2021
में द यूनिवर्सिटी आफ़ नार्थ कैरोलाइना
प्रेस से ज़ाक सेल की किताब ‘ट्रबल
आफ़ द वर्ल्ड: स्लेवरी
ऐंड एम्पायर इन द एज आफ़ कैपिटल’ का
प्रकाशन हुआ । लेखक ने पूंजीवादी संकट के एक विस्फोटक दौर को इस किताब में विश्लेषित
किया है ताकि पूंजीवाद के तहत गुलामी और साम्राज्य के रिश्तों को समझा जा सके । विश्व
पूंजी के इस दौर में गुलामी का स्तर बेहद उच्च था क्योंकि इस व्यवस्था में उत्पादित
माल की खपत ब्रिटेन, यूरोप
और समूची दुनिया में होती थी । इससे ब्रिटेन को उपनिवेशों के साथ व्यापार संतुलन कायम
रखने में आसानी होती थी । दूसरी ओर गुलामी से पैदा होनेवाली वस्तुओं की अमेरिका से
बाहर की बिक्री से अर्जित मुनाफ़े के सहारे दास मालिक इस व्यवस्था को विस्तारित करते
थे । गुलामी में काम करनेवालों की मेहनत से पैदा कच्चे माल से ब्रिटेन के उद्योगीकरण
को गति मिली और दुनिया भर में अपने उपनिवेश कायम करने का सपना देखने का हौसला मिला
। 1833 में
संसद में कानून बनाकर गुलामी का उन्मूलन किया गया । बस भारत,
श्रीलंका और सेंट हेलेना को इस कानून
से मुक्त रखा गया । दास मालिकों को भारी हर्जाना दिया गया । गुलामों के विद्रोह होने
लगे और अमेरिका में भी दास प्रथा समाप्त हुई । मुक्ति की इस लहर की प्रतिक्रिया हुई
और गोरे मुल्कों में नस्ली श्रेष्ठता का विचार मजबूत हुआ । साफ नजर आता है कि अमेरिका
में गुलामी के साथ ही ब्रिटेन का साम्राज्यवादी विस्तार भी हो रहा था ।
2021
में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से डोरोथी स्यू काबल की किताब ‘फ़ार द मेनी:
अमेरिकन फ़ेमिनिस्ट्स ऐंड द ग्लोबल फ़ाइट फ़ार डेमोक्रेटिक इक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ
। पूर्वपीठिका के बतौर लेखिका ने दर्ज किया है कि ये आंदोलनकारी पुरुष और स्त्री
के बीच समानता से आगे बढ़कर वे ऐसी दुनिया चाहती थीं जहां सभी स्त्री पुरुष फल फूल
सकें । उन्हें लेखिका ने सम्पूर्ण अधिकारवादी या सामाजिक जनवादी नारीवादी कहा है ।
उनका मानना था कि नागरिक और राजनीतिक अधिकार समाजार्थिक अधिकारों से जुड़े हुए हैं
। वे यह भी सोचती थीं, असली समानता सार्वभौमिक
और बहुआयामी ही हो सकती है । प्रगति को भी वे सामाजिक अर्थों में समझती थीं । बीसवीं
सदी में उनको विभिन्न नामों से जाना गया । शुरुआती दशकों में उन्हें समाजवादी और
प्रगतिशील कहा जाता था । बीच के दशकों में न्यू डील उदारवादी या सामाजिक जनवादी
कहा जाने लगा । साठ के दशक के दौरान वामपंथी उदारवादी या लोकतांत्रिक समाजवादी भी
उन्हें कहा जाने लगा था । इस तरह के नामों में अर्थ परिवर्तन तो होता ही रहता है ।
इन नामों से ऐसे व्यक्तियों या उनकी विचारधारा की जटिलता, अंतर्विरोध और गतिकी का
कोई पता नहीं चलता । उनके नाम जो भी रहे हों इस किताब में वर्णित सभी व्यक्तियों
में समतामूलक और लोकतांत्रिक दुनिया बनाने की चाहत साझा थी और उन्हें पूरा करने के
लिए उन्होंने अमेरिका तथा विदेश में माकूल संस्थाओं, कानूनों और सामाजिक नीतियों
का निर्माण किया ।
2021
में पी एम प्रेस से पीटर कोल की
किताब ‘बेन
फ़्लेचर: द लाइफ़ ऐंड टाइम्स आफ़ ए ब्लैक वोबली’
के दूसरे संस्करण का प्रकाशन हुआ ।
इस संस्करण की प्रस्तावना रोबिन डी जी केल्ली ने लिखी है ।
2021
में प्लूटो प्रेस से गार्गी भट्टाचार्य, एडम इलियट-कूपर, सीता बलानी, करीम
निशानकियोग्लू, कोजो कोरम, डालिया ग्रेब्रिएल, नादीन एल-एनानी और ल्यूक द नोरोन्हा
की किताब ‘एम्पायर’स एन्डगेम: रेसिज्म ऐंड द ब्रिटिश स्टेट’ का प्रकाशन हुआ ।
लेखकों का कहना है कि नस्लभेद की हिंसक शक्ति से निर्मित समाज में रहते हुए हमें
नस्ल विरोधी होना ही पड़ेगा । बहरहाल इसके प्रभावी विरोध के लिए इसके बदलते रूपों
के मुताबिक इसे पहचाना होगा । इसका निर्माण और पुनर्निर्माण हुआ है ।
2021
में वन वर्ल्ड से इब्राम एक्स केन्डी
और कीशा एन ब्लेन के संपादन में ‘फ़ोर
हंड्रेड सोल्स: ए
कम्युनिटी हिस्ट्री आफ़ अफ़्रीकन अमेरिका,
1619-2019’ का प्रकाशन हुआ । किताब की
शुरुआत उस दिन से होती है जब 1619 में बीस अफ़्रीकी नीग्रो पानी की जहाज से उतरे तो
उन्हें पता नहीं था कि अब वे अपने समुदाय के लोगों को कभी नहीं देख सकेंगे । उन
लोगों को अंगोला से लाया गया था । 20 अगस्त को उन्हें अमेरिकी महाद्वीप पर उतारा
गया था और उसी दिन से अमेरिका के अफ़्रीकी समुदाय का आरम्भ हुआ ।
2021
में सिमोन & शूस्टर से ब्रूस लेवाइन की किताब ‘थेडियस स्टीवेन्स: सिविल राइट
रेवोल्यूशनरी, फ़ाइटर फ़ार रेशियल जस्टिस’ का प्रकाशन हुआ । किताब स्टीवेन्स की
जीवनी है । स्टीवेन्स ने संसद के भीतर इस बात की गारंटी की कि अमेरिकी संघ को
बचाने के लिए दक्षिणी राज्यों से लड़ने वाली सेना को अनुदान की किल्लत न आये ।
उन्होंने गुलामी और नस्लभेद के विरोध में मजबूत नीतियों को प्रस्तावित किया जिन पर
अन्य रिपब्लिकन सांसद बाद में सहमत हुए । उनके साथी उन्हें हमेशा जनमत से एक कदम
आगे देखते थे । अक्सर वे इसके विरोध में भी रहते थे जबकि नेतागण आम तौर पर जो चलन
में होता है उसका ही साथ देते हैं । वे जनमत का निर्माण करने और जन भावना को आकार
देने में सक्षम थे । सही है कि कभी कभी जनता के विरोध के चलते वे हिचक जाया करते
थे लेकिन विरोध को धता बताते हुए गुलामी के विनाश और नस्लभेद के प्रतिरोध का
समर्थन करते थे । इस ऐतिहासिक काम के नेता के रूप में लिंकन को मान्यता मिली लेकिन
थेडियस स्टीवेन्स उनसे एक कदम आगे रहकर इस काम में लिंकन का साथ दिया । लिंकन से
एक साल पहले ही गुलामी को अमेरिका में कानूनी अपराध घोषित करने का प्रस्ताव लेकर
वे आये थे । दक्षिणी राज्यों की पराजय और लिंकन की हत्या के बाद वे चुप नहीं बैठे
। युद्ध के बाद पुनर्निर्माण के समय उन्होंने अश्वेत अमेरिकी जनता के लिए समान
नागरिक अधिकारों की मांग की । मतदान और पदाधिकारी बनने के अधिकार पर वे पहले से ही
गोलबंदी जारी रखे हुए थे ।
2021
में मेट्रोपोलिटन प्रेस से थामस हीली
की किताब ‘सोल
सिटी: रेस,
इक्वलिटी,
ऐंड द लास्ट ड्रीम आफ़ ऐन अमेरिकन यूटोपिया’
का प्रकाशन हुआ । किताब की शुरुआत
1972 में एक पुराने प्लांटेशन की हालत के बयान से होती है जिसमें सैकड़ों गुलाम
तम्बाकू की खेती किया करते थे । तम्बाकू की कीमत घट जाने से सारा ढांचा ढह गया है
। इसके बावजूद पुरानी बुलंदी के निशान मौजूद हैं । विशाल मकान को दिखाते हुए
पुराने समय के एक गुलाम ने सोचा कि ऊपर बरामदे में बैठे मालिक पंखा झलते हुए क्या
करते । लेखक का अनुमान है कि चतुर्दिक बदलाव से वे भौंचक्का जरूर हो गये होते । जो
गुलाम नर नारी बंधन में निराश भाव से खटते थे वे इस समय अश्वेतों की मुक्ति का नया
नगर खड़ा करने की महत्वाकांक्षी परियोजना में व्यस्त थे । उस नगर में सत्ता, पूंजी
और अवसर में अश्वेतों का हिस्सा बड़ा होना था । सोल सिटी नामक उस नगर को उद्योगीकरण
और नगरीकरण की ताकतों से उपेक्षित इलाके में बसाया जाना था और उसे अश्वेत आर्थिक
शक्ति का आदर्श होना था । परियोजना के समर्थकों को उम्मीद थी कि इससे दक्षिणी
प्रांतों से अश्वेतों का पलायन रुक जायेगा और नतीजतन उत्तरी प्रांतों की
झोपड़पट्टियों में भीड़ कम होगी । तीन साल पहले देखा गया यह सपना उन तमाम सपनों में
से एक था जो अश्वेतों के बीच लोकप्रिय हो जाया करते थे । इस सपने को देखने वाले सज्जन
एक वकील थे और कांग्रेस आफ़ रेशियल इक्वलिटी नामक एक संगठन के मुखिया थे ।
2021
में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से
टाइलर स्टोवाल की किताब ‘ह्वाइट
फ़्रीडम: द
रेशियल हिस्ट्री आफ़ ऐन आइडिया’ का
प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि आधुनिक इतिहास के सभी इतिहासकारों के जीवन में
ऐसा मौका जरूर आता है जब उनका शोध विषय और उनके जीवन के अनुभव एकमेक होने लगते हैं
। लेखक का जन्म नागरिक अधिकार आंदोलन की शुरुआत के साथ हुआ था । बचपन और जवानी उस
आंदोलन में भागीदारी करते बीती । इस तरह लेखक का समूचा जीवन आजादी और नस्ल के आपसी
रिश्तों में आनेवाले बदलावों के इर्द गिर्द बीता । इससे इस किताब के लिखने का मकसद
साफ हो जाता है । लेखक के लिए यह किताब निजी, राष्ट्रीय और वैश्विक धरातल पर अतीत
और वर्तमान का बयान है ।
2021
में नार्थ अटलांटिक बुक्स से ब्रीशिया
वाडे की किताब ‘ग्रीविंग
ह्वाइल ब्लैक: द
एन्टीरेसिस्ट टेक आन आप्रेशन ऐंड सारो’ का
प्रकाशन हुआ । लेखिका ने स्नातक के दौरान सांस्कृतिक मानवशास्त्र का अध्ययन किया ।
इसमें संस्कृति, समुदाय और मानव स्वभाव को समझने का मौका मिला । दिक्कत थी कि मानव
स्वभाव को सही सही दर्ज करना असम्भव था । नतीजा कि खुद के अनुभवों को विश्लेषित
करना शुरू किया ताकि दूसरों को समझ सकें । वे अश्वेत स्त्री होने के नाते इस विषय
से खुद को अलगा नहीं सकती थीं । उन्हें अपनी स्थिति के चलते ढेर सारी अकथनीय
तकलीफों का गवाह बनना पड़ा । इन तकलीफों को अपने शरीर पर लेकर पीढ़ियों तक लोग खामोश
रहे । इन यादों के भूत लेखिका के अचेतन पर निरंतर दस्तक देते रहते थे ।
2021
में बोल्ड टाइप बुक्स से केंहिंद एंड्र्यूज
की किताब ‘द
न्यू एज आफ़ एम्पायर: हाउ
रेसिज्म ऐंड कोलिनियलिज्म स्टिल रूल द वर्ल्ड’
का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि
जार्ज फ़्लायड की हत्या के चलते लोगों के मन में भरा गुस्सा फूट पड़ा । साठ के दशक की
तरह अमेरिका की सड़कें विरोध प्रदर्शनों से भर गयीं । दुनिया भर के लाखों लोग इन प्रदर्शनों
में शरीक हुए । आशा पैदा हुई कि समाज नस्लभेद की सच्चाई का सामना करने को तैयार है
।
2021
में हेमार्केट से तमारा के नापर के संपादन में नाओमी मुराकावा की प्रस्तावना के
साथ मरियामे काबा की किताब ‘वी डू दिस ‘टिल वी फ़्री यू एस: एबोलीशनिस्ट
आर्गेनाइजिंग ऐंड ट्रान्सफ़ार्मिंग जस्टिस’ का प्रकाशन हुआ । मुराकावा कैपिटोल पर
ट्रम्प समर्थकों के धावे से किताब की शुरुआत करते हैं । एक पुलिसवाला दंगाइयों के
साथ फोटो ले रहा था तो एक और पुलिसकर्मी दंगाइयों के साथ था । लोग अचरज से पूछ रहे
थे कि जो देश अपनी सुरक्षा पर इतना खर्च करता है उसकी सुरक्षा व्यवस्था को लकवा
कैसे मार गया । मुराकावा का कहना है कि गोरी श्रेष्ठता को खाद पानी इसी सुरक्षा
व्यवस्था से मिलता है । पुलिसकर्मियों में काले लोगों के प्रति नफ़रत का आलम कोई
छिपी बात नहीं । उनकी दंड प्रणाली से प्राण देनेवाले अश्वेतों की संख्या साल दर
साल बढ़ती रही है । आबादी में उनका हिस्सा महज तेरह प्रतिशत होने के बावजूद गिरफ़्तारियों
में तीस प्रतिशत, जेल जानेवालों में 35 प्रतिशत, प्राणदंड पानेवालों में 42
प्रतिशत और आजीवन कारावासियों में 56 प्रतिशत उनका हिस्सा है । किसी भी अन्य देश
से अधिक जेलोंवाले उस देश में कोरोना से मरनेवालों का अनुपात जेल में सामान्य
नागरिकों का पांच गुना है । पूरी दुनिया में लगभग आठ सौ सैनिक अड्डे कायम करनेवाले
इस देश का जन्म ही मूलवासियों के संपत्ति हरण और गुलामी के सहारे हुआ था । ट्रम्प
के समर्थकों को राज करने का मंत्र मालूम है । जबर्दस्ती छीन लो और नस्ली शत्रु का
आविष्कार करो । जेलों और फौज की यह पूरी व्यवस्था हत्या को उद्योग में बदल देती है
।
2021
में वनवर्ल्ड से हीथर मैकगी की किताब ‘द सम आफ़ अस: ह्वाट रेसिज्म कास्ट्स एवरीवन
ऐंड हाउ वी कैन प्रास्पर टुगेदर’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के मुताबिक समाज के लगभग
सभी लोग कुछ बुनियादी सुविधाओं की चाह रखते हैं मसलन पर्याप्त स्कूली अनुदान,
भरोसेमंद अधिरचना, सुखद वेतन और बीमारियों से निपटने लायक सरकारी स्वास्थ्य सेवा ।
फिर भी सभी अमेरिकी लोगों को ये सुलभ नहीं होतीं ।
2021
में बीकन प्रेस से अलेक्स ज़मालिन की किताब ‘अगेंस्ट सिविलिटी: द हिडेन रेसिज्म इन
आवर आब्सेशन विथ सिविलिटी’ का प्रकाशन हुआ । लेखक ने शुरू ही इस बात से किया है कि
ट्रम्प ने चुनाव अभियान के पहले दिन से ही राजनेताओं के सार्वजनिक आचरण के कायदों
की धज्जी उधेड़ना आरम्भ कर दिया । मेक्सिकोवासियों को खुलेआम बलात्कारी कहा और
अमेरिका में मुसलमानों के प्रवेश पर पाबंदी की बात की । गोरों की श्रेष्ठता की
वकालत करने वालों की निंदा नहीं की । अश्वेत राष्ट्रपति के आठ साल के शासन में जो
नस्ली खुलकर बोल नहीं पाते थे उनके जहरीले विचारों को अमेरिकी समाज की मुख्य धारा
में ला दिया । ट्वीट करके विरोधियों का निजी अपमान किया । औरतों पर उनके शरीर को
लेकर टिप्पणी की, विकलांगों का मजाक उड़ाया और शरणार्थियों को हत्यारा कहा ।
हालांकि उनके आरोप झूठे थे लेकिन उनके समर्थक इस झूठ को ही सत्य मानते थे । उनके
विरोधी यकीन ही नहीं कर सके थे कि वे चुनाव जीत भी सकते हैं । जनता ने खौफ़ पर काबू
पाया और हिम्मत के साथ विरोध का झंडा उठा लिया । शपथ ग्रहण के दूसरे ही दिन
स्त्रियों का विराट विरोध प्रदर्शन हुआ । इसका आवाहन स्त्रियों ने किया था लेकिन
लैंगिक और नस्ली विषमता, पर्यावरण के विनाश और आर्थिक निजीकरण की चरम दक्षिणपंथी
नीतियों के सभी विरोधी उनके साथ आ मिले । भागीदारों ने इसे ट्रम्प शासन का
प्रतिरोध कहा । इनमें आपस में मतभिन्नता थी । कुछ लोग मतों के मुकाबले निर्वाचक
मंडल की जीत को अलोकतांत्रिक मानते थे, कुछ रूस की दखलंदाजी से खफ़ा थे, कुछ लोग
उनकी तानाशाही से आशंकित थे तो अन्य इसे निक्सन, रीगन और बुश शासन की निरंतरता
समझते थे । इसके बावजूद ये सभी ट्रम्प की नीतियों के विरोध पर एकमत थे ।
दिन,
महीने और साल गुजरने के साथ सहमति बनती गयी कि ट्रम्प की विभाजनकारी नीतियों का
मुकाबला करते हुए सबको सभ्यता की सीमा को पार नहीं करना है । अखबार, रेडियो और
टेलीविजन पर तमाम लेखक-वार्ताकार इस नुस्खे की वकालत करते नजर आये । सबको
राजनीतिज्ञों में स्तर की गिरावट परेशान करने लगी । नियम कानून के पालन को ट्रम्प
की गुंडागर्दी की काट घोषित किया जाने लगा । सभ्य बने रहने की सलाह दोनों पक्षों
को दी जाने लगी । गोरी श्रेष्ठता के अलम्बरदारों के साथ फ़ासीवाद विरोधियों को भी
संयम बरतने को कहा जाने लगा । अभिव्यक्ति की आजादी के लिए बोलने वालों से संभलकर
बोलने की अपेक्षा की जाने लगी । बातचीत में दूसरे का पक्ष समझने की चेष्टा को
बहुसांस्कृतिक समाज में समायोजन हेतु आवश्यक बताया गया । कहा गया कि जिन लोगों ने
मूर्तिभंजन किया अथवा विश्वविद्यालयों पर कब्जा कर लिया उनमें इस गुण का अभाव था ।
जिस
समाज में चरमपंथ का बोलबाला होता है वहां सभ्यता फायदेमंद चीज होती है । ऐसे में
मध्यमार्ग की ओर समाज लौट आता है तथा ध्रुवांत का प्रबल विरोध उभरता है । जब
दुनिया भर में उदार लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट हो रही है तो मुख्यधारा को
सभ्यता आकर्षित करती है क्योंकि इससे ऐसी साझा जमीन पैदा होती है जहां से सहमति
बहुत दूर नहीं रह जाती । आक्रामकता का मुकाबला लचीलापन करता है और अतार्किकता को
विवेक काबू में रखता है । इसकी उपयोगिता नस्ल से अधिक किसी अन्य प्रकरण में नहीं
दिखायी देती ।
2021
में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी प्रेस से डेस्टिन जेनकिन्स और जस्टिन लेराय के संपादन
में ‘हिस्ट्रीज आफ़ रेशियल कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । एंजेला पी हैरिस की भूमिका
और संपादकों की प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब में नौ लेख संकलित हैं । एंजेला कानून
की अध्येता हैं और कहती हैं कि नस्ली पूंजीवाद संबंधी साहित्य में विस्थापन,
छीनाझपटी,
संचय और शोषण के मामलों में गोरों की
श्रेष्ठता की ऐतिहासिक भूमिका रही है । संपादक मानते हैं कि पूंजीवाद के संचालन में
नस्ली अधीनता निर्णायक रही है । अटलांटिक महासागर से होनेवाले गुलाम व्यापार और अमेरिकी
महाद्वीप के उपनिवेशीकरण के बाद से समस्त पूंजीवाद नस्ली पूंजीवाद रहा है ।
2021
में फ़्लैटिरान बुक्स से अन्ना मलइका
टब्स की किताब ‘द
थ्री मदर्स: हाउ
द मदर्स आफ़ मार्टिन लूथर किंग, जूनियर,
मैल्कम एक्स,
ऐंड जेम्स बाल्डविन शेप्ड ए नेशन’
का प्रकाशन हुआ । लेखिका ने किताब के
लिखने की कहानी निजी ढंग से बतायी है । वाशिंगटन में आयोजित डगलस पुरस्कार समारोह में
भाग लेने वे पति के साथ गयी थीं । उन्हें माहवारी आनेवाली थी इसलिए चिंतित थीं । नहीं
आयी तो गर्भवती निकलीं । माता होने के गौरवबोध के साथ गर्भस्थ शिशु के प्रति जिम्मेदारी
का अनुभव हुआ । शायद मातृत्व ऐसा ही होता है । उसमें अत्यधिक खुशी के साथ ही दुश्चिंता
शामिल रहती है । शोध के दौरान उनकी छुट्टी का साल था इसलिए विशेष परेशानी नहीं महसूस
हुई । शोध भी अश्वेत माताओं के बारे में था । इस शोध के क्रम में ही उन्हें इन तीनों
माताओं का पता चला जिनसे पर्याप्त प्रेरणा मिलने की आशा थी । इन माताओं के जीवन की
खोज से मातृत्व से जुड़ी दुश्चिंताओं के साथ ही साहस का भी अंदाजा मिला । उनका नाम अल्बर्टा
किंग, बेर्डिस
बाल्डविन और लुइस लिटिल था । समूचे इतिहास में इनकी उपेक्षा हुई । वैसे तो अश्वेत माताओं
की गुमनामी कोई अद्भुत बात नहीं लेकिन पुत्रों की मकबूलियत को देखते हुए इन माताओं
की उपेक्षा थोड़ी आश्चर्यजनक है । इनके पुत्रों को अश्वेत प्रतिरोध की सफलता,
अश्वेत चेतना के विकास और अश्वेत समुदाय
की दीर्घजीविता का श्रेय दिया जाता है लेकिन उनकी माताओं का नाम भी मिटा दिया गया ।
इन माताओं की कहानी लिखने के जरिये लेखिका ने अश्वेत मातृत्व की विशेषता को उजागर किया
है जिसमें वे पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान और सूझबूझ का हस्तांतरण करती रहीं ।
2021
में बीकन प्रेस से लौरा एल लोवेट की
किताब ‘विथ
हर फ़िस्ट रेज्ड: डोरोथी
पिटमैन ह्यूज ऐंड द ट्रान्सफ़ार्मेटिव पावर आफ़ ब्लैक कम्युनिटी ऐक्टिविज्म’
का प्रकाशन हुआ । जिनकी जीवनी है उनसे
लेखिका की मुलाकात 2010 में हुई थी । उस समय वे बच्चों के खेल, किताबों और गीतों
में लिंग और नस्ल के मामले पर मौजूद पूर्वाग्रहों पर शोध कर रही थीं ।
2021
में बीकन प्रेस से ब्री पिकओवर की किताब
‘रीडिंग,
राइटिंग,
ऐंड रेसिज्म:
डिसरप्टिंग ह्वाइटनेस इन टीचर एजुकेशन
ऐंड द क्लासरूम’ का
प्रकाशन हुआ । किताब की शुरुआत इस मजबूत दावे के साथ होती है कि अमेरिका न केवल
नस्लवादी है बल्कि अश्वेत विरोधी है । नस्लवाद कहने से उन तमाम तरीकों का पता नहीं
लगता जिनके जरिए अश्वेत लोगों की हत्या की जाती है और उन्हें बरबाद किया जाता है ।
इससे पता चलता है कि व्यवस्थित रूप से उन्हें अधिकारों, रोजगार, मकान, शिक्षा और
सेहत की सुविधाओं से दूर किया जाता है । फिर भी अश्वेत जीवन, अश्वेत प्रेम, अश्वेत
सबलीकरण, अश्वेत प्रतिरोध, अश्वेत खुशी और अश्वेत शिक्षा के प्रति अमेरिका में
व्याप्त नफ़रत का सही सही पता नहीं चलता । 2020 को अश्वेत जीवन के प्रति हिकारत के
साल के तौर पर याद रखा जायेगा ।
2021
में क्राउन से डोरोथी ए ब्राउन की किताब ‘द ह्वाइटनेस आफ़ वेल्थ: हाउ द टैक्स
सिस्टम इम्पावरिशेज ब्लैक अमेरिकंस- ऐंड हाउ वी कैन फ़िक्स इट’ का प्रकाशन हुआ । लेखिका
ने टैक्स के मामलों की वकालत चुनी ताकि वे नस्लभेद से आजाद हो सकें । माता पिता के
पास घर था, भोजन
मिल जाता था, पहनने
के लिए माता के हाथ के सिले कपड़े और खर्चने के लिए कुछ धन भी होता था । माता पिता नस्लभेद
के शिकार रहे थे जब उनकी कमाई से लेकर आवास तक की हदबंदी थी लेकिन उन्होंने तय किया
था कि बच्चों को शिक्षा के सहारे अपने पैरों पर खड़ा करेंगे । लेखिका को भी इस सम्भावना
में यकीन था । फिर नौ या दस साल की उम्र में सड़क पार करते समय पुलिस की गाड़ी में हथकड़ी
में जकड़े एक अश्वेत को पीटता हुआ गोरा पुलिस का आदमी नजर आया । गाड़ी में पिटते व्यक्ति
से नजर मिली तो टकटकी लग गयी । माता आम तौर पर नस्लभेद के विरोध में मुखर रहती थीं
लेकिन इस घटना पर उनकी खामोशी से बेचारगी का पता चला । इसी वजह से लेखिका ने यह पेशा
चुना ।
2021
में स्टेट यूनिवर्सिटी आफ़ न्यू यार्क प्रेस से लोरी लेट्रिस मार्टिन की किताब ‘अमेरिका
इन डिनायल: हाउ रेस-फ़ेयर पालिसीज रीएनफ़ोर्स रेशियल इनइक्वलिटी इन अमेरिका’
का प्रकाशन हुआ ।
2021
में एच क्यू से सोफी विलियम्स की किताब ‘मिलेनियल
ब्लैक: द अल्टीमेट गाइड फ़ार ब्लैक वीमेन ऐट वर्क’
का प्रकाशन हुआ ।
2021
में स्क्रिबनेर से डोरोथी विकेनडेन की किताब ‘द
एजिटेटर्स: थ्री फ़्रेंड्स हू फ़ाट फ़ार एबोलीशन ऐंड वीमेन’स
राइट्स’ का
प्रकाशन हुआ ।
2021
में रटलेज से हेलेन मोर्गन की किताब ‘द
वर्क आफ़ ह्वाइटनेस: ए साइकोएनालीटिक पर्सपेक्टिव’
का प्रकाशन हुआ ।
2021
में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से
टेउन ए वान दिज्क की किताब ‘एन्टीरेसिस्ट
डिसकोर्स: थियरी
ऐंड हिस्ट्री आफ़ ए मैक्रोमूवमेन्ट’ का
प्रकाशन हुआ ।
2021
में डब्ल्यू डब्ल्यू नार्टन & कंपनी से केट मासुर की किताब ‘अनटिल जस्टिस बी
डन: अमेरिका’ज फ़र्स्ट सिविल राइट्स मूवमेन्ट, फ़्राम द रेवोल्यूशन टु
रीकनस्ट्रक्शन’ का प्रकाशन हुआ ।
2021
में बेसिक बुक्स से जोशुआ डी रोथमैन
की किताब ‘द
लेजर ऐंड द चेन: हाउ
डोमेस्टिक स्लेव ट्रेडर्स शेप्ड अमेरिका’ का
प्रकाशन हुआ ।
2021
में न्यू यार्क यूनिवर्सिटी प्रेस से
अलेक्जेंडर लबान हिंटन की किताब ‘इट
कैन हैपेन हेयर: ह्वाइट
पावर ऐंड द राइजिंग थ्रेट आफ़ जेनोसाइड इन द यू एस’
का प्रकाशन हुआ ।
2021
में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से रिनाल्डो
वालकाट की किताब ‘द
लांग इमैन्सिपेशन: मूविंग
टुवर्ड ब्लैक फ़्रीडम’ का
प्रकाशन हुआ ।
2021
में स्टेट यूनिवर्सिटी आफ़ न्यू यार्क प्रेस से जेसन ई कोहेन, शेरों डी रेनोर और
द्वाइने ए मैक के संपादन में ‘टीचिंग रेस इन पेरिलस टाइम्स’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों
की भूमिका और चायना क्राफ़ोर्ड के पश्चलेख के अतिरिक्त किताब के चार भागों में पंद्रह
अध्याय हैं ।
2020
में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से एनेट
गोर्डन-रीड
की प्रस्तावना के साथ ‘रेसिज्म
इन अमेरिका: ए
रीडर’ का
प्रकाशन हुआ । उनका कहना है कि अमेरिका इस समय सामाजिक बदलाव से गुजर रहा है ।
सालों से इस बात की शिकायत की जा रही थी कि अश्वेत समुदाय को पुलिस की निगरानी कुछ
अधिक ही झेलनी पड़ती है और निहत्थे पुरुष, स्त्री और बच्चों की हत्या समेत उनके साथ
बर्बर हिंसा होती है । इसके बावजूद मई 2020 में जार्ज फ़्लायड की हत्या के बाद देश
उबल पड़ा । लगा जैसे कोई बांध टूट पड़ा हो और सभी पचास राज्यों में विरोध प्रदर्शनों
में भाग लिया और इस आंदोलन के साथ अपनी एकजुटता जाहिर की । दुनिया भर में लोगों ने
अपने देश के भेदभाव के साथ इस घटना को जोड़कर गुस्सा जाहिर किया । फ़्लायड की हत्या
ने बस चिंगारी का काम किया तथा इसमें निहित सोच और आचरण की समूची व्यवस्था को
उजागर कर दिया । इसने नस्ली भेदभाव और गोरी श्रेष्ठता के सदियों पुराने इतिहास को
भी नंगा कर दिया । इस इतिहास की छाया वर्तमान नीतियों पर भी पड़ रही है ।
2020
में रोबिंसन से पेड्राइक एक्स स्कैनलान की किताब ‘स्लेव एम्पायर: हाउ स्लेवरी
बिल्ट माडर्न ब्रिटेन’ का प्रकाशन हुआ । लेखक ने बात 1845 की से शुरू की है जब
ब्रिटिश साम्राज्य में दासता के उन्मूलन की ग्यारहवीं सालगिरह मनायी जा रही थी ।
उस समय एक व्याख्यान आयोजित हुआ जिसमें कहा गया कि गुलामी पुराने समय से बहुतेरे
मानव समाजों में उत्पीड़न का एक रूप बनी रही है । लेकिन पंद्रहवीं सदी से गुलामों
की खरीद बिक्री ने दुनिया को बदल डाला ।
2020
में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से एडी आर कोल की किताब ‘द कैम्पस कलर लाइन:
कालेज प्रेसिडेंट्स ऐंड द स्ट्रगल फ़ार ब्लैक फ़्रीडम’ का प्रकाशन हुआ । साठ के दशक
में विभिन्न शैक्षिक परिसरों में होने वाले बदलावों को इसमें दर्ज किया गया है । लेखक
खुद भी अश्वेत शिक्षा से जुड़े रहे हैं इसलिए यह किताब उनकी रुचि का विस्तार मात्र
है । माता पिता स्कूली शिक्षक थे । तीस साल तक उन्होंने स्कूल व्यवस्था में काम
किया था । पिता के माता पिता भी स्कूली शिक्षा से जुड़े रहे थे और अश्वेत शिक्षक
संघ के सदस्य थे । इस तरह अश्वेत मुक्ति संघर्ष में भी शिक्षा का महत्व लेखक को
स्पष्ट था । लेखक की शिक्षा आरम्भ होते समय तक स्कूलों में कानूनी तौर पर रंगभेद
समाप्त हो चुका था लेकिन उसकी जगह व्यावहारिक रंगभेद कायम था । अश्वेत बच्चों का
सरकारी स्कूल गोरों के निजी शिक्षा संस्थान से दूर कोने में अवस्थित था । दोनों के
बीच की विभाजक रेखा का सख्ती से पालन भी किया जाता था । तब भी लेखक को इस विभाजन
की सहजता के बारे में सवाल सताया करते थे । उन्हीं सवालों को इस किताब में उच्च
शिक्षा के संदर्भ में उठाया गया है । आज भी इस पर बहस होती है कि कुछ खास कालेजों
और विश्वविद्यालयों में किसे दाखिला मिलना चाहिए । शहरी शिक्षा परिसरों और सीमाई
स्कूलों के रिश्तों पर विवाद होता रहता है ।
2020
में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी प्रेस से
पेज ग्लाट्ज़ेर की किताब ‘हाउ
द सबअर्ब्स वेयर सेग्रेगेटेड: डेवलपर्स
ऐंड द बिजनेस आफ़ एक्सक्लूशनरी हाउसिंग,
1890-1960’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के मुताबिक
बहुतेरे लोग इस बात को जानते हैं कि अमेरिकी नगर नस्ली आधार पर विभाजित और असमानता
से भरे हुए हैं । बीसवीं सदी में गोरों के इलाकों में अश्वेत इलाकों के मुकाबले शहरी
सुविधाओं की उपलब्धता अधिक रही । इसी दौरान उपनगरों में गोरी आबादी और धन का संकेंद्रण
भी बढ़ता रहा ।
2020
में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से ब्रांडी क्ले ब्रिमर की किताब ‘क्लेमिंग यूनियन
विडोहुड: रेस, रिस्पेक्टेबिलिटी, ऐंड पावर्टी इन द पोस्ट-इमैन्सिपेशन साउथ’ का
प्रकाशन हुआ । किताब में उन अश्वेत स्त्रियों के संघर्ष की कहानी सुनायी गयी है
जिन्होंने उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में नागरिकता,
अधिकार और विधवा पेंशन के सवाल उठाये । अमेरिका की एकता को कायम रखने की लड़ाई में
इनके पति शहीद हुए थे । इन स्त्रियों के संघर्ष में नस्ल, लिंग और वर्ग की कोटियों
का घुलाव मिलाव नजर आता है ।