Tuesday, February 23, 2021

स्त्री की दावेदारी के बीस साल

 

              

                                          

पिछली सदी की आखिरी दहाई को आम तौर पर सोवियत संघ के पतन के साथ जोड़कर देखा जाता है लेकिन यदि ध्यान से देखा जाये तो वर्तमान सदी के विगत दो दशकों में अर्थतंत्र में नवउदारवाद के प्रभुत्व के साथ ही राजनीति में एकाधिकारी प्रवृत्तियों का जिस कदर क्रमिक उभार हुआ उसके साथ ही नस्लभेद विरोधी अभियान और नारीवादी उभार भी नजर आयेगा । इस उभार का ही असर था कि अमेरिका में राष्ट्रपति पद के विगत चुनावों में बाइडेन ने उप राष्ट्रपति पद के लिए कमला हैरिस को चुना । इससे कुछ ही समय पहले न्यू ज़ी लैंड में प्रधानमंत्री के पद पर पिछली स्त्री प्रधानमंत्री दूसरी बार विजयी हुईं । आइसलैंड की राष्ट्र प्रमुख भी एक स्त्री ही हैं । राजनीति में स्त्री के इस उभार को रेखांकित करते हुए 2014 में ज़ेड बुक्स से मारिज़ ताद्रोस के संपादन में वीमेन इन पोलिटिक्स: जेंडर, पावर ऐंड डेवलपमेन्टका प्रकाशन हुआ । संपादक की प्रस्तावना के अलावे किताब में आठ लेख संकलित हैं । इनमें क्रमश: घाना, बांगलादेश, मिस्र, फिलीस्तीन, सुडान, भारत, सिएरा लिओन और ब्राज़ील की राजनीति में स्त्रियों की स्थिति की जांच परख की गई है । यह उभार राजनीतिक प्रतिनिधित्व तक ही सीमित नहीं है, इसने तमाम मोर्चों पर खलबली मचा रखी है ।  

2020 में बेसिक बुक्स से लीसा लेवेनस्टाइन की किताब ‘दे डिडन’ट सी अस कमिंग: द हिडेन हिस्ट्री आफ़ फ़ेमिनिज्म इन द नाइन्टीज’ का प्रकाशन हुआ । लेखिका ने कहानी उस दिन से शुरू की है जब ट्रम्प के जीतने की रात हवाई निवासी अवकाशप्राप्त वकील ने वाशिंगटन चलो का आवाहन फ़ेसबुक पर किया । सोने से पहले चालीस लोगों ने सहमति जताई थी । सुबह जब उनकी नींद खुली तब तक दस हजार से अधिक लोग सहमत हो चुके थे । अभियान को गति मिली और काले, गोरे, मुस्लिम और लातीनी आयोजकों ने वाशिंगटन पर स्त्रियों के धावे का आवाहन कर दिया । भारी जुटान हुई और मंच से एंजेला डेविस ने इसे नारीवाद का संकल्प बताया । ढेर सारे नगरों में उसी दिन प्रदर्शन हुए । एक दिन अमेरिका के इतिहास में इतना विशाल विरोध प्रदर्शन इससे पहले नहीं हुआ था । इसकी वजह कुछ लोगों ने ट्रम्प की जीत को बताया । उनकी जीत ने जैसे स्त्रियों को नींद से झकझोर कर जगा दिया था । बात एक हद सही भी थी लेकिन लाखों लोगों के सड़क पर उतरने की वजह केवल ट्रम्प की जीत नहीं मानी जा सकती । इसके पीछे वह खामोश उठान थी जिसने संगठित होने की कोशिश लगातार जारी रखी थी । इस चेतना की जड़ें नब्बे के दशक में थीं । नब्बे के दशक के इस जिक्र से इस सूची को सही संदर्भ मिलता है क्योंकि इसमें उस दशक के अंत से हमने इस चेतना के उठान को देखने का प्रयास किया है नवउदारवाद के प्रचंड विरोध ने जिन सामाजिक ताकतों को नया रूप दिया उनमें स्त्री समुदाय भी शामिल था तबसे अब तक इसका विकास इतने मोड़ों से होकर गुजरा है कि इसकी विविधता अचरज से भर देती है स्त्री समुदाय की स्थिति सभी अन्य कोटियों को बीच से काटती है इसलिए उनकी लड़ाई लगभग सभी लड़ाइयों से साझा कायम करती है       

2020 में प्लूटो प्रेस से लोला ओलुफ़ेमी की किताबफ़ेमिनिज्म, इंटरप्टेड: डिसरप्टिंग पावरका प्रकाशन हुआ । इस लेखिका का मानना है कि नारीवाद भविष्योन्मुखी राजनीतिक प्रकल्प है । जिन भी चीजों को असम्भव माना गया है उनको चाहने, मिलने की उम्मीद और उसका प्रयास ही इसे विशेष बनाता है । किताब में वर्तमान की सीमाओं और साथ मिलकर बन सकने वाली दुनिया की सम्भावना को पहचाना गया है । क्रांतिकारी नारीवादी चिंतन और व्यवहार से पाठकों को परिचित कराना इसका मकसद है ।

2020 में वर्सो से वेरोनिका गागो की स्पेनी में 2019 में छपी किताब का अंग्रेजी अनुवादफ़ेमिनिस्ट इंटरनेशनल: हाउ टु चेन्ज एवरीथिंगका प्रकाशन हुआ अनुवाद लिज़ मेसन-डीसे ने किया है लेखिका अर्जेंटिना की हैं और अनुवादक के अनुसार इस अनुवाद के जरिए उस देश की नारीवादी सोच को दुनिया के सामने ले आना इस अनुवाद का लक्ष्य है इसके लिए उन्होंने आंदोलन से उपजे कुछ मूल शब्दों को जस का तस रहने दिया है             

2020 में वर्सो से ब्रेन्ना भांदर और रफ़ीफ़ ज़ियादा के संपादन में ‘रेवोल्यूशनरी फ़ेमिनिज्म्स: कनवर्सेशन्स आन कलेक्टिव ऐक्शन ऐंड रैडिकल थाट’ का प्रकाशन हुआ । उनका कहना है कि जिन नारीवादों की चर्चा किताब में हुई है वे विभिन्न राजनीतिक संदर्भों और परम्पराओं से जुड़े हुए हैं । जिन लोगों के साक्षात्कार इसमें संग्रहित हैं उन्हें किसी एक नाम में सीमित नहीं किया जा सकता । इसके बावजूद उनमें चिंतन के स्तर पर पर्याप्त साझेदारी भी मिलती है । पूंजीवाद, साम्राज्यवाद और नस्लवाद विरोध के जरिए उन्होंने अपना नारीवादी विश्लेषण विकसित किया है । इन सबका मानना है कि स्त्री की आजादी के लिए समाजार्थिक संबंधों, राजनीतिक ढांचों तथा मनोवैज्ञानिक व प्रतीकों की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत है । इस काम को व्यक्तियों, समुदायों और सरकारों के स्तर पर करना होगा । इस काम को करने का तात्कालिक संदर्भ दक्षिणपंथी उभार, नवउदारवादी अर्थनीति और शासन तथा नस्ली राष्ट्रवाद की मौजूदगी से निर्मित हुआ है । हालिया वित्तीय संकट ने इस व्यवस्था को हिला तो दिया लेकिन जल्दी ही संकट का बोझ मेहनतकश जनता के कंधों पर लाद दिया गया । इसका सर्वाधिक असर अश्वेत जनसमुदाय और मजदूर स्त्रियों पर पड़ा ।        

2020 में प्लूटो प्रेस से कैरोलीन बासेट, सारा केम्बर और केट ओ’रियोर्दन की किताब ‘फ़्यूरियस: टेकनोलाजिकल फ़ेमिनिज्म ऐंड डिजिटल फ़्यूचर्स’ का प्रकाशन हुआ । यह किताब कंप्यूटर की दुनिया और संस्कृति अध्ययन में पुरुष वर्चस्व के विरुद्ध गुस्सैल नारीवादी हस्तक्षेप है । डिजिटल संचार के क्षेत्र में मौजूद पुरुष प्रभुत्व को चुनौती देना लेखिकाओं को जरूरी लगता है । दुनिया में तकनीकी रूपांतरण की गति त्वरित होती जा रही है । ऐसा देखा जा रहा है कि नवीनता ही काम्य बन गई है और भविष्य के लिए वादा किया जा रहा है कि बेहतर उपभोक्ता का सबलीकरण होगा ।

2020 में प्लूटो प्रेस से डेविड बेरी की किताब पीपुल हिस्ट्री आफ़ टेनिसका प्रकाशन हुआ इस किताब की शुरुआत तीन ऐसी स्त्रियों की कहानी से होती है जो विम्बल्डन में होनेवाले मुकाबले के दर्शकों की भीड़ के बीच स्त्री मताधिकार के सवाल का प्रचार करने गुप्त रूप से आई थीं । इसके लिए वे मैदान में परचे फेंकना और दर्शक दीर्घा में आग लगाना चाहती थीं । पुलिस के देख लेने पर वे भागने लगीं । उनमें से एक जमीन पर गिर पड़ी और पकड़ी गई । उसे खामोश मताधिकार आंदोलनकारी कहा गया । उसने कुछ भी बताने से इनकार किया फिर भी उसे दो महीने जेल की सजा मिली । बाद में उसे पकड़ने वाले पुलिस अधिकारी ने टेनिस की कहानी लिखी । 1913 की फ़रवरी की उस रात मताधिकार आंदोलनकारियों ने वह पहली ध्यानाकर्षक कार्यवाही की थी । मताधिकार के लिए उनके उग्र अभियान की इससे शुरुआत हुई थी । प्रचार के लिए खेल के मैदानों और दर्शक दीर्घाओं में आग लगाने का तरीका चुना गया । इसका कारण स्त्रियों को इन्हें देखने की इजाजत न होना था । टेनिस का मामला थोड़ा भिन्न था । खेल के आयोजन में उनकी भागीदारी 1950 दशक से पहले नहीं हो सकी थी लेकिन उसकी शुरुआत घरेलू मनोरंजन के रूप में हुई थी इसलिए खिलाड़ियों में स्त्रियों की मौजूदगी होती थी ।            

2020 में वर्सो से जूडिथ लेवाइन और एरिका आर माइनेर्स की किताब द फ़ेमिनिस्ट ऐंड द सेक्स आफ़ेंडर: कनफ़्रंटिंग सेक्सुअल हार्म, एंडिंग स्टेट वायलेन्स का प्रकाशन हुआ । 2020 में वर्सो से जोआन वाइपिजेव्सकी की किताबह्वाट वी डोन टाक एबाउट ह्वेन वी टाक एबाउट #मीटू: एसेज आन सेक्स, अथारिटी & मेस आफ़ लाइफ़का प्रकाशन हुआ लेखिका के ये लेख वर्तमान सदी की शुरुआत में अमेरिका के हालात पर सोचते हुए लिखे गए हैं । 2019 में पालग्रेव मैकमिलन से बियांका फ़ाइलबार्न और राचेल लोनी-होव्स के संपादन में ‘#मी टू ऐंड पोलिटिक्स आफ़ सोशल चेन्जका प्रकाशन हुआ किताब की प्रस्तावना वाल्टर डेकेसेरेडी ने लिखी है इसके बाद संपादकों की भूमिका और उपसंहार समेत किताब के चार भागों में इक्कीस लेख संकलित हैं 2019 में आर्केड पब्लिशिंग से टिम सैमुएल्स की किताब फ़्यूचर मैन: हाउ टु इवाल्व ऐंड थ्राइव इन द एज आफ़ ट्रम्प, मैन्सप्लेनिंग, ऐंड #मीटूका प्रकाशन हुआ । 2016 के बाद दूसरी बार इसका प्रकाशन हुआ है । लेखक ने वाशिंगटन में पुरुषों के पक्ष में होने वाले एक प्रदर्शन के विश्लेषण से अपनी बात शुरू की है । उन्हें इसकी वजह समझ नहीं आई क्योंकि पितृसत्ताक राष्ट्रपति के रहते आखिर पुरुषों को क्या खतरा हो सकता है । लेकिन इससे उन्हें पुरुषों के हालात के बारे में सोचने का मौका मिला । 2019 में वर्सो से मीठू सान्याल की 2016 में जर्मन में छपी किताब का अंग्रेजी अनुवाद ‘रेप: फ़्राम लुक्रेशिया टु #मी टू’ प्रकाशित हुआ । लेखिका को जब कहीं नलात्कार के बारे में बोलना होता तो चेतावनी दी जाती कि वे इससे उत्पीड़ितों को फिर से वही सब याद न दिलाएं लेकिन उन्हें इस बात पर एतराज है कि उत्पीड़ितों को पढ़ सकने में  अक्षम समझा जाए । इसलिए उनकी इस किताब के पाठक इस संवेदनशील मसले पर लिखी किताब के लिए तैयार रहें । स्त्रियों के जीवन पर किसी भी अन्य अपराध के मुकाबले बलात्कार का अधिक गहरा असर पड़ता है । किताब में बलात्कार का दस्तावेजी इतिहास प्रस्तुत करने की जगह अलग अलग कहानियों के आपसी रिश्ते को समझने की कोशिश की गई है । लेखिका इसे सांस्कृतिक तौर पर तकलीफ़देह मुद्दा कहती हैं । इस पर ध्यान देने की जरूरत तो है लेकिन इसे छूने में डर लगता है । इसीलिए लेखिका की अन्य किताबों के मुकाबले इसका विरोध अधिक हुआ । किताब की छपाई में देरी के चलते लाभ ही हुआ क्योंकि इस मामले में हाल में घटित ढेर सारी चीजें भी इसमें शामिल की जा सकीं ।

2020 में पालग्रेव मैकमिलन से मसीलिया औराबा की किताब ‘द सोशल लाइफ़ आफ़ ए हरस्टोरी टेक्स्टबुक: ब्रिजिंग इंस्टीच्यूशनलिज्म ऐंड ऐक्टर-नेटवर्क थियरी’ का प्रकाशन हुआ । इसमें एक फ़्रांसिसी किताब की कहानी बताई गई है जिसमें स्त्री की नजर से इतिहास को देखने की कोशिश हुई थी । उसे कभी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया ।

2020 में पी एम प्रेस से सिल्विया फ़ेडरीकी की किताब ‘बीयान्ड द पेरिफेरी आफ़ द स्किन: रीथिंकिंग, रीमेकिंग, ऐंड रीक्लेमिंग द बाडी इन कनटेम्पोरेरी कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । किताब लेखिका के तीन व्याख्यानों और कुछ लेखों के आधार पर उनके द्वारा ही तैयार की गई है । इनमें से कुछेक लेख पत्रिकाओं में पहले छपे । इसमें शरीर के सवाल पर सत्तर के दशक के नारीवादियों के चलते निर्मित समझ पर जोर दिया गया है । साथ ही स्त्रियों के भौतिक हालात में बदलाव के मामले में इस समझ की सीमा को भी रेखांकित किया गया है । इन दो बातों के अतिरिक्त पूंजीवादी समाज के इतिहास में स्त्रियों के शोषण के विभिन्न रूपों की जड़ खोजने की कोशिश भी इसमें है । व्याख्यान के उपरांत जो सवाल उठे उनके कारण पूर्व निश्चित ढांचे में कुछ बदलाव भी लेखिका को करने पड़े ।        

2020 में प्लूटो प्रेस से सुसान फ़र्ग्यूसन की किताब ‘वीमेन ऐंड वर्क: फ़ेमिनिज्म, लेबर ऐंड सोशल रिप्रोडक्शन’ का प्रकाशन हुआ । लेखिका के अनुसार डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में हिलेरी के चुनाव को नारीवाद की जीत माना गया । सत्तर और अस्सी के दशक में लगातार वे पुरुष प्रधान माहौल में एक के बाद एक सफलता अर्जित करती हुई विदेश मंत्री के पद पर पहुंची थीं । उनकी हार से लगा कि अमेरिकी लोग स्त्री को जिताने की जगह उसको रोकने के लिए कुछ भी कर सकते हैं । नारीवाद उनको प्रत्याशी बनाने तक ले गया लेकिन नारीवाद विरोध ने जीतने नहीं दिया । कुछ ही महीने बाद फिर से आंदोलन फूट पड़ा । दुनिया भर में भारी संख्या में सड़क पर उतरकर स्त्रियों ने घोषित किया कि लड़कर हासिल किए गए अधिकारों को बरकरार रखने के लिए वे जूझ मरेंगी 8 मार्च को तो उन्होंने केवल ट्रम्प बल्कि आर्थिक विषमता, नस्ली और यौन हिंसा तथा साम्राज्यवादी युद्ध जैसे ट्रम्प को पैदा करने वाले हालात के विरोध का भी संकल्प किया नारीवादी राजनीति की यह नई दिशा थी उतनी नई दिशा भी नहीं क्योंकि अरसा पहले समाजवादी नारीवादियों ने संघर्ष का यही तरीका अपनाया था उन्होंने भी अपनी मांगों को व्यापक जन सरोकारों से जोड़ा था अमेरिका में इसे 99% का नारीवाद कहा गया तो अर्जेंटिना में इसे लोकप्रिय नारीवाद का नाम दिया गया इसमें स्त्रियों ने पुरुषों की दुनिया में अपने लिए जगह की मांग नहीं की बल्कि काम करने से इनकार करके सामूहिक रूप से इस दुनिया को बदलने का इरादा जाहिर किया       

2019 में पोलिटी से विक्टोरिया बेटमैन की किताब ‘द सेक्स फ़ैक्टर: हाउ वीमेन मेड द वेस्ट रिचका प्रकाशन हुआ । लेखिका अपने नग्न विरोध प्रदर्शनों के लिए विख्यात रही हैं । ऐसे ही एक प्रदर्शन का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया है कि जब एक सम्मेलन में बोलने के लिए उन्हें बुलाया गया तो उन्होंने नग्न होकर भाषण देने का फैसला किया क्योंकि अर्थशास्त्रियों को स्त्री से परेशानी रही है । उनका यह भी कहना है कि सही संप्रेषण के साधन केवल शब्द नहीं होते । आखिर गुटेनबर्ग ने प्रेस का आविष्कार पांच सौ साल पहले ही तो किया था । शैक्षिक संप्रेषण में लिखित और बोले हुए शब्दों का व्यवहार होता है तो इसका मतलब नहीं कि हमेशा यही होना चाहिए । वे खुद कला को संप्रेषण का बेहद प्रभावी साधन मानती हैं । अपने शरीर का कलात्मक इस्तेमाल करके उन्होंने अर्थशास्त्र के केंद्र में नारीवाद को रखने की कोशिश की । सौ साल से नारीवाद की मौजूदगी के बावजूद अर्थशास्त्र इससे बहुत कुछ अछूता ही रहा है । अर्थशास्त्र की दुनिया में स्त्री का कोई वजूद ही नहीं प्रतीत होता । नारीवादी आंदोलन के सवालों से अर्थशास्त्र बेखबर रहता है । उन्नीसवीं सदी में अर्थशास्त्रियों ने निजी और सार्वजनिक दुनिया में अंतर पैदा किया और बाजार तथा राजनीति को अपने अध्ययन के लिए चुन लिया ।

2019 में पी एम प्रेस से सिल्विया फ़ेडरीकी की किताब ‘री-एनचैंटिंग द वर्ल्ड: फ़ेमिनिज्म ऐंड द पोलिटिक्स आफ़ द कामन्स’ का प्रकाशन हुआ । किताब की प्रस्तावना पीटर लिनेबाग ने लिखी है । उन्होंने बताया कि कोलम्बस को अमेरिका के जो लोग मिले थे वे साझेपन का जीवन बिताते थे । उन्हीं लोगों की भावना के साथ यह किताब लिखी गई है । इसमें प्राचीनता के प्रति रूमानी आकर्षण नहीं, बल्कि साझेपन की नई दुनिया खड़ा करने का संकल्प है ।

2019 में रटलेज से फ़्रान्सेस रैडे की किताबइकोनामिक वूमन: जेंडरिंग इनइक्वलिटी इन एज आफ़ कैपिटलका प्रकाशन हुआ किताब में नव उदारवादी वैश्वीकरण के समय की स्त्री के आर्थिक यथार्थ को पकड़ने की कोशिश है । इस स्त्री के हाल क्षेत्रों, देशों, संस्कृतियों, धर्मों, वर्गों और परिवारों के मुताबिक बहुत अलग अलग हैं । एक ओर कुछ स्त्रियों की आर्थिक स्थिति पुरुषों के समान होती है तो दूसरी ओर अधिकांश स्त्री समुदाय पुरुष के संरक्षण में रहता है, उसे स्वायत्तता हासिल नहीं होती और संसाधनों या आर्थिक अवसर तक उनकी पहुंच नहीं होती । 

2019 में द बेल्कनैप प्रेस आफ़ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से सुसान वेयर की किताब ‘ह्वाइ दे मार्च्ड: अनटोल्ड स्टोरीज आफ़ द वीमेन हू फ़ाट फ़ार द राइट टु वोट’ का प्रकाशन हुआ । लेखिका ने बताया है कि मताधिकार आंदोलन के नेताओं ने दस साल तक लड़ने के बाद मताधिकार मिलने के मुहाने पर एक बड़ा घर खरीदा और आंदोलन के लम्बे इतिहास की स्मृति संजोई । इस अर्थ में लेखिका ने उन्हें प्रथम स्त्री इतिहासकार कहा है । घर के बाहर लगाने के लिए धातु के बारह पत्तर तैयार कराए गए जिनमें आंदोलन के सभी योद्धाओं के बारे में सूचना दर्ज की जानी थी ।

2019 में वर्सो से जेनी ब्राउन की किताब ‘विदाउट अपोलाजी: द एबार्शन स्ट्रगल नाउ’ का प्रकाशन हुआ ।

2019 में यूनिवर्सिटी आफ़ मिनेसोटा प्रेस से एली मेयेरहाफ़ की किताबबीयान्ड एजुकेशन: रैडिकल स्टडीइंग फ़ार एनादर वर्ल्डका प्रकाशन हुआ किताब की शुरुआत 2017 के #मीटू आंदोलन से होती है आंदोलन की शुरुआत शैक्षणिक दुनिया में मौजूद यौन शोषण के विरोध से हुई थी शुरुआत करने वाली सारा अहमद ने इस्तीफ़ा दे दिया क्योंकि सालों साल सांस्थानिक सुनवाई का इंतजार करने के बाद उन्हें लगा कि यह व्यक्तियों का मामला होकर सांस्थानिक संस्कृति का हिस्सा है उन्हें लड़ाई में छोटी मोटी सफलता तो मिली लेकिन मूल मुद्दे पर बात बहुत आगे नहीं बढ़ी   

इसी आंदोलन के चलते होने वाले बदलाव को दर्ज करते हुए 2019 में पालग्रेव मैकमिलन से बियांका फ़ाइलबार्न और राचेल लोनी-होव्स के संपादन में ‘#मी टू ऐंड द पोलिटिक्स आफ़ सोशल चेन्जका प्रकाशन हुआ । किताब की प्रस्तावना वाल्टर डेकेसेरेडी ने लिखी है । इसके बाद संपादकों की भूमिका और उपसंहार समेत किताब के चार भागों में इक्कीस लेख संकलित हैं ।

2019 में पेंग्विन प्रेस से जोडी कान्तोर और मेगन टूहे की किताब शी सेड: ब्रेकिंग द सेक्सुअल हरासमेन्ट स्टोरी दैट हेल्प्ड इग्नाइट ए मूवमेन्टका प्रकाशन हुआ । जब लेखिकाओं ने यौन हिंसा की शिकार के मामले की छानबीन शुरू की थी उस समय स्त्रियों की आमद उन सभी पेशों में हो चुकी थी जिन्हें कभी पुरुषों का एकाधिकार समझा जाता था । जर्मनी और ब्रिटेन में स्त्री राष्ट्राध्यक्ष थीं । इसके बावजूद उनका यौन उत्पीड़न जारी था । जो आवाज उठाती थीं उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता था । जो शिकार होती थीं वे अलग थलग रहती थीं । चुप्पी के बदले उन्हें कुछ धन दे दिया जाता था । उत्पीड़क आराम से तरक्की पाते थे । फिर ट्रम्प के उत्पीड़न के बारे में खबरें आने लगीं । लगा जैसे कोई बांध टूट गया । दुनिया भर में लाखों स्त्रियों ने उत्पीड़न के बारे में बोलना शुरू किया ।         

2019 में वर्सो से सिन्ज़िया अरुज़ा, तिथि भट्टाचार्य और नैन्सी फ़्रेजर की किताब ‘फ़ेमिनिज्म फ़ार द 99 परसेन्ट: ए मेनिफ़ेस्टो’ का प्रकाशन हुआ । अपने इस घोषणापत्र की शुरुआत लेखिकाओं ने फ़ेसबुक की अधिकारी शेरिल सैंडबर्ग के एक बयान से की है जिसमें उनका कहना है कि दुनिया की बेहतरी के लिए आधे देश और कंपनियों का संचालन स्त्रियों को करना चाहिए और आधे घरों का संचालन पुरुषों को करना चाहिए । उनके अनुसार जेंडर की समानता के लिए व्यवसाय की दुनिया में स्त्रियों को सख्ती के सहारे सफलता हासिल करनी होगी । जब वे ऐसा कह रही थीं उसी समय स्पेन में लाखों औरतें सड़क पर थीं । वे लिंग आधारित हिंसा, शोषण और उत्पीड़न से मुक्ति की मांग कर रही थीं । पूंजीवाद और पितृसत्ता के संश्रय की ओर से उन्हें विनयी, समर्पणकारी और खामोश बनाने के विरुद्ध संघर्ष और विद्रोह पर वे आमादा थीं । समान काम के लिए समान वेतन उनकी प्रमुख चाहत थी । आज नारीवादी आंदोलन की ये दो प्रतिनिधि आवाजें हैं ।   

2019 में ब्रिल से मार्था ई गाइमेनेज़ की किताब मार्क्स, वीमेन, ऐंड कैपिटलिस्ट सोशल रिप्रोडक्शन: मार्क्सिस्ट फ़ेमिनिस्ट एसेजका प्रकाशन हुआ । लेखिका ने सबसे मार्क्स के लेखन की जटिलता की ओर इशारा किया है । किताब के अधिकतर लेख पहले प्रकाशित हो चुके थे लेकिन किताब में शामिल करते समय उन्हें संशोधित किया गया । किताब के तीन हिस्से हैं । पहले हिस्से में मार्क्सवादी नारीवाद पर विचार किया गया है । दूसरा हिस्सा पूंजीवादी सामाजिक पुनरुत्पादन का विश्लेषण है । तीसरे हिस्से में नारीवाद की आगामी दिशा का विवेचन है ।

उनका कहना है कि वर्तमान समाजार्थिक और राजनीतिक बदलाव की प्रक्रिया को समझने के लिए मार्क्सवादी सिद्धांत के प्रयोग से इन लेखों का जन्म हुआ था । स्त्री उत्पीड़न, सामाजिक पुनरुत्पादन, अस्मिता की राजनीति, मजूरी और गैर मजूरी श्रम के बीच संबंध जैसे पूंजीवादी समाज व्यवस्था से जुड़े सवालों के सिलसिले में भौतिकवादी नजरिए की प्रासंगिकता साबित करना भी लेखिका का मकसद था । समाजशास्त्र, मार्क्सवादी नारीवाद और निजी जीवन लेखिका के लेखन में संयोजक तत्व रहे हैं । उनका जन्म अर्जेंटिना में हुआ लेकिन वयस्क होने के बाद अधिकतर अमेरिका में जीवन बीता । हरेक साल वे माता पिता से मिलने अर्जेंटिना जाती रहीं । कानून के अध्ययन के उपरांत वे समाजशास्त्र की ओर आईं । इसमें वेबर पर जोर दिया जाता था और मार्क्स को आर्थिक निर्धारणवादी तथा वर्ग अपघटन का दोषी माना जाता था । उनके अनुसार विद्यार्थियों की जानी पहचानी लैटिन अमेरिकी दुनिया में वर्ग, वर्ग संघर्ष, वर्गीय हित, अल्पतंत्र, शोषण, साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और क्रांति जैसी धारणाएं केवल समाजशास्त्रीय कोटियां न थीं वरन सामाजिक यथार्थ के बारे में रोज की बातचीत और उसकी आम समझ के लिए जरूरी पद थे । इसके मुकाबले जिस समाजशास्त्र का अध्यापन होता था उसमें व्यवस्था और सहमति पर जोर दिया जाता था, ऐसा समाजशास्त्र हमें झूठा और अपर्याप्त महसूस होता था । अमेरिका में साठ के दशक में पहली बार मार्क्स का अध्ययन शुरू किया तो ऐसे सघन, जटिल और चित्ताकर्षक सिद्धांत से पाला पड़ा जो लैटिन अमेरिकी इतिहास में पूंजीवाद की भूमिका तथा लैटिन अमेरिकी यथार्थ की गम्भीर समझ के लिए जरूरी लगा । उसके बारे में जो पूर्वाग्रह मन में थे वे दूर हुए ।           

2018 में बेर्गान बुक्स से रफ़ाएल्ला सार्ती, अन्ना बेलिवाइटिस और मानुएला मार्तिनी के संपादन में ‘ह्वाट इज वर्क?: जेंडर ऐट द क्रासरोड्स आफ़ होम, फ़ेमिली ऐंड बिजनेस फ़्राम द अर्ली माडर्न एरा टु द प्रेजेन्ट’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की भूमिका के अतिरिक्त किताब में शामिल दस लेख तीन भागों में संयोजित हैं । इसके बाद उपसंहार के रूप में एक लेख लौरा ली डाउन्स ने लिखा है । पहले भाग के तीन लेखों में घरेलू काम को श्रम से बाहर रखने के नजरिए को चुनौती का विश्लेषण है । दूसरे भाग के चार लेख इतिहास लेखन के स्रोतों में लिंग आधारित पूर्वाग्रहों का विवेचन है । तीसरे भाग के तीन लेख भुगतानविहीन घरेलू काम के प्रसंग में कानूनी प्रावधानों की परीक्षा की गई है ।

2018 में पोलिटी से लिन्डा मार्टिन अलकोफ़ की किताबरेप ऐंड रेजिस्टेन्स: अंडरस्टैंडिंग द काम्प्लेक्सिटीज आफ़ सेक्सुअल वायलेशनका प्रकाशन हुआ ।

2018 में पी एम प्रेस से सिल्विया फ़्रेडेरिकी के लेखों का संग्रह विचेज, विच-हंटिंग ऐंड वीमेनका प्रकाशन हुआ । ये लेख दो भागों में हैं । पहले खंड में पांच लेख पूंजी संचय और चुड़ैलों को मार डालने की यूरोपीय घटनाओं के बारे में हैं । इस विषय पर लेखिका ने पहले एक किताब लिखी थी । उसके तर्कों को इन लेखों में आगे बढ़ाया गया है । दूसरे भाग में दो लेख इस परिघटना की नए समय में मौजूदगी की परीक्षा की गई है । इनमें पहले लेख में अंतर्राष्ट्रीय और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में वैश्वीकरण, पूंजी संचय और स्त्री हिंसा पर विचार किया गया है । दूसरे लेख में अफ़्रीका के विशेष प्रसंग की विवेचना की गई है ।

2018 में हार्पर पेरेनियल से रोजाने गे के संपादन में नाट दैट बैड: डिस्पैचेज फ़्राम रेप कल्चरका प्रकाशन हुआ । बलात्कार से घायल होने के बावजूद उससे उबरे लोगों को किताब समर्पित है । लेखिका के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था । बाद में जब उन्हें अन्य स्त्रियों के साथ हुई हिंसा की जानकारी मिली तो उन्हें जीने और आगे बढ़ने की ताकत मिली । इसके चलते ही उन्हें बलात्कार की संस्कृति पर केंद्रित यह किताब संपादित करने की इच्छा हुई ।

2018 में ग्रोव प्रेस से मिशेल डीन की किताब शार्प: द वीमेन हू मेड ऐन आर्ट आफ़ हैविंग ऐन ओपीनियनका प्रकाशन हुआ । लेखिका ने किताब में ऐसी तमाम स्त्रियों की जीवनी लिखी है जो जीवन के अलग अलग क्षेत्रों में स्वतंत्र व्यक्तित्व और स्थान बनाने के लिए मशहूर रही हैं ।

2017 में फ़ेमिनिस्ट प्रेस ऐट द सिटी यूनिवर्सिटी आफ़ न्यू यार्क से हेलेन लाकेली हंट की किताब ऐंड द स्पिरिट मूव्ड देम: द लास्ट रैडिकल हिस्ट्री आफ़ अमेरिकाज फ़र्स्ट फ़ेमिनिस्ट्सका प्रकाशन कोर्नेल वेस्ट की प्रस्तावना के साथ हुआ । किताब में गुलामी के खात्मे और नारीवादियों के संघर्ष की साझेदारी को उजागर किया गया है ।

2017 में बीकन प्रेस से एंजेला सैनी की किताब ‘इनफ़ीरियर: हाउ साइंस गाट वीमेन रांग- ऐंड द न्यू रीसर्च दैट’स रीराइटिंग द स्टोरी’ का प्रकाशन हुआ ।

2017 में प्लूटो प्रेस से सारा कारपेन्टर और शहरज़ाद मोजाब की किताब ‘रेवोल्यूशनरी लर्निंग: मार्क्सिज्म, फ़ेमिनिज्म ऐंड नालेज’ का प्रकाशन हुआ ।

2017 में हेमार्केट बुक्स से कीयांगा-यामाता टेलर की भूमिका के साथ उनके ही संपादन में हाउ वी गेट फ़्री: ब्लैक फ़ेमिनिज्म ऐंड द कम्बाही रिवर कलेक्टिवका प्रकाशन हुआ ।

2017 में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से सारा आर फ़ारिस की किताब इन द नेम आफ़ वीमेनस राइट्स: द राइज आफ़ फ़ेमोनेशनलिज्मका प्रकाशन हुआ । किताब नारीवाद के भीतर दक्षिणपंथी धारा का विवेचन करने के लिए लिखी गई है । तमाम देशों में उन्मादी राष्ट्रवाद की समर्थक पार्टियों की जीत या व्यापक समर्थन ने लोगों का ध्यान खींचा है । उनके राष्ट्रवाद के साथ इस्लाम विरोध के मिल जाने से फ़ासीवाद के उभार का खतरा महसूस किया जा रहा है । पुरानी पार्टियों से इन नई पार्टियों का भेद इनमें स्त्रियों के अधिकारों का खुला स्वीकार भाव है । मजे की बात यह है कि इन अधिकारों का ढोल पीटकर वे इस्लाम विरोध का कार्यक्रम भी आगे बढ़ा रही हैं

2017 में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से सारा अहमद की किताबलिविंग ए फ़ेमिनिस्ट लाइफ़का प्रकाशन हुआ । यह किताब हाल में लिखी जानेवाली ऐसी किताबों में से है जिनमें निजी जीवन और वैचारिक संघर्ष आपस में जुड़े होते हैं ।

2017 में प्लूटो प्रेस से तिथि भट्टाचार्य के संपादन मेंसोशल रिप्रोडक्शन थियरी: रीमैपिंग क्लास, रीसेन्टरिंग आप्रेशनका प्रकाशन हुआ । किताब की प्रस्तावना लाइस वोगेल ने लिखी है । संपादक की भूमिका समेत किताब में दस लेख शामिल किए गए हैं ।

2017 में बीकन प्रेस से एंजेला सैनी की किताबइनफ़ीरियर: हाउ साइंस गाट वीमेन रांग- ऐंड न्यू रिसर्च दैट रीराइटिंग स्टोरीका प्रकाशन हुआ

2016 में पोलिटी से जेफ़्री वीक्स की किताब ‘ह्वाट इज सेक्सुअल हिस्ट्री?’ का प्रकाशन हुआ । मूल रूप से किताब उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन के राजनीतिक सामाजिक माहौल में स्त्री प्रश्न की मौजूदगी के बारे में है । उस समय के इतिहासकारों ने इस पहलू की उपेक्षा की है लेकिन तब के क्रांतिकारी और समाजवादी चिंतक स्त्री प्रश्न पर खूब लिखते सोचते थे । ये लोग नारीवादी विचारों से प्रभावित थे, समलैंगिकता के प्रति सचेत हो रहे थे और यौनेच्छा संबंधी अध्ययन की शुरुआत से वाकिफ़ थे । उस समय की सामाजिक-राजनीतिक चेतना को आकार देने में इन सवालों का गहरा योगदान था । इन धारणाओं का उदय उन्नीसवीं सदी में हुआ, बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में कुछ उभार हुआ और साठ तथा सत्तर के दशक में इनकी प्रमुखता नजर आई । किताब में इसी इतिहास को खंगाला गया है । इसके आगे लेखिका ने इस इतिहास की विषयवस्तु को पहचानने की कोशिश की है ।   

2016 में रौमान & लिटिलफ़ील्ड से जार्ज यान्सी, मारिया डेल गुआडेल्यूप डेविडसन और सुजान हेडली के संपादन में आवर ब्लैक संस मैटर: मदर्स टाक एबाउट फ़ीयर्स, सारोज, ऐंड होप्सका प्रकाशन हुआ । जार्ज यान्सी की प्रस्तावना और फ़राह यास्मीन ग्रिफ़िन के पश्चलेख के अतिरिक्त किताब में चार भाग हैं । पहले भाग में अश्वेत माताओं की प्रतिक्रियाओं को संकलित किया गया है । दूसरे भाग में लेख, तीसरे में कविता और चौथे भाग में पत्र शामिल किए गए हैं ।  

2016 में वर्सो से शीला रौबाथम की किताब रेबेल क्रासिंग्स: न्यू वीमेन, फ़्री लवर्स, ऐंड रैडिकल्स इन ब्रिटेन ऐंड अमेरिकाका प्रकाशन हुआ । किताब में इन दोनों देशों की विद्रोही स्त्रियों के बारे में लेखिका के विचार हैं । लेखिका को सत्तर के दशक में हेलेना बार्न के लेखों का एक संग्रह देखने को मिला था । उसी से इनके समक्ष विद्रोही स्त्रियों की भास्वर परंपरा उद्घाटित हुई । किताब में हेलेना की जीवनी से पता चला कि उनकी दोस्ती एक अन्य विद्रोही से हुई और वे समाजवादी विचारों के प्रभाव में घर छोड़कर झुग्गियों में रहने चली गई थीं । हेलेना के साथ जुड़े प्रसंगों की मार्फत विद्रोहियों की जमात का अंदाजा लगा । रुचि बनी रही और छानबीन से हेलेना के पांच और साथियों का पता चला जो समाज और खुद को बदलने में मशगूल थे । इनमें से कोई भी खास मशहूर नहीं थी । समाजवाद और अराजकतावाद के इतिहासकारों के लेखन में इनका जिक्र चलते चलते किया जाता था । इन सबके जीवन की तलाश में काफी भटकना पड़ा । इनके कारनामों के सूत्र आंत की तरह उलझे हुए थे । उनमें से दो हेलेन और हेलेना, का प्रचुर लेखन मौजूद था । इसमें शेष चार का जिक्र था । उनकी सक्रियता के अन्य सबूत भी मिले । हेलेन की डायरी बहुत काम की निकली । 1886 में बारह साल की उम्र से उन्होंने इसे नियमित रूप से लिखना शुरू कर दिया था ।

2015 में रटलेज से एनेलिसे ओर्लेक की किताबरीथिंकिंग अमेरिकन वीमेनस ऐक्टिविज्मका प्रकाशन हुआ ।

2015 में पोर्तोबेलो बुक्स से काटरीने मार्कल की स्वीडिश किताब का अंग्रेजी अनुवाद हू कुक्ड एडम स्मिथस डिनर?: ए स्टोरी एबाउट वीमेन ऐंड इकोनामिक्सका प्रकाशन हुआ । अनुवाद सस्किया फ़ोगेल ने किया है ।

2015 में ज़ेड बुक्स से कैरोन ई जेन्ट्री और लौरा स्योबेर्ग की किताब बीयान्ड मदर्स, मोन्सटर्स, होर्स: थिंकिंग एबाउट वीमेनस वायलेन्स इन ग्लोबल पोलिटिक्सका प्रकाशन हुआ ।

2015 में ज़ेड बुक्स से जेनी हाली के संपादन में ह्वाइ वीमेन विल सेव द प्लैनेट: ए कलेक्शन आफ़ आर्टिकल्स फ़ार फ़्रेन्ड्स आफ़ अर्थका प्रकाशन हुआ ।

2015 में ज़ेड बुक्स से माह अल सइद, लीना मीरी और निकोला प्राट के संपादन मेंरीथिंकिंग जेन्डर इन रेवोल्यूशंस ऐंड रेजिस्टेन्स: लेसन्स फ़्राम द अरब वर्ल्डका प्रकाशन हुआ । संपादकों की भूमिका के अतिरिक्त किताब में शामिल लेखों को तीन हिस्सों में संयोजित किया गया है । पहले भाग में जेंडर और सेक्स की पारस्परिकता का विवेचन है । दूसरे भाग में शरीर और प्रतिरोध के संबंध पर केंद्रित लेख हैं । तीसरे भाग में धर्मनिरपेक्षता और इस्लाम के द्वैध के भीतर लिंग के सवाल की अवस्थिति को समझने की कोशिश की गई है ।

2015 में ज़ेड बुक्स से शहरज़ाद मोजाब के संपादन मेंमार्क्सिज्म ऐंड फ़ेमिनिज्मका प्रकाशन हुआ । संपादक की भूमिका के अतिरिक्त किताब में शामिल 15 लेखों को दो भागों में संयोजित किया गया है । इसके पहले भाग में मार्क्सवाद और नारीवाद के भीतर वर्ग और नस्ल की धारणा का विश्लेषण किया गया है । शेष सभी लेख दूसरे भाग में हैं जिनके तहत मार्क्सवादी-नारीवादी शब्दावली का खुलासा किया गया है । इसके तहत लोकतंत्र, वित्तीकरण, विचारधारा, साम्राज्यवाद और आदिम पूंजी संचय, अंतर्ग्रंथन, श्रम-शक्ति, राष्ट्र और राष्ट्रवाद, पितृसत्ता, पुनरुत्पादन, क्रांति और वर्ग तथा लिंग के बारे में अलग अलग लेखों में स्पष्ट किया गया है ।

2015 में रटलेज से ही बेल हुक्स की किताबटाकिंग बैक: थिंकिंग फ़ेमिनिस्ट, थिंकिंग ब्लैकके नए संस्करण का प्रकाशन हुआ । पहली बार यह किताब 1989 में साउथ एन्ड प्रेस से छपी थी ।

2015 में वर्सो से शीला रौबाथम की किताबवूमनस कांशसनेस, मैनस वर्ल्डका दूसरी बार प्रकाशन हुआ । इससे पहले 1973 में इसे पेलिकन बुक्स ने छापा था ।

2015 में रटलेज से बेल हुक्स की किताबफ़ेमिनिस्ट थियरी: फ़्राम मार्जिन टु सेन्टरके नए संस्करण का प्रकाशन हुआ । पहली बार यह किताब 1984 में, फिर 2000 में साउथ एन्ड प्रेस से छपी थी ।

2015 में वर्सो से क्रिस्टीन डेल्फी की 2008 में फ़्रांसिसी में छपी किताब का अंग्रेजी अनुवादसेपरेट ऐंड डामिनेट: फ़ेमिनिज्म ऐंड रेसिज्म आफ़्टर द वार आन टेररका प्रकाशन हुआ । अनुवाद डेविड ब्रोडेर ने किया है ।

2015 में रटलेज से बेल हुक्स की किताबऐनट आइ ए वूमन: ब्लैक वीमेन ऐंड फ़ेमिनिज्मका प्रकाशन हुआ । यह किताब पहली बार साउथ एन्ड प्रेस से 1981 में छपी थी । नए संस्करण की भूमिका में लेखिका का कहना है कि बचपन से ही उसे लेखक बनने की इच्छा थी । किताबों के जरिए उन्हें आसपास की दुनिया से अलग दुनिया का सपना मिलता था । कालेज पहुंचने पर नारीवादी आंदोलन का वातावरण मिला । यह आंदोलन पारंपरिक लैंगिक भूमिका को चुनौती दे रहा था और पितृसत्ता का अंत करना चाहता था । अपने लिए थोड़ी सी जगह बनाने के लिए लेखिका भी इसमें शरीक हो गईं । इसी क्रम में नस्ली, वर्गीय और लैंगिक भिन्नताओं से पाला पड़ा । अश्वेत स्त्री की आवाज इस आंदोलन में नहीं सुनाई देती थी । जब तक यह आवाज नहीं सुनी जाती तब तक लेखिका को अपनी शिरकत का साक्ष्य कैसे मिलता ! दूसरों को सुनाने से पहले अपनी आवाज खुद को ही सुनाना जरूरी था, अपनी पहचान के बारे में सचेत होना था ।

2014 में येल यूनिवर्सिटी प्रेस से आइलिन हंट बाटिंग के संपादन में उनकी प्रस्तावना के साथ मेरी वोलस्टोनक्राफ़्ट की किताब ‘ए विंडिकेशन आफ़ राइट्स आफ़ वूमन’ का प्रकाशन हुआ । अनेक अन्य विचारकों के लेख भी इसमें शामिल हैं । यह किताब वर्सो से शीला रौबाथम की प्रस्तावना के साथ 2010 में छपने के बाद 2019 में फिर से छपी है । उनका कहना है कि 1957 में वे मेरी रौबाथम के लेखन से चौदह साल की उम्र में परिचित हुई थीं । वे फ़्रांसिसी क्रांति के समर्थकों की एक सभा में शामिल होने गई थीं । 1972 में यह किताब पहली बार पढ़ी । मेरी का जन्म 1759 में हुआ था । प्रबोधन की भावना से वे भरी हुई थीं । उनमें प्रबोधन के जटिल तनाव और अंतर्विरोध साकार मौजूद थे । रूढ़ियों को तोड़ने में उनकी रोमांटिकता को परम संतोष प्राप्त होता था । फ़्रांस में एक अमेरिकी दोस्त से बिना विवाह के गर्भ धारण किया । उससे जब रिश्ता नहीं चल सका तो विछोह से बिखर गईं । फ़्रांसिसी क्रांति का समर्थन उन्होंने किया लेकिन बाहरी बदलाव और चेतना के रूपांतरण के बीच फ़र्क का उनको पता था । 1797 में आखिरकार उन्हें क्रांतिकारी दार्शनिक विलियम गोडविन के साथ पहले दोस्ती और फिर विवाह के बाद स्थिरता सी मिली । इस संबंध से पैदा होने वाली संतान के जन्म के समय की दिक्कतों के चलते उनका शरीरांत हुआ । उनके लेखन में उनकी विद्रोही विरासत जिंदा रही । खासकर इस किताब ने गुस्से के साथ प्रभूत प्रशंसा भी बटोरी । 1840 में फ़्रांसिसी समाजवादी नारीवादी फ़्लोरा त्रिस्तन ने इसे अक्षय रचना करार दिया क्योंकि इसमें स्त्री मुक्ति को मानव मात्र की प्रसन्नता के साथ जोड़ा गया है ।              

2014 में ज़ेड बुक्स से गीता सेन और मरीना दुरानो के संपादन में द रीमेकिंग आफ़ सोशल कनट्रैक्ट्स: फ़ेमिनिस्ट्स इन ए फ़ीयर्स न्यू वर्ल्डका प्रकाशन हुआ ।

2014 में ज़ेड बुक्स से कैरोल डाइहाउस की किताब गर्ल ट्रबल: पैनिक ऐंड प्रोग्रेस इन द हिस्ट्री आफ़ यंग वीमेनका प्रकाशन हुआ ।

2014 में स्टेट यूनिवर्सिटी आफ़ न्यू यार्क प्रेस से जूली शायनी के संपादन में मार्गरेट रैन्डल की भूमिका के साथटेकिंग रिस्क्स: फ़ेमिनिस्ट ऐक्टिविज्म ऐंड रिसर्च इन द अमेरिकाजका प्रकाशन हुआ । संपादक ने क्रिस्टी लेस्ली के साथ प्रस्तावना तथा किताब का उपसंहार और एक पश्चलेख भी लिखा है । इसके अतिरिक्त तीन भागों में दस लेख संकलित हैं ।   

2014 में लिवराइट पब्लिशिंग कारपोरेशन से डोरोथी सूकाबल, लिन्डा गोर्डन और एस्ट्रिड हेनरी की किताबफ़ेमिनिज्म अनफ़िनिश्ड: ए शार्ट, सरप्राइजिंग हिस्ट्री आफ़ अमेरिकन वीमेनस मूवमेंट्सका प्रकाशन हुआ ।

2014 में वर्सो से शीला रोबाथम की किताबवीमेन, रेजिस्टेन्स ऐंड रेवोल्यूशन: ए हिस्ट्री आफ़ वीमेन ऐंड रेवोल्यूशन इन द माडर्न वर्ल्डका दूसरा संस्करण छपा । पहले यह किताब 1974 में विन्टेज बुक्स से छपी थी । भूमिका में लेखिका ने बात ही इस दावे से शुरू की है कि स्त्री मुक्ति के लिए सभी मनुष्यों की मुक्ति आवश्यक है ।

2014 में वर्सो से मिशेले बारेट की किताबवीमेनस आप्रेशन टुडे: द मार्क्सिस्ट/फ़ेमिनिस्ट एनकाउंटरके तीसरे संस्करण का प्रकाशन हुआ । इस संस्करण की भूमिका काठी वीक्स ने लिखी है । इसका पहली बार प्रकाशन 1980 में हुआ था । इसके बाद 1988 में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ ।

2014 में यूनिवर्सिटी आफ़ ओकलाहामा प्रेस से रोक्साने डनबर-ओर्टिज़ की किताबआउटला वूमन: ए मेमायर आफ़ द वार ईयर्स, 1960-1975’ के संशोधित संस्करण का प्रकाशन हुआ । लेखिका ने इसमें नई भूमिका और पश्चलेख जोड़ा है । 2001 में सिटी लाइट्स ने इसे पहली बार छापा था ।

2014 में ज़ेड बुक्स से मारिया माइस की किताबपैट्रियार्की ऐंड एक्यूमुलेशन आन ए वर्ल्डस्केल: वीमेन इन द इंटरनेशनल डिवीजन आफ़ लेबरका फिर से प्रकाशन हुआ । यह किताब 1986 के बाद 1998 में इससे पहले छप चुकी थी । इस संस्करण की भूमिका सिल्विया फ़ेडरीकी ने लिखी है ।

2014 में ज़ेड बुक्स से मारिया माइस और वंदना शिवा की किताबइकोफ़ेमिनिज्मका दुबारा प्रकाशन हुआ । पहली बार 1993 में इसका प्रकाशन हुआ था । नए संस्करण की भूमिका एरियल साले ने लिखी है ।

2013 में प्लूटो प्रेस से लिंडसे जर्मन की किताब ‘हाउ ए सेन्चुरी आफ़ वार चेंज्ड द लाइव्स आफ़ वीमेन’ का प्रकाशन हुआ । लेखिका के मुताबिक जब ‘आतंक विरोधी युद्ध’ का विरोध शुरू हुआ तो उसमें स्त्रियों की भागीदारी बहुत अधिक थी । इसको समझने के लिए पिछली सदी को देखने का प्रस्ताव लेखिका ने किया है । 

2013 में बीकन प्रेस से जीअन थियोहारिस की किताब द रेबेलियस लाइफ़ आफ़ मिसेज रोजा पार्क्सका प्रकाशन हुआ । रोजा पार्क्स ने बस में नस्ली भेदभाव के विरोध में जो सत्याग्रह किया उससे ही नस्लवाद विरोधी आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है । जीवन भर वे लोकतांत्रिक सवालों के लिए चलने वाली लड़ाइयों से जुड़ी रहीं ।

2013 में प्लूटो प्रेस से कैथरीन कोनेली की किताब सिल्विया पैंकहर्स्ट: सफ़्रेजेट, सोशलिस्ट ऐंड स्कर्ज आफ़ एम्पायरका प्रकाशन हुआ । जीवनीकार ने बताया है कि 1906 में लिबरल पार्टी के सम्मेलन में स्त्री मताधिकार की मांग उठाने वाली सिल्विया ने बयालीस साल बाद अफ़्रीका में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खात्मे की मांग भी उठाई । वे ऐसा करने वाली अकेले नहीं थीं । जिन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध से पहले स्त्री मताधिकार की मांग उठाई थी उनमें से बहुतेरी स्त्रियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उपनिवेशवाद के खात्मे का भी सवाल उठाया । इसका मतलब कि दोनों सवालों में कुछ साझा होना चाहिए । इससे वैकल्पिक राजनीतिक इतिहास भी निर्मित होता है । उपनिवेशवाद की समाप्ति को ब्रिटेन की सरकारों की सुधारों की पहल से जोड़कर देखा जाता है लेकिन उसमें विरोध प्रदर्शनों के जरिए बने दबावों की भूमिका की अनदेखी की जाती है । सिल्विया ने स्त्री मताधिकार आंदोलन के कुलीन नेताओं की पांत तोड़कर मजदूरिनों को उसकी अगली कतार में खड़ा कर दिया । उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध का विरोध किया क्योंकि इसने कामगारों की जिंदगी कठिन बना दी । ब्रिटेन के समाजवादियों में सबसे पहले उन्होंने बोल्शेविक क्रांति का समर्थन किया क्योंकि उसने सोवियतों के जरिए साधारण लोगों के हाथ में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की बागडोर थमा दी । इटली में फ़ासीवाद के उदय को उन्होंने बहुत पहले ही लोकतंत्र और शांति के लिए खतरे की घंटी बताया । उनके इस बहुमुखी योगदान परउन्हें सिर्फ़ स्त्री मताधिकार आंदोलन के साथ जोड़कर परदा डाला जाता रहा है । इन सभी सवालों पर उनकी सक्रियता के पीछे लोकतंत्र की जनपक्षधर समझ और प्रतिबद्धता थी । इसीलिए आज के समय के सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय लोगों के लिए उनकी विरासत मूल्यवान है ।  

2013 में स्टेट यूनिवर्सिटी आफ़ न्यू यार्क प्रेस से ज्वाय जेम्स की किताबसीकिंग द बिलवेड कम्यूनिटी: ए फ़ेमिनिस्ट रेस रीडरका प्रकाशन हुआ । भूमिका बीवरली गाइ-शेफ़्ताल ने लिखी है ।

2013 में मर्लिन प्रेस से सिन्ज़िया आरुज़ा की किताबडेन्जरस लायजन्स: द मैरेजेज ऐंड डिवोर्सेज आफ़ मार्क्सिज्म ऐंड फ़ेमिनिज्मका प्रकाशन हुआ । भूमिका पेनीलोप दुग्गन ने लिखी है । दुग्गन के अनुसार किताब छोटी रखी गई है ताकि अधिक से अधिक लोगों को मिल सके । इसमें स्त्री आंदोलन और सामाजिक आंदोलन या वर्ग और जेंडर के बीच के रिश्ते को समझने की कोशिश है । पहले दो अध्यायों में स्त्री आंदोलन के प्रथम और द्वितीय उभार के साथ मजदूर आंदोलन के रिश्तों के ऐतिहासिक अनुभवों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है । इस प्रस्तुति के बाद के दो अध्यायों में स्त्री उत्पीड़न तथा अन्य उत्पीड़नों और वर्गीय शोषण के आपसी रिश्ते के बारे में 1970 दशक से स्त्री आंदोलन में जारी सैद्धांतिक बहसों का जायजा लिया गया है । इस प्रसंग में ढेर सारे लेखकों की रचनाओं का उल्लेख किया गया है जिन्होंने मजदूर आंदोलन, स्त्री आंदोलन और वाम राजनीतिक समूहों की एकता की वकालत की थी । आखिरी अध्याय में वे कहती हैं कि पूंजीवाद ने जिस तरह तमाम तरह के उत्पीड़नों को एकत्र कर दिया है वैसी हालत में मार्क्सवाद के नवीकरण के जरिए उत्पीड़न के विरोधियों को भी एकत्र करने की जरूरत है । इसके लिए वर्ग और जेंडर के बीच प्राथमिकता के सवाल पर सिर फोड़ने की जगह देखना होगा कि पूंजीवादी उत्पादन पद्धति और शक्ति संबंधों के भीतर ये दोनों किस तरह आपस में जटिल गुंथावट की अवस्था में कार्यरत होते हैं । इस जटिलता को समझने में कोई भी सरल सूत्र मददगार नहीं होगा ।     

2013 में वर्सो से नैन्सी फ़्रेजर की किताबफ़ार्चून्स आफ़ फ़ेमिनिज्म: फ़्राम स्टेट-मैनेज्ड कैपिटलिज्म टु नियोलिबरल क्राइसिसका प्रकाशन हुआ । शीर्षक से ही स्पष्ट है कि किताब एक तरह से नारीवाद का राजनीतिक इतिहास है । इसमें शामिल लेख पहले भी विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे । उनके मुताबिक नारीवाद का दूसरा उभार फिलहाल तीन अंकों का नाटक प्रतीत होता है । नववाम के माहौल में जन्म होने के चलते स्त्री मुक्ति का आंदोलन विद्रोही ताकत के रूप में प्रकट हुआ । इसने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद के पूंजीवादी समाजों के राज्यतंत्र में मौजूद पुरुष प्रभुत्व के सामने चुनौती पेश की ।     

लाइस वोगेल की किताबमार्क्सिज्म ऐंड द आप्रेशन आफ़ वीमेन: टुवर्ड्स ए यूनिटरी थियरीका प्रकाशन बहुत पहले 1983 में रट्जर्स यूनिवर्सिटी प्रेस से हुआ था लेकिन 2013 में फिर से हेमार्केट बुक्स से सुसान फ़र्ग्यूसन और डेविड मैकनेली की भूमिका के साथ उसका पेपरबैक संस्करण छापा गया है ।

2012 में ज़ेड बुक्स से श्रीला राय के संपादन मेंन्यू साउथ एशियन फ़ेमिनिज्म्स: पैराडाक्सेज ऐंड पासिबिलिटीजका प्रकाशन हुआ । किताब की प्रस्तावना शिरीन एम राय ने लिखी है । संपादक की भूमिका के अतिरिक्त किताब में आठ लेख संकलित हैं ।

2012 में अनिया लूम्बा और रिट्टी ए लुकोस के संपादन मेंसाउथ एशियन फ़ेमिनिज्म्सका प्रकाशन हुआ । संपादकों की भूमिका के अतिरिक्त संग्रहित लेखों को छह भागों में बांटा गया है । पहला भाग धर्म और धर्मनिरपेक्षता के साथ नारीवाद के रिश्ते पर केंद्रित तीन लेखों का है । दूसरा भाग नारीवाद, श्रमिक और वैश्वीकरण के बारे में दो लेखों का संग्रह है । तीसरा भाग युद्ध और शांति के साथ नारीवाद के संबंध पर विचार करनेवाले तीन लेखों का संकलन है । चौथा भाग नारीवाद, प्रतीकीकरण और लिखने तथा पढ़ने की राजनीति पर तीन लेखों के जरिए विचार करता है । पांचवां भाग सेक्स वर्क और यौनिकता की राजनीति के प्रसंग में नारीवाद पर विचार करनेवाले तीन लेखों से निर्मित है । आखिरी छठवें भाग में नारीवाद के संकट और भविष्य पर दो लेखों के सहारे विचार किया गया है । किताब के अधिकांश लेख भारतीयों के लिखे हुए हैं ।

2012 में आटोनोमीडिया से प्रकाशित सिल्विया फ़ेडेरिकी की किताबरेवोल्यूशन ऐट प्वाइंट ज़ीरोका महत्व यह है कि इसमें स्त्रियों के घरेलू काम को वेतन योग्य काम मानने की बात की गई है और इसीलिए लेखिका के मुताबिक रोजमर्रा के जीवन में क्रांति की संभावना तलाशना इस किताब का मकसद है ।

2012 में हीथर ए ब्राउन लिखितमार्क्स आन जेंडर ऐंड फ़ेमिली: ए क्रिटिकल स्टडीबेहद चर्चित हुई है और मार्क्स के लेखन को नये आंदोलन के सवालों के संदर्भ में समझने की कोशिश करती है । इसका प्रकाशन हिस्टारिकल मैटीरियलिज्म बुक सिरीज के तहत ब्रिल प्रकाशन ने किया है । लेखिका का कहना है कि 1999 से प्रारम्भ वैश्वीकरण विरोधी आंदोलन और खासकर सिएटल के विरोध प्रदर्शनों के बाद तमाम लोग मार्क्स के पूंजीवाद विरोध को समझने की कोशिश कर रहे हैं । वर्तमान स्थितियों के प्रसंग में उनके लेखन का पुनर्मूल्यांकन भी किया जा रहा है । दीर्घकालीन वैश्विक मंदी के आगमन से नवउदारवाद विरोधी आंदोलन तेज होने के साथ फिर से मार्क्स में रुचि जागी है । पश्चिमी देशों और अरब मुल्कों में आंदोलनों की बाढ़ ने राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के प्रति लोगों के क्षोभ को वाणी दी है । इस वैश्विक पूंजीवादी निजाम के तहत जब स्त्री की बात होती है तब तो हालात और भी बुरे नजर आते हैं ।

संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रपट के मुताबिक स्त्रियां 66 प्रतिशत काम निपटाती हैं, 50 प्रतिशत भोजन का इंतजाम करती हैं लेकिन आमदनी में कुल 10 प्रतिशत और संपत्ति में महज 1 प्रतिशत की भागीदार हैं । आर्थिक संकट से उनकी हालत खराब ही हुई है । 2009 में विकासशील देशों में निर्यात सामग्री के बनाने में साठ से अस्सी प्रतिशत स्त्रियां लगी हुई थीं । वर्तमान आर्थिक संकट के चलते उनकी बेरोजगारी बहुत अधिक बढ़ गई । उनकी राजनीतिक ताकत भी स्थिर बनी हुई है । दुनिया भर की संसदों में उनकी भागीदारी औसतन बीस प्रतिशत से कुछ कम ही है ।

ऐसे हालात में मार्क्सवाद और नारीवाद के बीच के रिश्तों पर पुनर्विचार की जरूरत महसूस की जा रही है । स्त्रियों की हालत में सुधार के लिए लिंग और वर्ग के बीच के जटिल संबंध पर विचार करना होगा । सत्तर और अस्सी के दशक में मार्क्स के आर्थिक चिंतन और उनकी सैद्धांतिकी को नारीवादी सैद्धांतिकी के साथ मिलाने की कोशिशों के दौर के खात्मे के बाद के दिनों में मार्क्स के नारीवादी आलोचकों ने बाजी मार ली थी । इन नारीवादी चिंतकों ने मार्क्सवाद और नारीवाद को मिलाने की समाजवादी नारीवादियों की सीमाओं को उजागर किया । इसके बरक्स जिस सैद्धांतिकी को इन्होंने अपनाया उससे पूंजीवाद विरोधी नारीवाद के निर्माण का कोई रास्ता खुलता नजर नहीं आ रहा है ।

लेखिका के मुताबिक लेकिन पिछले पंद्रह सालों में ढेर सारी ऐसी किताबें लिखी गई हैं जिनमें मार्क्स के स्त्री चिंतन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया । फिर भी उनके समस्त लेखन में स्त्री प्रश्न को उजागर करनेवाली कोई किताब नहीं दिखी इसलिए लेखिका ने इस किताब को लिखने की ठानी । उनका कहना है कि मार्क्स के स्त्री चिंतन में कारखानों की स्त्री कामगार ही नहीं हैं । हालांकि मार्क्स ने लिंग और परिवार के सवाल पर बहुत नहीं लिखा लेकिन श्रम विभाजन, उत्पादन और समाज को समझने में इस कोटि की महत्वपूर्ण भूमिका है । समाज के समूचे मार्क्सवादी सिद्धांत में ढेर सारे ऐसे बिंदु हैं जिनकी नारीवादी व्याख्या की जा सकती है । उनके समस्त प्रकाशित अप्रकाशित लेखन की छानबीन से लिंग और समाज संबंधी एक व्यवस्थित सिद्धांत के सूत्र मिल जाते हैं ।

लेखिका का कहना है कि बहुतेरे लोगों ने बताया है कि सोवियत संघ के ढहने के बावजूद मार्क्सवाद की प्रासंगिकता बनी हुई है । उसको नकारने के लिए भी उससे जूझना पड़ता है । मार्क्स पर लिंग की अनदेखी का आरोप तो लगता है लेकिन स्त्रीवादियों ने राजनीतिक अर्थशास्त्र की उनकी आलोचना को अपने विश्लेषण में समाहित करने की कोशिश की है । इस क्रम में देखें तो मालूम होता है कि शुरुआती मार्क्सवादी नारीवादियों ने घरेलू काम के मूल्य-महत्व को उजागर करने में प्रचुर योगदान किया । स्त्रियों के घर के भीतर के काम के समाजार्थिक और राजनीतिक पुनर्मूल्यांकन के लिए इन बौद्धिकों ने बहुधा मार्क्स के सिद्धांत का उपयोग किया । मार्क्सवाद के साथ नारीवाद के संवाद की दिशा में यह जरूरी कदम था । इससे साबित हुआ कि राजनीतिक अर्थशास्त्र संबंधी मार्क्स के लेखन का स्त्री प्रश्न के लिए उपयोग हो सकता है । इस आधार पर घरेलू काम के सिद्धांतीकरण की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है । एक अन्य लेखिका (नैन्सी होल्मस्ट्राम) ने मानव स्वभाव संबंधी मार्क्स के चिंतन के विश्लेषण के आधार पर कहा कि चूंकि मार्क्स मानव स्वभाव को सामाजिक और तकनीकी बदलावों से प्रभावित मानते हैं इसलिए कहा जा सकता है कि स्त्री स्वभाव भी सामाजिक बदलाव के अनुरूप परिवर्तनशील होता है । एक अन्य लेखिका (लाइस वोगेल) ने उत्पादन और सामाजिक पुनरुत्पादन को एक दूसरे से अलग मानने का विरोध किया और सामाजिक पुनरुत्पादन को भी समझने के लिए उत्पादन के विश्लेषण में प्रयुक्त औजारों के इस्तेमाल की वकालत की । लेखिका का कहना है कि इन सबने मार्क्स के चिंतन के किसी एक पहलू को अलग से पकड़ा । उनके चिंतन को सम्पूर्णता से नहीं देखा गया । इस सिलसिले में वे जोर देकर कहती हैं कि मार्क्स की पद्धति को उनके निष्कर्षों से अलगाया नहीं जा सकता । उनका कहना है  कि दुनायेव्सकाया ने कुछ हद तक उनके लेखन के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलुओं को देखा है ।

2011 में रटलेज से कार्लो दइपोलिती की किताबइकोनामिक्स ऐंड डाइवर्सिटीका प्रकाशन हुआ । किताब की शुरुआत शोध प्रबंध के रूप में हुई । शोध 2009 में पूरा हुआ था । इसमें आर्थिक चिंतन के इतिहास का विवेचन हुआ है । सभी जानते हैं कि अर्थशास्त्र और स्त्रियों में दोस्ताना रिश्ता नहीं रहा है । उसमें जेंडर से जुड़े मसलों का विश्लेषण भी बहुत कम हुआ है । स्त्रियों की आर्थिक हालत सुधारना भी उसकी चिंता में नहीं शामिल रहा है । इस विषय से ही जुड़ी ड्रुसिला के बार्कर और सुसान एफ़ फ़ेलनेर की किताबलिबरेटिंग इकोनामिक्स: फ़ेमिनिस्ट पर्सपेक्टिव्स आन फ़ेमिलीज, वर्क, ऐंड ग्लोबलाइजेशनका प्रकाशन2004 में द यूनिवर्सिटी आफ़ मिशिगन प्रेस से हुआ ।  

2011 में पालग्रेव मैकमिलन से डिजायरी हेलेगर्स की किताब ‘नो रूम आफ़ हर ओन: वीमेन’स स्टोरीज आफ़ होमलेसनेस, लाइफ़, डेथ, ऐंड रेजिस्टेन्स’ का प्रकाशन हुआ ।

2011 में यूनिवर्सिटी आफ़ इलिनोइस प्रेस से शेरिल हिगाशिदा की किताब ब्लैक इंटरनेशनलिस्ट फ़ेमिनिज्म: वीमेन राइटर्स आफ़ द ब्लैक लेफ़्ट, 1945-1995’ का प्रकाशन हुआ ।

2011 में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से एरिक एस मैकडफ़ी की किताब सोजर्निंग फ़ार फ़्रीडम: ब्लैक वीमेन, अमेरिकन कम्यूनिज्म, ऐंड द मेकिंग आफ़ ब्लैक लेफ़्ट फ़ेमिनिज्मका प्रकाशन हुआ ।

2011 में पालग्रेव मैकमिलन से सारा कारपेंटर और शाहरज़ाद मोजाब के संपादन मेंएजुकेटिंग फ़्राम मार्क्स: रेस, जेंडर, ऐंड लर्निंगका प्रकाशन हुआ । इसे मार्क्सिज्म ऐंड एजुकेशन नामक पुस्तक श्रृंखला के तहत छापा गया है । शुरू में श्रृंखला संपादक की प्रस्तावना है । इसके बाद किताब में शामिल दस लेख तीन भागों में संयोजित हैं । पहले भाग में मार्क्सवादी नारीवादियों के संगठन संबंधी ज्ञान के बारे में तीन लेख हैं । दूसरे भाग में मार्क्सवादी नारीवादी व्यवहार से जुड़े चार लेख हैं । तीसरे भाग में मार्क्सवादी नारीवाद, साम्राज्यवाद और संस्कृति संबंधी तीन लेख हैं ।  

हिस्टारिकल मैटीरियलिज्म पत्रिका का 2011 का 19.3 अंक का शीर्षकरीविजिटिंग द डोमेस्टिक-लेबर डीबेट: ऐन इंडियन पर्सपेक्टिवहै और इस अंक में रोहिणी हेन्समैन का इसी विषय पर लिखा शोधपत्र प्रकाशित है । रोहिणी यूनियन रिसर्च ग्रुप, बाम्बे से हैं । उनका शोधपत्र इस सवाल पर सैद्धांतिक चर्चा करते हुए नारीवादी आंदोलन के भीतर श्रमिक का सवाल शामिल करता है ।

2010 में रटजर्स यूनिवर्सिटी प्रेस से निकी जोन्स की किताब बिट्वीन गुड ऐंड घेटो: अफ़्रीकन अमेरिकन गर्ल्स ऐंड इनर-सिटी वायलेन्सका प्रकाशन हुआ ।

2010 में स्टेट यूनिवर्सिटी आफ़ न्यू यार्क प्रेस से मेडा चेस्नी-लिंड और निकी जोन्स के संपादन में फ़ाइटिंग फ़ार गर्ल्स: न्यू पर्सपेक्टिव्स आन जेंडर ऐंड वायलेन्सका प्रकाशन हुआ ।

2010 में पैराडाइम पब्लिशर्स से हेस्टेर आइजेंस्टाइन की किताबफ़ेमिनिज्म सिड्यूस्ड: हाउ ग्लोबल इलीट्स यूज वीमेनस लेबर ऐंड आइडियाज टु एक्सप्लायट द वर्ल्डका प्रकाशन हुआ ।

2010 में रौमान & लिटिलफ़ील्ड पब्लिशर्स से कैथरीन एश्ले और बाइस मैगुआसा की किताबमेकिंग फ़ेमिनिस्ट सेन्स आफ़ द ग्लोबल जस्टिस मूवमेंटका प्रकाशन हुआ ।

2010 में वर्सो से शीला रौबाथम की किताबड्रीमर्स आफ़ ए न्यू डे: वीमेन हू इनवेंटेड द ट्वेंटीएथ सेंचुरीका प्रकाशन हुआ ।

2010 में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से काठी वीक्स की किताबद प्रोब्लेम विथ वर्क: फ़ेमिनिज्म, मार्क्सिज्म, एन्टी वर्क पालिटिक्स, ऐंड पोस्ट वर्क इमैजिनरीजका प्रकाशन हुआ ।

2009 में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी प्रेस से सिद्धार्थ कारा की किताब सेक्स ट्रैफ़िकिंग: इनसाइड द बिजनेस आफ़ माडर्न स्लेवरीका प्रकाशन हुआ ।

2009 में लेक्सिंगटन बुक्स से जूली शायने की किताबदे यूज्ड टु काल अस विचेज: चीलियन एक्जाइल्स, कल्चर, ऐंड फ़ेमिनिज्मका प्रकाशन हुआ ।

2009 में पालग्रेव मैकमिलन से ग्राहम कसानो के संपादन मेंक्लास स्ट्रगल आन द होमफ़्रंट: वर्क, कंफ़्लिक्ट ऐंड एक्सप्लायटेशन इन द हाउसहोल्डका प्रकाशन हुआ । जे के गिबसन-ग्राहम की प्रस्तावना के बाद संपादक की भूमिका के अतिरिक्त किताब में शामिल लेखों को दो भागों में बांटा गया है । पहला भाग घरेलू वर्ग संघर्षों के अति निर्धारण के बारे में है और इसमें पांच लेख सम्मिलित किए गए हैं । दूसरा भाग उदाहरणों, संशोधनों और विस्तार का विवेचन है और इसमें भी पांच ही लेख हैं । इनके बाद परिशिष्ट के बतौर गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक का एक लेख है जो इसकी भूमिका के रूप में कभी लिखा गया था । अंत में एक पश्चलेख भी किताब में शामिल किया गया है ।

2009 में वर्सो से एरिक ओलिन राइट की भूमिका और संपादन मेंजेंडर इक्वलिटी: ट्रांसफ़ार्मिंग फ़ेमिली डिवीजंस आफ़ लेबरका प्रकाशन हुआ । संपादक ने किताब को पांच भागों में बांटा है । पहला भाग सांस्थानिक प्रस्ताव का है जिसमें ऐसी संस्थाओं का विवेचन है जो लैंगिक समानता का समर्थन करती हैं । दूसरा भाग इस समानता के सिद्धांतों का विश्लेषण है और इसमें पांच लेख हैं । तीसरा भाग सुधारों और विकल्पों पर विचार करता है । चौथा भाग पारिवारिक श्रम विभाजन में रूपांतरण की संभावना का विश्लेषण करता है । आखिरी पांचवें भाग में उपसंहार के बतौर कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं ।

2009 में न्यूयार्क यूनिवर्सिटी प्रेस से दायो एफ़ गोर, जेनीथियो हारिस और कोमोज़ी वुडार्ड के संपादन मेंवान्ट टु स्टार्ट ए रेवोल्यूशन?: रैडिकल वीमेन इन द ब्लैक फ़्रीडम स्ट्रगलका प्रकाशन हुआ ।

2009 में ज़ीरो बुक्स से नीना पावर की किताबवन डाइमेंशनल वूमनका प्रकाशन हुआ । किताब नारीवादी आंदोलन के उतार के बाद स्त्री को उपभोक्ता के रूप में निर्मित करने की योजना की छानबीन करने के मकसद से लिखी गई है ।

2008 में ज़ेड बुक्स से गार्गी भट्टाचार्य की किताबडेंजरस ब्राउन मेन: एक्सप्लायटिंग सेक्स, वायलेन्स ऐंड फ़ेमिनिज्म इन द वार आन टेररका प्रकाशन हुआ।

2008 में विलफ़्रीड लाउरिए यूनिवर्सिटी प्रेस से वेन्डी रोबिन्स, मेग लक्सटन, मार्गरिट आइकलर और फ़्रान्सीन देसकारीस के संपादन मेंमाइंड्स आफ़ आवर ओन: इनवेन्टिंग फ़ेमिनिस्ट स्कालरशिप ऐंड वीमेनस स्टडीज इन कनाडा ऐंड क्यूबेक, 1966-76’ का प्रकाशन हुआ ।

2008 में हार्पर कोलिन्स ई-बुक्स से जूडिथ नाइस की किताबद गर्ल आई लेफ़्ट बिहाइंड: ए नैरेटिव हिस्ट्री आफ़ द सिक्स्टीजका प्रकाशन हुआ । इस किताब में लेखिका ने दर्ज किया है कि साठ का दशक केवल हिप्पी, नशे, सेक्स और राक का ही दशक नहीं था, वह वियतनाम युद्ध के विरोध का भी दशक था ।

2007 में रटजर्स यूनिवर्सिटी प्रेस से एस जे क्लाइनबेर्ग, आइलीन बोरिस और विकी एल रूइज़ के संपादन मेंद प्रैक्टिस आफ़ यू एस वीमेनस हिस्ट्री: नैरेटिव्स, इंटरसेक्शंस, ऐंड डायलाग्सका प्रकाशन हुआ ।

2007 में यूनिवर्सिटी आफ़ इलिनोइस प्रेस से पैट्रिशिया ह्वाइट के संपादन तथा प्रस्तावना के साथ तेरेसा द लातेरिस की किताबफ़िगर्स आफ़ रेजिस्टेन्स: एसेज इन फ़ेमिनिस्ट थियरीका प्रकाशन हुआ ।

2007 में इंडियाना यूनिवर्सिटी प्रेस से जेनेट एलिस जानसन और ज्यां सी राबिन्सन के संपादन मेंलिविंग जेंडर आफ़्टर कम्यूनिज्मशीर्षक किताब प्रकाशित हुई । संपादकों की भूमिका के अलावे किताब चार भागों में बंटी है ।

2006 में मैकगिल-क्वीन’स यूनिवर्सिटी प्रेस से केट बेज़ान्सन और मेग लक्सटन के संपदन में ‘सोशल रिप्रोडक्शन: फ़ेमिनिस्ट पोलिटिकल इकोनामी चैलेन्जेज नियो-लिबरलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की भूमिका के अतिरिक्त किताब में दस लेख शामिल हैं जिनमें संपादकों के भी एक दो लेख हैं ।

2006 में यूनिवर्सिटी आफ़ मिनेसोटा प्रेस से कैथरीन मैककिट्रिक की किताबडेमोनिक ग्राउन्ड्स: ब्लैक वीमेन ऐंड द कार्टोग्राफीज आफ़ स्ट्रगलका प्रकाशन हुआ ।

2006 में सील प्रेस से बेटिना एफ़ ऐपथेकर की किताबइंटीमेट पोलिटिक्स: हाउ आइ ग्रू अप रेड, फ़ाट फ़ार फ़्री स्पीच, ऐंड बीकेम ए फ़ेमिनिस्ट रेबेलका प्रकाशन हुआ ।

2006 में प्लूटो प्रेस से अमृत विल्सन की किताबड्रीम्स, क्वेश्चंस, स्ट्रगल्स: साउथ एशियन वीमेन इन ब्रिटेनका प्रकाशन हुआ ।

जे के गिबसन-ग्राहम की किताबद एन्ड आफ़ कैपिटलिज्म (ऐज वी न्यू इट): ए फ़ेमिनिस्ट क्रिटीक आफ़ पोलिटिकल इकोनामीका प्रकाशन पहली बार 1996 में ब्लैकवेल पब्लिशर्स से हुआ था । दस साल बाद 2006 में यूनिवर्सिटी आफ़ मिनेसोटा प्रेस से इसका नया संस्करण प्रकाशित हुआ ।

2005 में हेमार्केट बुक्स से शेरोन स्मिथ की किताबवीमेन ऐंड सोशलिज्म: एसेज आन वीमेनस लिबरेशनका प्रकाशन हुआ । इसी तरह 2002 में मंथली रिव्यू प्रेस से नैन्सी होल्मस्ट्राम के संपादन मेंद सोशलिस्ट फ़ेमिनिस्ट प्रोजेक्ट: ए कंटेम्पोरेरी रीडर इन थियरी ऐंड पालिटिक्सका प्रकाशन हुआ । भूमिका में उनका कहना है कि समाजवादी नारीवाद का उदय मार्क्सवाद, उदारवाद और क्रांतिकारी नारीवाद की अपर्याप्तता के संदर्भ में समझा जाता है । इस धारणा से सहमत न होते हुए नैन्सी कहती हैं कि समाजवादी नारीवाद को जीवंत परियोजना के रूप में देखना उचित होगा ।

2001 में द जान्स हापकिन्स यूनिवर्सिटी प्रेस से केट वेइगान्ड की किताब ‘रेड फ़ेमिनिज्म: अमेरिकन कम्यूनिज्म ऐंड द मेकिंग आफ़ वीमेन’स लिबरेशन’ का प्रकाशन हुआ । किताब लेखिका के शोध प्रबंध पर आधारित है । शोध 1991 में शुरू हुआ था और किताब की पांडुलिपि 1999 में तैयार हुई । मतलब कि इसका समूचा लेखन शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद हुआ है । इसके बावजूद विषय बताने पर लोग उन्हें रूस के जासूस की तरह देखने लगते थे ।       

2000 में मंथली रिव्यू प्रेस से योहान्ना ब्रेन्नेर की किताबवीमेन ऐंड द पोलिटिक्स आफ़ क्लासका प्रकाशन हुआ । राजनीतिक कार्यकर्ता, समाजवादी, नारीवादी विचारक और अध्यापक का मेल लेखक में हुआ है । लेखों का यह संग्रह सैद्धांतिक होने के साथ व्यावहारिक भी है । मार्क्सवादी सवालों पर विचार करते हुए भी निगाह राजनीतिक रही है । विकसित देशों में नारीवादी आंदोलन की उपलब्धियां बहुत अधिक रहीं लेकिन उसमें ठहराव दिखाई दे रहा है । ब्रेन्नेर के मुताबिक इसी परिप्रेक्ष्य में नई चुनौतियों का सामना करने के लिए संगठन के नए धरातल विकसित करने के लिए यह किताब लिखी गई है । 

2004 में न्यू यार्क यूनिवर्सिटी प्रेस से रेबेका जे मीड की किताब हाउ द वोट वाज वन: वूमन सफ़्रेज इन द वेस्टर्न यूनाइटेड स्टेट्स, 1868-1914’ का प्रकाशन हुआ ।

2004 में आटोनोमीडिया से प्रकाशित सिल्विया फ़ेडेरिकी की किताबकैलिबान ऐंड द विचमें इस बात की पड़ताल की गई है कि सामंतवाद से पूंजीवाद में संक्रमण के दौर में औरतों के विरुद्ध चुड़ैल कहकर युद्ध क्यों छेड़ा गया । इसका तीसरा पुनर्मुद्रण 2009 में हुआ है । किताब में इस धारणा का विरोध किया गया है कि स्त्रियों का शोषण कोई सामंती अवशेष है, बल्कि लेखिका का दावा है कि स्त्रियों के शोषण ने पूंजी संचय की प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभाई है ।

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