Thursday, August 20, 2015

अस्मिता विमर्श और मार्क्सवाद


अस्मिता विमर्श और मार्क्सवाद का आपसी रिश्ता विभिन्न समयों में कभी सहयोग और कभी होड़ का रहा है । ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि दोनों ही वंचित समुदायों की स्थिति को समझने और उसे बदलने की कोशिशों से संबद्ध हैं । इनके बीच के रिश्ते में शत्रुता को स्थायी भाव समझा जाता है जबकि सच यह है कि इनका आपसी रिश्ता ऐतिहासिक उतार चढ़ाव से गुजरता रहा है । आज के ही समय के उदाहरण से देखें तो साहित्य को उसके कलात्मक रूप तक सीमित कर देने की चेष्टा के विरुद्ध दोनों में सहयोग की संभावना दिखाई देगी । इसी तरह एरिक हाब्सबाम ने उन्नीसवीं सदी के इतिहास पर लिखी अपनी तीन किताबों (एज आफ़ रेवोल्यूशन, एज आफ़ कैपिटल, एज आफ़ एम्पायर) में दिखाया है कि मजदूर वर्गीय अस्मिता का भी निर्माण हुआ है । पहली पीढ़ी के मजदूर किसान समुदाय से आए थे और उनमें लैंगिक आधार पर ही नहीं, क्षेत्रीय और धार्मिक आधारों पर भी विभाजन मौजूद थे फिर भी उनके सामाजिक जीवन ने इन विभाजक पहलुओं को गलाकर एक वर्गीय अस्मिता का निर्माण किया और इसी अस्मिता के साथ उन्होंने उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध तक की ज्यादातर लड़ाइयां लड़ीं । फिर भी बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में दो ऐसे नव-सामाजिक आंदोलन उभरे जो वर्गीय पहचान से अलग पहचानों की दावेदारी पर जोर देते थे । इनमें से एक नारीवादी आंदोलन था और दूसरा ब्लैक अस्मिता को घोषित करने वाला ब्लैक साहित्य । इन दोनों के अतिरिक्त हम पर्यावरणवाद का भी नाम ले सकते हैं लेकिन साहित्य की दृष्टि से अभी उसका असर हिंदी में नहीं दिखाई पड़ रहा है । नारीवादी और ब्लैक अस्मिता ने अपनी स्वतंत्र पहचान पर जोर देने के लिए बहिष्कार (एक्सक्लूसिवनेस) का रास्ता अपनाया और विशिष्टता का उद्घोष करने के लिए स्त्री और काले लेखकों के लेखन को ही मान्यता दी । इस दावेदारी ने निश्चित रूप से साहित्य के परिसर को चौड़ा बनाया लेकिन साथ ही मार्क्सवाद के साथ इनका होड़ का ही रिश्ता प्रधान रूप से बना । अब नए दौर में इसे पहचाना जाने लगा है कि इन आंदोलनों ने मार्क्सवाद को न केवल व्यावहारिक धरातल पर, बल्कि सैद्धांतिक रूप से भी समृद्ध किया है । नारीवाद ने अर्थतंत्र की समझ को दुरुस्त करने में मदद की है जिसके दावे के मुताबिक राष्ट्रीय संपदा के निर्माण में स्त्रियों के योगदान को रेखांकित किया जाता है । घरेलू काम जिसे अर्थशास्त्र की विचार की परिधि से बाहर रखा जाता है उसे भी काम के भीतर परिगणित करने की मांग की जाती है । यहां तक कि भाषा और सभ्यता के एकांगीपन को रेखांकित करने और लैंगिक विविधता को लोकतांत्रिक अधिकार के सवाल के साथ जोड़ने में नारीवाद का ऐतिहासिक योगदान है । इसी तरह काले लोगों के आंदोलन और साहित्य के जरिए यूरोपीय और पश्चिमी मुल्कों की समृद्धि में उपनिवेशित देशों के योगदान को देखने की प्रेरणा मिली । अमेरिका में काले लोगों के विरुद्ध शासन और कानून की पक्षधरता के पीछे गुलामी के इतिहास को भी खंगालने की प्रक्रिया के पीछे एक हद तक इस जागरण का संबंध है । पर्यावरणवाद ने पूंजीवाद की मानव विरोधी भूमिका को पहचानने में तो मदद की ही, जल-जंगल-जमीन और प्रकृति के साथ साहचर्य का रिश्ता विकसित करने की प्रेरणा भी दी । उपभोगवादी नजरिए के विरोध के जरिए इसने मानव श्रम की प्रतिष्ठा को भी स्थापित करने का रास्ता तैयार किया ।

     

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