Monday, June 13, 2011

अनिल कुमार बरुआ के लिए


आप मेरी आत्मा में बदल गये हैं और एकदम अकेले में ही आपसे बातचीत करने में सक्षम हूँ । आप अपने होने से एक संतोष थे और न होने से अजीब किस्म की बेचैनी बन गए हैं । आपके नाम और हमारी पार्टी के बीच एकदम तदाकारता थी ।

मेरी छवि में आप एक खूबसूरत फ़ोटोग्राफ़ रहे, फिर मुझे लगता है कि मैंने दिल्ली में आपको देखा था । लंबे, मोटे, गोरे, मोटे शीशे का चश्मा पहने- मत कहिए कि आप ऐसे नहीं थे । अपने इस विश्वास को मैं खंडित नहीं होने देना चाहता कि मैं आपसे मिला हूँ ।

गोलियाँ, सिर्फ़ गोलियाँ । मुझे नहीं लगता कि भारतीय इतिहास के किसी मोड़ पर गोलियों ने इतना अधिक खून पिया होगा । लोग कहेंगे कि यही इतिहास की प्रसव वेदना है लेकिन यह शब्द इस घड़ी के लिए कितना छोटा है । टुकड़े टुकड़े हिंदुस्तान बंजर हो रहा है । छत्तीसगढ़, बंबई, सीवान, रोहतास, डिब्रूगढ़- लोग कहेंगे ये जिले हैं लेकिन आस्था के आधारों का टूटना बहुत बड़ी क्षति है ।

आपका प्रांत बहुत खूबसूरत था न? था- अजीब है । एक आदमी जिस धरती पर पैदा होता है, बड़ा होता है वह उसके लिए साँस की तरह होती है । मेरे लिए तो आप ही असम थे । मैं भारतीय हूँ लेकिन कितना दुर्भाग्यशाली कि इसके बीसियों प्रांतों में से कुल चार पाँच ही देख पाया हूँ । देखना भी क्या देखना । लेकिन केवल देखने से भी देशवासी होने की तमीज पैदा होती है । तो कलकत्ता तक गया । आपके यहाँ न जा सका ।

लोग लोग लोग असंख्य लोग । जीने के लिए लड़ते हुए । फिर उनका एक छोटा सा हिस्सा थोड़ा बाहर निकला तो हर जगह अपरिचय अपमान । ऐसे ही लोगों के भीतर से उनका नेतृत्व निकलता है । फूल की खुशबू की तरह । कैसे कहूँ- यह उनके बीच भी होना है और उनके आगे होना भी ।

देश के एक सीमाप्रांत में एक ऐसे राज्य में जो अधिकांश लोगों के लिए संस्कृति मात्र है बड़ा खतरनाक है यह शब्द ठीक लज्जा की तरह अत्यधिक रोमांटिकता सिर्फ़ इसलिए भरता है ताकि मनुष्य को गायब कर दे तो ऐसी जगह आदमी की क्रोध की भाषा को विकसित करने के संघर्ष के आप नामाराशि थे । इतने दिनों से आपका नाम सुनता आ रहा था कि याद भी नहीं आ रहा कि कब पहली बार सुना ।

मैं आपसे पहली बार बात नहीं कर रहा हूँ अंतिम बार भी नहीं कर रहा हूँ । अभी बहरहाल सैकड़ों ऐसे लोग हैं और कहूँ तो रोज पैदा भी हो रहे हैं कालोह्यं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी लेकिन अब तार जब एक बार टूट जाता है तो फिर जोड़ने में----बहुत मुश्किल है । एकदम नहीं कोई भी एक आदमी दूसरे में नहीं बदल सकता । मनुष्य इररिप्लेसेबल है । अगर हालात यही रहे कामरेड तो हो सकता है कुछ दिनों में अधिकतर लोग जीवित लोगों से बात ही न कर पायें केवल मृतात्माओं से ही उनका संवाद संभव रह जाय ।

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