Sunday, January 3, 2016

विनाशक पूंजीवाद



2007 में मेट्रोपोलिटन बुक्स से नाओमी क्लीन की किताब ‘द शाक डाक्ट्रिन: द राइज आफ़ डिसास्टर कैपिटलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । नाओमी क्लीन ने भूमिका में विस्तार से पिछले तीन दशक से जारी उस प्रक्रिया के बारे में बताया है जिसके जरिए निजीकरण को अंजाम दिया गया । बात को उन्होंने न्यू ओरलिएन्स मे आए कटरीना तूफान से शुरू किया है । तूफान के बाद रिपब्लिकन पार्टी के एक नेता ने कहा कि इस प्रांत में तूफान से आखिरकार सरकारी आवास बह गए हैं । एक अन्य भू-माफ़िया ने कहा कि प्रांत कोरे कागज की तरह हो गया है और कोरे कागज पर लिखने की अपार संभावना होती है । उस तबाही के बाद कानून निर्माता और कारपोरेट घरानों ने मिलकर संभावनाओं की योजना बनाई । इनमें शामिल थे- टैक्स में कटौती, नियमों में ढिलाई, सरकारी आवासों को गिराकर बहुमंजिला इमारतो के लिए नक्शे । तबाही में संभावना देखने वालों के गुरू मिल्टन फ़्रीडमैन थे । जब तूफान के चलते तटबंध टूटे थे उसके तीन महीने बाद वाल स्ट्रीट जर्नल में तिरानबे साल की उम्र में उन्होंने एक लेख लिखा । उसमें उन्होंने कहा कि स्कूल तबाह हो गए हैं और उसमें पढ़ने वाले बच्चे भी पूरे देश में बिखर गए हैं । शिक्षा व्यवस्था में मूलगामी सुधार का यही मौका है । उनकी राय थी कि पुनर्निर्माण के लिए आवंटित धन से मौजूदा सरकारी स्कूलों को खड़ा करने की जगह बेहतर होगा कि सरकार पीड़ित परिवारों को कूपन दे जिसे वे निजी शिक्षा संस्थानों में देकर बच्चों को दाखिल कराएं और इन शिक्षा संस्थानों को सरकार धन दे । उनका सुझाव था कि इस व्यवस्था को तात्कालिक की जगह स्थायी बनाने की कोशिश की जाए । दक्षिणपंथी चिंतकों ने फ़्रीडमैन के इस प्रस्ताव को लपक लिया और तूफान के गुजरते ही इसे अमल में लाने में जुट गए । बुश प्रशासन ने उनकी मदद की और सरकारी धन से चलने वाले निजी प्रबंधन के स्कूलों की स्थापना के लिए करोड़ो डालर का भुगतान किया । ये स्कूल उस व्यवस्था को उलट देने के काम आए जिसके तहत सभी बच्चों को समान स्तर की शिक्षा दी जाती थी । मिल्टन फ़्रीडमैन के हिसाब से सरकार की ओर से संचालित स्कूल व्यवस्था में समाजवाद की गंध आती थी । उनके मुताबिक सरकार का कर्तव्य बाहरी और भीतरी दुश्मनों से अमेरिकी समाज की रक्षा करना मात्र है । उसे कानून व्यवस्था बनाए रखने, निजी समझौतों को लागू कराने और प्रतियोगितामूलक बाजार को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए । पुलिस और सेना मुहैया कराना उसका दायित्व है न कि मुफ़्त शिक्षा देना । ऐसा करके वह बाजार के काम में हस्तक्षेप करती है । एक ओर तो कछुए की चाल से तटबंधों की मरम्मत हुई और बिजली की आपूर्ति की व्यवस्था की गई लेकिन शिक्षा व्यवस्था को बाजार में बोली लगाकर बेचने में बिजली की तेजी से कदम उठाए गए । कटरीना से पहले 123 स्कूल सरकारी थे, उसके बाद कुल चार रह गए । पहले केवल सात निजी प्रबंधन वाले स्कूल थे, बाद में उनकी संख्या 31 हो गई । यह सारा बदलव महज उन्नीस महीने में हासिल किया गया । स्कूल अध्यापकों की बहुत तगड़ी यूनियन हुआ करती थी, तूफान के बाद चार हजार सात सौ अध्यापकों को बर्खास्त कर दिया गया । इनमें से कम उम्र के कुछ अध्यापकों को निजी स्कूलों ने काम पर रखा लेकिन वेतन घटा दिया । तूफान प्रभावित इलाका निजी स्कूलों की प्रयोगशाला बन गया । फ़्रीडमैन के समर्थकों ने कहा कि स्कूल प्रणाली में सुधार के समर्थक जो काम बरसों में नहीं कर पाए उसे कटरीना तूफान ने एक दिन में कर दिया । तूफान पीड़ितों की राहत के लिए आवंटित राशि को सरकारी स्कूलों के विनाश और निजी स्कूलों को अनुदान देने में खर्च किया गया । इसे ही लेखिका ने विनाशक पूंजीवाद कहा है । फ़्रीडमैन का यह आखिरी नीति संबंधी हस्तक्षेप था । लेकिन जो व्यक्ति पचास साल तक सर्वाधिक प्रभावशाली अर्थशास्त्री रहा हो उसके लिए यह बहुत छोटा कारनामा था । उनके शिष्यों में कई अमेरिकी राष्ट्रपति, ब्रिटेन के प्रधान मंत्री, रूसी धन्नासेठ, पोलैंड के वित्त मंत्री, तीसरी दुनिया के तानाशाह, चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के सचिव, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के निदेशक और अमेरिकी केंद्रीय बैंक के तीन मुखिया रहे हैं । फिर भी मरते मरते उन्होंने न्यू ओरलिएन्स के संकट का फायदा उठाकर पूंजीवाद के आदिम रूप को प्रोत्साहित करने में कोई कोताही नहीं बरती । फ़्रीडमैन और उनके अनुयायी पिछ्ले तीन दशकों से इसी रणनीति पर अमल करते रहे हैं । वे किसी तबाही का इंतजार करते हैं और तबाही आने पर लोग पुरानी व्यवस्था में लौटें इसके पहले ही कोई न कोई सरकारी जिम्मेदारी निजी क्षेत्र को बेच देते हैं और फिर इस सुधार को स्थायी बना देते हैं । फ़्रीडमैन ने कभी लिखा था कि संकट ही असली बदलावों को जन्म देता है । जब संकट आता है तो लोग उस समय मौजूद विचारों के आधार पर कोई कदम उठाते हैं । उनके मुताबिक यही असली काम है- मौजूदा नीतियों के विकल्प विकसित करना और उन्हें तब तक जिंदा रखना जब तक राजनीतिक तौर पर असंभव काम राजनीतिक रूप से अपरिहार्य न हो जाए । जिस तरह लोग संकट से निपटने के लिए जरूरी सामान इकट्ठा रखते हैं उसी तरह फ़्रीडमैन के अनुयायी मुक्त बाजार के विचारों को संकट के समय के लिए एकत्र करके रखते हैं । उनका कहना है कि संकट आते ही तेजी से समाज के पुराने ढर्रे में लौटने से पहले बदलाव थोप देना चाहिए । प्रशासन के पास इस काम के लिए कुल छह से नौ महीने होते हैं, इस मुफ़ीद मौके के गुजर जाने पर फिर किसी ऐसे ही मौके तक के लिए इसे मुल्तवी रखना पड़ता है । फ़्रीडमैन को अपनी इस कार्यपद्धति को लागू करने का सबसे पहले सत्तर के दशक में मौका मिला था जब चिली के तानाशाह पिनोशे के वे सलाहकार रहे थे । पिनोशे के तख्तापलट से तो लोग सकते में थे ही भारी महंगाई से भी परेशान थे । फ़्रीडमैन ने इसी अवसर का लाभ उठाकर टैक्स में छूट, मुक्त व्यापार, सेवाओं के निजीकरण, सामाजिक खर्च में कमी और नियमों में ढिलाई जैसे आर्थिक बदलाव तेजी से करने की सलाह दी । उसी समय चिली में सरकारी स्कूलों की जगह सरकार के अनुदान से चलने वाले निजी स्कूल स्थापित हुए । इस रूपांतरण को दुनिया के किसी भी देश में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर अंजाम दिया गया । फ़्रीडमैन का अनुमन था कि आर्थिक बदलावों की तीव्रता, आकस्मिकता और विस्तार से जनता को इसके साथ समायोजित करने में आसानी होगी । इसके लिए उन्होंने ‘शाक थेरापी’ पदबंध का आविष्कार किया । तबसे निजीकरण के पक्ष में होने वाले सुधारों के लिए तमाम सरकारों की यह पसंदीदा नीति हो गई । यह शब्दावली कैदियों को बिजली के झटके लगाकर यंत्रणा देने के तरीके से आई थी । इसके तीस साल बाद यह तरीका इराक में आजमाया गया । युद्ध के  बाद जब अभी आग बुझी भी नहीं थी तभी बड़े पैमाने पर निजीकरण, मुक्त व्यापार, कुल 15 फ़ीसद टैक्स और सरकार के आकार में कमी जैसे आर्थिक बदलाव कर दिए गए । जब इराक के लोगों ने इनका विरोध किया तो घेरकर जेल में डाल दिए गए और वहां सचमुच के झटके दिए गए । लेखिका को इस कार्यपद्धति का अंदाजा इराक युद्ध के वक्त हुआ था । इसके बाद उन्हें 2004 में आई सुनामी के बाद श्रीलंका जाने का मौका मिला । वहां भी उन्हें यही तरीका दिखाई पड़ा । लोगों मे व्याप्त अफरा तफरी का लाभ उठाकर समूचा समुद्री किनारा विदेशी निवेशकों और अंतर्राष्ट्रीय ठेकेदारों को दे दिया गया और उन्होंने बिना वक्त गंवाए वहां विशाल होटल बना डाले । जिन लाखों मछुआरों की जिंदगी तबाह हुई थी उन्हें समुद्र के किनारे के अपने गांवों का पुनर्निर्माण करने से रोक दिया गया । श्रीलंका की सरकार ने कहा कि क्रूर तरीके से हमारे देश को एक मौका मिला है कि हम विश्व स्तरीय पर्यटन के विकास का लक्ष्य हासिल कर सकें । इसके बाद कैटरीना तूफान के मौके पर यह तरीका आजमाया गया । लेखिका का कहना है कि जो लोग किसी आपदा से बच निकलते हैं वे अपनी जिंदगी में हुई टूट फूट की मरम्मत चाहते हैं । जिन जगहों पर उनके आवास रहे थे उनके सात फिर से रिश्ता बनाना चाहते हैं । लेकिन विनाशक पूंजीवाद को मरम्मत में कोई रुचि नहीं होती । वे तो आपदा का बचा खुचा काम पूरा करते हैं ताकि जो कुछ सार्वजनिक मालिकाने में था या जहां विभिन्न समुदायों की जड़ें थीं उन्हें हटाकर नया कारपोरेट स्वर्ग बसाया जा सके इसके पहले कि बचे खुचे लोग फिर से इकट्ठा होकर अपने हकूक मांगने लगें । समकालिन पूंजीवाद के प्रसार के लिए भय और अव्यवस्था माकूल वातावरण तैयार करते हैं । थोड़े दिनों पहले तक ऐसा नहीं था । पूंजीवाद की मांगें थीं- निजीकरण, सरकारी नियंत्रण में कमी और सामाजिक खर्चों में भारी कटौती । ये कदम जनता में अत्यधिक अलोकप्रिय थे इसलिए कम से कम मोलतोल का नाटक किया जाता था और तथाकथित विशेषज्ञों में सर्वसम्मति बनाने की कोशिश होती थी । अब उन्हीं कदमों को लागू करने के लिए विदेशी सेना के हमले और कब्जे या किसी विनाशकारी प्राकृतिक आपदा का लाभ उठाया जा रहा है । लेखिका को शोध के दौरान अहसास हुआ कि मिल्टन फ़्रीडमैन मार्का पूंजीवाद को अपनी बढ़ोत्तरी के लिए हमेशा ही आपदा की जरूरत पड़ती रही है । तीन दशकों से इस उपाय को प्रत्येक बुनियादी उलट फेर के लिए अपनाया गया है । इस नजरिए से देखने पर विगत पैंतीस सालों में विभिन्न सरकारों के कारनामों का तर्क और औचित्य नजर आता है । कोई भी युद्ध या बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारी और दमन या कोई भीषण आपदा संबद्ध देश में निजीकरण का अभियान शुरू करने के काम आती रही है । इसके लिए हमेशा हिंसा का ही सहारा नहीं लिया गया । अस्सी के दशक में लैटिन अमेरिका और अफ़्रीका में ॠण संकट का इस्तेमाल इसके लिए किया गया । महंगाई और कर्ज के फंदे में फंसे ये देश जब विदेशों से कर्ज मांगने गए तो उसके साथशाक थेरापीकी सलाह भी मिली । एशिया में 1997-98 में आए वित्तीय संकट के चलते जब तथाकथित एशियाई शेरों पर आफत आई तो औने पौने दामों पर निजी मालिकों को सार्वजनिक संपदा लुटा दी गई । इन देशों में लोकतांत्रिक सरकारें थीं लेकिन फ़्रीडमैन ने सरकार का कामकाज आर्थिक विशेषज्ञों को सौंप देने की सिफारिश की । कुछ देशों में निजीकरण का दायित्व लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई दक्षिणपंथी सरकारों ने पूरा किया लेकिन इनके मामले में संपूर्ण बदलाव की जगह फुटकल बदलाव की नीति अपनानी पड़ी । फ़्रीडमैन के सपने को लागू करने में लोकतंत्र आंशिक तौर पर ही सफल हो सकता था, उसके सच्चे स्वरूप के लिए तानाशाही की जरूरत पड़ती है । प्रतिरोध विहीन निजीकरण के लिए ऐसा माहौल माकूल होता है जब लोकतांत्रिक आचरण कुछ समय के लिए स्थगित हो या पूरी तरह से ठप हो जाए ।

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