Thursday, December 18, 2014

ख्याल

                                              
(यह मुसलमान धोबियों का गीत प्रथम भारतीय स्वतंत्रता के संग्राम के दिनों में दिल्ली की झाँकी उपस्थित करता है । गीत से प्रकट है कि साधारण जनता किस भाँति विदेशी से छुटकारा प्राप्त करने के इस प्रयत्न में आत्म बलिदान की भावना से प्रेरित हुई थी । इतिहास की रक्षा लोक स्मृति में गीतों द्वारा किस प्रकार संभव है, यह गीत इसका सुंदर उदाहरण है ।)
बनी बनाई फ़ौज बिगड़ गई आ गई उलटी दिल्ली में ।
शाह जफ़र का लुटा नसीबा रहने लगा हवेली में ।
गंगाराम याहूदी ने जी देखो क्या काम किया ।
अंग्रेजों से मिला रहा, लड़ने का ही नाम किया ।
फ़ौज ने माँगा खाने को, ना उनको कोई काम दिया ।
भूखे लड़ते रहे गाजी अरु किनको सुभू शाम किया ।
वोई सूरमा लड़े वहाँ पै जिनके सिर थे हथेली में ।
शाह जफ़र का लुटा नसीबा-------
रामबक्स था किनका सहीस जी, जात पुरबिया कहलावै ।
खूनी दरवाजा था जो शाह का, अपना मोरचा लगवावै ।
मार मार के खंजर उनके लाशों के फ़रश वो बिछावै ।
काले खाँ गोलंदाज भी यारों मोरी गेट जा दबावै ।
नमकहलाली करी शाह की वो थे अल्लाकेली में ।
शाह जफ़र का लुटा नसीबा---------
तारों मोरचे तोड़े खाकियों ने चारों को फिर मरवाया ।
दसों दरवाजे दसों मोरिये सबको उसने तुड़वाया ।
शहर पनाँ थी जो शहर की वहीं लाशों को लटकाया ।
तड़प तड़प के मर गए गाजी पानी तक ना मुँह को लाया ।
हर एक एक का दुश्मन यारों जो थे लोग देहली में ।
शाह जफ़र का लुटा नसीबा-------
शहजादी जन्नत निशाँ न बादशाह का पता रहा ।
हिंदुस्तान का देखो यारों तख्त इस तरह हुआ तबाह ।
शहजादे भी हुए रवाना ना दिन कोई लगा पता ।
खोद खोद खाइयें तक ढूँढ़ी ना दरिया में लगा निशाँ ।
काले खाँ को मरवा दिया औ चारों तड़फते देहली में ।
शाह जफ़र का लुटा नसीबा-----
लाखों तड़फ तड़फ के गिरते सेठ और साऊकार वहाँ ।
क्या अमीर क्या नवाब वहाँ के गदर हिंद में दिए फला ।
हरेक जान को फिरे क्याण रिजक तल्क से हुए तबाह ।
मुरशीद चाँद ने देखो यारों गदर का ये मजमून लिखा ।
घीसा खलीफ़ा कहे ख्याल को सुरवन आज अलबेली में ।
शाह जफ़र का लुटा नसीबा-------
108-109
लोक साहित्य समिति ग्रंथमाला-2
उत्तर प्रदेश के लोकगीत
सूचना विभाग,उत्तर प्रदेश
प्रकाशक सूचना विभाग उत्तर प्रदेश सरकार लखनऊ
शक संवत 1881
कौरवी लोकगीत गीत 20

संकलनकर्ता श्री राहुल सांकृत्यायन श्रीमती कमला देवी चौधरी श्री कृष्णचंद्र शर्मा 

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