कुबेर दत्त की लिखी, सम्पादित और परिकल्पित प्रस्तुत किताब अपने आपमें नायाब दस्तावेज है । कुबेर दत्त न केवल दूरदर्शन माध्यम के सिद्धहस्त और समर्पित कलाकार थे बल्कि कला के तमाम रूपों में उनकी गहन गति थी । इसके साथ ही उनमें साहित्य से अनुराग, समझ और स्पष्ट पक्षधरता भी थी । इन सबकी अभिव्यक्ति इस किताब में हुई है । आकार में छोटी होने के बावजूद कई खंडों में प्रकाश्य किताबों की सामग्री इसमें भरी हुई है । रामविलास शर्मा का साहित्य तो विशाल है ही, उसके बहुत सारे विविध पहलू भी हैं । इतनी विशालता और बहुआयामी चिंतन लेखन को देख पाना लगभग असम्भव प्रतीत होता है । यह किताब इस काम के लिए मार्गदर्शक है कि किसी विराट व्यक्तित्व को किस तरह एक छोटी सी किताब में रोचक तरीके से समेट दिया जाए । किताब में किसी भी कदम पर बोझ का अनुभव नहीं होता । रामविलास शर्मा को समग्रता में समझने के लिए इस तरह की किताब की जरूरत बहुत दिनों से थी । कुबेर दत्त की बहुमुखी सृजनात्मकता के प्रमाण भी इस किताब में बिखरे हुए हैं ।
रामविलास शर्मा के जीवित रहते उन पर हमला करना एक अवसरवादी उद्योग था । ढेर सारे विद्वानों की कृपा प्राप्त करने का यह बेहद आसान रास्ता था । इस रास्ते पर चलकर हिंदी साहित्य की प्रोफ़ेसरी तक हासिल हो जाती थी । ऐसे हमलावरों के विरोध में कुबेर जी का सात्विक क्रोध भी किताब में प्रकट हुआ है ।
रामविलास जी के आसपास का पूरा जमघट भी किताब में उपस्थित है । इस विशाल
जमघट में व्यक्तियों के साथ घटनाओं और विचारों की भी जोरदार मौजूदगी है । इसमें केदारनाथ
अग्रवाल के साथ दोस्ती तो है ही, उनकी कविता के बहाने आधुनिक हिंदी साहित्य का वैकल्पिक
इतिहास लिखने का इशारा भी है । इसके साथ नागार्जुन और निराला भी उपस्थित हैं । उस प्रस्तावित
इतिहास की धुरी 1946 के नाविक विद्रोह का क्रांतिकारी माहौल है । इस माहौल की काव्यात्मक
छाया को खोलने के क्रम में कविता के विश्लेषण के परिष्कृत औजारों का विनियोग भी अच्छी
तरह से किया गया है । सभी जानते हैं कि रामविलास शर्मा के लिए 1857 बेहद जरूरी संदर्भ
है । उनके भाषा चिंतन में निहित उपनिवेशवाद विरोध को भी पहचाना गया है । जीवन के आखिरी
दिनों में ॠगवेद का जिक्र उनकी लगभग प्रत्येक किताब में होता था । अपने इस अभियान का
परिप्रेक्ष्य भी रामविलास जी ने स्पष्ट किया है । मार्क्सवाद और भारत का विवेचन तो
उनक मौलिक योगदान था । किताब में ढेर सारे निजी जीवन के प्रसंग भी बेलाग आए हैं । उनकी
किताबों में संगीत का जिक्र अक्सर आता है । ऊपर से समझ नहीं आता कि इसकी शिक्षा उन्होंने
कब पाई । किताब में संगीत से उनके लगाव के साथ न सीख पाने का क्षोभ भी मर्यादित ढंग
से जाहिर हुआ है । रामविलास जी के भाषा संबंधी चिंतन के एक साथी किशोरीदास वाजपेयी
भी थे । कुबेर जी ने कनखल में जाकर किशोरीदास वाजपेयी से मुलाकात की थी । उस प्रसंग
को भी रामविलास जी के संदर्भ में कुबेर जी ने सुचारु तरीके से व्यक्त किया है । साहित्य
के विवेचन में रामविलास जी ने रूपवादियों से अधिक गहरी रूप की सामाजिक व्याख्या की
है । इन सब बातों के साथ ही निजी जीवन को याद करते हुए रामविलास जी ने पूर्वजों की
विरासत को सहेजने की आवश्यकता बताई है, पढ़ाई के स्थानों की स्मृति को ताजा किया है
और अध्यापकों की सीखें गिनाई हैं । इस किताब से रामविलास जी की किताबों के परिप्रेक्ष्य
प्रकट होते हैं । समूचे हिंदी समाज और साहित्य की जन पक्षधर विवेचना का रामविलास जी
की विराट परियोजना का परिचय मिलता है । इस किताब में इतना सब कुछ तो है ही, कुबेर जी
का कवि भी बीच बीच में मारक जीवंत गद्य की झलक दिखलाता चलता है ।
कुछ किताबें ऐसी होती हैं कि उनका कोई भी परिचय मूल पुस्तक
को पढ़ने के आनंद का स्थान नहीं ले सकता । उनकी मौलिक रचनात्मकता विधाओं की संकीर्ण
सीमाओं को तोड़कर धड़ल्ले से उन्हें अनूठी कृति के बतौर स्थापित कर देती है । कुबेर दत्त
की यह किताब ऐसी ही नायाब रचना है । इसकी संक्षिप्ति और विस्तार दोनों स्पृहणीय हैं
। इसमें जितने रामविलास शर्मा हैं उतने ही कुबेर दत्त भी हैं । जगह जगह कुबेर दत्त
की खामोशी भी उनकी शाब्दिक मुखर अभिव्यक्ति की तरह ही बोलती गई है । जहां जरूरी लगा
वहां रामविलास शर्मा को बोलने दिया गया है और जहां जरूरी लगा वहां कुबेर दत्त बोलते
हैं । स्वाभाविक है कि कुबेर जी कम बोले हैं लेकिन उस हस्तक्षेप की प्रस्तुति इतनी
सक्षम है कि लगता है उसके बिना कुछ अधूरा छूट रहा था, बात पूरी नहीं हो रही थी । इस
हस्तक्षेप के बाद अब पूरी हुई है ।
रामविलास शर्मा के व्यक्तित्व और सोच विचार को सही संदर्भ
में देखने के लिए यह किताब अनिवार्य साबित होगी । निजी जीवन की उनकी सादगी और दृढ़ प्रतिबद्धता
के साथ साथ बाज के उड़ान जैसी व्यापकता और ऊंचाई तथा सूक्ष्म पर्यवेक्षण के साथ साथ
तीक्ष्ण विश्लेषण इस किताब में पूरी भव्यता के साथ प्रकट हुए हैं । किताब उनके लिए
भी उपयोगी है जिन्होंने रामविलास शर्मा का अधिकांश लेखन पढ़ रखा है और उनके लिए भी इसका
महत्व कम नहीं है जो रामविलास जी का लेखन बस अभी पढ़ना शुरू कर रहे हैं ।
No comments:
Post a Comment