माना जाता है कि प्रत्येक संकट के साथ पूंजीवाद अपना रूप बदल लेता है । समस्या उसके साथ जन्म से ही लगी रही है । इन समस्याओं को हल करने के नाम पर उसका स्वरूप बदले बिना पुनर्गठन होता रहा है । स्वाभाविक है प्रत्येक बदलाव के साथ उसे समझने का नया प्रयास शुरू होता है । पिछली सदी के सातवें दशक के संकट के बाद उदारीकरण और वैश्वीकरण के नाम से जो पुनर्गठन हुआ उसे बहुतेरे लोग पूंजीवाद की जगह किसी अन्य नाम से पुकारने की जिद करते रहे । उनकी इस भोली जिद के लिए पूंजीवाद ने ही पर्याप्त सबूत नहीं दिये और अपनी बुनियादी प्रवृत्ति में कोई संशोधन नहीं किया लिहाजा फिलहाल उसे पूंजीवाद ही कहा जाता है लेकिन कोई न कोई विशेषण लगाकर उसके नयेपन को रेखांकित भी किया जाता है । इस समूचे समय नाम तो वैश्वीकरण का रहा लेकिन संकीर्ण राष्ट्रवाद कभी राजनीतिक
पटल से गायब नहीं हुआ । उसका सबसे विध्वंसक नतीजा युद्ध होता है और शायद ही कभी
दुनिया के किसी न किसी कोने में बमों और बमवर्षकों की आवाज खामोश हुई । इसका सबसे
ताजा संस्करण यूक्रेन में दिखायी पड़ा है । इसके साथ ही इतिहास के अंत की घोषणा
करनेवाले फ़ुकुयामा ने भी नये दौर का आगाज माना है । ऐसी स्थिति में हम पिछले तीस
सालों में हुए बदलावों को पहचानने की कोशिश का जायजा ले सकते हैं ।
सदी के शुरू होने से पहले ही 1992 में अनासी से राबर्ट हीलब्रोनेर
की किताब ‘ट्वेन्टी-फ़र्स्ट सेन्चुरी कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है
कि पूंजीवादी व्यवस्था का दुनिया में इस समय बोलबाला है लेकिन सवाल है कि क्या
आगामी सदी में भी यही आलम रहेगा । इस मोर्चे पर वे भविष्यकथन से बचना चाहते हैं
क्योंकि बहुराष्ट्रीय निगम, जापान का उत्थान या मुद्रास्फीति जैसी जिन आर्थिक
परिघटनाओं को हम आज देख रहे हैं उनमें से किसी का भी भविष्यकथन अर्थशास्त्रियों ने
नहीं किया था ।
सबसे पहले 1999 में द एम आइ टी प्रेस से डान शिलर की किताब ‘डिजिटल कैपिटलिज्म: नेटवर्किंग द ग्लोबल मार्केट सिस्टम’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि जब
इंटरनेट आया तो कहा गया कि इससे वैश्विक बंधुत्व का जन्म होगा, बच्चों की शिक्षा
में क्रांति होगी और प्रत्यक्ष लोकतंत्र की स्थापना होगी । माइक्रोसाफ़्ट के एक
अधिकारी का दावा था कि इससे संघर्ष मुक्त पूंजीवाद का उद्भव होगा । इसके लिए सूचना
समाज की जरूरत थी । माना गया था कि समाज से बर्बरता समाप्त हो जाएगी और दुनिया में
दयालुता का साम्राज्य होगा । असल में इसके पीछे समस्याओं के तकनीकी समाधान के
प्रति भोला विश्वास काम कर रहा था ।
1999 में ही प्लूटो प्रेस से जान मैकमूर्त्री की किताब ‘द कैंसर स्टेज आफ़ कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । उनका कहना है कि किताब का शीर्षक
चौंकाने के लिए नहीं रखा गया है बल्कि तीस सालों के निजी अनुभव और विभिन्न अनुशासनों
की गहन सामाजिक खोज का परिणाम है । लेखक के भाई चिकित्सा विज्ञान के शोधकर्ता रहे ।
पत्नी को कैंसर था । इन सबके चलते उन्हें सामाजिक और जैविक संगठन में वृद्धि और रोग
के सिद्धांतों की समझ आयी । इन दोनों ही संगठनों में बीमारी बनी रहती है । दोनों में
ही इससे लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता भी रहती है । दोनों ही या तो इस प्रतिरोधक क्षमता
की बदौलत असामान्य वृद्धि की प्रक्रिया को काबू में कर लेते हैं या फिर इस परजीवी के
चलते भीतर से खोखले हो जाते हैं । इन दोनों अतियों के बीच से बच निकलने की अनगिनत संभावनाएं
होती हैं । दोनों को ही जिन्दा रहने के लिए सही अनुपात और सही मात्रा में वितरित भोजन
पानी और हवा की जरूरत पड़ती है । दोनों में ही इनके अभाव के बराबर ही जीवनीशक्ति का
क्षरण होता है । इनके बीच सबसे बुनियादी अंतर यह होता है कि सामाजिक संगठन आनुवंशिक
रूप से स्वास्थ्य या कमजोरी का शिकार नहीं होता है । उनमें मूल्य व्यवस्था और निर्णय
की स्वतंत्रता के कारण हमेशा सचेतन सुधार होता रहता है । आनुवंशिक निर्मिति और निर्णय
की स्वतंत्रता का यही बुनियादी अंतर किताब के विवेचन का आधार है इसलिए इसमें यथास्थिति
के पक्ष में काम आनेवाले आर्थिक नियमों या मौलिक स्वभाव जैसी धारणाओं से दूरी बरती
गई है क्योंकि अक्सर वे विकल्प की संभावना को खारिज करते हैं । किताब में अर्थतंत्र
की बात करते हुए जीवनमूल्यों का भी ध्यान रखा गया है ।
अगले साल 2000 में द न्यू प्रेस से विल ह्यूटन और एंथनी गिडेन्स
के संपादन में ‘ग्लोबल कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । इसी परिघटना को समझने के
क्रम में 2002 में रटलेज से राबर्ट वेन्ट की किताब ‘द एनिग्मा आफ़ ग्लोबलाइजेशन: ए जर्नी टु ए न्यू स्टेज आफ़ कैपिटलिज्म’ छपी । नाम के ही अनुरूप यह किताब मुक्त अर्थतंत्र
के विचार की समकालीन वापसी के भीतर वैश्वीकरण की जीत को देखती है । इसी के साथ साम्राज्यवाद
के उभार को भी रेखांकित किया गया है । यहां तक कि पूंजी संचय की प्रक्रिया को भी लेखक
घटित होते हुए देखता है ।
2003 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से ब्रूनो
अमेबल की किताब ‘द डाइवर्सिटी आफ़
माडर्न कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2005 में जान विली & संस से रेमंड डब्ल्यू बेकर की किताब ‘कैपिटलिज्म’स एचिलीज हील: डर्टी मनी ऐंड हाउ टु रिन्यू द फ़्री-मार्केट सिस्टम’ का प्रकाशन हुआ ।
2005 में पालग्रेव मैकमिलन से सुस्सन सोडेरबेर्ग, जार्ज मेन्ज़ और फिलिप जी गेरनी के संपादन
में ‘इंटर्नलाइजिंग ग्लोबलाइजेशन: द राइज आफ़ नियोलिबरलिज्म ऐंड द डिक्लाइन आफ़
नेशनल वेराइटीज आफ़ कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2005 में सेज पब्लिकेशंस से निगेल थ्रिफ़्ट की किताब ‘नोइंग कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । किताब में पूंजीवाद के नए नए
और जटिल रूपों को समझने की कोशिश की गई है । किताब के कुछ लेख तो लेखक के अपने हैं
लेकिन कुछ दूसरे लेखकों के साथ मिलकर लिखे हुए हैं । शुरू के एक लंबे लेख के अतिरिक्त
किताब में शामिल दस लेख दो भागों में बांटे गए हैं । पहले भाग के चार लेखों में पूंजीवाद
के सांस्कृतिक परिपथ की बात की गई है । दूसरे भाग के छह लेख नए अर्थतंत्र के स्वरूप
को स्पष्ट करते हैं ।
2006 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से एंड्र्यू
ग्लिन की किताब ‘कैपिटलिज्म अनलीश्ड: फ़ाइनांस ग्लोबलाइजेशन ऐंड वेलफ़ेयर’ का प्रकाशन हुआ ।
2006 में बेरेट कोहेलर पब्लिशर्स से पीटर बार्न्स
की किताब ‘कैपिटलिज्म 3.0: ए गाइड टु रीक्लेमिंग द कामन्स’ का प्रकाशन हुआ । लेखक व्यवसायी हैं और
जानते हैं कि मुनाफ़ा जिन कामों से मिलता है उनसे प्रदूषण, कूड़ा, विषमता, दुश्चिंता और जीवन की निरुद्देश्यता का जन्म
होता है । वे सामाजिक जीवन में सरकार की भूमिका के पक्षधर हैं लेकिन जानते हैं कि
सरकार नागरिकों के हितों, आगामी पीढ़ियों की
सुरक्षा, पारिस्थितिकी और
मानवेतर जीवों को बचाने के मामले में कुछ नहीं कर रही है । कारण कि उसकी
प्राथमिकता निजी कारपोरेट घरानो के हितोंकी रक्षा है । यही पूंजीवादी लोकतंत्र की
व्यवस्थागत समस्या है ।
2006 में पालग्रेव मैकमिलन से डिक ब्रायन और माइकेल राफ़ेर्टी की किताब ‘कैपिटलिज्म विथ डेरिवेटिव्स: ए पोलिटिकल इकोनामी आफ़ फ़ाइनैन्शियल
डेरिवेटिव्स, कैपिटल ऐंड क्लास’ का प्रकाशन हुआ । किताब में भूमिका के
अतिरिक्त तीन हिस्से हैं । पहला हिस्सा पूंजी के रूप में सट्टे की व्याख्या करता
है । दूसरा हिस्सा सट्टा और अंतर्राष्ट्रीय वित्त के संबंधों का विवेचन करता है ।
तीसरा हिस्सा सट्टा की धारणा का विश्लेषण करता है । लेखकों का कहना है कि अस्थिरता
वर्तमान आर्थिक दुनिया की प्रमुख विशेषता है । अस्थिरता खतरा तो है ही बदलाव का
कारक भी बन गई है । वित्तीय अस्थिरता का प्रभाव श्रमिक वर्ग पर भी पड़ना निश्चित है
।
2006 में द न्यू प्रेस से नेलसन लिचटेनस्टाइन के संपादन
में ‘वाल-मार्ट: द फ़ेस आफ़ ट्वेन्टी-फ़र्स्ट-सेन्चुरी कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । संपादक की भूमिका के अतिरिक्त
किताब के लेख तीन हिस्सों में संयोजित किए गए हैं । पहला हिस्सा इतिहास, संस्कृति और पूंजीवाद का है जिसमें संपादक के
एल लेख सहित चार लेख हैं । दूसरे हिस्से में वैश्विक कारपोरेशन के रूप में चार लेखों
में इसकी पड़ताल की गई है । तीसरे हिस्से में वालमार्ट की कार्यपद्धति का विश्लेषण किया
गया है और इसमें भी चार लेख शामिल किए गए हैं ।
2006 में कार्नेल
यूनिवर्सिटी प्रेस से स्टीवेन के वोगेल की किताब ‘जापान रीमाडेल्ड: हाउ गवर्नमेन्ट
ऐंड इंडस्ट्री आर रिफ़ार्मिंग जापानीज कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । एक साल बाद ही
इसका पेपरबैक संस्करण छपा ।
2008 में यूनिवर्सिटी आफ़ वाशिंगटन प्रेस से मेलिन्डा कूपर की किताब ‘लाइफ़ ऐज सरप्लस: बायो टेकनालाजी ऐंड कैपिटलिज्म इन द
नियोलिबरल एरा’ का प्रकाशन हुआ ।
2009 में यूनिवर्सिटी आफ़ मिनेसोटा प्रेस से निक डायर-विदेफ़ोर्ड और ग्रेग डी पीटर की किताब ‘गेम्स आफ़ एम्पायर: ग्लोबल कैपिटलिज्म ऐंड वीडियो गेम्स’ का प्रकाशन हुआ ।
2009 में पालग्रेव मैकमिलन से दिमित्रिस एन
कोराफ़ास की किताब ‘कैपिटलिज्म विदाउट
कैपिटल’ का प्रकाशन हुआ ।
लगभग इसी शीर्षक से 2018 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से जोनाथन हास्केल और स्टियन वेस्टलेक की
किताब ‘कैपिटलिज्म विदाउट
कैपिटल: द राइज आफ़ द
इनटैन्जिबुल इकोनामी’ का प्रकाशन हुआ ।
2010 में ब्लूम्सबरी पेपरबैक्स से अनातोले कालेत्सकी
की किताब ‘कैपिटलिज्म 4.0: द बर्थ आफ़ ए न्यू इकोनामी इन द आफ़्टरमाथ आफ़ क्राइसिस’ का प्रकाशन हुआ । भूमिका में लेखक ने बात शुरू
करते हुए कहा कि 2007-08 के आर्थिक संकट के बावजूद दुनिया खत्म नहीं हुई और इक्कीसवीं सदी बिना किसी
बड़ी घटना के दूसरे दशक में दाखिल हो गई । फिर भी संकट से पहले वित्तीय बाजार में लोगों
का जो विश्वास था उसकी वापसी असंभव है । कारण यह कि उस समय केवल कोई बैंक नहीं बरबाद
हुआ था, बल्कि एक समग्र राजनीतिक
दर्शन और आर्थिक व्यवस्था ही भहरा पड़ी थी । अब सवाल यह है कि वैश्विक पूंजीवाद की जगह
कौन सी व्यवस्था लेगी । लेखक का कहना है कि वैश्विक पूंजीवाद के ही जारी रहने के आसार
हैं । हो सकता है पूंजीवाद का आगामी रूप अधिक सफल और उत्पादक साबित हो । किताब का मकसद
नवीकरण की इसी प्रक्रिया की व्याख्या और आगामी पूंजीवाद के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलुओं
को पहचानना है ।
2010 में जान विली ऐंड सन्स से बैरी सीलिन की किताब ‘कार्नर्ड: द न्यू मोनोपोली कैपिटलिज्म ऐंड द इकोनामिक्स
आफ़ डिस्ट्रक्शन’ का प्रकाशन हुआ ।
2010 में ऐशगेट से जार्ज लियोकादिस की किताब ‘टोटैलिटेरियन कैपिटलिज्म ऐंड बीयान्ड’ का प्रकाशन हुआ ।
2010 में पालग्रेव
मैकमिलन से एरान फ़िशर की किताब ‘मीडिया ऐंड न्यू कैपिटलिज्म इन द डिजिटल एज: द
स्पिरिट आफ़ नेटवर्क्स’ का प्रकाशन हुआ ।
2012 में इजलेट से माइकेल हडसन की किताब ‘फ़ाइनान्स कैपिटलिज्म ऐंड इट’स डिसकांटेन्ट्स: इंटरव्यूज ऐंड स्पीचेज, 2003-2012’ का प्रकाशन हुआ । लेखक ने भूमिका में बताया
है कि 2003 से ही वे कर्ज के
कारण पैदा मंदी को समझाने के लिए लगातार इंटरव्यू दे रहे हैं । उनका कहना है कि
कर्ज ने अर्थतंत्र में उत्पादन और उपभोग की अर्थव्यवस्था को खा डाला है । लेखक की
इसी साल प्रकाशित ‘बबल ऐंड बीयान्ड’ के आर्थिक विश्लेषण को इन साक्षात्कारों में
व्याख्यायित किया गया था ।
2012 में जान विली & संस से माइकेल हिल की किताब ‘कैनिबल कैपिटलिज्म: हाउ बिग बिजनेस ऐंड द फ़ेड्स आर रूइनिंग
अमेरिका’ का प्रकाशन हुआ ।
2012 में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी प्रेस से विलियम के ताब
की किताब ‘द रीस्ट्रकचरिंग आफ़ कैपिटलिज्म इन आवर टाइम’ का प्रकाशन हुआ ।
2013 में ज़ीरो बुक्स से जे डी टेलर की किताब ‘निगेटिव कैपिटलिज्म: सिनिसिज्म इन द नियोलिबरल एरा’ का प्रकाशन हुआ ।
2013 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से ब्रिंक
लिंडसे की किताब ‘ह्यूमन कैपिटलिज्म: हाउ इकोनामिक ग्रोथ हैज मेड अस स्मार्टर- ऐंड मोर अनइक्वल’ का प्रकाशन हुआ ।
2013 में ए के प्रेस से ज्योफ़ मान की किताब ‘डिसअसेम्बली रिक्वायर्ड: ए फ़ील्ड गाइड टु ऐक्चुअली एक्जिस्टिंग
कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ।
2013 में बाइटबैक
पब्लिशिंग से डेविड सैंसबरी की किताब ‘प्रोग्रेसिव कैपिटलिज्म: हाउ टु अचीव
इकोनामिक ग्रोथ, लिबर्टी ऐंड सोशल जस्टिस’ का प्रकाशन हुआ ।
2013 में ही समीर अमीन की एक और किताब ‘द इम्प्लोजन आफ़ कांटेम्पोरेरी कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन मंथली रिव्यू प्रेस से ही हुआ ।
समकालीन पूंजीवाद को समझना दुनिया भर के मार्क्सवादियों के लिए चुनौती बन गया है
क्योंकि इसे समझे बिना इसके विरोध का कारगर तरीका नहीं मिलेगा । यह किताब भी इसी
वैचारिक जद्दो-जहद का परिणाम है ।
2014 में ज़ीरो बुक्स से बेंजामिन नायस की किताब ‘मेलाइन वेलासिटीज: एक्सीलरेशनिज्म ऐंड कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2014 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से विलियम आइ
रोबिन्सन की किताब ‘ग्लोबल कैपिटलिज्म ऐंड
द क्राइसिस आफ़ ह्यूमनिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
लेखक ने वर्तमान समय के सर्वव्यापी संकट को इस किताब में समझने की कोशिश की है ।
2014 में ब्रिल से जेम्स पेत्रास और हेनरी
वेल्टमेयेर की किताब ‘एक्सट्रैक्टिव
इम्पीरियलिज्म इन द अमेरिकाज: कैपिटलिज्म’स न्यू फ़्रंटियर’ का प्रकाशन हुआ । इसमें पाल बोल्स, डेनिस कैंटरबरी, नार्मन गिरवान और डार्सी टेट्राल्ट ने
योगदान किया है ।
2014 में येल यूनिवर्सिटी प्रेस से आयन क्लाउस की
किताब ‘फ़ोर्जिंग
कैपिटलिज्म: रोग्स, स्विंडलर्स, फ़्राड्स, ऐंड द राइज आफ़ माडर्न फ़ाइनान्स’ का प्रकाशन हुआ ।
2014 में रटलेज से हेनरी वेल्टमेयर के संपादन में ‘डेवलपमेंट इन ऐन एरा आफ़ नियोलिबरल ग्लोबलाइजेशन’ का प्रकाशन हुआ । इस किताब के संपादक की भूमिका के अतिरिक्त सात लेख संकलित हैं । इनमें आखिरी लेख भी संपादक का ही लिखा है । किताब के ये लेख सुरेंद्र पटेल को समर्पित हैं । उन्होंने विकास अध्ययन के क्षेत्र में बहुत योगदान किया । संयुक्त राष्ट्र संघ में तीसरी दुनिया में विकास की दिशा में शोध की एक संस्था का उन्होंने निर्देशन किया । वहां से सेनिवृत्त होने के बाद हेलिफ़ैक्स के विश्वविद्यालय में विकास संबंधी अध्ययन का संचालन करते रहे । उनके निधन के बाद उनकी याद में दिये व्याख्यानों में से चुनिंदा व्याख्यानों को इसमें एकत्र किया गया है ।
2015 में पालग्रेव मैकमिलन से सिआन ओरिआइन, फ़ेलिक्स बेहलिंग, रोजेला सिसिया और इओइन फ़्लाहर्टी के संपादन
में ‘द चेन्जिंग
वर्ल्ड्स ऐंड वर्कप्लेसेज आफ़ कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2015 में पब्लिक अफ़ेयर्स से रोबिन चेज की किताब ‘पीयर्स इंक: हाउ पीपुल ऐंड प्लेटफ़ार्म्स आर इनवेन्टिंग द
कोलाबरेटिव इकोनामी ऐंड रीइनवेन्टिंग कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2015 में वर्सो से एन्टनी लोवेनस्टाइन की किताब ‘डिजास्टर कैपिटलिज्म: मेकिंग ए किलिंग आउट आफ़ कैटास्ट्रोफी’ का प्रकाशन हुआ । 2017 में इसे दूसरी बार
छापा गया । भूमिका में लेखक ने बताया है कि 1972 में ही योर्गेन रांडर्स ने एक
किताब लिखकर सीमित संसाधनों और जनसंख्या तथा आर्थिक वृद्धि के बीच के तनाव का
जिक्र किया था । 2004 में भी उन्हें अपनी बात सही लगी और नेताओं में वर्तमान असंभव
वृद्धि के बारे में कोई चिंता नहीं दिखी । उनके तर्क पूंजीवाद के अंतर्निहित
नियमों के लिए चुनौती की तरह थे । 2015 आते आते उन्हें यकीन हो गया कि वर्तमान
वित्त व्यवस्था को जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों की रोकथाम में कोई रुचि
नहीं है ।
2015 में स्टीवेन हिल की किताब ‘रा डील: हाउ द “ऊबर इकोनामी” ऐंड रनअवे कैपिटलिज्म आर स्क्रूइंग अमेरिकन वर्कर्स’ का प्रकाशन हुआ ।
2015
में वर्ल्ड इकोनामिक एसोसिएशन से रिचर्ड स्मिथ की किताब ‘ग्रीन कैपिटलिज्म: द गाड दैट
फ़ेल्ड’ का प्रकाशन हुआ ।
2015
में रटलेज से पाल द्रागोस अलीजिका और व्लाद तार्को की किताब ‘कैपिटलिस्ट
अल्टरनेटिव्स: माडेल्स, टैक्सोनामिक्स, ऐंड सिनेरियोज’ का प्रकाशन हुआ । किताब में
हाल के दिनों में सामने आये पूंजीवाद के विभिन्न रूपों का परिचय दिया गया है ।
2015
में रटलेज से रिचर्ड डीग और ग्रेगोरी जैक्सन के संपादन में ‘चेंजिंग माडेल्स आफ़
कैपिटलिज्म इन यूरोप ऐंड द यू एस’ का प्रकाशन हुआ ।
2016 में एडवर्ड एल्गर से पीटर ब्लूम की किताब ‘आथोरिटेरियन कैपिटलिज्म इन द एज आफ़
ग्लोबलाइजेशन’ का प्रकाशन हुआ । लेखक
के मुताबिक किताब का मकसद वैश्वीकरण की समकालीन प्रक्रिया में आर्थिक पूंजीवाद और
राजनीतिक तानाशाही के बीच संबंध प्रकट करना है । खासकर बाजारीकरण की नीतियों को
मजबूती प्रदान करने वाले तानाशाह सत्ता विमर्शों पर रोशनी डालना जरूरी है । दुनिया
के पैमाने पर तानाशाह पूंजीवाद के वर्तमान उभार को बेहतर तरीके से समझना और सम्भव
हो तो बदलने की इच्छा से प्रेरित होकर किताब लिखी गई है । वर्तमान सदी में जब
शीतयुद्ध का खात्मा हुआ तो दुनिया भर में उदारपंथी लोकतंत्र के प्रसार और
तानाशाहों के अंत की उम्मीद जाहिर की गई थी । इस युग को लोकतांत्रिक बाजारों का
युग होना था । फ़ुकुयामा की इस घोषणा के बावजूद नई सदी के पहले ही दशक में उम्मीदें
चूर चूर हो गईं । पूंजीवादी वैश्वीकरण तो हुआ लेकिन तानाशाही की समाप्ति की जगह
उसमें नई जान आ गई । इससे सवाल पैदा हुआ कि लोकतंत्र के लिए पूंजीवाद लाभकर है या
हानिकर है ।
2016 में वर्सो से इयान आंगुस की किताब ‘फ़ेसिंग द एन्थ्रोपोसीन: फ़ासिल कैपिटलिज्म ऐंड द क्राइसिस आफ़ द अर्थ सिस्टम’ का प्रकाशन हुआ । किताब की भूमिका जान बेलामी
फ़ास्टर ने लिखी है । भूमिका में उन्होंने पर्यावरण के लिए होनेवाले आंदोलन के इतिहास
का जायजा लिया है । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब धरती की सतह पर परमाणु बम का परीक्षण
किया गया तो वैज्ञानिकों ने इसका घनघोर विरोध किया । 1962 में राचेल कारसन की किताब साइलेन्ट स्प्रिंग
के प्रकाशन के बाद इस आंदोलन में काफी व्यापकता आई । इसके बाद सोवियत संघ और अमेरिका
के वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में तापमान में ऐसी तेज वृद्धि की चेतावनी दी जिसमें दुबारा
कमी आने की कोई आशा नहीं थी । इस किताब में धरती की जलवायु और उसके तापमान में मानवजन्य
अपरिवर्तनीय बदलावों और उन बदलावों की प्रतिक्रिया में चलनेवाले पर्यावरण के आंदोलनों
के द्वंद्वात्मक संबंध की छानबीन की गई है । आंगुस ने मनुष्य और प्रकृति के बीच अंत:क्रिया के नए उदीयमान स्तर के बतौर एन्थ्रोपोसीन
का चित्रण किया है और बताया है कि इसके कारण ही पारिस्थितिकी की नई कल्पना की जरूरत
पैदा हुई है । लगता है कि विज्ञान में एन्थ्रोपोसीन को खासकर द्वितीय विश्वयुद्ध के
बाद के समय से ही जोड़कर देखा जाएगा । हालांकि इसकी शुरुआत के निशान औद्योगिक क्रान्ति
से ही मिलने लगते हैं । इस धारणा का उभार पूरी तरह से पृथ्वी प्रणाली की वैज्ञानिक
सोच के साथ हुआ है । इसे पूंजीवाद, उद्योगीकरण, उपनिवेशीकरण और जीवाश्म
ईंधन के उपयोग के साथ मनुष्य और पर्यावरण के बीच संबंध में बदलाव से भी जोड़कर देखा
जाता है ।
2016 में पालग्रेव मैकमिलन से हान्ज वान ज़ोन की
किताब ‘ग्लोबलाइज्ड
फ़ाइनान्स ऐंड वेराइटीज आफ़ कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2016 में सेंट
मार्टिन’स प्रेस से अलेक्स मोआज़ेद और निकोलस एल जानसन की किताब ‘माडर्न मोनोपोलीज:
ह्वाट इट टेक्स टु डामिनेट द 21स्ट सेन्चुरी इकोनामी’ का प्रकाशन हुआ ।
2016
में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से डेव एल्डर-वास की किताब ‘प्राफ़िट ऐंड गिफ़्ट इन द डिजिटल इकोनामी’ का प्रकाशन हुआ ।
2017 में पोलिटी से निक स्रनिसेक की किताब ‘प्लेटफ़ार्म कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2017
में ब्रिल से थामस मार्टिन के संपादन में ‘क्राइसिस ऐंड सीक्वेल्स: कैपिटलिज्म ऐंड
द न्यू इकोनामिक टर्माइल सिन्स 2007’ का प्रकाशन हुआ । किताब में शामिल बत्तीस लेख
पांच हिस्सों में हैं । प्रत्येक हिस्से की प्रस्तावना अलग से लिखी गयी है । पहले
में 2007 के बाद, दूसरे में सितम्बर 2008 के बाद, तीसरे में 2009 के बाद, चौथे में
2010 के बाद और पांचवें में 2015 के बाद के हालात का विश्लेषण है । इसके अतिरिक्त
भूमिका और पश्चलेख भी संपादक ने लिखे हैं । तीन परिशिष्टों में पूंजीवाद के संकट,
विध्वंसक होड़ और मुनाफ़े में गिरावट की प्रवृत्ति का विवेचन है ।
2017
में कैमेरोन मुरे और पाल फ़्रिजटर्स ने खुद ही अपनी किताब ‘गेम आफ़ मेट्स: हाउ
फ़ेवर्स ब्लीड द नेशन’ का प्रकाशन किया । किताब में आस्ट्रेलिया के पूंजीवाद की उन
नयी प्रवृत्तियों का गहन विवेचन है जिनके चलते कुछ दोस्तों के बीच
आपस में ही देश की समूची संपत्ति का बंटवारा हो जाता है ।
2017 में रौमान & लिटिलफ़ील्ड से क्लाडियो सेलिस
बुएनो की किताब ‘द अटेंशन इकोनामी: लेबर, टाइम ऐंड पावर इन कागनीटिव कैपिटलिज्म’
का प्रकाशन हुआ । लेखक के मुताबिक आज की दुनिया में पूंजी के साकार होने की
प्रक्रिया में सूचना और ज्ञान का महत्व बहुत अधिक हो गया है । ऐसे में मनुष्य का
ध्यान अधिकाधिक विरल और मूल्यवान होता जा रहा है ।
2018
में फ़ोर्डहैम यूनिवर्सिटी प्रेस से जे पाल नार्कुनास की किताब ‘रेइफ़ाइड लाइफ़:
स्पेकुलेटिव कैपिटल ऐंड द एह्यूमन कंडीशन’ का प्रकाशन हुआ ।
2018 में
सीमियोटेक्स्ट(ई) से जैकी वांग की किताब ‘कारसेरल कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2018 में प्लूटो
प्रेस से गेरार्ड ड्यूमेनिल और डोमिनिक लेवी की किताब ‘मैनेजरियल कैपिटलिज्म: ओनरशिप, मैनेजमेन्ट ऐंड द कमिंग न्यू मोड आफ़
प्रोडक्शन’ का प्रकाशन हुआ ।
किताब के चार खंड बनाकर लेखकों के तर्क प्रस्तुत किए गए हैं । पहला खंड उत्पादन
पद्धतियों और वर्गों के बारे में है । इसके बाद प्रबंधन पूंजीवाद के बारह दशकों का
विवेचन किया गया है । तीसरे खंड में ऐतिहासिक गति को मोड़ने के विगत प्रयासों का
विश्लेषण है । चौथे खंड में प्रबंधन के भीतर या उसके पार जाकर मानव मुक्ति की
सम्भावनाओं की तलाश की गई है ।
2018 में प्लूटो प्रेस से क्रिश्चियन फ़ुश की किताब ‘डिजिटल डेमागाग: आथरिटेरियन कैपिटलिज्म इन द एज आफ़ ट्रम्प ऐंड
ट्विटर’ का प्रकाशन हुआ ।
2018 में पालग्रेव
मैकमिलन से पीटर लोथियन नेल्सन और वाल्टर ई ब्लाक की किताब ‘स्पेस कैपिटलिज्म: हाउ
ह्यूमन्स विल कोलोनाइज प्लैनेट्स, मून्स, ऐंड एस्टेरायड्स’ का प्रकाशन हुआ ।
2019 में
पब्लिकअफ़ेयर्स से शोशाना ज़ुबाफ़ की किताब ‘द एज आफ़ सर्विलान्स कैपिटलिज्म: द फ़ाइट फ़ार
ए ह्यूमन फ़्यूचर ऐट द न्यू फ़्रन्टियर आफ़ पावर’ का प्रकाशन हुआ है । लेखिका ने सबसे पहले इस
स्थिति को परिभाषित किया है । यह ऐसी नई आर्थिक व्यवस्था है जिसमें मानव अनुभव के
आधार पर अनुमान और बिक्री का व्यावसायिक आचरण जारी रखा जा सके । इसमें वस्तुओं और
सेवाओं के उत्पादन के मुकाबले व्यवहार में सुधार की विश्व व्यवस्था अधिक जरूरी
समझी जाती है । यह पूंजीवाद का ऐसा रूप है जिसमें संपत्ति, ज्ञान और सत्ता का
अभूतपूर्व संकेंद्रण हो जाता है । निगरानी का अर्थतंत्र कायम करने का बुनियादी
ढांचा तैयार होता है । उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में जिस तरह प्रकृति के लिए
औद्योगिक पूंजीवाद खतरा साबित हुआ उसी तरह इक्कीसवीं सदी में निगरानी पूंजीवाद
मानव प्रकृति के लिए खतरा बन गया है । यह उपकरणात्मक सत्ता है जो समाज पर दबदबा
बनाती है और बाजार लोकतंत्र के लिए विचित्र चुनौती खड़ा कर देती है । ऐसी सामूहिक
व्यवस्था थोपती है जिसमें कोई ढील सम्भव नहीं । मानवाधिकारों का अपहरण हो जाता है
और लोगों की प्रभुसत्ता को उखाड़ फेंका जाता है । इस समय स्वचालन आधारित तकनीक का
जिस तरह बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है उसने नागरिक जीवन की स्वायत्तता को
समाप्त कर दिया है और आंदोलनों तथा कार्यकर्ताओं के दमन उत्पीड़न के लिए इन तकनीकों
की व्यापक उपस्थिति नजर आ रही है । इस नई परिघटना पर विचार करने के लिए इसे यह नाम
दिया गया है । असल में पहले जो कुछ कारखाने और जेल तक सीमित था उसकी जद में समूचा
समाज आ गया है । असल में मशीन और मनुष्य के बीच मालिकाने की लड़ाई बहुत पुरानी है ।
2019 में ड्यूक यूनिवर्सिटी
प्रेस से सांद्रो मेज़ाद्रा और ब्रेट नीलसन की किताब ‘द पोलिटिक्स आफ़ आपरेशंस: एक्सकेवेटिंग
कनटेम्पोरेरी कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2019 में
यूनिवर्सिटी आफ़ वेस्टमिंस्टर प्रेस से डेविड शैंडलर और क्रिश्चियन फ़ुश के संपादन
में ‘डिजिटल आबजेक्ट्स, डिजिटल सबजेक्ट्स: इंटरडिसिप्लिनरी
पर्सपेक्टिव्स आन कैपिटलिज्म, लेबर ऐंड पोलिटिक्स इन द एज आफ़ बिग डाटा’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की भूमिका के साथ
किताब में उन्नीस लेख संकलित हैं । इनको तीन भागों में संयोजित किया गया है । पहले
भाग में डिजिटल पूंजीवाद और बिग डाटा पूंजीवाद का विवेचन करने वाले सात लेख हैं ।
दूसरे भाग में डिजिटल श्रम का विश्लेषण करने वाले छह लेख हैं । तीसरे भाग में
डिजिटल राजनीति का विवेचन छह लेखों के सहारे किया गया है ।
2019 में ब्रिल से
थामस मार्टिन के संपादन में ‘क्राइसिस ऐंड सीक्वेल्स: कैपिटलिज्म ऐंड द न्यू इकोनामिक टर्माइल सिन्स
2007’ का प्रकाशन हुआ ।
संपादक की भूमिका के अतिरिक्त किताब में शामिल बत्तीस लेख पांच भागों में हैं ।
सभी भागों की प्रस्तावना अलग से लिखी गई है । पहले भाग में 2007 के बाद की स्थिति
से जुड़े लेख हैं । दूसरे भाग में सितम्बर 2008 के बाद की हालत का विश्लेषण है ।
तीसरे भाग में 2009 के बाद की स्थिति का जायजा लिया गया है । चौथा भाग 2010 के बाद
की स्थिति का विवेचन है । आखिरी पांचवें भाग में 2015 के बाद की स्थिति का
विश्लेषण करने वाले लेख शामिल किए गए हैं । 2016 के बाद के हालात पर अलग से एक
पश्चलेख लिखा गया है । इसके अतिरिक्त किताब के तीन परिशिष्टों में मार्क्स के
आर्थिक चिंतन के कुछ पहलुओं का स्पष्टीकरण है । पूर्व प्रकाशित लेखों की एक सूची
भी किताब में रखी गई है । संपादक के मुताबिक 2008 के बाद से ही वे लगातार वामपंथी अर्थशास्त्रियों
से साक्षात्कार करते रहे जिनका समय समय पर प्रकाशन भी होता रहा । उनका संकलन इस किताब
में किया गया है । साथ ही कुछ साक्षात्कार पहली बार इसमें ही छापे जा रहे हैं । इसे
वे पाठक भी समझ सकते हैं जो अर्थशास्त्र में दीक्षित नहीं हैं । कुछ लोगों से बार बार
साक्षात्कार लिए गए ताकि वे अपनी मान्यता में बदलाव बता सकें । सीमा यह कि इनमें अंग्रेजी
बोलने वाले अर्थशास्त्री अधिक हैं और बहुसंख्या पुरुषों की है । कहानी को कालानुक्रम
में बताने की कोशिश रही है । संकट की शुरुआत वित्त व्यवस्था से हुई थी ।
2019 में द बेल्कनैप
प्रेस आफ़ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से ब्रांको मिलानोविक की किताब ‘कैपिटलिज्म,
एलोन: द फ़्यूचर आफ़ द सिस्टम दैट रूल्स द वर्ल्ड’ का प्रकाशन हुआ ।
2019 में प्लूटो प्रेस से निक डायर-विदेफ़ोर्ड, एटली मिकोला क्योजेन और जेम्स स्टाइनहाफ़ की किताब ‘इनह्यूमन पावर: आर्टीफ़िशियल इनटेलिजेन्स ऐंड द फ़्यूचर आफ़ कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । लेखकों के अनुसार वर्तमान पूंजीवाद
के सामने कृत्रिम बुद्धि का सवाल प्रमुख रूप से सामने आया है । कुछ लोग ऐसे मानवाभ
रोबो बनाने की कवायद में जुटे हैं जो मनुष्यों की तरह ही बोल समझ सकें । उनका मानना है कि इससे पूंजीवाद का आधार ही बदल जायेगा । यह परियोजना सफल हो या न हो इससे कृत्रिम बुद्धि संबंधी उत्सुकता का पता चलता है । इसे परिभाषित करना बेहद मुश्किल है । कुछ हद तक इसका इस्तेमाल हो रहा है । सामान पहुंचाने और ड्रोन के जरिये हत्या के मामले में इसके प्रयोग को आम लोग भी महसूस कर रहे हैं । इसी तरह फोन या इंटरनेट, सोशल मीडिया, वीडियो खेल, लक्षित विज्ञापन, बैंक कर्ज के आवेदन, कल्याणकारी योजनाओं की अर्हता, काल सेंटर पर पूछताछ या वाहन बुक करने के मामलों भी लोग इसके प्रयोग के अभ्यस्त होते जा रहे हैं ।
2019 में
स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से निक कोल्ड्राइ और यूलिसेस ए मेजियास की किताब ‘द
कास्ट्स आफ़ कनेक्शन: हाउ डाटा इज कोलोनाइजिंग ह्यूमन लाइफ़ ऐंड अप्रोप्रिएटिंग इट
फ़ार कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2019 में मंथली
रिव्यू प्रेस से इन्तान सुवन्डी की किताब ‘वैल्यू चेन्स: द न्यू इकोनामिक
इम्पीरियलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि 1980 दशक में इंडोनेशिया में
रहते हुए उन्हें भीषण विषमता का बोध हुआ था । झोपड़पट्टी के बगल में आलीशान बंगलों
का होना आम बात थी । गरीबी चतुर्दिक व्याप्त थी । इससे उनके मन में इसे लेकर सवाल
उठा । स्कूलों में उन्हें इस विषमता के दर्शन हुए । जिन भव्य परिधानों को कुछ
संपन्न विद्यार्थी धारण करते उन्हें बनाने वालों को उनकी कीमत का अत्यल्प भाग ही
प्राप्त होता ।
2019 में यूनिवर्सिटी आफ़ वेस्टमिंस्टर प्रेस से विन्सेन्ट
राउज़े के संपादन में ‘कल्चरल क्राउडफ़ंडिंग: प्लेटफ़ार्म कैपिटलिज्म, लेबर ऐंड ग्लोबलाइजेशन’ का प्रकाशन हुआ । किताब लगभग संपादक की ही है । पांच में
से तीन अध्याय उनके ही लिखे हैं और चौथा उनके साथ जैकब मैथ्यूज ने मिलकर लिखा है ।
आखिरी पांचवां अध्याय जैकब मैथ्यूज के साथ दो अन्य विद्वानों ने लिखा है ।
2019
में सेज से डेविड बीयर की किताब ‘द डाटा गेज़: कैपिटलिज्म, पावर ऐंड परसेप्शन’ का
प्रकाशन हुआ ।
2019
में यूनिवर्सिटी आफ़ वेस्टमिंस्टर प्रेस से माइकेल बावेन्स, वसीलिस कोस्ताकिस और अलेक्स
पज़ाइतिस की किताब ‘पीयर टु पीयर: द कामन्स मेनिफ़ेस्टो’ का प्रकाशन हुआ । लेखकों के
मुताबिक जब मार्क्स ने मानचेस्टर के उद्योगों को नये पूंजीवादी समाज के नक्शे के
बतौर पहचाना था उसके बाद से हमारे सामाजिक जीवन में उतना बुनियादी बदलाव नहीं आया
। पूंजीवाद में एक के बाद एक लगातार ढांचागत संकट के आगमन से नया समाजार्थिक और
राजनीतिक खाका उभरना शुरू हुआ है । उसे साझेदारी की केंद्रीय भवितव्यता के बतौर
देखा जा रहा है ।
2020 में पालग्रेव
मैकमिलन से सिडोनी नाउलिन और एनी जौर्डेन के संपादन में ‘द सोशल मीनिंग आफ़ एक्स्ट्रा
मनी: कैपिटलिज्म ऐंड द कमोडिफ़िकेशन आफ़ डोमेस्टिक ऐंड लेबर ऐक्टिविटीज’ का प्रकाशन
हुआ । यह किताब डायनामिक्स आफ़ वर्चुअल वर्क नामक पुस्तक श्रृंखला के तहत छपी है जिसकी
संपादक उर्सुला हुव्स और रोजालिंड गिल हैं । संपादकों ने कुछेक ऐसी कहानियों से
किताब की शुरुआत की है जिनमें इंटरनेट के सहारे तरह तरह के नए रोजगार करने वालों
का विवरण है । इन कहानियों में संगीत, सिले कपड़े, भोजन, घरेलू उपज से लेकर अश्लील
सामग्री तक का निर्माण और बिक्री का रोजगार घर से ही किया जाता है । कह सकते हैं
कि जिन गतिविधियों को पहले मनोरंजनपरक माना जाता था उनसे उत्पादित वस्तुओं का
व्यापार नई परिघटना है । इसका मतलब कि जिसे खाली समय कहा जाता था उसका भी आर्थिक
इस्तेमाल होने लगा है ।
2019
में एडवर्ड एल्गर से रोलैन्ड अट्ज़मुलेर, ब्रिगिते आउलेनबाखेर, उलरिक ब्रांड,
फ़ेबिएन डेसू, कारीन फ़िशर और बिर्गित सावेर के संपादन में ‘कैपिटलिज्म इन
ट्रान्सफ़ार्मेशन: मूवमेंट्स ऐंड काउंटरमूवमेंट्स इन द 21स्ट सेन्चुरी’ का प्रकाशन
हुआ ।
2020 में वर्सो से
लाले खलीली की किताब ‘सिन्यूज आफ़ वार ऐंड ट्रेड: शिपिंग ऐंड कैपिटलिज्म इन अरबियन
पेनिन्सुला’ का प्रकाशन हुआ । पूंजीवाद और व्यापार के सिलसिले में नौपरिवहन के
आंकड़े बहुत उपयोगी होते हैं । नब्बे प्रतिशत सामान की ढुलाई पानी के जहाजों से
होती है । कुल ढुलाई का तीस प्रतिशत तेल की ढुलाई है । तेल के समूचे आवागमन का साठ
प्रतिशत समुद्र के रास्ते होता है । फिर भी इन आंकड़ों से बंदरगाहों, समुद्रों और
नौपरिवहन के समूचे विस्तार का अनुमान नहीं किया जा सकता । उनमें बदलाव भी बहुत आया
है । पहले की तरह अब समुद्र के किनारे के नगरों से बंदरगाहों का जीवंत रिश्ता नहीं
रह गया है । अब उन्हें कंटीले तार लगाकर नगरों से अलगा दिया गया है ।
2020 में प्लूटो
प्रेस से रेबेका कसीदी की किताब ‘विशियस गेम्स: कैपिटलिज्म ऐंड गैम्बलिंग’ का
प्रकाशन हुआ । किताब लिखने के लिए लेखक ने लम्बे समय तक असली जगहों पर जाकर
सर्वेक्षण किया है ।
2020 में द एम आइ
टी प्रेस से जथान साडोव्सकी की किताब ‘टू स्मार्ट: हाउ डिजिटल कैपिटलिज्म इज
एक्सट्रैक्टिंग डाटा, कंट्रोलिंग आवर लाइव्स, ऐंड टेकिंग ओवर द वर्ल्ड’ का प्रकाशन
हुआ ।
2020 में रीऐक्शन
बुक्स से जेसन ई स्मिथ की किताब ‘स्मार्ट मशीन्स ऐंड सर्विस वर्क: आटोमेशन इन ऐन
एज आफ़ स्टैगनेशन’ का प्रकाशन हुआ ।
2020 में पोलिटी से लिसा एडकिन्स, मेलिंडा कूपर और मार्तिज्न कोनिंग्स की किताब ‘द एसेट इकोनामी: प्रापर्टी ओनरशिप ऐंड द न्यू लाजिक आफ़ इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
इस सिलसिले में 2020 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से अशोक कुमार
की एक किताब ‘मोनोप्सोनी कैपिटलिज्म: पावर ऐंड प्रोडक्शन इन द ट्विलाइट आफ़ द स्वेटशाप
एज’ का प्रकाशन हुआ ।
इसमें परिधान और जूते चप्पल के निर्माण में वैश्वीकरण के बाद आये बदलावों का वर्णन
हुआ है । इस उद्योग में उत्पादन और वितरण की अंतर्राष्ट्रीय श्रृंखला का जन्म हुआ
था । नये समय के साम्राज्यवाद को समझने के लिए अक्सर इस क्षेत्र का विश्लेषण किया
गया है । पश्चिमी देशों की इन क्षेत्रों की जरूरतें पूरी करने के लिए मानव श्रम
गरीब देशों से लगाया जाता है । कारखाने और कार्यशाला भी इन देशों में होते हैं ।
खासकर बांगलादेश में इस तरह का काम बड़े पैमाने पर होता है । इस पहलू पर 2016 में मंथली रिव्यू प्रेस से जान स्मिथ की किताब ‘इंपीरियलिज्म इन द ट्वेन्टी-फ़र्स्ट सेन्चुरी: ग्लोबलाइजेशन, सुपर-एक्सप्लायटेशन, ऐंड कैपिटलिज्म’स फ़ाइनल क्राइसिस’ का प्रकाशन हुआ । लेखक ने 2013 में ढाका में आठ मंजिला राना प्लाज़ा के गिरने
की घटना से बात शुरू की है । उसमें हजारों परिधान निर्माता स्त्री श्रमिकों की मृत्यु
हुई थी । सारी दुनिया के मजदूरों ने बांग्लादेशी मजदूरों के साथ न्याय की आवाज उठाई
और उन बड़े कारपोरेट घरानों के विरोध में प्रतिवाद जाहिर किया जो इस तरह के श्रमिकों
की मेहनत से लाभ तो उठाते हैं लेकिन इनके काम के हालात या सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी
नहीं उठाते । एक दिन पहले ही इमारत में दरारें दिखने लगी थीं तो उसमें स्थित बैंक और
दुकानों ने तो काम बंद रखा लेकिन इन मजदूरिनों को काम पर लगा दिया गया । राना प्लाज़ा
की इस दुर्घटना से उठी आवाजों के चलते विश्व अर्थतंत्र की बुनियादी संरचना उजागर हो
गई । विश्व पूंजीवाद की सेहत दुरुस्त होने की एकमात्र वजह कम मजदूरी वाले देशों के
मजदूरों का अतिशय शोषण है । इन देशों में उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन का काम होता
है ।
इसी तरह 2020 में
ही वर्सो से ब्रेट क्रिस्टोफर्स की किताब ‘रेन्टियर कैपिटलिज्म: हू ओन्स द
इकोनामी, ऐंड हू पेज फ़ार इट?’ का प्रकाशन हुआ । लेखक ने उदाहरण के साथ अपनी बात स्पष्ट
करने के लिए बताया है कि अगर आप हाल के दिनों में ब्रिटेन गये हों तो अरक़िवा नामक निजी
दूरसंचार कंपनी की सेवाओं का उपयोग जरूर किया होगा । साथ ही 2020 में बिर्लिन से
बाब वाइली की किताब ‘बैंडिट कैपिटलिज्म: कैरीलियन ऐंड द करप्शन आफ़ द ब्रिटिश
स्टेट’ का प्रकाशन हुआ ।
संचार के क्षेत्र
में इस नयेपन को पहचानते हुए 2020 में यूनिवर्सिटी आफ़ वेस्टमिंस्टर प्रेस से
क्रिश्चियन फ़ुश की किताब ‘कम्युनिकेशन ऐंड कैपिटलिज्म: ए क्रिटिकल थियरी’ का
प्रकाशन हुआ ।
इस कोरोना काल में
अमेजन नामक कंपनी के मालिक जेफ़ बेज़ोस दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बनने में कामयाब
हुए । जिस तरह के अर्थतंत्र के बल पर यह कामयाबी मिली वह जिज्ञासा का विषय बना । 2020 में स्क्रिबनेर
से ब्रायन दुमेन की किताब ‘बेज़ोनामिक्स: हाउ अमेजन इज
चेंजिंग आवर लाइव्स ऐंड ह्वाट द वर्ल्ड’स बेस्ट कंपनीज आर लर्निंग फ़्राम इट’ का प्रकाशन
हुआ ।
2020 में वर्सो से
मार्टिन आर्बोलेडा की किताब ‘प्लैनेटरी माइन: टेरिटोरीज आफ़ एक्सट्रैक्शन अंडर लेट
कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का मानना है कि यह समय विराट बदलावों का समय है
। इससे चिढ़ और कुंठा तो होती ही है, अचरज भी होता है । हमारे रोज ब रोज के जीवन का ताना बाना और पर्यावरण मशीनों
की नई पीढ़ी और नई तकनीकों से नए सिरे से बुना जा रहा है ।
2020 में हेमार्केट
बुक्स से राब लार्सन की किताब ‘बिट टाइरैन्ट्स: द पोलिटिकल इकोनामी आफ़ सिलिकान
वैली’ का प्रकाशन हुआ । सबसे पहले लेखक ने बताया है कि आधुनिक तकनीक की सहायता से
ही यह किताब लिखी गयी है । इसलिए सिलिकान घाटी की सेवाओं का इस्तेमाल न करने की
सीख देना इस किताब का मकसद नहीं है । 2017 में सीरियाई गृहयुद्ध के समय अमेरिका और
रूस एकाधिक बार परमाणु युद्ध के करीब तक पहुंच गये । ऐसे हालात से बचने के लिए
दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीधे संवाद का तंत्र है जिसके जरिए वे आपस में हावाई
उड़ानों की जानकारी साझा करते हैं ताकि आपस में वायु सैनिक टकराव न हो । फोन आधारित
इस व्यवस्था के साथ ही मेल की वैकल्पिक व्यवस्था भी है । इन सेवाओं की उपयोगिता
में कोई संदेह नहीं है । हमारा जीवन इन कंपनियों की सेवाओं के सहारे चलता है ।
इसके चलते इनके पास अविश्वसनीय शक्ति आ गयी है । पूंजी की इन नयी ताकतवर संस्थाओं
की छानबीन इस किताब का उद्देश्य है ।
2020 में पालग्रेव
मैकमिलन से अलेक्जेन्डर डनलप और जोस्टेइन याकोबसन की किताब ‘द वायलेन्ट टेकनोलाजीज
आफ़ एक्सट्रैक्शन: पोलिटिकल इकोलाजी, क्रिटिकल एग्रेरियन स्टडीज ऐंड द कैपिटलिस्ट
वर्ल्डईटर’ का प्रकाशन हुआ । किताब में सब कुछ भकोस जाने की पूंजीवादी इच्छा का
खुलासा किया गया है ।
2020 में पालग्रेव
मैकमिलन से सिडोनी नाउलिन और एनी जौर्डेन के संपादन में ‘द सोशल मीनिंग आफ़
एक्स्ट्रा मनी: कैपिटलिज्म ऐंड द कमोडिफ़िकेशन आफ़ डोमेस्टिक ऐंड लेबर ऐक्टिविटीज’
का प्रकाशन हुआ । यह किताब डायनामिक्स आफ़ वर्चुअल वर्क नामक पुस्तक श्रृंखला के तहत
छपी है जिसकी संपादक उर्सुला हुव्स और रोजालिंड गिल हैं । संपादकों ने कुछेक ऐसी
कहानियों से किताब की शुरुआत की है जिनमें इंटरनेट के सहारे तरह तरह के नए रोजगार
करने वालों का विवरण है । इन कहानियों में संगीत, सिले कपड़े, भोजन, घरेलू उपज से
लेकर अश्लील सामग्री तक का निर्माण और बिक्री का रोजगार घर से ही किया जाता है ।
कह सकते हैं कि जिन गतिविधियों को पहले मनोरंजनपरक माना जाता था उनसे उत्पादित
वस्तुओं का व्यापार नई परिघटना है । इसका मतलब कि जिसे खाली समय कहा जाता था उसका
भी आर्थिक इस्तेमाल होने लगा है ।
2020 में पोलिटी से
जेमी वुडकाक और मार्क ग्राहम की किताब ‘द गिग इकोनामी: ए क्रिटिकल इंट्रोडक्शन’ का
प्रकाशन हुआ ।
2020
में एनकाउंटर बुक्स से जोएल कोटकिन की किताब ‘द कमिंग आफ़ नियो फ़्यूडलिज्म: ए
वार्निंग टु द ग्लोबल मिडिल क्लास’ का प्रकाशन हुआ ।
2020
में मर्लिन प्रेस से लियो पानिच और ग्रेग अल्बो के संपादन में सोशलिस्ट रजिस्टर
2021 ‘बीयान्ड डिजिटल कैपिटलिज्म: न्यू वेज आफ़ लिविंग’ का प्रकाशन हुआ ।
2020
में बेर्गान से पाल ए शाकेल की किताब ‘ऐन आर्कियोलाजी आफ़ अनचेक्ड कैपिटलिज्म:
फ़्राम द अमेरिकन रस्ट बेल्ट टु द डेवलपिंग वर्ल्ड’ का प्रकाशन हुआ ।
2020
में रिपीटर बुक्स से वेन्डी लियु की किताब ‘एबालिश सिलिकान वैली: हाउ टु लिबरेट टेकनोलाजी
फ़्राम कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2020
में सेज पब्लिकेशंस से चंद्रशेखर श्रीपद के संपादन में ‘लीडिंग ह्यूमन कैपिटल इन द
2020ज: इमर्जिंग पर्सपेक्टिव्स’ का प्रकाशन हुआ । राजेंद्र श्रीवास्तव ने इसकी
प्रस्तावना लिखी है । संपादक की भूमिका के अतिरिक्त किताब में शामिल छह लेखों में
मानव संसाधन के मामले में आये हालिया बदलावों पर विचार किया गया है ।
2020
में रटलेज से एलीसन कोल और एस्टेल फ़ेरारेस के संपादन में ‘हाउ कैपिटलिज्म फ़ार्म्स
आवर लाइव्स’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना समेत किताब में कुल बारह लेख
संकलित हैं ।
2020
में पालग्रेव मैकमिलन से अरविद लुन्ड और मरियानो ज़ुकेरफ़ेल्ड की किताब ‘कारपोरेट
कैपिटलिज्म’स यूज आफ़ ओपेननेस: प्राफ़िट फ़ार फ़्री?’ का प्रकाशन हुआ ।
2021
में द एम आइ टी प्रेस से अलेक्स पेंटलैंड, अलेक्जेंडर लिपटन और थाम्स हार्डजोनो की
किताब ‘बिल्डिंग द न्यू इकोनामी: डाटा ऐज कैपिटल’ का प्रकाशन हुआ ।
2021
में फ़ेर्नवुड से मुरे ई जी स्मिथ, जोनाह बुतोव्सकी और जोश वाटर्टन की किताब
‘ट्विलाइट कैपिटलिज्म: कार्ल मार्क्स ऐंड द डीके आफ़ द प्राफ़िट सिस्टम’ का प्रकाशन
हुआ ।
2021
में द यूनिवर्सिटी आफ़ नार्थ कैरोलाइना प्रेस से हीथर बेर्ग की किताब ‘पोर्न वर्क:
सेक्स, लेबर, ऐंड लेट कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2021
में रटलेज से सेसीलिया रिकाप की किताब ‘कैपिटलिज्म, पावर ऐंड इनोवेशन:
इंटेलेक्चुअल मोनोपोली कैपिटलिज्म अनकवर्ड’ का प्रकाशन हुआ ।
2021 में
इंस्टीच्यूट फ़ार पोलिटिकल स्टडीज से वेस्ना स्तानकोविक पेज्नोविक के संपादन में
‘बीयान्ड कैपिटलिज्म ऐंड नियोलिबरलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2021
में पालग्रेव मैकमिलन से जेम्स स्टाइनहाफ़ की किताब ‘आटोमेशन ऐंड आटोनामी: लेबर,
कैपिटल ऐंड मशीन्स इन द आर्टिफ़ीशियल इनटेलिजेन्स इंडस्ट्री’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि कोरोना महामारी और अश्वेत उभार
के समय इस विषय पर किताब तैयार करना व्यर्थ का काम लग रहा था लेकिन आगामी समय में
हम सबका जीवन अधिकाधिक इस नयी स्थिति से प्रभावित होना तय है इसलिए इस किताब को
तैयार करना जरूरी भी था ।
2021
में द एम आइ टी प्रेस से अलेक्स पेन्टलैंड, अलेक्जेंडर लिप्टन और थामस हार्डजोनो
की किताब ‘बिल्डिंग द न्यू इकोनामी: डाटा ऐज कैपिटल’ का प्रकाशन हुआ । पेंटलैंड का कहना है कि युद्ध, महामारी या किसी
बुनियादी तकनीक के आगमन से पैदा संकट में व्यक्ति, व्यवसाय और सरकार के बीच के
रिश्तों का पुनराविष्कार करना पड़ता है । प्रथम विश्वयुद्ध से पहले बड़े पैमाने पर
निर्माण शुरू होने के चलते नया संतुलन बनाना पड़ा था । इस दौरान काम के हालात और
वेतन संबंधी नियम, उत्पादित भोजन से सेहत की रक्षा और एकाधिकार पर रोक लगाने वाले
कानून बने । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोपीय उपनिवेशों को मुक्ति मिली, उच्च
शिक्षा तक जनता की पहुंच बनी और स्त्री अधिकार तथा नस्ली समानता में प्रगति आयी ।
इसी समय क्षयरोग और पोलियो पर जैव प्रौद्योगिकी के कारण रोक लगी तथा दवाओं के सख्त
नये मानक तय हुए । इसी तरह इस समय दो किस्म के बदलाव समानांतर जारी हैं । एक तो
कोरोना महामारी के कारण स्वास्थ्य और अर्थतंत्र को गहरा धक्का लगा है, दूसरी ओर
इंटरनेट आधारित गतिविधियों के चलते निजी जीवन के आंकड़ों का जखीरा तैयार हो रहा है
और कृत्रिम बुद्धि आधारित अभ्यासों का दैनिक जीवन में हस्तक्षेप गहरा रहा है । नयी
तकनीकों से इस वैश्विक महामारी से लड़ने में मदद मिल रही है लेकिन साथ ही इसी तकनीक
से चलने वाले सोशल मीडिया पर झूठी अफवाहें और भ्रम भी बहुत फैल रहा है । संक्रमण
के प्रसार की जानकारी के लिए तैयार तकनीक को निजी जीवन की सुरागरसी के लिए भी
इस्तेमाल किया जा रहा है । इस मामले में सामाजिक और सरकारी ढांचों को विचार करना
होगा कि भविष्य की महामारी से बेहतर तरीके से निपटने के साथ ही किस तरह आर्थिक लाभ
को समूचे समाज में वितरित करके अर्थतंत्र में जान फूंकी जा सके । इस समय
अर्थतंत्र, सरकार और स्वास्थ्य के लिहाज से आंकड़ों की भूमिका बहुत महत्व की हो गयी
है । इसीलिए उन पर कुछेक लोगों का कब्जा अनुचित है । इनका जखीरा जिनके पास होगा
उनके रहमो करम पर ही तमाम समुदायों को निर्भर रहना होगा ।
2021 में बेल्कनैप
प्रेस आफ़ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से फिलिप एगियोन, सेलिन अंतोनिन और सिमोन
बुनेल की फ़्रांसिसी में पिछले साल छपी
किताब का अंग्रेजी अनुवाद ‘द पावर आफ़ क्रियेटिव डिसट्रक्शन: इकोनामिक अपहीवेल ऐंड
द वेल्थ आफ़ नेशन्स’ का प्रकाशन हुआ । अनुवाद जोडी कोहेन-तनुगी ने किया है ।
2021 में ड्यूक
यूनिवर्सिटी प्रेस से जोनाथन बेलेर की किताब ‘द वर्ल्ड कंप्यूटर: डेरिवेटिव
कंडीशन्स आफ़ रेशियल कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2021 में प्लूटो
प्रेस से फोएबे वी मूर और जेमी वुडकाक के संपादन में ‘आगमेन्टेड एक्सप्लायटेशन:
आर्टिफ़िशियल इनटेलिजेन्स, आटोमेशन ऐंड वर्क’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की
प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब में शामिल बारह लेख तीन हिस्सों में हैं । पहले
हिस्से में कृत्रिम बुद्धि के निर्माण, दूसरे में उसके बारे में भ्रम और तीसरे में
उसको तोड़ने के बारे में लिखे लेख शामिल हैं ।
2021 में रटलेज से
यास्मीन इब्राहीम की किताब ‘पोस्टह्यूमन कैपिटलिज्म: डांसिंग विथ डाटा इन द डिजिटल
इकोनामी’ का प्रकाशन हुआ ।
2021
में ब्लूम्सबरी एकेडमिक से अलेक्स वान्सब्रो की किताब ‘कैपिटलिज्म ऐंड द एनचैन्टेड
स्क्रीन: मिथ्स ऐंड एलेगरीज इन द डिजिटल एज’ का प्रकाशन हुआ ।
2021
में पोलिटी से बाइउंग-चुल हान की जर्मन में 2019 में छपी किताब का अंग्रेजी अनुवाद
‘कैपिटलिज्म ऐंड द डेथ ड्राइव’ का
प्रकाशन हुआ । अनुवाद डैनिएल स्टुएर ने किया है । लेखक का कहना है कि जिसे वृद्धि
कहा जाता है वह असल में कैंसर के प्रसार की तरह है ।
2021
में पोलिटी से चक कोलिन्स की किताब ‘द वेल्थ होर्डर्स: हाउ बिलिनेयर्स पे मिलियन्स
टु हाइड ट्रिलियन्स’ का प्रकाशन हुआ ।
2021
में वर्सो से फिल जोन्स की किताब ‘वर्क विदाउट द वर्कर: लेबर इन द एज आफ़
प्लेटफ़ार्म कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2021
में पालग्रेव मैकमिलन से जेम्स स्टाइनहाफ़ की किताब ‘आटोमेशन ऐंड आटोनामी: लेबर,
कैपिटल ऐंड मशीन्स इन द आर्टिफ़ीशियल इनटेलिजेन्स इंडस्ट्री’ का प्रकाशन हुआ ।
2021
में पालग्रेव मैकमिलन से बलिहार संघेरा और एल्मीरा सत्यबलदीवा की किताब ‘रेंटियर
कैपिटलिज्म ऐंड इट्स डिसकनटेंट्स: पावर, मोरलिटी ऐंड रेजिस्टेन्स इन सेंट्रल
एशिया’ का प्रकाशन हुआ ।
2022
में रटलेज से रोजीन ए बुकोल्ज़ की किताब ‘कैपिटल ऐंड कैपिटलिज्म: ओल्ड मिथ्स, न्यू
फ़्यूचर्स’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के शोध प्रबंध से यह किताब निकली है ।
2022
में रटलेज से सिडनी डेकर की किताब ‘कमप्लायन्स कैपिटलिज्म: हाउ फ़्री मार्केट्स हैव
लेड टु अनफ़्री, ओवररेगुलेटेड वर्कर्स’ का प्रकाशन हुआ ।
2022
में पालग्रेव मैकमिलन से दारेक क्लोनोव्सकी की किताब ‘वेंचर कैपिटल रीडिफ़ाइंड: द
इकोनामिक, पोलिटिकल, ऐंड सोशल इम्पैक्ट आफ़ कोविड आन वीसी इकोसिस्टम’ का प्रकाशन
हुआ ।
2022
में रटलेज से एफ़े कान गुर्कान की किताब ‘इम्पीरियलिज्म आफ़्टर द नियोलिबरल टर्न’ का
प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि सत्तर के दशक में नवउदारवादी
वैश्वीकरण को सांस्कृतिक मोड़ कहा गया । तब संस्कृति को न केवल वास्तविक समझा गया
बल्कि सभी चीजों के मुकाबले इसे प्राथमिकता दी गयी । असल में सोवियत संघ के पतन के
बाद संस्कृति की प्रमुखता के दावे बहुत सारे हुए जिसके साथ मार्क्सवाद को खारिज
करने की जल्दी भी की गयी । इस दौरान वामपंथी और व्यवस्था से विक्षुब्धों में से
बहुतेरे लोग भी संस्कृति पर जोर देने की पैरोकारी में शामिल हुए । साम्राज्यवाद
शब्द ही प्रचलन से बाहर निकाल दिया गया और उसकी बात करने वालों को कट्टर
मार्क्सवादी कहा जाने लगा । बुश के जमाने में अफ़गानिस्तान और इराक पर हमले के बाद
साम्राज्यवाद पर फिर सोच विचार शुरू हुआ । अमेरिकी सैनिक हमलों के साथ ही
नवउदारवादी पूंजीवाद में संकट भी नजर आने लगे । 2007 के संकट के बाद तो यह
प्रत्यक्ष भी हो गया । इससे सांस्कृतिक मोड़ संबंधी तर्क कमजोर पड़ने लगे और आर्थिक
पहलू विचार के दायरे में जगह बनाने लगा । जो संकट आया था वह 1930 की महामंदी के
बाद सबसे भीषण था । इससे आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता का जन्म हुआ । अमेरिका के
आर्थिक नेतृत्व के दावे में दरार पड़ गयी । इसका असर यूरोप में भी नजर आया और
बेरोजगारी में बेतहाशा इजाफ़ा हुआ । नतीजे के तौर पर वाम और दक्षिण की धाराओं का
उत्थान हुआ । सीरिया और लीबिया के संकट के बाद तो संस्कृति की प्रमुखता का तर्क और
भी कमजोर पड़ा । इन मामलों में रूस और अमेरिका की दखल ने विश्व राजनीति में फिर से
साम्राज्यवाद की धारणा को प्रासंगिक बना दिया । इसके चलते साम्राज्यवाद और उसके
रूपांतरणों के बारे में गम्भीर सोच विचार भी शुरू हुआ । वर्तमान समय में
साम्राज्यवाद के विकास में भूमिका निभाने वाले समाजार्थिक और राजनीतिक सांस्कृतिक
कारकों की छानबीन भी तेज हुई । साथ ही उसके विरुद्ध प्रतिरोध और संघर्ष की
सम्भावनाओं को भी खोजा जाने लगा ।
2022
में रटलेज से इगोर मार्तेक की किताब ‘इंटरनेशनल कनस्ट्रक्शन मैनेजमेन्ट: हाउ द
ग्लोबल इंडस्ट्री रीशेप्स द वर्ल्ड’ का प्रकाशन हुआ ।
2022
में रटलेज से वी उपाध्याय और परमजीत सिंह के संपादन में ‘ग्लोबल पोलिटिकल इकोनामी:
ए क्रिटीक आफ़ कनटेम्पोरेरी कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2022
में पालग्रेव मैकमिलन से राबर्ट गुटमान की किताब ‘मल्टी-पोलर कैपिटलिज्म: द एन्ड
आफ़ द डालर स्टैंडर्ड’ का प्रकाशन हुआ । लेखक
का मानना है कि अमेरिका अपने विभाजन की बदनामी झेल रहा है । इसकी सामाजिक शक्ति और
कमजोरी के नुद्दों के बारे में गरमागरम बहसें हो रही हैं । इसके बावजूद
अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन के मध्यस्थ के बतौर इसकी मुद्रा डालर के बारे में शायद ही
कोई चर्चा सुनायी पड़े । 1945 में ब्रेटन वुड्स संस्थाओं के आगमन के बाद से ही इसकी
बादशाहत कायम है । आज की दुनिया में अमेरिका के प्रभाव को स्थापित करने में उसकी
मुद्रा की निर्णायक भूमिका को देखते हुए उसकी चर्चा न होना थोड़ा आश्चर्यजनक लगता
है । देश की मुद्रा होने के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन की मुद्रा डालर होने के
चलते अमेरिका की आर्थिक हैसियत का निर्माण हुआ है । इसके ही कारण वह
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में मनमर्जी के मुताबिक घाटा उठा सकता है । इस पहलू की
उपेक्षा से अज्ञान पैदा होता है । राजनेता से लेकर आम मतदाता तक इसके बारे में
नहीं जानते जिसके चलते वे गम्भीर संकटों के बारे में किंचित लापरवाह भी रहते हैं
।
2022
में पालग्रेव मैकमिलन से अचिम शेपांस्की की किताब ‘फ़ाइनैन्शियल कैपिटल इन द 21स्ट
सेन्चुरी: ए न्यू थियरी आफ़ स्पेकुलेटिव कैपिटल’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है
कि विश्व अर्थतंत्र अब भी ठहराव से बाहर नहीं आया है । लगभग सभी देशों के सकल
घरेलू उत्पाद में कोई वृद्धि नहीं आयी है । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूंजी के
तमाम प्रतिनिधि और साम्राज्यवादी ताकतें अनंत आर्थिक वृद्धि का यकीन दिलाती रहीं
लेकिन उनके दावे धूल धूसरित हो चुके हैं । 1980 दशक से ही विश्व अर्थतंत्र में
वित्तीय पूंजी ही चालक और निर्धारक बनी हुई है ।
2022
में ट्रान्सक्रिप्ट फ़ेर्लाग से साबीन फ़ेइफ़ेर की किताब ‘डिजिटल कैपिटलिज्म ऐंड
डिसट्रिब्यूटिव फ़ोर्सेज’ का प्रकाशन हुआ । लेखक शुरू से ही
डिजिटल दुनिया के साथ जुड़े रहे हैं । समाजशास्त्री के रूप में वे इस परिघटना पर
ध्यान भी देते रहे हैं ।
2022
में पेंग्विन प्रेस से सेबास्तियन मेलाबी की किताब ‘द पावर ला: वेंचर कैपिटल ऐंड द
मेकिंग आफ़ द न्यू फ़्यूचर’ का प्रकाशन हुआ ।
2022 में स्प्रिंगेर से इमानुएल डी फ़ारज़ौन, मोशे मकोवर
और डेविड ज़कारिया की किताब ‘हाउ लेबर पावर्स द ग्लोबल इकोनामी: ए लेबर थियरी आफ़
कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
2022
में रटलेज से क्रिश्चियन फ़ुश की किताब ‘डिजिटल कैपिटलिज्म: मीडिया, कम्यूनिकेशन
ऐंड सोसाइटी वाल्यूम थ्री’ का प्रकाशन हुआ । किताब के सभी अध्याय पहले छप चुके हैं
। लेखक के मुताबिक किताब में डिजिटल पूंजीवाद के बारे में बताया गया है । इस नये
दौर में जीने के मानी भी स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है और पूंजीवाद के इस रूप
की आलोचनात्मक समझ में मददगार चिंतकों के विचारों का परिचय दिया गया है । समाज में
संचार और डिजिटल संचार के आलोचनात्मक सिद्धांत की मजबूत बुनियाद तैयार करने के
घोषित मकसद से प्रकाशित पुस्तक श्रृंखला में यह तीसरी किताब है । इन किताबों में
संचार सिद्धांत, समाजशास्त्र और दर्शन की सम्मिलित दृष्टि से समाज में, पूंजीवाद
में और डिजिटल पूंजीवाद में संचार की भूमिका को देखा गया है । इस नयी किताब में
मार्क्स, एंगेल्स, लूकाच, अडोर्नो, लफ़ेव्र और डलास स्माइद के सहारे डिजिटल
पूंजीवाद की आलोचनात्मक समीक्षा विकसित करने की कोशिश है । डिजिटल पूंजीवाद के सभी
सम्भव पहलुओं की छानबीन करने के क्रम में लिखे तेरह अध्यायों में आंकड़ों के जखीरे
के विश्लेषण, सोशल मीडिया संबंधी शोध, इससे बने वर्तमान समाज, रोजमर्रा के जीवन,
डिजिटल संस्कृति उद्योग, डिजिटल पूंजीवाद में विचारधारा की भूमिका, इंटरनेट पर
रैकृत चेतना, सोशल मीडिया पर दबंग व्यक्तित्व का उभार, डिजिटल उद्योग में
अंतर्राष्ट्रीय श्रम विभाजन, तमाम बड़ी कंपनियों के डिजिटल श्रमिक, साफ़्टवेयर
इंजीनियर, सोशल मीडिया पर इंटरनेट विज्ञापन का राजनीतिक अर्थशास्त्र, डिजिटल
श्रमिकों के संदर्भ में पूंजीवाद , पितृसत्ता, गुलामी और नस्ली संबंध, डिजिटल
अलगाव, पूंजीवादी संकट में डिजिटल मीडिया की भूमिका, सूचना उद्योग के संदर्भ में
मूल्य के मार्क्सी श्रम सिद्धांत की स्थिति, साम्राज्यवाद और डिजिटल श्रमिक,
डिजिटल युग में ट्रेड यूनियन और वर्ग संघर्ष, सहकार, साझेदारी तथा इंटरनेट आधारित
सार्वजनिक सेवा आदि विषयों पर विचार किया गया है । संक्षेप में कहें तो डिजिटल
पूंजीवादी समाज में अर्थतंत्र, राजनीति और संस्कृति की अंत:क्रिया पर रोशनी डालने
का उपक्रम इसमें नजर आयेगा ।
लेखक
का कहना है कि डिजिटल पूंजीवाद को समझने के लिए
सबसे पहले पूंजीवाद को समझना होगा । खास बात यह कि इस सिलसिले में वे जर्मन
समाजशास्त्री जोम्बार्ट से अपनी बात शुरू करते हैं जिनके मुताबिक पूंजीवादी
अर्थतंत्र में होड़ और तकनीक के सहारे उत्पादकता बढ़ाकर धन का अधिग्रहण करने पर जोर
होता है । इसी पूंजी का अर्थतंत्र पर आधिपत्य होता है । अधिग्रहण, होड़ और
तार्किकता के विचारों का इसमें प्राधान्य होता है । पूंजीवाद से पहले के सभी
अर्थतंत्रों में आजीविका कमाना ही ध्येय था । पूंजी को बढ़ाने का विचार उससे पूरी
तरह अलग है । आर्थिक तार्किकता धीरे धीरे ऐसे सांस्कृतिक इलाके में भी पहुंच जाती
है जो अर्थतंत्र से सीधे जुड़े नहीं होते । पूंजीवादी तकनीक से उत्पादकता में
वृद्धि अवश्य होनी चाहिए । लगातार तकनीकी सुधार पूंजीवादी उद्यमी का सबसे कारगर
हथियार होता है । इसके सहारे वह बेहतर सामानात सस्ते दर पर मुहैया करके अपने
प्रतियोगी को बाहर कर देता है । आदर्श उद्यमी में खोजी, आविष्कारक, विजेता, संगठक
और व्यापारी के गुण समाये होते हैं ।
इसके
बाद वे जोसेफ शूम्पीटर की धारणा का उल्लेख करते हैं । जोम्बार्ट से आगे शूम्पीटर
ने उद्यमी को पूंजीवाद का ऐसा कर्ता माना है जो रचनात्मक विध्वंस के जरिये
पूंजीवाद को नवता प्रदान करता है । उनके अनुसार पूंजीवाद निजी संपत्ति पर आधारित
ऐसा अर्थतंत्र है जिसमें उधार ली गयी पूंजी के सहारे नयापन लाया जाता है ।
रचनात्मक विध्वंस उसका सारभूत अंग होता है । इन दोनों विद्वानों के अनुसार
पूंजीवाद का कर्ता पूंजीपति होता है । अर्थतंत्र उद्यमी की निजी गतिविधि की तरह
नजर आता है । पूंजीपति या मजदूर वर्ग की तरह कल्पित नहीं किये गये हैं ।
मैक्स
वेबर ने लगातार मुनाफ़े के पहलू पर जोर दिया है जिसका सृजन निरंतर तार्किक
पूंजीवादी उद्यमशीलता से होता है । उनके मुताबिक पूंजीवादी आर्थिक गतिविधि उसे कहा
जायेगा जिसमें विनिमय के अवसरों का इस्तेमाल करके मुनाफ़ा हासिल किया जाता है ।
2022
में पालग्रेव मैकमिलन से स्टीफेन माहेर की किताब ‘कारपोरेट कैपिटलिज्म ऐंड द
इंटीग्रल स्टेट: जनरल एलेक्ट्रिक ऐंड ए सेन्चुरी आफ़ अमेरिकन पावर’ का प्रकाशन हुआ
।
2022 में पालग्रेव मैकमिलन से लेलियो देमिचेलिस की इतालवी में 2018 में छपी किताब का अंग्रेजी अनुवाद ‘मार्क्स, एलिएनेशन ऐंड टेकनो-कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । अनुवाद लेमुएल काशन ने किया है ।
2022
में दराजा प्रेस से शुद्धब्रत देब राय की किताब ‘सोशल मीडिया ऐंड कैपिटलिज्म:
पीपुल, कम्युनिटीज ऐंड कमोडिटीज’ का प्रकाशन हुआ ।
2022
में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से आरी वाइ लेविन, ग्रेग लिंडेन और डेविड जे तीसे
के संपादन में ‘द न्यू एनलाइटेनमेन्ट: रीशेपिंग कैपिटलिज्म ऐंड द ग्लोबल आर्डर इन
द 21स्ट सेन्चुरी’ का प्रकाशन हुआ ।
2022
में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से किम्बरली के होआंग की किताब ‘स्पाइडरवेब
कैपिटलिज्म: हाउ ग्लोबल एलीट्स एक्सप्लायट फ़्रंटियर मार्केट्स’ का प्रकाशन हुआ ।
2022 में रटलेज से विलियम डेनिस हुबेर की किताब ‘कारपोरेशंस, एकाउंटिंग, सिक्योरिटीज लाज, ऐंड द एक्सटिंक्शन आफ़ कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ ।
लेखक का मानना है कि पूंजीवाद केवल अर्थव्यवस्था नहीं है, यह समाज व्यवस्था भी है
। समूचा समाज पूंजी की धारणा और उसके स्वामित्व के इर्द गिर्द निर्मित किया गया है
। पूंजी, पूंजीपति और पूंजीवाद के बीच रिश्ता इसकी जान है । पूंजी की धारणा और
उसके स्वामित्व से गैर पूंजीवादी समाज व्यवस्थाओं का भी निर्माण हुआ है लेकिन
उनमें उपर्युक्त रिश्ता नहीं रहा । समाज व्यवस्था कानूनी और आर्थिक ढांचे में
व्यक्त होती है । पूंजीवाद जिस कानून व्यवस्था पर निर्भर है वह निजी पूंजी की
समर्थक है । इसके बावजूद लेखक ने पूंजीवाद को कोई कानून व्यवस्था या राजनीतिक
तंत्र मानने से इनकार किया है ।
2022
में पालग्रेव मैकमिलन से पीटर डिकेन्स की किताब ‘कैपिटल ऐंड द कासमोस: वार,
सोसाइटी ऐंड द क्वेस्ट फ़ार प्राफ़िट’ का प्रकाशन हुआ ।
2022
में पोलिटी से जेनी ह्यूबरमैन की किताब ‘द स्पिरिट आफ़ डिजिटल कैपिटलिज्म’ का
प्रकाशन हुआ ।
2022
में वर्सो से नैन्सी फ़्रेजर की किताब ‘कैनिबल कैपिटलिज्म: हाउ आवर सिस्टम इज
डिभावरिंग डेमोक्रेसी, केयर, ऐंड द प्लैनेट- ऐंड ह्वाट वी कैन डू एबाउट इट’ का
प्रकाशन हुआ । लेखिका के अनुसार बताने की जरूरत नहीं कि इस समय हम संकट में हैं ।
खतरों और परेशानियों का अनुभव सबको ही हो रहा है । कर्ज का फंदा लगातार कसता जा
रहा है, जीवन की अस्थिरता बहुत बढ़ गयी है, जीविका अनिश्चित होती जा रही है, सेवाओं
की हालत खस्ता है, ढांचे भहरा रहे हैं और सरहदों पर कड़ाई भी तेज हो गयी है । नस्ली
हिंसा, महामारी और मौसम की भयावहता के साथ ही इसका समाधान खोजने और कल्पित करने
वाली राजनीति दुर्लभ हो चली है ।
2023
में रटलेज से स्तानिस्लाव माज़ुर के संपादन में ‘इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन 4.0: इकोनामिक
फ़ाउंडेशंस ऐंड प्रैक्टिकल इमप्लिकेशंस’ का प्रकाशन हुआ । संपादक की प्रस्तावना और
उपसंहार के अतिरिक्त किताब में दस लेख शामिल किये गये हैं । संपादक का कहना है कि
विगत कुछ दशकों से जारी आर्थिक और सामाजिक बदलावों में हाल के दिनों में तेजी आयी
है । ऐसा कोरोना के चलते भी हुआ जिसके असरात को पूरी तरह अब भी समझा नहीं जा सका
है । खास तरह के आर्थिक व्यवहार का टिकाऊपन खतरे में पड़ गया है । इसकी वजह
उद्योगीकरण की चौथी लहर है । इसके नानाविध नतीजों के चलते आर्थिक, तकनीकी और
सामाजिक मोर्चे पर बेहद बुनियादी बदलाव आ रहे हैं । इसमें स्वचालन का नया ही स्तर
देखने को मिल रहा है । कृत्रिम बुद्धि के सहारे रोबोटीकरण और डिजिटलीकरण के रूप
में इसके कुछ प्रत्यक्ष पहलू सामने आये हैं ।
2023
में रटलेज से इमानुएल नेस के संपादन में ‘द रटलेज हैंडबुक आफ़ द गिग इकोनामी’ का
प्रकाशन हुआ । राबर्ट ओवेट्ज़, इजाबेल रोक़, इवा-मारी स्विडलर और आस्टिन ज़्विक ने
संपादन में सहयोग किया है । इमानुएल नेस के संपादकीय के अतिरिक्त किताब के पांच
भागों में तैंतीस लेख शामिल हैं । पहले में धारणागत परिप्रेक्ष्य और रुख, दूसरे
में वैश्वीकरण, स्त्री और प्रवास, तीसरे में श्रमिक प्रतिरोध और संगठन, चौथे में
क्षेत्रीय गतिकी के तहत उत्तरी गोलार्ध तथा पांचवें हिस्से में दक्षिणी गोलार्ध से
जुड़े लेख संकलित हैं । डाक्टर जेमी वुडकाक ने इसकी प्रस्तावना लिखी है । उनके अनुसार गिग अर्थतंत्र के उदय के साथ ही
उसके बारे में अध्ययन भी शुरू हो गया । खासकर दूसरे लोगों के कामों को महज मंच
उपलब्ध कराने के चलन ने काम, उसके भविष्य, तकनीक की भूमिका, सरकारी नियमन और
कामगारों के संगठन की सम्भावना या चुनौती से जुड़े सवालों को चर्चा में ला दिया ।
ये तमाम बहसें मंच संबंधी काम, राजनीतिक अर्थतंत्र में बदलाव और व्यापक सामाजिक
बदलाव की सम्भावना के बारे में थीं । इन मुद्दों की प्रासंगिकता मंचों के काम करने वालों के साथ ही व्यापक समाज के लिए भी है क्योंकि भोजन और रसोई के सामान, यातायात, सफाई और घरेलू काम के क्षेत्र में मंचों का दखल बहुत बढ़ गया है । यह दखल यहीं तक सीमित रहने वाला नहीं है । यह अब पूंजी की नयी प्रयोगशाला है । प्रबंधन और तकनीक के मामले में तमाम नये प्रयोग इसी मोर्चे पर किये जा रहे हैं । इनकी सफलता या विफलता का प्रभाव व्यापक माहौल पर पड़ेगा । अर्थतंत्र के इस विकासमान क्षेत्र पर शोध के साथ ही प्रतिरोधमूलक कार्यवाहियों में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है । टैक्सी सेवा और भोजन वितरण सेवा से जुड़े लोगों ने हड़तालें की हैं । इन हड़तालों के समर्थन में कुछ यूरोपव्यापी अभियान भी संचालित हुए हैं । कोरोना के दौरान स्वास्थ्य और भोजन वितरण प्रणाली से जुड़े कामगारों के प्रति चिंता देखी गयी क्योंकि इनकी आपूर्ति अबाध बनी रही लेकिन महामारी के खात्मे के बाद यह चिंता भी खत्म हो गयी है । इस किताब में इसी क्षेत्र से संबंधित तमाम मुद्दों और बहसों को समेटा गया है ।
2023
में प्लूटो प्रेस से गुगलिएल्मो कारचेदी और माइकेल राबर्ट्स की किताब ‘कैपिटलिज्म
इन द 21स्ट सेन्चुरी: थ्रू द प्रिज्म आफ़ वैल्यू’ का प्रकाशन हुआ । लेखकों ने किताब
का मकसद वर्तमान सदी के पूंजीवाद की मार्क्सवादी व्याख्या मुहैया कराना बताया है ।
इसके लिए उन्होंने मार्क्स के मूल्य सिद्धांत का औजार की तरह इस्तेमाल किया है ।
मार्क्स के अनुसार मानव श्रम के साकार होने से मूल्य पैदा होता है । बिना मानव
श्रम के जीवित और चंगा रहने की कोई सुविधा हासिल नहीं होती । मतलब कि मूल्य कोई
अमूर्त धारणा नहीं होता, उसका अस्तित्व वास्तविक यथार्थ में होता है । मसलन बिजली
वास्तविक होती है । तांबे के अणुओं के जरिये इलेक्ट्रानों की गति ही बिजली है । हम
उसे हमेशा देख नहीं सकते लेकिन उसके नतीजों को महसूस कर सकते हैं । उसे वोल्ट, वाट
या एम्पीयर में नापा जा सकता है । उसी तरह मानव श्रम भी भौतिक होता है और उसे
श्रमकाल में नापा जा सकता है ।
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