Monday, November 29, 2010

एक लेख का मजमून


कार के बारे में नैं एक लेख लिखना चाहता हूँ । हिंदी में इसका कोई अर्थ नहीं होता । बच्चों को पढ़ाया जाता है-सी फ़ार कार सी ए आर कार कार मीन्स कार । कार देखो तो इसका अर्थ जानो । पहले फ़िल्मों में शक्ति और ऐश्वर्य का प्रतीक घोड़ा हुआ करता था अब कार है । दोनों की समानता इनकी गति में तीव्रता है । तेजी और ताकत का आपसी रिश्ता इससे प्रकट होता है । अनेक स्वचालित वाहनों में से एक होने के कारण यह व्यक्तिवाचक संज्ञा है लेकिन खास तरह के वाहन का सामूहिक नाम होने के कारण जातिवाचक । कुछ दिनों पहले तक जहाँ जाइये इसके नमूनों और कीमतों की चर्चा हुआ करती थी । थोड़ी देर बाद ऊब होने लगती थी । अब चर्चा नहीं होती । तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है । जे एन यू के हिंदी अध्यापकों में पहले यह सिर्फ़ नामवर सिंह के पास हुआ करती थी लेकिन संकोचवश वे इसमें नहीं चलते थे, उनके पुत्र विजय सिंह इसे चलाते थे । सबसे पहले यह संकोच पुरुषोत्तम अग्रवाल ने तोड़ा । तब इसे नीवी बंधन मोचन कहा गया । संस्कृत में ऐसे वक्त मूल्य की बात करना मना है । क्रमश: सबका संकोच टूटा ।
फिर कार सेवा का समय आया । हाथी की तरह इसे नहलाते, पोंछ्ते, आँखों से इसे सँवारते आप हिंदी के बौद्धिकों को देख सकते थे । हिंदी का अध्यापक हिंदी का ही होता है, उसकी महात्वाकांक्षाएँ भी हिंदी की ही होती हैं । हाथी को तो आप सिर्फ़ ऊपर से नहलाकर छुट्टी पा सकते थे । इसे बाहर भीतर दोनों तरफ़ साफ़ करना होता है । फिर उम्र बढ़ जाने पर सीखने में दिक्कत आती है । सो ड्राइवर रखे गये । बाद में स्वयं चलाने का भी साहस पैदा हो गया । करत करत अभ्यास ते । वैसे 'सेवा' एक एन जी ओ का भी नाम है । इन्हें स्वयंसेवी संगठन भी कहा जाता है । इसी अर्थ में कार सेवा स्वर्ण मदिर के पुनर्निर्माण के समय प्रचलित हुआ । सिक्ख धर्म में धार्मिक स्वैच्छिक श्रमदान को कारसेवा कहते हैं । लेकिन मैं इस अर्थ की बात नहीं कर रहा । भाजपा ने इसे वहाँ से उड़ाया और घनघोर विध्वंसक योजनाबद्ध कृत्य को कारसेवा कह बैठी । अयोध्या में एक जगह को विश्व हिंदू परिषद ने कारसेवकपुरम का नाम दे रखा है । ऐसी कार सेवा सरकार सेवा के बगैर नहीं हो सकती क्योंकि विदेशी धनदाताओं और सरकारी अधिकारियों को लगातार सर-सर कहते रहना पड़ता है ।इस तरह कार सेवा और सरकार सेवा एक दूसरे से घुल मिल गये । सरकार चाहे देशी हो या विदेशी । महबूब भी सरकार हो जाते हैं खासकर रूठने पर । सो सरकार महबूब हो गयी । उसकी कृपा से सेवा का मौका मिला । सेवा के लिये फ़ंड मिला और फ़ड से कार आयी । उसे भी सेवा की अलग से जरूरत पड़ी । सो सेवक आए । इनको भी कारसेवक ही कहना चाहिए ।
अगर अब भी आपके पास कार न हो तो महाजनो येन गता स पंथाः । कारवाले जिस राह गये ,दौड़ पड़िये । देर सबेर दूल्हन की तरह घूंघट डाले यह आपके दरवाजे पर खड़ी मिलेगी । नखरे तो हरेक खुशी के लिये बर्दाश्त करने ही पड़ते हैं । हिंदी में एक ही आदमी अब भी संकोच की दहलीज पर खड़ा मिला । बरेली में वीरेन डगवाल नामक यह कवि जब अपने मकान पर ले गया तो बोला- यार अश्लील है लेकिन है । लगा अब भी कुछ जगहें हैं जहाँ अभी कार नहीं है । अन्यथा जहाँ भी जाऊँ लगता है तेरी महफ़िल है ।
यू जी सी की एक योजना का नाम पर्सनल प्रोमोशन स्कीम है ऽब यह शिक्षा जगत में किसी योजना का नाम नहीं रह गया, एक जीवन पद्धति का रूप ले चुका है । इसके तहत कार , पुरस्कार , प्रवचन और प्रोजेक्ट की देखभाल की जाती है ।

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