इस पृथ्वी पर घटनेवाली सबसे हैरतअंगेज घटना घट चुकी थी । सभी पिरामिडों, भवनों, सभी मूर्तियों, सभी चित्रों, सभी रचनाओं से अधिक महान और आश्चर्यजनक घटना कि एक जीवित मनुष्य इस दुनिया में पधार चुका था ।
उसका लड़की होना मुझे ज्यादा स्वाभाविक लगा था क्योंकि उसकी माता स्त्री थी । मैंने सोचा माता के भीतर वह धीरे धीरे आकार ले रही होगी । हाथों के भीतर हाथ, पाँवों के भीतर पाँव और इस तरह पचीस वर्ष बाद मेरी पत्नी पुनः पचीस वर्ष पीछे आ जाएगी । लेकिन ऐसा नहीं हुआ और एक स्त्री ने एक पुरुष को जन्म दिया । अनेक लोग कहते हैं कि पुरुष और स्त्री की दुनियाएँ बुनियादी रूप से भिन्न हैं । इस घटना के मद्दे नजर इस पर यकीन करना मुश्किल है ।
उसका जन्म ऐसे समय हुआ जब झूठ, फ़रेब, मक्कारी और क्रूरता को मरकजी रुतबा हासिल था । शायद वह लड़की होता तो मैं सोचता कि बाहर की दुनिया से उसे बचा ले जाऊँगा लेकिन लड़का तो जूझेगा, लड़ेगा, मरेगा । इतनी चिंता को वह अनजाने चुरा लेता है । आप देखते हैं कि उसकी साँस तेज तेज चल रही है और सारा ध्यान फिर उसकी साँस पर । दस सेकंड के अंदर वह सोए में मुस्करा देता है और आप खुश ।
उसने तो होश भी नहीं सँभाला और अभी से राहत की वजह बन गया । इसे व्यक्तिगत संपत्ति के प्रति मेरी पक्षधरता न माना जाय तो कहूँगा कि अबसे पहले किसलय अर्चना के भीतर धड़क रहा था अब मेरे भीतर धड़कता है । उसके बंद हाथों में जीवन की बागडोर है तो खुले हाथों में जमाने भर का इंद्रजाल । त्वचा की एक एक पोर से वह है और बस ।
स्वप्न और जागरण, नींद और होश, सोचना और बोलना- ये अलग अलग विभाग हैं । इनमें कोई भी घालमेल खतरनाक है । ये सब अपनी जगह पर सही तरीके से काम करते रहें इसकी तो वह गारंटी लेकर पैदा हुआ है । आसमान को वह दोनों हाथों से थामे हुए है और दोनों पाँवों से धरती को ठेल रहा है । है कोई इसके मुकाबले ?
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