इप्पोलीत एडोल्फ़ तेन के बारे में रेने वेलेक ने लिखा है, "एक तरह का छद्म वैज्ञानिक, सदी के मोड़ पर एक असाधारण रूप से जटिल और थोड़ा अंतर्विरोध युक्त मस्तिष्क" । स्वभावतः इतने जटिल चिंतक के साहित्यिक समाजशास्त्र के बारे में कोई निर्णय सुनाना बहुत कठिन है । यह कठिनाई तब और बढ़ जाती है जब हमारे पास सामग्री के अभाव में उस युग विशेष के संदर्भ बहुत स्पष्ट न हों ।
बहरहाल तेन ने अंग्रेजी साहित्य के इतिहास की भूमिका में साहित्य को समझने के लिए एक सैद्धांतिक ढाँचा निर्मित करने का प्रयास किया है जिसका उद्देश्य है किसी दस्तावेज के पीछे छिपे आदमी को उद्घाटित करना । साहित्य क्या है ? एक तथ्य । और इस तथ्य को इकट्ठा कर लेने के बाद कारणों की खोज जरूरी होती है । कारण कार्य की इस शृंखला के निर्धारण के पीछे एक चिंतन निहित है । "दुर्गुण और सद्गुण उसी तरह उत्पाद हैं जैसे अम्ल और चीनी ; और हरेक जटिल परिघटना किसी अन्य सरल परिघटना से पैदा होती है और उस पर आधारित होती है ।" तो मनुष्य के मानसिक जगत का साहित्य में प्रतिफलन होता है और उसके निर्माण में ऐसी ही कुछ सरल परिघटनाएँ निहित हैं । ये चीजें हैं- नस्ल, माहौल, समय । इन तीनों कारणों के बारे में खुद तेन कहते हैं, "जब हमने नस्ल, माहौल और समय के कारकों पर विचार कर लिया तो आंदोलनों के न सिर्फ़ सभी वास्तविक कारकों पर विचार कर लिया बल्कि उससे भी अधिक सभी संभव कारकों पर भी विचार कर लिया ।" तेन इन तीनों कारकों के आपसी संबंध को किस तरह देखते हैं इस पर हम बाद में विचार करेंगे । फ़िलहाल यह कि इन तीनों धारणाओं का अर्थ क्या है ?
नस्ल के बारे में खुद तेन लिखते हैं, "नस्ल से हमारा मतलब उन सहज और आनुवंशिक चित्तवृत्तियों से है जिन्हें मनुष्य अपने साथ संसार में लाता है और जो नियम से स्वभाव तथा शारीरिक बनावट में मिलकर दृश्यमान अंतर पैदा कर देते हैं ।" लेकिन इस परिभाषा के निश्चित कर लेने बाद भी यह धारणा काफ़ी लचीली रह जाती है । मसलन वे आर्यन, इजिप्शियन और चाइनीज नस्ल का जिक्र करते हैं । स्पष्ट है कि इजिप्शियन और चाइनीज में नस्ल से अधिक राष्ट्र की ध्वनि है । ठीक इसी तरह जब वे इंग्लिश, फ़्रेंच और जर्मंस के बीच भेद का जिक्र करते हैं तो भी यह नस्ल से अधिक राष्ट्रीय विशिष्टताओं के नजदीक पँहुचता है । व्यावहारिक रूप से इतिहास लिखते हुए तो वे उत्तर और दक्षिण के बीच उदासी और प्रसन्नता के मादाम द स्ताल के पुराने विभाजन के नजदीक पहुँच जाते हैं । ये विभाजन भी बहुत ठोस नहीं हैं । जो कुछ उन्होंने ल फ़ोंतेन में गालिक भावना के बारे में लिखा है वही इतिहास में फ़्रेंच भावना के बारे में मौजूद है । इस समूची धारणा की कुछ उपयोगिता है तो मात्र इतनी कि हरेक जाति की कुछ अपनी विशिष्टताएँ होती हैं । इन विशिष्टताओं का निर्धारक तेन पर्यावरणिक विशिष्टताओं को मानते हैं । "मनुष्य परिस्थितियों के साथ समायोजित करने के लिए मजबूर होता है । उन्हीं के मुताबिक स्वभाव और चरित्र का भी उसमें विकास हो जाता है ।" जलवायु या पर्यावरण को कारक माननेवाले इस सिद्धांत की वैज्ञानिकता संदिग्ध है । इसके अलावा इस धारणा और इसके विभिन्न तत्वों की तेन की व्याख्या में बहुतेरे अंतर्विरोध हैं । एलन स्विंगवुड ने बताया है कि "एक स्थल पर नार्मन जाति का वर्णन 'कुशल', 'प्रचुर' और 'जिज्ञासु' मानसवाली 'चंचल और मिलनसार' जाति कहकर किया गया है और दूसरी जगह उसकी विशेषता एक ऐसी जाति के रूप में बताई गई है जिसके पास 'आवेशोन्माद तथा कल्पनाजन्य प्रतिभा' का नितांत अभाव है । एक ओर जातीय तत्वों के विषय में कहा गया है कि वे 'हर प्रकार की जलवायु में, हर परिस्थिति में बने रहते हैं' दूसरी ओर यह दावा किया गया है कि एक राष्ट्र की कुछ 'मौलिक विशेषताएँ ऐसी होती हैं जो उसके वातावरण और इतिहास से रूपांतरित होती रहती हैं ।' "
माहौल में तेन दो तत्वों को समाहित करते हैं " मनुष्य के चारों ओर से घेरे हुए प्रकृति और उसको घेरे हुए अन्य मनुष्य" । प्रकृति के बारे में हम पहले ही बता चुके हैं । जहाँ तक लोगों का संबंध है तेन ने इसे अव्याख्यायित छोड़ दिया है लेकिन इसी में विकास की सबसे अधिक संभावनाएँ हैं । कुछ ही महत्वपूर्ण तत्वों की ओर इशारा किया गया है "(मनुष्य की) रुचि शुरू से ही सामाजिक तरीके, राज्य के स्थापित संगठन की ओर रही" । लेकिन यह काफी अस्पष्ट रह जाता है । अनगढ़ ही सही लेकिन किसी साहित्यिक आंदोलन की सामाजिक राजनीतिक पृष्ठभूमि बतलाने की परंपरा इसी सूत्र से पैदा हुई है ।
तीसरा तत्व है समय । इसका प्रयोग तेन ने युग चेतना के अर्थ में किया है । इतिहास की भूमिका में ही प्रकृति विज्ञान का एक उदाहरण देते हुए कहा गया है कि जैसे समान तापमान, समान भूमि में रहते हुए भी एक पौधा अपने विकासक्रम में विभिन्न कालों में फूल, फल और पत्तियाँ पैदा करता है वैसे ही जाति विभिन्न युगों में भिन्न भिन्न विचारों के प्रभाव में होती है । जाति के अर्थ में 'केवल छोटा सा समय नहीं जैसे कि हमारा अपना समय बल्कि ऐसा विस्तृत कालखंड जिसमें एक या एकाधिक शताब्दियाँ समाई होती हैं' । विभिन्न युगों में 'एक खास प्रभावी विचार' होता है जो 'खास आदर्श मनुष्य के माडल' की ओर ले जाता है । तेन ने समय का प्रयोग राष्ट्रीय मेधा के अर्थ में भी किया है ।
तेन के बाद के तकरीबन सभी महत्वपूर्ण विचार इस तीसरे तत्व की व्याख्या से ही आगे बढ़ते हैं जिसे रेने वेलेक ने प्रातिनिधिक चिंतन कहा है । इस प्रातिनिधिक चिंतन का एक और आयाम है । एलन स्विंगवुड ने कहा है कि तेन के द्वारा साहित्य के किसी भी समाजशास्त्र के सामने आने वाली मूलभूत और स्थायी समस्याओं की जानकारी मिलती है । और वह है साहित्य में गुणवत्ता का निर्धारण, महान साहित्य के आविर्भाव की चिंता । तेन शुरू में ही कहते हैं, "साहित्यिक रचनाएँ दस्तावेज इसलिए होती हैं क्योंकि वे स्मारक होती हैं ।" दूसरे शब्दों में कहें तो परंपरा में किसी साहित्यिक कृति का स्थान निर्णय । तेन इसके लिए एक महत्वपूर्ण चिंतन प्रक्रिया के सूत्र छोड़ते हैं । वे बताते हैं कि कलाकार सत्य की अंतर्दृष्टि से संपन्न होता है और किसी सामान्य अर्थ में नहीं वरन किसी युग या देश के ठोस सत्य की गहन अंतर्दृष्टि । कलाकार जितना ही महान होता है उतनी ही गहराई से वह अपनी जाति की भावना का प्रतिनिधित्व करता है । और इसका संबंध उसकी कला की श्रेष्ठता से भी होता है । प्रतिनिधित्व की इसी समस्या पर विचार करते हुए वे जिसे 'खास आदर्श मनुष्य का माडल' कह चुके थे उसी को आगे बढ़ाते हुए साहित्यिक कृति में चरित्र की समस्या पर विचार करते हैं । रेने वेलेक के मुताबिक 'चरित्र उनके लिए ठोस सार्वभौमिकताएँ थे; एक टाइप, एक आदर्श ।' तेन अपनी इस विवेचना को कहाँ तक आगे बढ़ा सके हैं यह उनकी मूल कृतियों को देखने से ही पता चल सकता है ।
तेन ने साहित्य की जो कारणपरक व्याख्याएँ पेश कीं उनका एक और महत्वपूर्ण पक्ष है पाठक समुदाय की रुचियों के बारे में उनका ध्यान । उन्होंने लिखा है, "साहित्य हमेशा उनकी रुचियों के हिसाब से अपने को अनुकूलित करता है जो उसे समझ सकते हैं और उसके लिए पैसा खर्च करते हैं ।" ड्राइडेन, डिकेंस आदि के पाठक वर्ग का उनकी कृतियों पर पड़नेवाले प्रभाव का उन्होंने सूक्ष्म विवेचन किया है । पुरानी त्रासदी की मृत्यु के बारे में लिखते हुए उन्होंने कहा है " कलाकार और पाठक के बीच एक संगति आदर्श मानी जाती है । पियक्कड़ों, वेश्याओं और बूढ़े बच्चों के दर्शक समुदाय के समक्ष त्रासदी असभव थी और इसीलिए त्रासदी लेखक के बतौर ड्राइडेन असफल रहे ।" यानी सिर्फ़ पैसा चुकाकर ही पाठक वर्ग साहित्य को नहीं प्रभावित करता वरन जीवन स्थितियों में आने वाले परिवर्तन के अनुसार बदलनेवाली लोकरुचि के जरिए भी प्रभावित करता है ।
इसके अलावा तेन ने साहित्यिक कृति में वस्तुनिष्ठता और आत्मनिष्ठता की समस्या पर भी विचार किया । वस्तुनिष्ठता को वे कृति से कृतिकार की अनुपस्थिति के रूप में देखते थे । कला को वे सत्य का प्रतिनिधि और व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति दोनों मानते थे । तेन के चिंतन पर कोंत और हेगेल का प्रभाव दिखाई पड़ता है ।
तेन ने जिस साहित्यिक समाजशास्त्र का ढाँचा निर्मित किया उसमें बहुत अनगढ़ता है । इसके बावजूद उन्होंने साहित्य चिंतन की उस धारा को गति प्रदान की जो साहित्य के बारे में हवाई बातें न कर उसके ठोस विवेचन का प्रयास करती है ।