Wednesday, January 28, 2015

पिता-पुत्र


जो 'है' था
वह अब 'था' है
कितनी आसानी से
इसे पुत्र के बचपन की नींद
देखते हुए समझा
और अब पिता की मौत
में पुष्ट पाया
द्वन्द्ववाद नहीं था यह
चीजों के होने का तरीका है
जो अपने न-होने में  भी
होती हैं  छुपी हुई
फिर औचक प्रकट
होकर जिंदगी
बन जाती हैं
घर के दरवाजे पर वे अब नहीं होंगे
नहीं लेंगे जिम्मेदारी किसी की
बच्चे अब चिढ़ाएंगे किसे
कौन उन्हें डाँटेगा
भाई निश्तिन्त होकर घूमेंगे
चाचा बगैर लज्जित हुए पीटेंगे
 चाची को
किसी को कोई काम नहीं रह जाएगा
मुझे भी खबर नहीं लेनी होगी उनकी






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