Saturday, May 30, 2020

निराला पर रामविलास शर्मा की कविता



वह सहज विलंबित मंथर गति जिसको निहार
गजराज लाज से राह छोड़ दे एक बार
काले लहराते बाल देव सा तन विशाल
आर्यों सा गर्वोन्नत प्रशस्त अविनीत भाल
झंकृत करती थी जिसकी वाणी में अमोल
शारदा सरस वीणा के सार्थक सधे बोल
कुछ काम आया वह कवित्व आर्यत्व आज
संध्या की बेला शिथिल हो गए सभी साज
पथ में अब वन्य जंतुओं का रोदन कराल
एकाकीपन के साथी हैं केवल श्रृगाल


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