Monday, June 20, 2011

कविताओं के अभ्यास


उसका नाम

अफ़जल भी हो सकता है

और हो सकता है

मुश्ताक भी

दुनिया की हर खुशी

उसके जीवन में

महज एक पल के लिए

आती है ।

वह मिल सकता है रिक्शे पर

पैदल बस में या ट्रेन में

हर कहीं उसकी पहचान

की जा सकती है

उसके डर से ।

वह छुट्टी पर घर

जा रहा होता है

या नौकरी पर शहर

वह नौजवान हो सकता है

या हो सकता है बूढ़ा

वह खामोश हो सकता है

या हो सकता है बातूनी

किसी भी स्थिति में

वह दिन डूबने से डरता है

उसने पूछा था

दिन में चलने वाली

गाड़ियों के बारे में

छोटे बच्चों के लिए मिठाइयाँ

खरीद ली थीं उसने

रिश्तेदारियों के लिए

दिया जाने वाला समय भी

तय कर लिया था

सब कुछ के बारे में

हँसकर बताने के बाद

सहमते हुए आखिरी सवाल

उसने पूछा था

मुझे लगा कि जब उसने

पहले कपड़े पहने थे

तभी उन पर लिख दिया गया था

उसका धर्म

और इस अपराध में

उसकी कमीज कभी भी

गाढ़े, गर्म इंसानी लहू में

नहा सकती है

लेकिन कोई भी चीज उसे

रोक नहीं सकती

भय और अनिश्चय के बीच

उसे अपना रास्ता बनाना ही है

लोगो

सावधान होओ कि

तुम्हारी नींद से होता हुआ

एक खतरनाक तूफ़ान

चला आ रहा है

कि सबसे कोरे कागजों पर

सबसे खतरनाक इबारतें

लिखी जा रही हैं

याद रखो कि

पीढ़ियाँ दर पीढ़ियाँ गुजर सकती हैं

खामोश

लेकिन सवाल नहीं मरते

क्योंकि आदमी कभी नहीं मरता

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जिंदगी की सरहदों से घिर गया हूँ इस तरह

कोइ रस्ता खुल नहीं सकता यहाँ से या खुदा

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जुबान की हल्की जुम्बिश से

हाँ या ना के बीच

निकला हुआ

कोई गोलमोल जवाब

अँधेरी सुरंगों में

आपके जाने का रास्ता

धीरे धीरे तैयार करता है

जिंदगी के तमाम सरोकारों से

नाता टूट जाने के बाद

आप इस पर कदम बढ़ा सकते हैं

तबाहकुन फ़ैसले लिए नहीं जाते

हो जाते हैं

फिर मिलती है मुसाफ़िरों की

एक लंबी कतार

चेहरे पर परिचय की मुस्कान

और कहीं जाने की हड़बड़ी

साथ साथ लपेटे

आप इस जुलूस में

शामिल हो भी सकते हैं

और नहीं भी

दोनों ही स्थितियों में आपका स्वागत है

किताबों के पुराने पन्ने पलटते हुए

अतीत की परछाइयाँ

हल्के हल्के

आपके दिम्मग से गुजरती रहती हैं और

आप बेवजह उदास हो जाते हैं

छोड़िए

आप कितने भाई हैं

आपकी बहन कहाँ ब्याही है

आपके पिताजी हैं या नहीं

इससे किसी को क्या फ़र्क पड़ता है

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किसी पेड़ की एक पत्ती

नहीं हिल रही

बल्ब स्थिर हैं

कुतुबमीनार खड़ी है

दूर कहीं तेज हवा का शोर

सुनाई दे रहा है

और मैं इंतजार करता रहा

बल्ब नाचें

पेड़ झूमें

कुतुबमीनार काँपे

पहले एक चिड़िया बोली

फिर दूसरी

फिर हल्की हवा का एक झोंका आया

कुछ बूँदें टपकीं

बिजलियाँ चमकीं

लेकिन तूफ़ान नहीं आया

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वर्तमान (साहित्य) कविता (विशेषांक)

आग एक शब्द है

और शब्द एक आग

घोड़ा घास है लगाम है और

है उद्दाम वासना

कविता प्यार है

प्यार एक खेल

खेल स्वतंत्रता है

और स्वतंत्रता ?

दया औरत है

औरत पृथ्वी

कवि एक चिंगारी है

और है फूल

क्योंकि चिंगारी और फूल में

कोई खास फ़र्क नहीं है

संक्षेप में

मैं जो कुछ भी कह सकूँ

और आप समझें नहीं

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लहराती फ़सलों के समुद्र में

मैं अकेला खड़ा हूँ

कोई और आदमी नहीं

कोई घर भी नहीं दिखाई देता

फिर भी दुनिया से

चिल्ला चिल्ला कर बताना चाहता हूँ

देखो मैं यहाँ अकेला नहीं हूँ

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रात बारिश हुई और मैं सोया रहा

जैसे मुझे कोई प्रेम करता रहा हो

और मैं चूक गया होऊँ

इस बारिश में आप मुझे

नंगे नहाने की इजाजत दें

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मन की बंसी पर उंगली यह तेरी यूँ ही फिरा करेगी

सुख की नींद सुला दो प्यारी रात समूची जगा करेगी

आँखें तेरी कोंपल जैसी देखे से जो होश उड़ा दें

बेहोशी में आशा जैसे किस्मत मेरी खुला करेगी

ताप पसीना चिंता दुख औ खतो किताबत घर के राज़

गोपनीय विषयों पर तेरे बात हमेशा चला करेगी

नया काम करना खतरा है मगर डगर यह बनी पुरानी

जब भी चलेगी इसकी चर्चा सीधे दिल में लगा करेगी

दर्द बहुत है मेरे दिल में एक बार गर झाँको तुम

दर्दे ज़माना दर्दे मुहब्बत दर्दे जिंदगी दिखा करेगी

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कविता मेरी जाग उठी है लेकर के अँगड़ाई आज

अंतर्मुखी चेतना जैसे उपजे परिवर्तन विश्वास

लड़ता जीवन हारा सँभला गिरा उठा औ खड़ा हुआ

रुत की रंगत ही ऐसी है आज जगाए मन में आस

कहने को तो बहुत बड़ी है भूख पेट की तन की आग

मगर मुझे ऐसा लगता है सबसे बड़ी हृदय की प्यास

खोज जगत में उस डोरे को जिसमें हैं सब बँधे हुए

तभी मिलेगी शांति कल्पने चैन छीनता यह अहसास

मेरे जैसे और बहुत हैं लट के धोखे खाए लोग

और बहुत हैं गम के मारे खोजो आँख लगाकर पास

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सधे सधे कदमों से आती जनता मेरे मनोजगत में

प्यारे प्यारे भाव जगाती जनता मेरे मनोजगत में

राह बड़ी फिसलन वाली है जीवन की औ कविता की

रस्ते सारे ठोस बनाती जनता मेरे मनोजगत में

उलझ उलझ जाती है डोरी चिंतन की जब कई तरह से

पड़ी सभी गाँठें सुलझाती जनता मेरे मनोजगत में

तार तार हो बिखरे मन और टूट टूट कर इच्छा शक्ति

सूत जोड़कर डोर बनाती जनता मेरे मनोजगत में

वन में फूल धान खेत में बादल में ज्यों बिजली हो

गंध फूल में वैसे आती जनता मेरे मनोजगत में

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कभी कभी मन खो जाता है

तेरे जैसा हो जाता है

तू हँसती है बचपन जैसी

दुःख दूर हो सो जाता है

हृदय तुम्हारा पानी जैसा

कपट कलुष सब धो जाता है

चलने से घुँघरू बजते हैं

और और मन हो जाता है

तुम आओगी इसी सहारे

चिंता जीवन ढो जाता है

ध्यान तुम्हारा कविता बरसे

चमत्कार यह हो जाता है

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कविता बहुत सरल होती है दुख की राह गुजरने से

सुख आते हैं इस जीवन के दुख सागर में सपने से

माता की छाती छूटी और छाँह पिता की छूट गई

भाई का साया छूटा है सत्य सत्य कुछ कहने से

पाया तुम्हे बहुत नामों में मगर रूप सब जगह समान

तुम तो सबको मिल जाते हो जग जीवन में बसने से

नया क्षेत्र है जीवन रण का मेरे सम्मुख खुला हुआ

दिल दूना छाती गज भर की होती तेरे होने से

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