Thursday, January 24, 2019

साहित्यिक शोध: कुछ विचार


        
1 साहित्य से जुड़े शोध और अन्य अनुशासनों के शोध में अंतर को भीष्म साहनी के उपन्यासतमसऔर उनकी आत्मकथा के एक विशेष प्रसंग से समझा जा सकता है विभाजन के बाद भारत आए लोगों को मुआवजा देने के लिए किसी को नुकसान दर्ज करना है पीड़ित लोग अपनी कहानियों को सुनाने पर आमादा हैं लेकिन दर्ज करने वाले को आंकड़ों की दरकार है साहित्य कहानी के जरिए यथार्थ को प्रस्तुत करता है इस वजह से उसे क्वालिटेटिव डाटा की श्रेणी में रखा जा सकता है इसके सहारे यथार्थ को समझना बहुत कुछ पुरातात्विक अध्ययन की तरह होता है जिसमें किसी नगण्य से सूत्र के सहारे इतिहास को रचने की कोशिश की जाती है
2 साहित्य की अपनी प्रकृति ऐसी है कि उसमें शब्द और अर्थ का महत्व बराबर होता है दोनों को एक दूसरे से अलगाया नहीं जा सकता इसकी परिभाषा करते हुए काव्य शास्त्र मेंशब्दार्थौ सहितौ काव्यमकहा गया है इस सूत्र में जिसे काव्य कहा गया है उसे ही आजकल हम साहित्य कहते हैं आधुनिक काल की विशेषता गद्य है हिंदी साहित्य का इतिहासमें इसीलिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक काल को  गद्य काल कहा है इससे पहले की साहित्यिक अभिव्यक्ति में काव्य की प्रधानता थी इसी के चलते साहित्य पर विचार करने वाले शास्त्र को काव्य शास्त्र कहा जाता था
3 शब्द और अर्थ की इस पारस्परिकता को तुलसीदास नेगिरा अरथ जल वीचि समतो कालिदास नेवागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तयेकहकर व्यक्त किया है उनकी पारस्परिकता में भिन्नता भी निहित है
4 शब्द और अर्थ की इस भिन्नता के चलते साहित्य के शब्दगत सौंदर्य पर भी शोध हो सकता है और उसके अर्थ के जरिए व्यक्त यथार्थ पर भी शोध हो सकता है समय और समाज के यथार्थ को समझने के लिए साहित्य का सहारा लेने की कोशिश समाजशास्त्र और इतिहास के लिए विशेष उपयोगी है किसी भी साहित्यिक रचना का विश्लेषण हम अपने समय के सवालों के संदर्भ में करते हैं इस तरह यह शोध हमारे समय, हमारी सामाजिक स्थिति और नजरिए तथा उस रचना के बीच एक संवाद का रूप ले लेता है
5 इसके अतिरिक्त यदि साहित्य के शब्दगत सौंदर्य पर शोध करना हो तो साहित्य को विशेष किस्म की भाषिक संरचना मानना होगा इस संरचना को खोलने के उपकरण अलग अलग विधाओं के लिए अलग अलग होते हैं उदाहरण के लिए कविता का सौंदर्य छंद, तुक और अलंकारों के सहारे समझा जाता है तो कथा या उपन्यास का सौंदर्य घटना विन्यास, पात्र योजना, शैली आदि के आधार पर खोला जाता है ये तत्व भी शाश्वत नहीं होते बल्कि समयानुसार बदलते रहते हैं
6 साहित्य संबंधी शोध के नए क्षेत्रों में अस्मिता विमर्श, पत्रकारिता और अनुवाद हैं इनके साथ ही साहित्य के भीतर लेखन के गैर पारम्परिक रूपों को शामिल करते हुए शोध का दायरा बढ़ाया जा रहा है सिनेमा के लिए लेखन को पहले गम्भीर लेखन नहीं समझा जाता था लेकिन अब उसे भी शोध का विषय बनाया जा रहा है        

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