कोरोना के दौरान ही जार्ज
फ़्लायड की पुलिसिया हत्या के बाद ब्लैक लाइव्स मैटर का जो आंदोलन फूट पड़ा उसने
अमेरिका में रहने वाले अफ़्रीकी लोगों के बारे में देखने और उनको समझने का नजरिया
बदल दिया । अब उनके साथ होने वाला अन्याय चतुर्दिक नजर आने लगा । इसके बाद के
प्रकाशनों में यह विस्तार बहुत ही प्रत्यक्ष है । इस अन्याय के महीन रेशों तक को
पहचाना जाने लगा । अन्याय का यह विस्तार सचमुच आकाश से पाताल तक फैला हुआ है । इन
किताबों में उसके जितने विविधरूपी चित्र मिलते हैं उससे रंगभेद की व्याप्ति का
अंदाजा लगाया जा सकता है । इनमें उसकी व्याप्ति के साथ इस ढांचागत भेदभाव का बेहद
जुझारू प्रतिरोध भी नजर आयेगा । इस प्रतिरोध ने भी विविध रूप अपनाये हैं । सरकारों
का सबसे दमनकारी औजार पुलिस तो इस
प्रतिरोध के निशाने पर खासकर है । वजह यह भी है कि हिंसा भी सबसे अधिक इसी औजार के
जरिये की जाती है । इस समय की सबसे बड़ी खूबी रंगभेद की शिनाख्त उन सभी जगहों पर कर
लेना है जिन्हें इस भेदभाव से मुक्त समझा जाता रहा था ।
2023 में यूनिवर्सिटी आफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस से हेलेना हान्सेन, जूल्स नीदरलैंड और डेविड हेर्ज़बेर्ग की किताब ‘ह्वाइटआउट: हाउ रेशियल
कैपिटलिज्म चेंज्ड द कलर आफ़ ओपिओइड्स इन अमेरिका’ का प्रकाशन हुआ । अमेरिका में हाल के दिनों में लोगों की मौत का सबसे बड़ा
कारण अफीम की दवाओं की लत है । दवा निर्माता कंपनियों को इससे भारी मुनाफ़ा होता है
। हत्या और मुनाफ़े के इस अमानवीय खेल के बारे में कुल इतना सुनने में आता है कि
अमेरिकी चुनावों में सबसे अधिक चंदा दवा बनाने वाली कंपनियों से पार्टियों को
मिलता है । इससे जुड़े तथ्यों का पता लगना बहुत मुश्किल होता है । जो पत्रकार ऐसा
करना चाहते हैं उनकी नौकरी तक खतरे में पड़ जाती है । किताब की शुरुआत हेलेना
हान्सेन से होती है जिन्होंने ऐसे ही एक पत्रकार की कहानी बतायी । वह भी नशे का
आदी हो चुका था । पता चला कि नशे के शिकार ऐसे गोरे अस्पतालों में थोक के भाव आते
हैं । उस इलाके में यह एकमात्र सरकारी अस्पताल था । इसमें बीमा वाले गरीब ही आम
तौर पर इलाज के लिए आते थे । अश्वेत, लैटिनो और चीनी समुदाय के लोग इसकी सेवा लेते
थे । बीमार होकर ऐसे गोरे आते थे जो पोलैंड या रूस से अवैध रूप से दाखिल हुए थे ।
लम्बे समय से बेघर रहे लोगों को इलाज के लिए भेजा जाता था । ऐसे में दवा के लती
लोगों की आमद एकदम अलग से नजर आ जाती थी । इनके लिए जो चिकित्सक होते थे वे सप्ताह
में एक ही दिन आते थे । अफीम के लती लोगों के लिए दवा की पर्ची लिखना ही उनका काम
था । इस पर्ची को लिखवाने के लिए वे अगर किसी गैर सरकारी चिकित्सक से मिलते तो
उसकी फ़ीस हजार डालर होती थी । इस अस्पताल में कुछ पढ़े लिखे और अमीर भी आने लगे थे
। अब तक नशे के बारे में समूचे विचार विमर्श में अश्वेत ही रहते आये थे । पहली बार
ऐसा हो रहा है कि मध्यवर्गीय गोरे भी इसके शिकार हो रहे हैं । इसके साथ ही नशे के
बारे में बात नयी तरह की हो रही है । पहले इसे व्यक्ति की समस्या या उस पर सामाजिक
प्रभाव में देखा जाता था । अब इसकी स्नायविक या शारीरिक वजहें खोजी जा रही हैं ।
2023 में हार्परवन से एल्विन हाल की किताब ‘ड्राइविंग द ग्रीन बुक: ए रोड
ट्रिप थ्रू द लिविंग हिस्ट्री आफ़ ब्लैक रेजिस्टेन्स’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के
अनुसार गुलामी और रंगभेद के दिनों में अश्वेत यात्रियों के लिए एक किताब छापी गयी
थी । इसमें लेखक की रुचि पैदा हुई । वे अधिकांश अश्वेतों की तरह भूमिहीन अवस्था
में थे । बस खाने की चीजें उगाने भर को जमीन थी । यातायात का कोई स्वचालित साधन
नहीं था । रिश्तेदारों से मिलने के लिए किसी दोस्त के वाहन से दिन भर की यात्रा ही
करते थे । इसी वजह से किताब की खोज में तमाम संग्रहालय छानना शुरू किया ।
2023 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से माइकेल क्वेट के संपादन में ‘द
कैम्ब्रिज हैंडबुक आफ़ रेस ऐंड सर्विलान्स’ का प्रकाशन हुआ । संपादक की प्रस्तावना
समेत किताब में सोलह लेख हैं । संपादक का कहना है कि हमारा समय उथल पुथल और तीव्र
परिवर्तन का है । देशों के बीच और उनके भीतर भारी विषमता बढ़ी है । डिजिटल तकनीक के
नये विकासों का प्रसार पूरी दुनिया में ही हुआ है और उन्होने शक्ति संबंधों में
उलटफेर कर दिया है । दैनन्दिन जीवन की लय भी बदल गयी है । तकनीकी क्रांति का लाभ
इसकी निर्माता बड़ी कंपनियों और शक्तिशाली देशों को अधिक हुआ है । डिजिटल तकनीक पर
उनके प्रभुत्व के चलते उनके हाथों में ही शक्ति और संपदा का संकेंद्रण होता जा रहा
है । अमेरिकी साम्राज्य के प्रसार में तकनीक के अर्थतंत्र पर उसके कब्जे से मदद
मिल रही है । दुनिया भर में इटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों की सहायता से उसने
व्यक्तियों, समूहों और आबादियों की निगरानी का विशाल जाल फैला लिया है । लम्बे समय
से निगरानी के जरिये दमन और नियंत्रण का काम लिया जाता रहा है । आधुनिक इतिहास में
शोषण और मुनाफ़े के लिए नस्ली तौर पर दबंग समुदाय ने वंचितों से मनचाहा कराने के लिए
निगरानी का तंत्र खड़ा किया और उसका इस्तेमाल किया है । किताब में बताया गया है कि कैसे
निगरानी के जरिये नस्ली विषमता का पुनरुत्पादन किया जाता है ।
2023 में न्यू यार्क यूनिवर्सिटी प्रेस से रिचर्ड डेलगाडो और ज्यां स्तेफ़ांसिक की
किताब ‘क्रिटिकल रेस थियरी: ऐन इंट्रोडक्शन’ का चौथा
संस्करण प्रकाशित हुआ । एंजेला हैरिस ने इसकी प्रस्तावना लिखी है । लेखकों ने इस संस्करण
के लिए अलग से भूमिका लिखी है । उनके मुताबिक इसे पहली बार 2001 में छापा गया था । उसके बाद से तमाम आर्थिक संकट आये, आतंकी हमला हुआ, आप्रवासी
समुदायों से नफ़रत का उन्माद नजर आया और एक महामारी भी भुगतनी पड़ी । सकारात्मक पक्ष
के तौर पर अश्वेत राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुने गये, सेहत की सुविधा विस्तारित हुई और अधिकाधिक समलिंगी अधिकारों को मान्यता मिली
। देश की जनांकिकी में भी बदलाव आया । लैटिन अमेरिकी आप्रवासी अफ़्रीकी अश्वेतों को
पीछे धकेलकर सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय बन गये । एशियाई लोगों की तादाद बहुत तेजी
से बढ़ रही है । कैलिफ़ोर्निया में गोरों से अधिक अश्वेत हो गये हैं । अन्य प्रांतों
में भी यही होता नजर आ रहा है ।
2023 में रौमान & लिटिलफ़ील्ड
से डेविड के विगिन्स, केविन
बी विदरस्पून और मार्क डाइरेसन की किताब ‘ब्लैक
मर्करीज: अफ़्रीकन अमेरिकन एथलीट्स, रेस, ऐंड द माडर्न ओलिम्पिक गेम्स’ का प्रकाशन लोनी जी बंच ॥। की प्रस्तावना के साथ हुआ । उनका कहना है कि
अमेरिकी खेलों और खासकर दौड़ भाग की खेल प्रतियोगिताओं से अश्वेतों का इतना गहरा
रिश्ता है कि ओलिंपिक खेलों में अमेरिकी उपस्थिति का यह अभिन्न अंग है । इसीलिए एक
ओलिंपिक कला समारोह के दौरान उन्हें अश्वेत खिलाड़ियों की भागीदारी के इतिहास और
उनके असर के बारे में प्रदर्शनी तैयार करने की जिम्मेदारी मिली थी । इसके लिए शोध
के दौरान उन्हें पता चला कि नस्लभेद संबंधी गतिविधियों का बहुत बड़ा क्षेत्र
ओलिंपिक के खेल रहे हैं । अमेरिका में आजादी और न्याय के लिए संचालित संघर्ष का एक
रंगमंच ओलिंपिक के आयोजन भी रहे हैं । सोचना होगा कि ओलिंपिक के पदक जीतने वाले इन
खिलाड़ियों ने नस्लभेद के दंश को जीतने से पहले और जीत के बाद कैसे पचाया होगा । उनकी
जीत से नस्लभेद में क्या दूरगामी अंतर आता है । सवाल है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की
इन प्रतियोगिताओं में अश्वेत खिलाड़ियों की जीत से अमेरिका को कोई बेहतरी हासिल होती
है ।
2023 में डेलाकोर्टे प्रेस से हीथर मैकगी की किताब ‘द सम आफ़ अस: हाउ
रेसिज्म हर्ट्स एवरीवन’ को युवा पाठकों के लिहाज से तैयार किया गया । लेखक ने
पाठकों से यह पूछने की गुजारिश की है कि अच्छी भली चीजें सुलभ क्यों नहीं है । इन
चीजों से उनका तात्पर्य विलासिता नहीं है । आस पड़ोस में बेहतरीन सरकारी स्कूल,
कर्ज मुक्त उच्च शिक्षा, सस्ती स्वास्थ्य सेवा तथा ऐसा रोजगार जो गरीबी को दूर रखे
जैसी सुविधाओं को वे किसी भी कारगर समाज के लिए जरूरी समझते हैं । जिनको इन
सुविधाओं की उपलब्धता नहीं है उनमें गोरे अमेरिकी भी शामिल हैं । उनमें बहुसंख्यक
लोगों का जीवन बीमा की सुरक्षा से रहित है । अश्वेत अमेरिकी लोगों में सुरक्षित
लोगों की तादाद नगण्य है । अमेरिकी नेताओं की पीढ़ी दर पीढ़ी इन हालात को सुधारने का
भरोसा देती रही लेकिन आम लोग अब भी इन्हीं
हालात में बने हुए हैं । इस सवाल का सामना लेखक को बचपन में ही करना पड़ा था ।
विषमता की तेज रफ़्तार को उन्होंने देखा और पाया कि धनकुबेर तो फल फूल रहे हैं जबकि
स्कूलों और पार्कों की गत बुरी होती जा रही है । इसके चलते इन सार्वजनिक सुविधाओं
की वकालत का पेशा उन्होंने अपनाया । जिस देश में एक फ़ीसद लोगों के पास समूचे मध्य
वर्ग से अधिक संपदा हो और बालिग कामगारों की आधी आबादी के लिए भोजन और आवास का
जुगाड़ मुश्किल हो वहां लेखक को अपना पेशा जायज ही लगा ।
2023 में पालग्रेव मैकमिलन से मेलविन स्टोक्स और पाल मैकइवान के संपादन में ‘इन द शैडो आफ़ द बर्थ आफ़ ए नेशन: रेसिज्म, रिसेप्शन
ऐंड रेजिस्टेन्स’ का प्रकाशन
हुआ । संपादकों की प्रस्तावना समेत किताब में शामिल सोलह लेख पांच हिस्सों में रखे
गये हैं । आखिरी हिस्सा राबर्ट लांग का लिखा पश्चलेख है । यह किताब बर्थ आफ़ ए नेशन
नामक किताब के बारे में है तो सबसे पहले इस किताब में नस्ल की कल्पना का विश्लेषण
करने वाले लेख रखे गये हैं । इसके बाद उस किताब के लुप्त पाठों का विवेचन है । फिर
प्रतिरोध और विरोध की पहचान की गयी है । इसके बाद विदेशों में उस किताब के
अभिग्रहण पर विचार किया गया है । इस किताब में जिस किताब को केंद्र में रखकर बात
की गयी है उसे राबर्ट डब्ल्यू ग्रिफ़िथ ने अमेरिकी गृहयुद्ध की समाप्ति के पचास साल
बाद 1915 में साया किया था । उस समय अमेरिकी लोगों की याद में गृहयुद्ध ताजा था ।
ग्यारह दक्षिणी प्रांतों के लिए तो यह बात चोट पहुंचाने वाली कसक जैसी थी ।
जिन्होंने उस युद्ध का अनुभव किया था उन्होंने कहानियों की शक्ल में इसे बच्चों और
उनके बच्चों को सुनाया था । गृहयुद्ध के जरिये उन्मूलित नस्ली सामाजिक ढांचे के
साथ ही सामाजिक और राजनीतिक पुनर्निर्माण भी चर्चा में था । सभी मनुष्यों की समता
की उद्घोषणा को 1915 तक दक्षिणी प्रांतों के नस्लभेदी नीतियों ने उलट दिया था । इसी
वातावरण में वह किताब लिखी गयी थी और इसके निशान किताब में अंकित थे ।
2023 में रटलेज से कोन्सतान्ते गोन्ज़ालेज़ ग्रोबा, इवा बारबरा लुसाक और
उर्सुला नाइवियादोम्सका-फ़्लिस की किताब ‘पैथालाइजिंग ब्लैक बाडीज: द लीगेसी आफ़
प्लांटेशन स्लेवरी’ का प्रकाशन हुआ । लेखकों का कहना है कि अमेरिकी साहित्य और
संस्कृति पर प्लांटेशन की गुलामी का मजबूत असर अब तक बना हुआ है । दक्षिणी
प्रांतों के इस इतिहास को पीड़ादायक
और सुदूर अतीत की बात कहकर उससे किनारा
नहीं किया जा सकता । इस अफ़्रीकी अमेरिकी अनुभव से साहित्य को दो चार होना ही होगा
। वह अनुभव अपने आप में तो महत्वपूर्ण है ही, इससे बाद की सुजनन की नसबंदी, जेल
में बड़े पैमाने पर अश्वेतों को कैद करने और अन्य किस्म के समाजार्थिक उत्पीड़नों का
पूर्वाभास मिलता है । वह अनुभव इतना त्रासद था कि उसकी दीर्घ, अमिट और कठिन विरासत
से संवाद बेहद तकलीफदेह हो जाता है । उस इतिहास को बंद कर देने की कोई गम्भीर
कोशिश ही नहीं हुई इसलिए बाद की नस्लभेदी मान्यताओं में, अपमानजनक पूर्वाग्रहों
में और अश्वेत शरीर के साथ चिपकी धारणाओं में गुलामी की याद ताजा बनी रही । किताब
में इसी शरीर के साथ जुड़ी सांस्कृतिक टकराहटों की छनबीन की गयी है जिनके साथ हिंसा
और दमन नाभिनालबद्ध हैं ।
2023 में फ़ेबर & फ़ेबर से गैरी यंग की किताब ‘डिसपैचेज फ़्राम द
डायस्पोरा: फ़्राम नेल्सन मंडेला टु ब्लैक लाइव्स मैटर’ का प्रकाशन हुआ । किताब की
शुरुआत दक्षिण अफ़्रीका के पहले लोकतांत्रिक चुनावों से शुरू होती है । मतदान से
पहले की रात लेखक ने सोवेतो में बितायी थी । सुबह मतदान के लिए झुंड के झुंड लोग
चले जा रहे थे । दिन चढ़ने के साथ उनकी तादाद भी बढ़ती जा रही थी । मुक्ति की लम्बी
लड़ाई का यह आखिरी जुलूस लग रहा था । लेखक इस आंदोलन में महज सत्रह साल की उम्र से
शरीक रहे थे । उनके लिए तो यह दिन ऐतिहासिक था । अब वे चौबीस साल के हो चले थे और
गार्जियन अखबार ने उन्हें इन चुनावों की खबर के लिए विशेष रूप से भेजा था ।
2023 में यूनिवर्सिटी आफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस से पैट्रिशिया वेन्चुरा और
एडवर्ड के चान की किताब ‘ह्वाइट पावर ऐंड अमेरिकन नियोलिबरल कल्चर’ का प्रकाशन हुआ
। लेखकों के अनुसार किताब की शुरुआत 2019 की एक बहस से हुई । सवाल था कि ट्रम्प
नवउदारवाद की चरम परिणति है या उसके खात्मे का संकेत है । उसके बाद से बहुत कुछ
घटित हुआ और फिलहाल एक बात नजर आयी जिसमें गोरों की सत्ता की धारणा, जो इस समय
गोरों के श्रेष्ठता बोध का चरमपंथी रूप है और नस्लभेदी पूंजीवाद के रूप में
नवउदारवादी संस्कृति का आपसी मेल हुआ है । यह गंठजोड़ किसी भी व्यक्ति से बहुत बड़ा
है ।
2023 में
सिमोन & शूस्टर से जोनाथन आइग की किताब ‘द लाइफ़ आफ़ मार्टिन लूथर किंग’ का
प्रकाशन हुआ । किताब की शुरुआत अलाबामा की मांटगोमरी में छब्बीस साल के युवा
मार्टिन लूथर किंग के पहले सार्वजनिक भाषण से होती है । गृहयुद्ध में गुलामी की
समाप्ति के बाद भी इस इलाके में नस्लभेद जारी था । गोरे दक्षिणपंथी गिरोह खुलेआम
अश्वेतों की हत्या करते थे । इस इलाके में बोलने का मतलब मौत तय थी । पांच हजार
अश्वेतों की भीड़ के सामने किंग ने बोला कि यह प्रदर्शन गलत नहीं है और अगर यह गलत
है तो देश की सुप्रीम कोर्ट, संविधान और ईश्वर भी गलत हैं । उनके पहले अमेरिका की
स्वतंत्रता की घोषणा और संविधान के वादे खोखले थे । मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका
से उसके आदर्शों पर खरा उतरने की अपील की । इसकी लड़ाई उन्होंने धन और राजसत्ता के
बगैर ही लड़ी । कुल तेरह साल के सार्वजनिक जीवन में मार्टिन लूथर किंग ने यह मनवा
लिया कि अमेरिका ने लोगों को संपत्ति की तरह समझा और उनको दोयम दर्जे का नागरिक
बनाया । अपना लक्ष्य पूरी तरह हासिल न कर सकने के बावजूद उनकी बहादुरी याद रखने
लायक है । मार्टिन लूथर किंग के संघर्ष को बोधगम्य बनाने के लिए लेखक ने उनके
महिमामंडन की जगह उनके व्यक्ति को अधिक स्थान दिया है । लेखक को लगता है कि उनके प्रति
पूजाभाव के चलते उनके नखदंत उखाड़ डाले गये हैं तथा उनकी राजनीति और दर्शन की
जटिलता की जगह कुछेक प्रसिद्ध सूक्तियों ने ले ली है । उनका सपने वाला भाषण इतना
अधिक सुना गया है कि अब उसमें कुछ सुनाई नहीं देता । हम उसमें पुलिस क्रूरता के
अकथनीय आतंक को अनसुना कर देते हैं और आर्थिक भरपाई की मांग भी दर्ज नहीं होती ।
किंग द्वारा मांग की बात हमें अच्छी नहीं लगती । उनकी अहिंसा को भी निष्क्रियता
समझ लिया गया है । हम भूल गये हैं कि उनका आक्रामक रुख तब के लिए अभूतपूर्व था ।
शांतिपूर्ण विरोध के जरिये वे विशेषाधिकार संपन्न लोगों को निरस्त्र कर देना चाहते
थे । उन पर सबने ही हमले किये । दक्षिणी प्रांतों के नस्लभेदी समूहों से लेकर
उग्रपंथी अश्वेत कार्यकर्ता और उत्तरी प्रांतों के गोरे उदारवादियों तक सभी उनसे
असहमत थे । उनका चरित्र हनन जीते जी हुआ और आज तक जारी है । वे संत या कोई प्रतीक
होने की जगह मनुष्य ही थे । उत्तेजना में वे भी नाखून चबाते थे, टेलीविजन की बहसों
में चीखते भी थे, अपनी सिगरेट बच्चों से छिपाकर रखते थे और कुत्ता भी पालते थे ।
उन्हें नींद कम आती थी लेकिन झपकी अच्छी ले लेते थे । बैठकों में आम तौर पर वे देर
से पहुंचते थे और बचपन में दो बार उन्होंने आत्मघात का प्रयास भी किया था । बीच
बीच में उन पर अवसाद के दौरे भी पड़ते थे । मजाक भी अक्सर वे करते थे । पत्नी पर
अत्यधिक निर्भर रहने के बावजूद एक अन्य स्त्री से भी उनके गहरे संबंध रहे । उनके
बारे में बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन इसके बावजूद वह अधूरा लगता है । यह किताब
अमेरिकी संघीय जासूसी संस्था के जारी किये गये हालिया दस्तावेजों और हजारों अन्य
दस्तावेजों के साथ मौखिक स्रोतों का भी सहारा लेकर लिखी गयी है । जीवनी के लिखने
में मूर्तिभंजन जरूरी तो है लेकिन साथ में इस बात को भी याद रखना चाहिए कि अपने
बच्चों से सिगरेट छिपाने वाले सभी लोग मार्टिन लूथर किंग नहीं हो जाते ।
2023
में न्यू यार्क यूनिवर्सिटी प्रेस से मैथ्यू जे क्लेविन की किताब ‘सिम्बल्स आफ़
फ़्रीडम: स्लेवरी ऐंड रेजिस्टेन्स बिफ़ोर द सिविल वार’ का प्रकाशन हुआ । किताब में ठीक ही गुलामी के खात्मे की दास्तान
को गुलाम बनाने वालों की दया पर केंद्रित करने की जगह गुलामों के अपने प्रतिरोध की
परम्परा के सहारे समझने कीकोशिश की गयी है । शुरुआत 1812 में वाशिंगटन में सांसदों
के देखे एक दृश्य से होती है । लेखक ने बताया है कि उस समय अश्वेत गुलामों को
जंजीरों से जकड़कर रखा जाता था । रास्ते चलते हुए भी उन्हें जंजीरों में बांधकर ही
ले जाया जाता था । राजधानी की सड़क पर भी ऐसा नजर आना अचम्भे की बात नहीं थी । इस
बार उन्हें थोड़ा भिन्न नजारा देखने को मिला । एक गुलाम ने मुट्ठी ऊपर उठाकर
कोलम्बिया की धरती के गीत गाते हुए गुलामी के प्रति विरोध जताया था । इस प्रदर्शन के
बावजूद गुलामों के व्यापारियों या अमेरिका के राजनीतिक प्रतिनिधियों की चमड़ी पर कोई
फ़र्क नहीं पड़ा । उस विद्रोही को बेचने के लिए ले जाया जा रहा था और सबसे अधिक कीमत
लगाने वाले को उसे बेचा भी गया । लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई । गुलामी की प्रथा
के विरोधियों ने इस घटना का भरपूर प्रचार किया और आजादी के लिए प्रतिबद्ध देश में गुलामी
की मौजूदगी के पाखंड को उजागर किया ।
2023
में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से कैरोलीन शहनाज़ हुसैन, शेरोन डी राइट आस्टिन और
केविन एडमंड्स के संपादन में ‘बीयान्ड रेशियल कैपिटलिज्म: को-आपरेटिव्स इन द
अफ़्रीकन डायस्पोरा’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना और एस्टबान केली के
पश्चलेख के अतिरिक्त किताब के दो हिस्सों में दस लेख शामिल हुए हैं । पहले हिस्से
में कनाडा और अमेरिका में अश्वेत समुदाय में प्रचलित सहकारिता के विभिन्न रूपों का
परिचय प्रस्तुत है । दूसरे हिस्से में अफ़्रीकी प्रवासी समुदाय में व्याप्त
सहकारिता की छानबीन की गयी है । संपादकों के मुताबिक दुनिया भर में सहकारिता के
विकास और प्रसार में अफ़्रीकी समुदाय के योगदान की छानबीन इस किताब का मकसद है ।
असल में नस्ली पूंजीवाद ऐसी व्यवस्था है जिसमें किसी समुदाय की नस्ली पहचान के
समाजार्थिक शोषण से मूल्य पैदा होता है । इस धारणा को सेड्रिक राबिन्सन ने
लोकप्रिय बनाया था । उनके अनुसार किसी समूह के श्रम को नियंत्रित और शोषित करने के
लिए दबंग गोरी कुलीन ताकतों द्वारा पूंजी के इस्तेमाल के तरीके को इस नाम से
अभिहित किया जा सकता है ।
2023
में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से हजार याज़दिहा की किताब ‘द स्ट्रगल फ़ार द
पीपुल’स किंग: हाउ पोलिटिक्स ट्रांसफ़ार्म्स द मेमोरी आफ़ द सिविल राइट्स मूवमेंट’
का प्रकाशन हुआ । किताब के शुरू में मार्टिन लूथर किंग का एक कथन दिया गया
है जिसमें वे अपने कर्तव्य के लिए इस समय को ही सही समय बताते हैं । लेखिका का बचपन
गोरों से भरे इलाके में नब्बे के दशक में गुजरा । इस दौरान वे अश्वेत अधिकार आंदोलन
के दौर पर बनी फ़िल्मों से प्रभावित हुईं । इनमें से एक फ़िल्म में गोरी मालकिन को अपनी
अश्वेत नौकरानी से सहानुभूति थी । नौकरानी ने बस के बहिष्कार में भाग लिया तो मालकिन
ने उसे अपनी कार से लाना और भेजना शुरू किया । बाद में मालकिन भी अश्वेत अधिकार आंदोलन
की कार्यकर्ता हो गयीं, अश्वेतों को लाने और भेजने के लिए कारों का समूह बनाया और
अपने नस्लभेदी पति का विरोध किया । उन्होंने अपनी पुत्री को भी अश्वेत समर्थक अभियान
में शरीक किया । फ़िल्म के अंत में गोरी स्त्री, उसकी पुत्री और अश्वेत नौकरानी एक साथ आंदोलन में तैनात नजर आते हैं । एक और
फ़िल्म में गोरों के स्कूल को समावेशी बनाने वाले कार्यकर्ताओं की कहानी थी । उसमें
नस्लभेदी समूह अश्वेत विद्यार्थियों को स्कूल में घुसने से रोकते हैं, सारे गोरे विद्यार्थी उन पर फ़ब्ती कसते हैं और इस दौरान गोरे
अध्यापक कुछ नहीं बोलते । एक अश्वेत विद्यार्थी आखिरकार एक गोरी छात्रा से दोस्ती करने
में सफल हो जाता है । इन सभी फ़िल्मों में कोई न कोई भला गोरा हुआ करता था जो अश्वेतों
की उनके संघर्ष में मदद करता था । इनमें से एकाध फ़िल्मों को अमेरिकी समाज में मौजूद
भेदभाव के खात्मे के लिए साहसिक शिक्षा प्रदान करने के लिए पुरस्कृत भी किया गया ।
इसके बावजूद लेखिका को लगता था कि इस तरह का सुखदायी अंत समाज की सचाई से मेल नहीं
खाता ।
नस्लभेदी समूह गायब नहीं हुआ था । उनकी मौजूदगी अतीत की चीज
नहीं बनी थी । यह भी सही नहीं था कि वे केवल दक्षिणी प्रांतों में थे । जब ट्रम्प के
जमाने में गोरे नफ़रती समूहों ने जुलूस निकाला तो बहुतेरे लोगों ने इस पर अविश्वास जताया
और दावा किया कि ऐसा कभी नहीं हुआ था । इसके विपरीत लेखिका के स्कूली दिनों के अनुभव
नस्लभेदी नजरिये की मौजूदगी साबित करते थे । चमड़ी के रंग के आधार पर नस्ली भेदभाव अमेरिकी
समाज की नंगी वास्तविकता है । सबूत के तौर पर लेखिका ने निजी अनुभव साझा किया है ।
पांच साल की उम्र में वे ईरानी बच्चों के साथ खेल रही थीं । उन्हें और कुछ भी याद नहीं
रहा सिवा इसके कि एक गोरी स्त्री ने चीखते हुए सबको अपने देश जाने को कहा । बच्चों
ने घटना का जिक्र माता-पिता से भी नहीं किया । तभी लेखिका को पहली बार लगा कि यह
देश उनका नहीं है । जब भी माता-पिता को किसी गोरे के साथ मिलना होता तो उनका रुख लेखक को
हमेशा असहज बना देता । ये बातें लेखिका ने सहानुभूति हासिल करने के लिए नहीं बतायीं
बल्कि इसलिए कि उनका अनुभव अकेले का नहीं था । इसलिए इसी चश्मे से वे इस किताब में
नस्लभेदी सामाजिक यथार्थ का विश्लेषण करने के लिए मजबूर हुए । गोरे पाठकों को इन बातों
का जिक्र कितना भी बुरा या असहज करने वाला लगे उन्हें स्वीकार करना होगा कि इस तथ्य
की उपेक्षा करने से समाज में जहर फैला है और उससे ही समस्त वर्तमान समस्याओं का जन्म
हुआ है ।
इसी समय सर्वोच्च न्यायालय ने अश्वेतों के पक्ष में सकारात्मक
सरकारी उपायों के विरोध में फैसला दिया है । जिस गोरी स्त्री ने इसके लिए मुकदमा किया
था उसका तर्क था कि इससे समाज में उलटा नस्लभेद बढ़ता है और आम नस्ली वातावरण उत्पन्न
होता है । अश्वेत नागरिक अधिकार आंदोलन की समूची भावना को उलट देने वाले इस तर्क से
लेखिका को बहुत दुख हुआ । इस मुकदमे के चलते उलटे नस्लभेद पर बहस शुरू हुई और लेखक
को अंदाजा लगा कि ऐसे अभियानों का इतिहास पुराना है और नस्ली विषमता से सुरक्षा संबंधी
उपायों को उलटे मकसद के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है ।
लेखिका ने जब इस तरह के अभियानों के आंकड़ों को एकत्र करना
शुरू किया तो इन मुकदमों और उनके बारे में खबरों की छानबीन से एक और परिघटना का पता
चला । इनमें मार्टिन लूथर किंग और नागरिक अधिकार आंदोलन की याद का इस्तेमाल किया जाता
रहा है यह कहने के लिए कि नस्ली भेदभाव के शिकारों के पक्ष में उपायों और नस्ली न्याय
के सामाजिक आंदोलनों से उलटे नस्लभेद को मजबूती मिली है । अश्वेत विद्वानों और कार्यकर्ताओं
ने उनकी याद के इस अनुचित इस्तेमाल का दशकों से लगातार विरोध किया इसके बावजूद इनमें
कमी आने की जगह बढ़ोत्तरी ही हुई । इसके बाद लेखिका ने मार्टिन लूथर किंग और अश्वेत
नागरिक अधिकार आंदोलन के उपयोग और दुरुपयोग संबंधी आंकड़ों को व्यवस्थित रूप से एकत्र
करना शुरू किया । 2015 में यह काम समाप्त हो गया लेकिन फिर ट्रम्प के शासन के दौरान
के आंकड़ों को भी शामिल करना जरूरी लगा । इसके फलस्वरूप लेखिका के पास 1980 से 2020 तक के इस तरह के मामलों का भारी जखीरा इकट्ठा हो गया । उन्होंने
अक्सर सोचा कि उनके जैसी प्रवासी अश्वेत स्त्री इन सबूतों को आखिर पेश ही क्यों करे
जो पैदा तो कहीं और हुई लेकिन अमेरिका में बड़ी हुई । गोरों की श्रेष्ठता के लिए अश्वेत
इतिहास के इस दुरुपयोग के बारे में लिखने का उनके लिए क्या अर्थ है । इसकी वजह यह थी
कि गोरों की श्रेष्ठता के कारण उनकी हैसियत ने उन्हें अश्वेत इतिहास के अधिग्रहण के
प्रति सचेत किया । मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका के लोगों को कागज में गोरा ही लिखा
जाता है लेकिन आम सामाजिक जीवन में कागज का कोई मूल्य नहीं क्योंकि हर समय उनसे उनके
देश के बारे में सवाल किया जाता है ।
2023
में लेक्सिंगटन बुक्स से एप्रिल लेविस की किताब ‘ब्लैक फ़ेमिनिज्म ऐंड ट्रामेटिक लीगेसीज इन कनटेम्पोरेरी अफ़्रीकन अमेरिकन लिटरेचर’
का प्रकाशन हुआ । लेखिका ने अंग्रेजी साहित्य में शोधकार्य के दौरान
उत्तर औपनिवेशिक साहित्य का अध्ययन किया तो उनकी सोच ही बदल गयी । इसमें उनको
ज्ञात से अलग किस्म का साहित्य तो पढ़ना ही था, अध्यापक भी अश्वेत थे । लेखिका को
अध्ययन के दौरान समस्या आयी तो उन्होंने अध्यापक से बात की । अध्यापक ने दो गोरी
छात्राओं से मदद लेने की सलाह दी । पाठ सामग्री के लिहाज से उनका यह सुझाव बेतुका
था । लेखिका उस कक्षा में एकमात्र अश्वेत विद्यार्थी थीं । धीरे धीरे समस्या पर
लेखिका ने काबू पाया लेकिन अध्यापक के साथ उनकी सहजता नहीं बन सकी । गोरी
विद्यार्थियों से भी उन्होंने मदद ली लेकिन उन्हें भी समस्या नहीं समझ आ रही थी ।
इस व्यक्तिगत पहलू के अतिरिक्त कक्षा के अन्य विद्यार्थियों ने पाठ्य सामग्री में
स्त्री लेखिकाओं की कमी की ओर ध्यान दिलाया । कुल आठ किताबों में से केवल दो की लेखिका
स्त्रियां थीं । शिकायत गोरे विद्यार्थियों की थी इसलिए अध्यापक ने उन्हें सुना और
सबको बहस हेतु आमंत्रित किया । जब अन्य सवाल उठाने के लिए कहा गया तो लेखिका ने महानगरीयता
और जेंडर के बीच रिश्ते के बारे में पूछा । इस पर अध्यापक ने बात बदल दी । जब लेखिका
ने आपत्ति जतायी तो अध्यापक ने डांटा । सभी विद्यार्थी लेखिका को देखने लगे । गुस्से
में वे कक्षा से निकल आयीं । साथ पढ़ने वाले दो विद्यार्थी उनसे सहानुभूति जताने आये
। कक्षा में वापस लौटने के बाद उन्होंने अध्यापक से नजर नहीं मिलायी । पूरी कक्षा के
दौरान वे चुप रहीं । बाद में अध्यापक ने मेल करके अपने व्यवहार पर अफ़सोस जाहिर किया
। लेखिका ने उत्तर नहीं दिया । वे नहीं चाहती थीं कि उनकी छवि गुस्सैल अश्वेत स्त्री
की बने । इसी अनुभव के आधार पर उन्होंने शिक्षा में अश्वेत स्त्री की स्थिति के बारे
में सोचना शुरू किया ।
2023
में रटलेज और अर्थस्कैन से डोरोथी ज़ाइस्लेर-व्राल्सटेड की किताब ‘अफ़्रीकन अमेरिकंस
ऐंड द मिसीसिपी रिवर: रेस, हिस्ट्री, ऐंड द एनवायरनमेंट’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के अनुसार बीस साल पहले उन्होंने यह किताब न लिखी होती । इसका कारण यह
था कि नदियों के बारे में उनका नजरिया बांधों और नहरों के जरिये खेती के लिए दोहन
तथा बिजली उत्पादन हेतु उनके उपयोग तक सीमित था । बाद में उन्होंने संस्कृति,
राष्ट्रवाद तथा आर्थिक खुशहाली में उनकी भूमिका पर ध्यान देना शुरू किया ।
उन्होंने यह भी देखा कि नदियों के श्रमिक इनको बाकी लोगों के मुकाबले भिन्न निगाह
से देखते हैं । उनके इस विशेष अनुभव की झलक उनके गीतों, लोकसृजन और कविताओं में
मिलती है । नदी के साथ इन श्रमिकों का खास रिश्ता आपसी आदान प्रदान का होता है । नदी
से जुड़ी उनकी लोक रचनाओं में नदी के महिमामंडन और शिकायतों के साथ उसे मुक्ति का साधन
मानने की समझ भी व्यक्त हुई है । सैकड़ों साल की गुलामी से पीड़ित अश्वेतों के लिए नदी
दलदली इलाके या उत्तरी प्रांतों में भागने की राह खोलती थी । इसके विपरीत कभी कभी
यही नदी और भी भयावह गुलामी के दक्षिणी प्रांतों में ले जाने का भी जरिया बन जाती
थी । मिसिसिपी के बारे में सामान्य अनुभव से अश्वेतों के ये अनुभव भिन्न और
विशिष्ट हैं । अश्वेत अनुभवों से पूरी तरह अलग अनुभव इसके लिनारे उतरने वाले गोरों
का था । वे इसे व्यापार और वाणिज्य हेतु परिवहन का साधन समझते थे ।
2023
में फ़्रंटलाइन बुक्स से मेल आयटन की किताब ‘द मैन हू किल्ड मार्टिन लूथर किंग: द
लाइफ़ ऐंड क्राइम्स आफ़ जेम्स अर्ल रे’ का प्रकाशन हुआ । किताब के शुरू में ही कातिल
के आपराधिक जीवन की समय सारिणी प्रस्तुत की गयी है । उसमें किंग की हत्या के बाद
के उसके जीवन की घटनाओं को भी दर्ज किया गया है । उसे निन्यानबे साल की कैद की सजा
मिली थी । जेल में उस पर हमला हुआ । रक्त चढ़ाने में उसे संक्रमण हुआ और लीवर खराब
हो गया । सत्तर साल की उम्र में उसका निधन हुआ ।
2023
में हर्स्ट & कंपनी से केनन मलिक की किताब
‘नाट सो ब्लैक ऐंड ह्वाइट: ए हिस्ट्री आफ़ रेस फ़्राम
ह्वाइट सुप्रीमेसी टु आइडेन्टिटी पोलिटिक्स’ का प्रकाशन हुआ ।
लेखक ने बहुत ही त्रासद तथ्य से किताब की शुरुआत करते हुए बताया है कि चमड़ी के रंग
के कारण पहली बार पीटे जाने की उनको याद नहीं । किशोर होने से पहले ही ऐसा हुआ
होगा । असल में नस्ली लोगों से खुद को बचाने की यह बात इतनी सामान्य थी कि वे इसकी
याद तक नहीं संजो सके । किशोर होते होते तो ऐसा कोई दिन ही नहीं बीतता जिस दिन
उन्हें इन हमलों का सामना न करना पड़ता हो । किशोरावस्था की समाप्ति तक वे एशियाई
लोगों को ऐसे हमलों से बचाने के लिए गश्ती दलों का गठन करने लगे थे ।
2023
में द न्यू प्रेस से कायला सोमेर्स की किताब ‘ह्वेन द स्मोक क्लीयर्ड: द 1968
रेबेलियंस ऐंड द अनफ़िनिश्ड बैटल फ़ार सिविल राइट्स इन द नेशन’स कैपिटल’ का प्रकाशन
हुआ । किताब की शुरुआत 4 अप्रैल 1968 को मार्टिन लूथर किंग की हत्या से होती है ।
उससे अमेरिकी नस्लभेद के विरोध में गुस्से का ज्वार फूट पड़ा । समूचे अमेरिका के सौ
से अधिक शहरों में अमेरिकी अश्वेत सड़कों पर उतर आये । राजधानी वाशिंगटन में गुस्सा
सबसे अधिक था । भीड़ को काबू करने के लिए पंद्रह हजार सैनिकों को उतारना पड़ा था ।
हजार जगहों पर आगजनी हुई थी ।
2023
में बीकन प्रेस से नोरा न्यूस की किताब ’24 आवर्स इन शार्लोट्सविले: ऐन ओरल
हिस्ट्री आफ़ द स्टैंड अगेंस्ट ह्वाइट सुप्रीमेसी’ का प्रकाशन हुआ । यह जगह वही है
जहां ट्रम्प के जमाने में दक्षिणपंथियों की हिंसक रैली हुई थी । किताब उस रैली की
खबर देने के मकसद से गये रिपोर्टर की है । उन्मादी गोरों के संगठनों नव नाजीवादी
गिरोहों ने एक स्त्री की हत्या कर दी और बीसियों को घायल कर दिया था । रैली में
शामिल होने के लिए अमेरिका के पैंतीस प्रांतों के अतिरिक्त कनाडा से भी लोग चले
आये थे ।
2023
में पोलिटी से उमुत ओज़किरिमली की किताब ‘कैंसिल्ड: द लेफ़्ट वे बैक फ़्राम वोक’ का
प्रकाशन हुआ । किताब बेहद रोचक तरीके से प्रतिरोध की नयी शब्दावली से पाठक का
परिचय कराती है । उदाहरण के लिए वोक का अर्थ नस्ली या सामाजिक भेदभाव के प्रति
सचेत रहना है । इसी तरह कैंसिल का अर्थ होता है सोशल मीडिया पर सांस्कृतिक रूप से
अस्वीकार्य विचारों को मानने वालों को सार्वजनिक रूप से घेरना, उनका बहिष्कार करना
या उनसे समर्थन वापस लेना ।
2023
में वर्सो से अरुण कुंदनानी की किताब ‘ह्वाट इज एन्टी-रेसिज्म?: ऐंड ह्वाइ इट
मीन्स एन्टीकैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । लेखक ने बताया है कि नस्लभेद विरोधी
प्रदर्शनों के दौरान 2022 में पुलिस थानों को जला देने का समर्थन अधिकांश अमेरिकी
लोगों ने किया था । जार्ज फ़्लायड की पुलिसिया हत्या के बाद समूचे अमेरिका में
ब्लैक लाइव्स मैटर के आंदोलन में पचासों लाख लोगों ने भाग लिया । सभी आंदोलनों की
तरह ही इसके भागीदारों में भी पर्याप्त विविधता थी । इसके बावजूद पुलिस के लिए धन
का आवंटन बंद करने, जेलों को खत्म करने तथा आप्रवास और आव्रजन पर रोक को समाप्त
करने की मांग पर सबमें सहमति थी । कार्यकर्ताओं का कहना था कि पुलिस, जेल और सरहद
की भूमिका हिंसा को कम करने के मुकाबले उसे बढ़ाने की अधिक है । उनसे सुरक्षा की
भावना पैदा होने की जगह लगता है जैसे वे नस्ली हिंसा और विषमता के स्रोत बन गये
हैं । समस्या यह नहीं है कि इनके अधिकारी पेशेवर मानकों से निजी स्तर पर विचलित
होते हैं बल्कि समस्या इन संगठनों को संचालित करनेवाले नियमों में ही है ।
प्रदर्शनकारी नस्लभेद की संरचना को समझ रहे थे । वे बेहतर प्रशिक्षण या विविधता
बढ़ाने के जरिये इन संगठनों में थोड़े से सुधार की मांग नहीं कर रहे थे बल्कि इन
संगठनों के उन्मूलन के पक्ष में थे ।
इन
प्रदर्शनों से निपटने के तहत उदारपंथी अमेरिकी संस्थाओं ने सबसे पहले समस्या को
मानने का रास्ता चुना । सभी मंचों पर अचेतन में बैठे पूर्वाग्रहों से निपटने की
बात होने लगी, निजी रिश्तों में आक्रामकता कम करने की जरूरत समझी गयी, विभिन्न
अस्मिताओं के बेहतर प्रतिनिधित्व के उपाय सुझाये गये, निजी पूर्वाग्रहों को
दुरुस्त करने का प्रशिक्षण शुरू हुआ और
दक्षिणपंथी उन्माद का मुकाबला करने का फैसला हुआ । इस दिशा में तमाम लेख,
भाषण और फ़िल्में सामने आयीं । शिक्षा संस्थानों, निगमों और सरकारी कार्यालयों में
नस्लभेद विरोधी कार्यशालाओं का आयोजन हुआ और कर्मचारियों को विविधता के लिहाज से
शिक्षित किया गया । उस साल सबसे अधिक जिस किताब की बिक्री हुई उसका विषय गोरेपन की
भंगुरता/ नस्लवाद के बारे में बात करने में गोरों की असहजता था । उदारपंथियों ने
इस समस्या पर गोरों की चुप्पी तोड़ने की मांग की ।
ध्यान
देने की बात थी कि नस्लभेद की बात करते हुए उदारपंथियों ने पुलिस, जेल या सरहद
जैसी वृहदाकार आक्रामकता की जगह व्यक्तियों के पूर्वाग्रहों से उत्पन्न लघुस्तरीय
आक्रामकता का ही जिक्र किया । उनकी इस चतुराई पर से शुरू में परदा नहीं उठा
क्योंकि सभी लोग ढांचागत नस्लवाद या व्यस्थाबद्ध नस्लवाद को दुरुस्त करने की जरूरत
पर जोर दे रहे थे । लेकिन इनका प्रयोग करते हुए उदारपंथियों का आशय
प्रदर्शनकारियों से अलग हुआ करता था । जब कारपोरेट दुनिया ने भी नस्लभेद की बात
शुरू की तो यह भेद प्रकट हुआ । मसलन वालमार्ट ने सैकड़ों लाख डालर लगाकर व्यवस्थाबद्ध
नस्लभेद के चालकों को नस्ली समता में प्रशिक्षित करने के लिए विशेष केंद्र खोलने
की घोषणा की । व्यस्थाबद्ध से उनका मतलब नस्लवाद को व्यापक समाज व्यवस्था का अंग
मानकर उसे खत्म करना नहीं था वरन इससे उनका तात्पर्य पूर्वाग्रह दूर करने और कानून
लागू करने वालों से सकारात्मक संबंध बनाकर इस समस्या का समाधान करना था । उन्हें
सामाजिक ढांचे की जगह व्यक्तियों को बदलना था । इसी तरह एक और वित्तीय संगठन के
सर्वेसर्वा ने लिखा कि नस्लवाद हमारे समाज की बहुत गहरी और लम्बे समय की समस्या है
जिसे व्यक्तिगत और व्यवस्था के स्तर पर हल करना होगा । लेखक का सवाल है कि क्या
इसके लिए वे न्यू यार्क पुलिस फ़ाउंडेशन को चंदा देना बंद कर देंगे या हथियारों के
उत्पादन में निवेश नहीं करेंगे । क्या वे अपने नियंत्रण में मौजूद भारी संपत्ति को
नस्ली विषमता के खात्मे के लिए पुनर्वितरित करेंगे । इसकी जगह उनका प्रस्ताव इन
घावों पर मरहम लगाने के लिए आपसी बातचीत और रिश्ते कायम करना है ।
एक
साल बाद बाइडेन प्रशासन ने देश की चरमपंथी हिंसक आंदोलनों का अध्ययन करने और उनके
पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए विविधता और समेकन अधिकारी की नियुक्ति की सिफारिश
की ताकि वंचित समुदायों के विकास हेतु अवसर पैदा किये जा सकें । यह सवाल करने की
जगह कि सेना कितने अश्वेतों का कत्लेआम करती है सेना में अधिकाधिक अश्वेतों की
भरती पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा । इन सभी प्रतिक्रियाओं का सार यही था कि
ढांचागत नस्लवाद का समाधान अमेरिका की ताकतवर संस्थाओं की नीतियों में बदलाव की
जगह इन संस्थाओं के नेतृत्व में विविधता ले आना है । इससे उपन्न भ्रम का शिकार
नस्लभेद विरोधी अनेक लेखक भी हुए । इसके नमूने के बतौर उन्होंने एक लेखिका के मत
को उद्धृत किया है जिनका कहना है कि नस्लवाद ऐसी दूरगामी व्यवस्था है जो
व्यक्तियों की इच्छा या उनकी आत्मछवि से स्वतंत्र होकर काम करती है । इसके बावजूद
वे अपने विश्लेषण में नस्लवाद का ऐसे हथियार की तरह इस्तेमाल नहीं करतीं कि उनके
गोरे पाठक आसानी से बिना अपराध बोध के अपने अचेतन पूर्वाग्रहों पर विचार कर सकें ।
वह उन्हें ऐसी बड़ी सामाजिक ताकतों का कारनामा महसूस होता है जिन पर उनका कोई वश
नहीं चलता । इन बड़ी सामाजिक ताकतों की कार्यपद्धति की कोई व्याख्या उनके पाठकों को
नहीं मिल पाती और उनके सुझाव गोरों को उनकी निजी मान्यताओं पर विचार करवाने तक
सीमित रह जाते हैं । उनकी सलाह है कि अगर तूफान ले आना है तो हवा के झोंकों से
शुरुआत करनी होगी लेकिन तमाम वक्त झोंके ही चलते रह जाते हैं, तूफान की बारी ही
नहीं आती । इसी तरह की अनेक रचनाओं में तमाम लेखक नस्लभेद को ऐसी व्यक्तिगत बुराई
की तरह पेश करते हैं जो व्यक्ति के अचेतन में मौजूद होती है ।
2023 में यूनिवर्सिटी आफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस से राब एशमान की किताब ‘ह्वेन द हुड कम्स आफ़: रेसिज्म ऐंड रेजिस्टेन्स इन द डिजिटल एज’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि जब पहली बार उन्होंने इंटरनेट पर वीडियो गेम खेला था तभी पहली बार नीग्रो शब्द भी इस्तेमाल किया था । कालेज में दाखिला लेते ही वीडियो गेम पर भरपूर समय देने लगे थे । एक दोस्त के साथ ही बीच बीच में पढ़ाई भी कर लेते । कभी दूसरे ग्रह के प्राणियों से तो कभी आपस में युद्ध हुआ करता था । आज तो मोबाइल में भी गेम खेला जा सकता है लेकिन तब ऐसा नहीं था । जाड़े की छुट्टियों में वे अपने हमउम्र भतीजों के पास गये । वे इंटरनेट पर वीडियो गेम खेलने में उस्ताद थे । दुनिया भर में कहीं भी बैठे लोगों के साथ खेलने और संवाद करने का मजा ही कुछ और था । पहले इंटरनेट पर खेलते हुए वे सिर पर टोपीनुमा औजार लगा लेते जिससे विरोधी के साथ संवाद भी चलता रहता था । अपने भतीजों से जब उन्होंने ऐसा करने को कहा तब पता चला कि ऐसे लोगों को इंटरनेट पर नीग्रो बोलने का चलन है ।
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