Sunday, April 24, 2011

साक्षात्कार

प्रोफ़ेसर क ने पूछा- अच्छा ठीक है आप ही बताइए आपसे क्या पूछा जाय ?

मैं चौंका । इनसे तो बात हो गयी थी । फिर क्यों पूछ रहे हैं ?

बोला- कुछ नहीं ।

अब चौंकने की बारी कुलपति की थी । बोले- क्यों ?

मैंने कहा- नौकरी देना हो तो दीजिए, न देना हो मत दीजिए । इसके लिए पूचताछ की क्या जरूरत है ?

स्पष्टीकरण- आखिर आप इतनी प्रतिष्ठित संस्था में घुसना चाहते हैं । जाँच परख तो करनी ही होगी ।

मैंने पूछा- मेरी आँखों में क्या आपको मेरी झड़ चुकी पूँछ नहीं नजर आ रही ?

प्रोफ़ेसर ख बौखला गये : विश्वविद्यालय आपको आने जाने का किराया दे रहा है । हमें हवाई जहाज से इसी काम के लिए बुलाया गया है । आपकी नहीं तो हमारी जवाबदेही बनती है न ?

समर्पण करते हुए मैंने कहा- ठीक है जो भी पूछना हो पूछ लीजिए ।

प्रोफ़ेसर ग ने शुरू किया- सगुण और निर्गुण भक्ति में क्या अंतर है ?

मैंने प्रति प्रश्न किया- आपको नहीं मालूम ?

प्रोफ़ेसर ग- आप बताइए ।

मैं- कोई नहीं ।

प्रोफ़ेसर ख- आयु और उम्र में क्या अंतर है ?

मैं- एक संस्कृत भाषा का शब्द है दूसरा उर्दू का ।

विभागाध्यक्ष ने देखा कि न पूछने की हालत में कुलपति उन्हें ही अयोग्य न मान बैठें । सो उन्होंने पूछा- हिंदी को खड़ी बोली क्यों कहा जाता है ?

मैंने लज्जित सा होते हुए कहा- अगर आप जानते हैं तो पूछ क्यों रहे हैं ? वैसे मुझे नहीं मालूम ।

अब तक विशेषज्ञ और विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि तथा मैं- सभी थक चुके थे । संकेत देते हुए कुलपति ने प्लेट से काजू उठाया । शेष लोग आपस में हँसी मजाक करने लगे । मुझ पर प्रोफ़ेसर क का ध्यान गया ।

- ठीक है, जाइए ।

- क्यों ?

- हमने समझ लिया कि आपको जासूसी से चिढ़ है ।

इस तरह उस वातानुकूलित कक्ष में साक्षात्कार के नाम पर विशेषज्ञों का अहंकार तुष्ट हुआ और पराजित होकर धूल झाड़ता मैं बाहर निकला ।

बाहर अन्य प्रत्याशी देर होती देखकर परेशान हो रहे थे ।

- काफ़ी देर लगी ? क्या पूछ रहे थे ?

मैं क्या उत्तर देता !

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