभार जताया है और कहा है कि सेटलर उपनिवेशवाद की परिघटना केवल शब्द तक सीमित नहीं है बल्कि व्यवहार में भी जारी है । इसी परिघटना के अब भी जारी रहने के कारण जेंडर हिंसा का पुनरुत्पादन होता रहता है । मूलवासी नारीवादियों ने सिखाया कि जमीन और शरीर की संप्रभुता आपस में जुड़े हुए हैं । 2017 में लेखिका को संयोग से मेक्सिको की एक स्त्री कार्यकर्ता के बारे में पता चला जो मारी गयी स्त्रियों के बारे में साल भर पहले से जानकारी जुटा रही थीं । इसके लिए वे अखबारी रपटों, सरकारी दस्तावेजों और निजी सूत्रों की सहायता लेती थीं । वे पारलिंगी स्त्रियों समेत सभी तरह की जेंडर आधारित हत्याओं की खबरें जुटा रही थीं । वे मारी जाने वाली के नाम उम्र, लिंग, हत्यारे के साथ रिश्ता, हत्या का तरीका, मुकदमे की स्थिति और संगठित हिंसा से संबंध आदि की जानकारी रखतीं ।

यह काम वे मेक्सिको के नक्शे पर कर रहीं थीं । उनका मकसद यह बताना था कि जिसकी हत्या हुई ऐसी प्रत्येक बालिका या स्त्री का एक नाम, जगह, जीवन और समुदाय था । इस काम में उन्हें प्रतिदिन तीन घंटे देने होते थे । अपनी मानसिक सेहत दुरुस्त रखने के लिए बीच बीच में काम रोक देतीं फिर भी बहुत थकाऊ काम था । 2019 में उनके आंकड़ों के मुताबिक 9200 यानी प्रतिदिन आठ हत्याएं हुईं । सरकार ने केवल 1006 की संख्या स्वीकार की । मेक्सिको में स्त्री हत्या को कानूनन जुर्म माना जाता है । वजह कि हिंसा से मुक्त जीवन जीने के स्त्री के अधिकार की रक्षा हो सके ।

2024 में द यूनिवर्सिटी आफ़ शिकागो प्रेस से यूलिसेस ए मेजियास और निक काउल्ड्री की किताब ‘द न्यू कोलोनियलिज्म आफ़ बिग टेक ऐंड हाउ टु फ़ाइट बैक’ का प्रकाशन हुआ ।

2024 में द एम आइ टी प्रेस से क्रिस्टीना अलाइमो और जानिस कालीनिकोस की किताबडाटा रूल्स: रीइनवेंटिंग द मार्केट इकोनामीका प्रकाशन माइकेल पावर की प्रस्तावना के साथ हुआ । प्रस्तावना लेखक का कहना है कि आंकड़ों की धारणा ने बहुतेरे दार्शनिकों का ध्यान खींचा है । ह्यूम प्राकृतिक छवियों की तरह इसे बिना किसी माध्यम के ग्रहण किया इंद्रिय संवेदन समझते थे तो बीसवीं सदी के प्रत्यक्षवादियों ने इसकी बेहद अनगढ़ धारणा बनायी और इसकी मौजूदगी बाहरी दुनिया में समझी । इसे प्रदत्त मानने का विरोध भी बहुतों ने किया है । इन विरोधियों को उत्तर अनुभववादी कहा जाता है ।

2024 में एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी प्रेस से बार्ट वान डेर स्लूट और साशा वान शेन्डेल के संपादन में ‘द बाउंडरीज आफ़ डाटा’ का प्रकाशन हुआ । किताब में कुल सोलह लेख हैं । इनमें पहला और आखिरी लेख संपादकों के लिखे प्रस्तावना और उपसंहार हैं ।  उनका कहना है कि आंकड़ों के संरक्षण संबंधी नियम यूरोप और उसके बाहर इंटरनेट के सिलसिले में सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान है । इसमें आंकड़ों के संसाधन की प्रक्रिया के बारे में नियम और मानक तथा इस प्रक्रिया के भागीदार संगठनों और व्यक्तियों की जवाबदेही तय किये गये हैं । इसे पारित तो 2016 में किया गया लेकिन इसकी जड़ें 1970 दशक तक फैली हैं । इसमें सबसे बड़ा सरोकार व्यक्ति की निजता की रक्षा का है । सत्तर के दशक में इसे मानना मुश्किल नहीं था लेकिन तकनीकी विकास के साथ इसे निभाना अधिकाधिक मुश्किल होता गया । तकनीक का लोकतंत्रीकरण भी हुआ और खुलेपन की ओर झुकाव भी हुआ । इसका मतलब हुआ कि संग्रह से निजी आंकड़े भी हासिल किये जा सकते थे । इसने आंकड़ों की कानूनी स्थिति को डांवाडोल कर दिया । आंकड़ों की साझेदारी संस्थाओं और समूहों के बीच होती है जिनके आधार पर कुछ कदम उठाये जाते रहे हैं । स्थिति यह हो गयी कि संस्थान पर जिसका नियंत्रण हुआ उसे आंकड़ों तक पहुंचने की सुविधा मिली और जिसको नियंत्रण नहीं मिला उसे आंकड़ों के नाम पर शून्य मिलता है ।

2024 में स्प्रिंगेर से आयन गोर्डन और नील थाम्पसन की किताबडाटा ऐंड द बिल्ट एनवायरनमेंट: ए प्रैक्टिकल गाइड टु बिल्डिंग ए बेटर वर्ल्ड यूजिंग डाटाका प्रकाशन हुआ । लेखकों का मानना है कि इस समय का पर्यावरण मनुष्यों का बनाया हुआ है । इसमें मौजूद उपकरणों का ही इस्तेमाल करके सबको भोजन और आश्रय मिलता है । इनके सहारे जीना संतोषजनक और आरामदेह होता है । इन पर हमारी निर्भरता के कारण जब ये कारगर नहीं होते तो तकलीफ होती है । इसमें डाटा की परिघटना का उभार हुआ है जिससे जुड़े पेशे भी पैदा हो रहे हैं । हमारे अनुभव की दुनिया को इसने बदल दिया है । किताब में इसे समझने का प्रयास करते हुए सुझाया गया है कि यह निर्मित पर्यावरण समाज की बेहतरी के लिए कैसे काम कर सकता है ।

2024 में पालिसी प्रेस से हेलेन कारा, डान मन्नय और अलेस्तेयर राय के संपादन में ‘द हैंडबुक आफ़ क्रिएटिव डाटा एनालीसिस’ का प्रकाशन हुआ । किताब में कुल इकतीस लेख हैं । पहला संपादकों की प्रस्तावना है । शेष को नौ हिस्सों में बांटा गया है । पहले हिस्से में मात्रात्मक आंकड़ों के रचनात्मक विश्लेषण से जुड़े लेख हैं तो दूसरे में रचनात्मक तरीके में निहित विश्लेषण को स्पष्ट किया गया है । इसी तरह तीसरे हिस्से में रचनात्मक प्रदर्शनमूलक विश्लेषण को उजागर किया गया है । चौथे हिस्से के लेख रचनात्मक दृश्य विश्लेषण पर केंद्रित हैं तो पांचवें हिस्से में रचनात्मक लेखकीय विश्लेषण का वर्णन है । छठवें में कला आधारित रचनात्मक विश्लेषण पर जोर है तो सातवें हिस्से में मौजूदा पद्धतियों के ही रचनात्मक अनुकूलन का विवेचन किया गया है । आठवें हिस्से के लेख भागीदारों के साथ विश्लेषण पर जोर देते हैं तो आखिरी हिस्से के लेखों में सीमाओं को तोड़ने का आवाहन है । किताब का अंतिम लेख संपादकों का लिखा उपसंहार है ।

2024 में ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी प्रेस से ओला सोडेरस्ट्रोम और आयोना दत्त के संपादन में ‘डाटा पावर इन ऐक्शन: अर्बन डाटा पोलिटिक्स इन टाइम्स आफ़ क्राइसिस’ का प्रकाशन हुआ । किताब में कुल बारह लेख हैं । पहला संपादकों की लिखी प्रस्तावना है । शेष लेख तीन हिस्सों में संकलित हैं । पहले हिस्से में आंकड़ों के विभिन्न पहलुओं, दूसरे में रणनीति और तीसरे हिस्से में कार्यनीति से जुड़े लेख रखे गये हैं । संपादकों का कहना है कि हाल के दिनों में आंकड़ों की चोरी बहुत बढ़ी है । आंकड़ों पर निर्भरता का एक पक्ष यह भी है ।

2024 में ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी प्रेस से जूलियाने जार्के और जो बेट्स के संपादन में ‘डायलाग्स इन डाटा पावर: शिफ़्टिंग रिस्पांस-एबिलिटीज इन ए डाटाफ़ाइड वर्ल्ड’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना और अनुचिंतन के अतिरिक्त किताब में नौ लेख हैं । इस सवाल के साथ किताब की शुरुआत हुई है कि आंकड़ों की इस दुनिया में किन जिम्मेदारियों का और किस तरह बदलाव हो रहा है । इन बदलावों के प्रति विभिन्न समूहों का रुख भी जानने लायक है । इसके बारे में छानबीन करने वालों को निजी हितों से ऊपर उठकर समुदायों की बेहतरी और मानवेतर दुनिया पर इसके प्रभाव का अध्ययन करना होगा । इसी तरह के सरोकारों और सवालों के साथ यह किताब लिखी गयी है । विद्वानों के साथ संवाद की शक्ल में इसके अध्याय हैं ताकि हमारी दुनिया को आंकड़ों में बदलने की प्रक्रिया, कल्पना और प्रभाव का आकलन किया जा सके । अध्ययन का यह क्षेत्र अंतर अनुशासनिक है इसलिए इसके जानकार भी बहुरंगी हैं । किताब को तैयार करने में अस्सी अध्येताओं ने भाग लिया । किताब के सभी नौ अध्याय सामूहिक रूप से मिलकर लिखे गये । इनके लिखने वाले अध्येता इस विषय पर संपन्न संगोष्ठी में भागीदार थे जो जून 2022 में कनाडा, जर्मनी और इंग्लैंड के साथ आनलाइन भी हुई थी । फिर सबने अपने अध्यायों के लेखन के लिए विशेष कार्यशालाओं में भी बहस मुबाहिसे के सहारे अपने लेखन का परिष्कार किया । सभी अध्यायों के शुरुआती हिस्से सर्वसम्मति से तैयार हुए लेकिन सबने अपनी बात भी दर्ज की । इस प्रक्रिया के कारण किताब भी विचारबहुल हो गयी है ।      

2024 में ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी प्रेस से एलिस मात्तोनी और दिएगो सेकोबेल्ली की किताब ‘ऐक्टिविस्ट्स इन द डाटा स्ट्रीम: द प्रैक्टिसेज आफ़ डेली ग्रासरूट्स पोलिटिक्स इन सदर्न यूरोप’ का प्रकाशन हुआ । यह किताब डिजिटल मीडिया और आंकड़ों के साथ राजनीतिक गतिविधि के दौरान कार्यकर्ताओं के सम्पर्क का रोचक बयान करती है । जब ये कार्यकर्ता किसी बड़ी गोलबंदी को चरम पर ले जाते हैं तो उसके बाद उन्हें अपने दूरगामी लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगातार काम करना पड़ता है । विरोध प्रदर्शनों में सड़क पर लाखों को उतार देने के लिए कुछ समय की व्यस्तता के बाद राजनीति में संगठन को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए उन्हें लगातार बहुत सारी गतिविधियों में व्यस्त रहना होता है । उन्हें अन्य कार्यकर्ताओं से बात करनी होती है, कार्यक्रमों की रपट लिखनी होती है तथा पत्रकारों और अपने समर्थकों से संवाद करना होता है । अधिकतर तो ये काम आमने सामने होते हैं लेकिन आजकल ये काम डिजिटल माध्यमों से भी खूब हो रहे हैं ।  

2025 में स्प्रिंगेर से जान मैके की किताबफ़्राम डाटा टु इनसाइट्स: द स्ट्रेटेजी आफ़ ए डाटा एनालीटिक्स टीमका प्रकाशन हुआ ।

2025 में सीआरसी प्रेस से निक ज़ुलकार्नाएन खिद्ज़िर और शेख अब्दुल्ला-अल-मूसा अहमद की किताब ‘गार्जियंस आफ़ डाटा: ए कंप्रेहेन्सिव गाइड टु डिजिटल डाटा प्रोटेक्शन’ का प्रकाशन हुआ ।

2025 में हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू प्रेस से सांद्रा माट्ज़ की किताब ‘माइंडमास्टर्स: द डाटा-ड्रिवेन साइंस आफ़ प्रेडिक्टिंग ऐंड चेंजिंग ह्यूमन बिहैवियर’ का प्रकाशन हुआ ।

2025 में ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी प्रेस से कैथरीन हैरीसन की किताब ‘बिहाइंड द साइंस: द इनविजिबुल वर्क आफ़ डाटा मैनेजमेंट इन बिग साइंस’ का प्रकाशन हुआ । लेखिका का कहना है कि दक्षिणी स्वीडेन में एक विशालकाय परियोजना बनायी जा रही है जो बन जाने के बाद बड़े पैमाने पर आंकड़ों का उत्पादन शुरू करेगी । सारी दुनिया के वैज्ञानिक यहां आकर अपने प्रयोगों की परीक्षा करेंगे ।

2025 में एप्रेस से केली पी विनसेन्ट की किताब ‘ए फ़्रेंडली गाइड टु डाटा साइंस: एवरीथिंग यू शुड नो एबाउट द हाटेस्ट फ़ील्ड इन टेक’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि वर्तमान सदी में डाटा विज्ञान सबसे अधिक महत्व की चीज हो गया है क्योंकि इसके सहारे विभिन्न संगठन अपने आपको समझ सकते हैं और अपने काम को बेहतर बना सकते हैं । अनेक संगठनों के नेताओं ने इस तरह से काम करना शुरू भी कर दिया है । अभी तो सदी का चौथाई समय ही बीता है इसलिए पूरी सदी की सम्भावना को नहीं देखा जा सकता फिर भी जिस स्तर की योजनाएं हैं और जितना काम किया जा रहा है उसकी एक झलक इस किताब में मिल सकती है ।  जो लोग तकनीक की दुनिया से परिचित नहीं हैं उनके बीच डाटा विज्ञान, मशीन शिक्षण या कृत्रिम बुद्धि जैसे शब्द रहस्य की तरह घूम रहे हैं । उनको यकीन है कि उनकी सारी समस्याओं का समाधान इन चीजों में निहित है । वे किसी को इस पद पर नियुक्त करते हैं और आशा करते हैं कि समाधान की बारिश होने लगेगी ।

डाटा की यह दुनिया इतनी उत्तेजक हो गयी है कि उसका विश्लेषण सिखाने के लिए किताबें लिखी और छापी जा रही हैं । इसी क्रम में 2025 में एप्रेस से निकिता त्काचेंको की किताब ‘डाटा इनसाइट फ़ाउंडेशंस: स्टेप-बाइ-स्टेप डाटा एनालीसिस विथ आर’ का प्रकाशन हुआ । लेखिका के अनुसार उच्च शिक्षा और पेशेवर काम के दौरान हासिल अनुभवों और कुंठाओं से इस किताब का जन्म हुआ है । उन्होंने 2023 में सर्वेक्षण का खाका बनाने का अध्यापन किया था । उस समय विद्यार्थियों की उत्सुकता ने भी उन्हें यह किताब लिखने की प्रेरणा दी है । विद्यार्थी आम तौर पर कक्षा में जो सीखते हैं उसी जानकारी तक बार बार लौटकर आते हैं ।     

 

 

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