नयी सदी में मार्क्सवाद के स्वरूप के सिलसिले में कुछ बहुत ही
मजेदार बातें डेविड सोकोल ने “देयरफ़ोर कांट वाज रांग : द एडवेंट आफ़ द टर्न टु कल्चर इन मार्क्सिस्ट थाट” शीर्षक
अपने विस्तृत शोधपत्र में कही हैं । उनका कहना है कि मार्क्स और एंगेल्स की रुचि क्रांतिकारी
राजनीति, इतिहास के विश्लेषण और आर्थिक सिद्धांतों में प्रमुख
रूप से दिखाई पड़ती है तो बीसवीं सदी के उनके अनुयायियों की रुचि का क्षेत्र बदल गया
था । उनके लेखन में दर्शन, लोकप्रिय संस्कृति और सबसे अधिक कला
और साहित्य के अध्ययन पर जोर दिखाई देता है । पेरी एंडरसन की किताब ‘कंसिडरेशन्स आन वेस्टर्न मार्क्सिज्म’ के हवाले से सोकोल
बताते हैं कि पश्चिमी मार्क्सवाद के अधिकांश दिग्गजों का लेखन कला, साहित्य और सौंदर्यशास्त्र के सवालों पर केंद्रित रहा है । एंडरसन ने तो पश्चिमी
मार्क्सवादी चिंतकों तक ही अपने आपको सीमित रखा लेकिन सोकोल ने सोवियत संघ की मार्क्सवादी
धारा से जुड़े चिंतकों में भी इस बात की मौजूदगी रेखांकित की है । इस प्रवृत्ति के अवशेष
टेरी ईगलटन और फ़्रेडेरिक जेमेसन जैसे चिंतकों में अब भी बने हुए हैं । असल में दूसरे
इंटरनेशनल से जुड़े सिद्धांतकारों ने अर्थशास्त्र और राजनीति पर ही विचार किया इसलिए
एंडरसन ने इस प्रवृत्ति को उसके विरोध के रूप में देखा है । यह विश्वास किया गया कि
दूसरे इंटरनेशनल के ‘भोंड़े’ मार्क्सवाद
में संस्कृति दोयम दर्जे की चीज मानी जाती थी । संस्कृति के विचारकों ने ‘कार्य-कारण’ के इकहरे रिश्तों को
सृजनात्मक तरीके से चौड़ा किया और सामाजिक बदलाव में आर्थिक के अलावे वैचारिक और सांस्कृतिक
तत्वों की भूमिका को भी उजागर किया । प्लेखानोव के सैद्धांतिक काम को बर्नस्टीन के
विरोध के रूप में ही समझा जा सकता है । प्लेखानोव ने समाज के आर्थिक आधार और रचनाकार
की वर्गीय विचारधारा को कला का निर्धारक तत्व माना । कलात्मक गुणवत्ता के आकलन में
सौंदर्यात्मक की जगह विचारात्मक पहलुओं पर अधिक ध्यान देने की उन्होंने वकालत की ।
सामाजिक बदलाव में कला और संस्कृति की भूमिका पर भी उन्होंने जोर दिया । रूसी मार्क्सवादियों
में संस्कृति के सवालों पर जोर को पहचानने के बाद एंडरसन ने पश्चिमी मार्क्सवाद में
इसकी जगह को पश्चिमी देशों में मजदूर वर्ग की पराजय और पूंजीवादी लोकतांत्रिक शासन
की मजबूती से जोड़ा है । शायद सोकोल नई सदी में आर्थिक और राजनीतिक लेखन के पुनरुत्थान
की संभावना देखते हैं ।
No comments:
Post a Comment