Sunday, May 22, 2016

क्रांति और विद्रोह का विश्व कोश


2009 में विली-ब्लैकवेल से इमानुएल नेस के संपादन मेंद इंटरनेशनल एनसाइक्लोपीडिया आफ़ रेवोल्यूशन ऐंड प्रोटेस्ट: 1500 टु द प्रेजेन्टका प्रकाशन हुआ । इमानुएल नेस इसके मुख्य संपादक हैं । उनके अतिरिक्त बारह लोग संपादक मंडल के सदस्य हैं । सहायक और सलाहकार संपादकों की संख्या अड़तालीस है । इस कोश में लेखन के जरिए सहयोग देने वालों की तादाद लगभग एक हजार है । संपादक का कहना है कि इस कोश का निर्माण क्रांति अध्ययन नामक एक नए अनुशासन की स्थापना   के मकसद से किया गया है । इसमें दुनिया के लगभग प्रत्येक हिस्से से लोगों को लेखन और संपादन में शामिल किया गया है । इसमें इतिहास, आधुनिकता, आर्थिक स्थिति, राजनीति और सामाजिक विकास आदि की अंत:क्रिया को क्रांति, प्रतिरोध और सामाजिक आंदोलनों के नजरिए से देखा गया है । इसी के चलते इस कोश के लेखक इतिहास, राजनीति, समाजशास्त्र, क्षेत्र  अध्ययन, मानव विज्ञान, अर्थशास्त्र, दर्शन, कला, भाषा और पत्रकारिता जैसे अनुशासनों से संबद्ध हैं । कोशिश की गई है कि पाश्चात्य या साम्राज्यवादी पूर्वाग्रह इस कोश में न रहे ।
इस कोश के निर्माण के पीछे पिछले कुछ दशकों में विश्व इतिहास का अध्ययन के विशेष क्षेत्र के रूप में उभार है और इसके संदर्भ में विभिन्न अनुशासनों, इलाकों और महाद्वीपों के बीच लाभदायक संवाद स्थापित हुआ है । ऐतिहासिक बदलाव को समझने की तुलनात्मक दृष्टि विकसित हुई है जिसे विभिन्न सैद्धांतिक, पद्धति-वैज्ञानिक, धारणात्मक और शैक्षणिक सरोकारों से मदद मिली है । शोध के लिए राष्ट्रवाद, वर्ग- निर्माण, नृजातीयता, क्षेत्रीयता आदि उपकरणों की परीक्षा तो हो रही है लेकिन क्रांतिकारी आंदोलनों और प्रभुसत्ता को चुनौती देने वाले प्रतिरोधों के प्रभाव पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है । बहुत हुआ तो बाजार और तकनीक के चलते होने वाले आधुनिकीकरण और पारदेशीय आर्थिक एकीकरण की बात कर ली जाती है । जबकि क्रांतियों और प्रतिरोधों ने दुनिया के हरेक हिस्से में मानव सभ्यता को बदला है । उन्होंने शासनों और समाजों के उदय और रूपांतरण में, युद्ध और शांति में, ज्ञान के उत्पादन और आध्यात्मिक परंपराओं के प्रकटन में तथा अतीत की प्रस्तुतियों में केंद्रीय भूमिका निभाई है । मानव इतिहास उन्हीं की राह चला है, इनसे युग बदले हैं और सीमाओं में फेरबदल हुए हैं ।
सत्ता और प्रगति, कानून और न्याय, स्वतंत्रता और मुक्ति की हमारी ऐतिहासिक समझ इनसे निर्मित होती है । लोकतंत्र, समानता, नागरिक अधिकार, सहकारिता, शांति और पारिस्थितिकी जैसे महान विचारों को इनसे शक्ल मिली है । दर्शन, अर्थशास्त्र, सरकार, श्रम, सामाजिक संबंध और पारिस्थितिकी के विकास को समझना असंभव होगा अगर हम इनको गढ़ने में क्रांतियों और प्रतिरोधों की भूमिका को नहीं समझें । पिछले पांच सौ सालों में जो भी प्रगतिशील सामाजिक बदलाव आए हैं उनका कारण शासकों की दरियादिली नहीं, बल्कि शासितों के प्रतिरोध रहे हैं । राज्य और प्रशासन से बाहर की मानव गतिविधि ही सामाजिक रूपांतरण का प्रमुख चालक रही है ।       
क्रांति और प्रतिरोध को आम तौर पर असामान्य और व्यतिरेकी तथा क्रमभंग जैसी घटना माना जाता है जबकि इस कोश को देखने से लगता है कि इन विस्फोटक घटनाओं में एक निरंतरता है । समूचा अतीत सामाजिक टकराव और प्रतिरोध से निर्मित घटना प्रवाह दिखाई पड़ता है । ये न केवल महत्वपूर्ण हैं बल्कि आधुनिक इतिहास और सामाजिक विज्ञान की सही समझ के लिए अनिवार्य हैं । समाज के शक्तिशाली तबकों के जड़ जमाए हितों को लाभ पहुंचाने वाले सामाजिक व्यवहार और पारंपरिक आचरण को क्रांतियों से धक्का लगता है । आधुनिक इतिहास को गति देने में सक्षम इस सामाजिक आलोड़न को परिभाषित करना मुश्किल है । प्रत्येक क्रांति पहले से चली आ रही परिभाषा को तोड़कर नयी परिभाषा गढ़ती है । क्रांतियों का औचित्य खास राजनीतिक विचारधारा और सामाजिक न्याय की धारणा में निहित होता है । न्याय, समानता और अधिकारों के लिए मनुष्य की लड़ाई में सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध का नैतिक आधार मौजूद है ।
प्रतिरोध की विचारधारा का फलक राजनीतिक अधिकारों से लेकर वामपंथ तक विस्तृत है । अठारहवीं-उन्नीसवीं सदी की बुर्जुआ क्रांतियों के दौरान निजी संपत्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए उदारवादी विचारों की शरण ली गई, इसी को आगे बढ़ाते हुए सारी संपत्ति पर जनता के सामूहिक अधिकार का विचार आया ताकि वास्तविक सार्वभौमिक समानता हासिल हो । उन्नीसवीं सदी में पूंजीवाद के विरोध में समाजवादी लोगों ने निजी स्वामित्व के गंभीर परिणामों पर हमला बोला क्योंकि इससे बहुसंख्यक आबादी के सम्मानपूर्ण जीवन के अधिकार का उल्लंघन होता था । अराजकतावादियों, उदारवादियों, समाजवादियों और कम्यूनिस्टों ने अधिक समान और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के मकसद से पूंजीवाद को क्रांति के जरिए उलट देने का औचित्य साबित किया । समानता और अधिकार के लिए नस्ल, लिंग, धर्म, नृजाति और राष्ट्र की पहचान के आधार पर होने वाले उत्पीड़न के विरुद्ध प्रतिरोध चल रहे हैं । इसी के साथ यौन जीवन संबंधी और राजनीतिक विश्वास आधारित दमन का प्रतिरोध भी जारी है । जिन तरीकों से प्रतिरोध हो रहे हैं उनका भी जायजा इसमें लिया गया है । इनमें हिंसक तरीकों के अतिरिक्त अहिंसक तरीकों को भी परखा गया है । अवज्ञा संबंधी इन तरीकों में भूख हड़ताल, वैकल्पिक समुदायों या जीवन शैलियों की स्थापना, पर्चेबाजी, जुलूस, आमसभा, परेड, प्रदर्शन, बायकाट, कामबंदी, हड़ताल, धरना, झंडा, बैनर, मुखौटे, गीत-संगीत, नाटक, चित्रकारी आदि हैं । हिंसक तरीकों में विद्रोह, गुरिल्ला युद्ध, तख्ता पलट, मुक्ति सेना आदि को आजमाया गया है ।

लगभग चार हजार पृष्ठों के इस कोश के आठ खंड हैं । पहले खंड में मुख्य संपादक की भूमिका के अलावे सभी संपादकों और लेखकों का परिचय है । क्रांति और प्रतिरोध की घटनाओं की कालानुक्रमणिका के साथ नक्शे और शब्दावली भी हैं । स्वाभाविक रूप से इसके बाद जगह की कमी के चलते केवल अंग्रेजी के ए और बी अक्षरों की प्रविष्टियों को इसमें शामिल किया जा सका है । दूसरे खंड में सी और डी से शुरू होने वाली प्रविष्टियां, तीसरे खंड में ई से लेकर एच तक की, चौथे खंड में आइ से लेकर एल तक की, पांचवें खंड में एम से पी तक, छठवें खंड में क्यू से एस तक की, सातवें में शेष सभी अक्षरों की तथा आखिरी आठवें खड में खोज में सहायता के लिए नामानुक्रमणिका है ।  

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