नवउदारवाद के
आगमन के साथ विषमता में भयावह बढ़त देखी गयी । इसके रूप भी विविध प्रकार के बने ।
पहले से मौजूद समाजार्थिक विषमता को इसने नवीकृत किया । इस परिघटना को विद्वानों
ने उसी समय से लक्षित करना शुरू कर दिया था । इस बात को दुहराने से लाभ नहीं कि आम
मान्यता के विपरीत विषमता कोई प्रदत्त स्थिति नहीं होती बल्कि शासन व्यवस्था के
विभिन्न ढांचों द्वारा क्रमश: पैदा की जाती है । शायद यह भी याद दिलाने की जरूरत नहीं
कि सामंती समाजिक व्यवस्था में निहित विषमता को समाप्त करने के वादे के साथ ही
पूंजीवाद ने अपना औचित्य साबित किया था । अवसरों की समानता और कानून के सामने
बराबरी के प्रावधान इसी भावना की औपचारिक अभिव्यक्तियां हैं । इसीलिए विषमता का
तथ्य उसके लिए भी शर्मिंदगी का कारण बनता है । हमारे देश में तमाम तरह की विषमताओं
की इतनी गहरी स्वीकृति है कि प्राय: इसकी मौजूदगी नहीं खटकती लेकिन विषमता के कारण
सामाजिक उथल पुथल की सम्भावना के चलते इस प्रक्रिया पर ध्यान देना जरूरी है । एक
ओर शासन की व्यवस्था विषमता को जन्म देती है तो दूसरी ओर जनता के भीतर समता की
आकांक्षा होती है । मनुष्य के इतिहास की अग्रगति इन दोनों के बीच टकराव का सबसे
प्रबल सबूत है ।
1998 में डब्ल्यू डब्ल्यू नार्टन & कंपनी से डेविस डब्ल्यू लांडेस की किताब ‘द वेल्थ ऐंड पावर्टी आफ़ नेशंस: ह्वाई सम आर सो रिच ऐंड सम सो पूअर’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के अनुसार
किताब का मकसद विश्व इतिहास का लेखन है । ऐसा सबको बराबर मानकर नहीं किया गया है
बल्कि आर्थिक प्रगति और आधुनिकीकरण की मुख्य धारा को समझने के जरिए ऐसा किया गया
है इसलिए विस्तार की जगह केंद्रीयता अधिक है । फिर भी काम इतना बड़ा था कि सचाई के
आसपास ही पहुंचने का दावा किया जा सकता है । लेखक ने दवा और सफाई जैसे मामलों से
बात शुरू की है और बताया है कि औद्योगिक क्रांति के चलते रुई के बने सस्ते कपड़े और
हाथ की सफाई के लिए बने साबुन के इस्तेमाल
ने किसी भी दवा के मुकाबले लोगों को मौत से बचाने में अधिक निर्णायक भूमिका निभाई
। साधारण लोग भी अंतर्वस्त्र पहनने लगे जो पहले केवल धनी लोगों को सुलभ हुआ करता
था । बीसवीं सदी के साधारण जन भी उन्नीसवीं सदी के बादशाहों से अधिक साफ रहने लगे
। बीमारी और मौत से लड़ने में पोषक आहार की भी भूमिका छोटी नहीं थी । तेज परिवहन के
चलते स्थानीय अकालों में कमी आती गई । शरीर की लंबाई बढ़ी और वह गठीला भी हुआ । इस
प्रक्रिया को आज भी संपन्न मुल्कों की ओर जाने वाले प्रवासियों की संतानों में आए
अंतर से समझा जा सकता है । जीवन प्रत्याशा तो बढ़ी ही गरीब और अमीर के बीच विषमता
में भी कमी आई । लोग अब संक्रामक बीमारियों के मुकाबले वार्धक्य के चलते अधिक मरने
लगे । यह बदलाव संपन्न देशों में अधिक आया है लेकिन कुछ गरीब देशों ने भी इस राह
पर कदम बढ़ाए हैं । इसके साथ जुड़ी बात यह है कि ज्ञान और विज्ञान का तकनीक के
क्षेत्र में प्रयोग होने से भी अनेक लाभ हुए हैं । इससे वर्तमान और भविष्य की
समस्याओं के समाधान की उम्मीद पैदा होती है । अनंत युवावस्था की कल्पना भी सम्भव
हुई है । फिर भी इसको अमल में लाना धनिकों के बस की ही बात है । धनी देशों में भी
ज्ञान से होने वाले लाभों का समान वितरण नहीं हुआ है । विविधता और विषमता से भरी
दुनिया में मोटे तौर पर तीन तरह के देश हैं- कुछ जगह वजन घटाने पर अपार धन खर्च
होता है, कुछ जगहों पर लोग जीवन चलाने के लिए खाते हैं और कुछ जगहों पर लोग आगामी
भोजन के बारे में निश्चिंत नहीं होते । बीमारी की दर और जीवन प्रत्याशा के मामले
में इन तीनों के बीच बहुत अंतर हैं । पहले दुनिया को पूरब और पश्चिम के बीच बांटा
जाता था । अब वह विभाजन कमजोर पड़ रहा है । अब धनी और गरीब देशों को अलगाने वाली चीज
संपत्ति और सेहत है । इसे अक्सर उत्तर और दक्षिण का भेद कहा जाता है क्योंकि यह विभाजन
भौगोलिक है । इसकी जगह लेखक को पश्चिम और अन्य कहना सही लगता है क्योंकि विभाजन ऐतिहासिक
भी है । इस सहस्राब्दी की यह सबसे बड़ी समस्या और खतरा है । दूसरी बड़ी समस्या पर्यावरण
का विनाश है । ये दोनों ही आपस में जुड़ी और एक हैं क्योंकि संपत्ति का मतलब केवल उपभोग
नहीं होता, बरबादी
भी होता है; उत्पादन
ही नही, विनाश
भी होता है । संपत्ति बढ़ने के साथ बरबादी और विनाश में भी बढ़ोत्तरी होती है जिससे वातावरण
को सबसे अधिक खतरा होता है ।
1998 में ही यूनिवर्सिटी आफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस से चार्ल्स टिली की किताब ‘ड्यूरेबुल इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । यह किताब लेखक के
1995 में दिए गए भाषणों से तैयार की गई है । इस विषय पर लेखक लम्बे समय से लिखते आ
रहे थे इसलिए उस सामग्री का भी उपयोग इनमें किया गया है । लेखक के अनुसार गरीबों
के जीवन में खुशी के अवसर कम ही आते हैं लेकिन 1800 के इर्द गिर्द के साल खासकर
बेहद बुरे थे । फ़्रांस के साथ लड़ाई में तमाम संसाधन झोंक दिए गए थे और उपभोक्ता
कीमतों में उछाल आ गया था । नगरीकरण और उद्योगीकरण के चलते विषमता प्रत्यक्ष दिखाई
पड़ रही थी । कुपोषण के चलते कामगार अपना काम भी मुश्किल से कर पाते थे । इसके कारण
बीमारियों की मारकता भी बहुत अधिक हो चली थी । हालत यह थी कि अठारहवीं सदी के
पश्चिमी यूरोप के बहुतेरे इलाकों में आबादी का पांचवां हिस्सा भिक्षा के सहारे
जीवन चला रहा था ।
1999 में सेवेन स्टोरीज प्रेस से नोम चोम्सकी
की किताब ‘प्रोफ़िट
ओवर पीपुल: नियोलिबरलिज्म
ऐंड ग्लोबल आर्डर’ का प्रकाशन हुआ । भूमिका राबर्ट मैकचेस्नी ने लिखी है
। उनका कहना है कि नवउदारवाद के तहत मुट्ठी भर निजी हितों को निजी मुनाफ़े को बढ़ाने
के लिए सामाजिक जीवन पर यथासम्भव अधिकतम नियंत्रण कायम करने की छूट दी जाती है ।
इसे पिछले बीस साल से दक्षिणपंथ के साथ मध्यमार्गी दलों की सरकारों ने भी अपना रखा
है । उनकी नीतियों से अत्यंत अमीर निवेशकों और लगभग एक हजार बड़े कारपोरेट घ्ररानों
को ही लाभ होगा ।
1999 में प्लूटो प्रेस से वाल्डेन बेलो की शीया कनिंघम और बिल राउ के साथ लिखी किताब ‘डार्क विक्ट्री: द यूनाइटेड स्टेट्स ऐंड ग्लोबल पावर्टी’ का नया संस्करण प्रकाशित हुआ । सूसन
जार्ज ने इस संस्करण की भूमिका लिखी है । पहली बार 1994 में इसका प्रकाशन हुआ था । सूसन
जार्ज का कहना है कि किताब के शीर्षक से किसी फ़िल्म का भ्रम होता है जिसमें
फ़ासीवाद पर लोकतंत्र की नैतिक विजय के साथ अंत होता है । नब्बे के दशक की दुनिया
दुर्भाग्य से ऐसी न थी । बुराई जीत रही थी और रास्ते के तमाम अवरोधों को कुचलती जा
रही थी । लेकिन आज जो विजयी हैं वे डरे हुए हैं । वे अब ढलान पर हैं । उन्होंने
रोम का साम्राज्य खड़ा किया जो अब बिखर रहा है । किताब में अस्सी के दशक की कहानी
बयान की गई है । उस समय रफ़्तार इतनी तेज थी कि ध्यान दूसरी ओर होने पर चीजें पकड़
से बाहर निकल सकती थीं । बहुत कम लोग उस समय को सही तरीके से दर्ज कर सके हैं ।
रीगन और थैचर तो दुनिया भर में वापसी की प्रक्रिया की सतही अभिव्यक्ति थे ।
1999 में वेस्टव्यू प्रेस से एडोल्फ़ रीड
जूनियर के संपादन में ‘विदाउट जस्टिस फ़ार आल: द न्यूलिबरलिज्म ऐंड आवर रिट्रीट फ़्राम
रेशियल इक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । संपादक की प्रस्तावना के अतिरिक्त
किताब में शामिल बारह लेख पांच भागों में हैं । पहले भाग के लेखों में नस्ल और
विषमता के सिलसिले में उभरी नई कट्टरता का जिक्र है । दूसरे भाग के लेख नस्ल,
विचारधारा और नीति निर्माण के बारे में खोखली बातों का रहस्य भेदन करते हैं ।
तीसरे भाग में नस्लवाद विरोधी सरकारी नीति पर हमलों और विचारधारा का विश्लेषण किया
गया है । चौथे भाग में अश्वेत समायोजन की नई लहर का विवेचन है । पांचवें भाग में
सारी बातों का समाहार प्रस्तुत किया गया है । संपादक की राय है कि 1980 दशक में
रीगनवाद की सफलता से उत्साहित होकर समूचे 1990 के दशक में अमेरिकी राजनीति में
दक्षिणपंथी झुकाव आया तथा उदारवादी तत्वों ने इसे मजबूरी मान लिया । जनता से उनकी
दूरी बढ़ती गयी और उन्हें खास हितों का हिमायती माना जाने लगा । कहा जाने लगा कि
हाशिये के अपने समर्थकों से दूरी बनाने और मुख्य धारा के मतदाता के पास जाने की
जरूरत है । मुख्य धारा का यह मतदाता खाता पीता गोरा पुरुष था । जो डेमोक्रेटिक
पार्टी 1960 के दशक के बाद से ही वाम उदार राजनीति का स्वाभाविक केंद्र समझी जाती
थी उसके भीतर इस विचार ने जड़ जमा लिया ।
1999 में टेम्पल
यूनिवर्सिटी प्रेस से बारबरा एलेन
स्मिथ के संपादन में ‘नीदर सेपरेट
नार इक्वल: वीमेन रेस, ऐंड क्लास इन द साउथ’ का प्रकाशन हुआ । संपादक
की भूमिका के अतिरिक्त किताब के चार भागों में कुल तेरह लेख शामिल हैं । पहले भाग के लेखों में इतिहास को
लैंगिक आयाम दिया गया है । दूसरे
भाग में रहवास के अनुभवों का जायजा लिया गया है । तीसरे भाग में समुदाय
निर्माण की प्रक्रिया का
ब्यौरा है । अंतिम चौथे भाग में बदलती सम्भावनाओं का जिक्र है ।
2000
में द पालिसी प्रेस यूनिवर्सिटी आफ़ ब्रिस्टल से क्रिस्टिना पैंटाजिस और डेविड
गोर्डन के संपादन में ‘टैकलिंग इनइक्वलिटीज: ह्वेयर आर वी नाउ ऐंड ह्वाट कैन बी डन?’ का प्रकाशन
हुआ ।
2000
में प्रोफ़ाइल बुक्स लिमिटेड से कीथ हार्ट की किताब ‘द मेमोरी बैंक: मनी इन ऐन अनइक्वल वर्ल्ड’ का प्रकाशन हुआ ।
2000
में द यूनिवर्सिटी आफ़ शिकागो प्रेस से बेंजामिन आइ पेज और जेम्स आर सिमोन्स की
किताब ‘ह्वाट गवर्नमेन्ट कैन डू: डीलिंग विथ पावर्टी ऐंड इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2002 में इसका पेपरबैक संस्करण हुआ ।
2002 में एडम ज़्वास की किताब ‘ग्लोबलाइजेशन
आफ़ अनइक्वल नेशनल इकोनामीज: प्लेयर्स ऐंड
कंट्रोवर्सीज’ का प्रकाशन एम
ई शार्पे से हुआ । मूल रूप से पोलिश में लिखी इस किताब का अंग्रेजी अनुवाद मिशेल
वाले ने किया है ।
2002 में विजन पेपरबैक्स से जोनाथन नील की किताब ‘यू आर जी8, वी आर आर 6 बिलियन: द ट्रूथ
बिहाइंड द जेनोआ प्रोटेस्ट्स’
का प्रकाशन हुआ ।
2002 में पालग्रेव मैकमिलन से रिचर्ड ग्रांट और जनरेनी शार्ट के
संपादन में ‘ग्लोबलाइजेशन ऐंड द
मार्जिन्स’ का प्रकाशन
हुआ । किताब चार हिस्सों में है । पहला हिस्सा वैश्वीकरण की सैद्धांतिकी के बारे
में चार लेखों का है जिसमें एक लेख संपादकों का है । दूसरा हिस्सा हाशिए पर
वैश्वीकरण के बारे में दो लेखों का है जिनमें भारत के ही क्रमश: देहात और शहरों पर पड़े प्रभावों का विश्लेषण है । तीसरे
हिस्से की भी विषयवस्तु यही है लेकिन विश्लेषण लैटिन अमेरिका के पेरू, अफ़्रीका के घाना,
भारत में बंबई और दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल का है । आखिरी चौथा हिस्सा
संपादकों द्वारा लिखित उपसंहार का है ।
2002 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से एंड्र्यू हुरेल और गैरे
वुड्स के संपादन में ‘इनइक्वलिटी, ग्लोबलाइजेशन,
ऐंड वर्ल्ड पालिटिक्स’
का प्रकाशन हुआ ।
2002 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से सैलाबेन हबीब की किताब ‘द क्लेम्स आफ़ कल्चर:
इक्वलिटी ऐंड डाइवर्सिटी इन द ग्लोबल एरा’ का प्रकाशन हुआ ।
2003 में इंटरनेशनल
डीबेट एजुकेशन एसोशिएशन की ओर से विलियम ड्रिस्कोल और जूली क्लार्क के संपादन में ‘ग्लोबलाइजेशन ऐंड द पूअर:
एक्सप्लायटेशन आर इक्वलाइजर?’ का प्रकाशन हुआ । भूमंडलीकरण के दावे और यथार्थ के बीच विरोध को व्यक्त करने
का यही सही सूत्रीकरण है ।
2003 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से माइकेल ओत्सुका की किताब ‘लिबर्टेरियनिज्म विदाउट इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2003 में डब्ल्यू डब्ल्यू नार्टन & कंपनी से जोसेफ ई स्तिगलित्ज़ की किताब
‘द रोरिंग नाइंटीज: ए न्यू हिस्ट्री आफ़ द वर्ल्ड’स मोस्ट प्रास्परस डीकेड’ का प्रकाशन
हुआ । मुख्य धारा के अर्थशास्त्रियों में स्तिगलित्ज़ ने ही वैश्वीकरण के भीतर कार्यरत
उस प्रक्रिया की ओर ध्यान खींचा था जिसके तहत विषमता का उत्थान हो रहा है । इसे सूत्रबद्ध
करने के लिए 1% बनाम 99% की शब्दावली भी उन्होंने पेश की थी ।
2004 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से
जिओवानी अन्द्रिया कोर्निया के संपादन में ‘इनइक्वलिटी, ग्रोथ, ऐंड पावर्टी इन ऐन एरा आफ़ लिबरलाइजेशन
ऐंड ग्लोबलाइजेशन’ का प्रकाशन हुआ ।
2004 में एडवर्ड एल्गर से एरिक एस राइनेर्ट के संपादन में ‘ग्लोबलाइजेशन, इकोनामिक डेवलपमेन्ट ऐंड इनइक्वलिटी: ऐन अल्टरनेटिव पर्सपेक्टिव’ का प्रकाशन हुआ ।
2005 में रसेल सेज फ़ाउंडेशन और
प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से सैमुएल बोल्स, हर्बर्ट गिटनिस और मेलिसा ओसबोर्न
ग्रोव्स के संपादन में ‘अनइक्वल चान्सेज: फ़ेमिली बैकग्राउंड ऐंड इकोनामिक
सक्सेस’ का
प्रकाशन हुआ ।
2005
में प्रिंस्टन
यूनिवर्सिटी प्रेस से ब्रांको मिलानोविक की किताब ‘वर्ल्ड्स एपार्ट:
मेजरिंग
इंटरनेशनल ऐंड ग्लोबल इनइक्वलिटी’
का प्रकाशन
हुआ ।
2005
में एलेन & उनविन से क्लाइव हैमिल्टन और रिचर्ड डेनिस की किताब ‘अफ़्लुएंजा: ह्वेन टू मच इज नेवर एनफ’ का प्रकाशन हुआ ।
2005 में द पेंग्विन प्रेस से जेफ़री डी साक्स
की किताब ‘द
एन्ड आफ़ पावर्टी: इकोनामिक पासिबिलिटीज फ़ार आवर टाइम’ का प्रकाशन हुआ ।
2005 में डब्ल्यू डब्ल्यू नार्टन & कंपनी से इरा काट्ज़नेल्सन की किताब
‘ह्वेन अफ़र्मेटिव ऐक्शन वाज ह्वाइट: ऐन अनटोल्ड हिस्ट्री आफ़ रेशियल
इनइक्वलिटी इन ट्वेन्टीएथ-सेन्चुरी अमेरिका’ का प्रकाशन हुआ ।
2005 में ज़ेड बुक्स से एलीसा रेइस और मिक मूर के
संपादन में ‘एलीट
परसेप्शंस आफ़ पावर्टी ऐंड इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । किताब में कुल आठ लेख संकलित हैं
।
2006 में ब्लैकवेल पब्लिशिंग से माइकेल डनफ़ोर्ड
और लीदिया ग्रेचो की किताब ‘आफ़्टर द थ्री इटलीज: वेल्थ, इनइक्वलिटी ऐंड इंडस्ट्रियल चेन्ज’ का प्रकाशन हुआ ।
2006 में द एम आइ टी प्रेस से नोलन मैकार्ती, कीथ टी पूल और हावर्ड रोजेन्थाल की
किताब ‘पोलराइज़्ड
अमेरिका: द
डांस आफ़ आइडियोलाजी ऐंड अनइक्वल रिचेज’ का प्रकाशन हुआ ।
2006 में स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस
से डेविड बी ग्रुस्की और रवि कनबुर के संपादन में ‘पावर्टी ऐंड इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2006 में रटलेज से फ़्रन्चेस्को फ़रीना और
अर्नेस्तोस वाग्लियो के संपादन में ‘इनइक्वलिटी ऐंड इकोनामिक इंटीग्रेशन’ का प्रकाशन हुआ ।
2006 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस
से टिम हरफ़ोर्ड की किताब ‘द अंडरकवर इकोनामिस्ट: एक्सपोजिंग ह्वाइ द रिच आर रिच, द पूअर आर पूअर- ऐंड ह्वाइ यू कैन नेवर बाई ए
डीसेन्ट यूज्ड कार!’ का प्रकाशन हुआ ।
2006 में वनवर्ल्ड से कीरोन ओ’हारा और डेविड स्टीवेन्स की किताब ‘इनइक्वलिटी.काम: पावर, पावर्टी ऐंड द डिजिटल डिवाइड’ का प्रकाशन हुआ ।
2007 में एरिक ओलिन राइट की संपादित
किताब ‘इंटरोगेटिंग
इनइक्वलिटी: एसेज
आन क्लास एनालिसिस, सोशलिज्म ऐंड मार्क्सिज्म’ का प्रकाशन वर्सो से हुआ । इसमें
अमेरिका के अग्रणी समाजवादी और मजदूर योद्धाओं के संस्मरण संग्रहित हैं ।
2007 में सेंटर फ़ार इकोनामिक पालिसी ऐंड
रिसर्च से डीन बेकर की किताब ‘द कंजर्वेटिव नैनी स्टेट: हाउ द वेल्दी यूज द गवर्नमेंट टु
स्टे रिच ऐंड गेट रिचर’ का प्रकाशन हुआ ।
2007 में रसेल सेज फ़ाउंडेशन से डगलस एस मैस्सी
की किताब ‘कैटेगोरिकली
अनइक्वल: द
अमेरिकन स्ट्रेटिफ़िकेशन सिस्टम’ का प्रकाशन हुआ ।
2007 में क्राउन पब्लिशर्स से राबर्ट
फ़्रैंक की किताब ‘रिचिस्तान: ए जर्नी थ्रू द अमेरिकन वेल्थ बूम ऐंड द लाइव्स आफ़ द
न्यू रिच’ का
प्रकाशन हुआ ।
2007 में कान्सटेबल से एरिक एस राइनेर्ट
की किताब ‘हाउ
रिच कंट्रीज गाट रिच---ऐंड ह्वाइ पूअर कंट्रीज स्टे पूअर’ का प्रकाशन हुआ ।
2007 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से फ़्रैंक
स्टिलवेल और किरीली जोर्डन की किताब ‘हू गेट्स ह्वाट?: एनलाइजिंग इकोनामिक इनइक्वलिटी इन
आस्ट्रेलिया’ का
प्रकाशन हुआ ।
2008 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से रसेल सेज फ़ाउंडेशन के तहत लैरी एम
बार्तेल्स की किताब ‘अनइक्वल डेमोक्रेसी: द पोलिटिकल इकोनामी आफ़ द न्यू
गिल्डेड एज’ का
प्रकाशन हुआ । किताब में अमेरिका की आर्थिक विषमता के राजनीतिक कारणों और परिणामों
के बारे में लम्बे शोध के नतीजों को दर्ज किया गया है । पिछले तीस सालों में बढ़ी
आर्थिक विषमता ने इस शोध की प्रेरणा दी थी । इस विषमता पर अर्थशास्त्रियों ने तो
विचार किया है लेकिन राजनीतिज्ञों ने इस पर यथोचित ध्यान नहीं दिया है । लेखक लोकतंत्र
के अध्येता हैं इसलिए अमेरिका की राजनीति पर इस विषमता के असरात का विवेचन उन्हें
जरूरी लगा । अमेरिकी राजनीति के पर्यवेक्षकों का मानना है कि अमीरों की बढ़ती
सम्पदा ने राजनीति में उनके प्रभाव में वृद्धि की है जबकि मध्यवर्ग की आमदनी में
ठहराव के चलते उनके असर में कमी आई है । लेखक ने आर्थिक विषमता और राजनीतिक विषमता
में कार्य कारण संबंध देखने की कोशिश की है । कुछ लोगों को इसमें पक्षधरता नजर आ
सकती है ।
2008 में एडवर्ड
एल्गर से क्रिस्टोफर ब्राउन की किताब
‘इनइक्वलिटी, कंज्यूमर क्रेडिट ऐंड द सेविंग पज़ल’ का प्रकाशन न्यू डाइरेक्शंस इन माडर्न इकोनामिक्स नामक
पुस्तक श्रृंखला के तहत हुआ ।
2008
में वाशिंगटन समिट पब्लिशर्स से रिचर्ड लिन की किताब ‘द ग्लोबल बेल
कर्व: रेस, आइक्यू, ऐंड
इनइक्वलिटी वर्ल्डवाइड’ का प्रकाशन
हुआ ।
2008 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से
मेरिलीन लेक और हेनरी रेनाल्ड्स की किताब ‘ड्राइंग द ग्लोबल कलरलाइन: ह्वाइट मेन’स कंट्रीज ऐंड द इंटरनेशनल चैलेन्ज
आफ़ रेशियल इक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । लेखकगण ने बताया है कि 1910 में
ड्यु बोइस ने एक लेख लिखकर घोषित किया कि अचानक दुनिया ने गोरेपन को महत्वपूर्ण
मान लिया है और गोरे लोग अपनी चमड़ी के रंग पर अभिमान करने लगे हैं । इससे दस साल
पहले उन्होंने कहा था कि बीसवीं सदी की समस्या चमड़ी के रंग की समस्या है । वे
मानते थे कि अश्वेत के भीतर दो आत्माओं की मौजूदगी रहती है । एक ओर वह अमेरिकी
होता है और दूसरी ओर अश्वेत होता है । इनके चलते उसका चिंतन और उसकी रुझान में भी
दोरंगा वैपरीत्य होता है । गोरे अमेरिका का अन्याय, संघर्ष और दमित आकांक्षाओं का
काला इतिहास है । इन दोनों आत्माओं को मिलाकर अश्वेत मनुष्य बेहतर मानस गढ़ना चाहता
है । यह समस्या केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है, इसका विस्तार वैश्विक है ।
उपनिवेशवाद को भी वे रंगभेद की इसी व्यवस्था का अंग मानते थे । उनका कहना था कि
इसके चलते गोरापन लगभग धर्म की तरह श्रेष्ठ हो चला है । उन्हें लगा कि चमड़ी के रंग
के बारे में पहले भी लोग सचेत रहा करते थे लेकिन व्यक्तियों में गोरेपन की खोज
आधुनिक परिघटना है । गोरापन हमेशा के लिए धरती का मालिक होने का मामला है । ड्यु
बोइस के इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए लेखक कहते हैं कि गोरेपन की इस उन्मादी लालसा
का कारण इस मालिकाने का खतरे में पड़ना है । इसमें दुनिया भर के उपनिवेशित अश्वेतों
के विद्रोह की प्रतिक्रिया की झलक मिलती है ।
2008 में हायर एजुकेशन यूनिवर्सिटी
आफ़ टोरन्टो प्रेस से विनसेन्ट ल्यों-कालो की किताब ‘नियोलिबरल गवर्नेन्स:
ऐक्टिविस्ट एथनोग्राफी इन द होमलेस शेल्टरिंग इंडस्ट्री’ का प्रकाशन हुआ ।
2009 में रटलेज से वाइने आउ की किताब
‘अनइक्वल बाइ डिजाइन: हाइ स्टेक्स टेस्टिंग ऐंड द स्टैंडर्डाइजेशन आफ़ इनइक्वलिटी’
का प्रकाशन हुआ । यह किताब क्रिटिकल सोशल थाट सिरीज के तहत
छपी है । शिक्षा पर केंद्रित इस पुस्तक श्रृंखला के संपादक विस्कांसिन
विश्वविद्यालय के माइकेल डब्ल्यू एपल हैं ।
2009 में पालग्रेव मैकमिलन से फ़्रान्सेस स्टीवार्ट के संपादन में
‘होरिज़ोन्टल इनइक्वलिटीज ऐंड कनफ़्लिक्ट: अंडरस्टैन्डिंग ग्रुप वायलेन्स इन मल्टी एथनिक सोसाइटीज’
का प्रकाशन हुआ । किताब की प्रस्तावना कोफ़ी अन्नान ने लिखी
है ।
2009
में द यूनिवर्सिटी आफ़ शिकागो प्रेस से बेन्जामिन आइ पेज और लारेन्स आर जेकब्स
की किताब ‘क्लास वार?: ह्वाट अमेरिकंस रियली थिंक एबाउट इकोनामिक इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2009 में रटलेज से जोसेफ एम श्वार्ट्ज़ की किताब ‘द
फ़्यूचर आफ़ डेमोक्रेटिक इक्वलिटी: रीबिल्डिंग सोशल सालिडैरिटी इन ए फ़्रैगमेन्टेड अमेरिका’
का प्रकाशन हुआ ।
2009 में न्यू यार्क यूनिवर्सिटी प्रेस से डायना मारे
और लौरा ब्रिग्स के संपादन में ‘इंटरनेशनल एडाप्शन: ग्लोबल इनइक्वलिटीज ऐंड द
सर्कुलेशन आफ़ चिल्ड्रेन’ का प्रकाशन हुआ ।
2009 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से नथान जे
केली की किताब ‘द पोलिटिक्स आफ़ इनकम इनइक्वलिटी इन द यूनाइटेड स्टेट्स’ का प्रकाशन
हुआ ।
2010 में मेट्रोपोलिटन बुक्स से बेरिल सत्तर
की किताब ‘फ़ेमिली
प्रापर्टीज: रेस, रीयल एस्टेट, ऐंड द एक्सप्लायटेशन आफ़ ब्लैक अर्बन
अमेरिका’ का
प्रकाशन हुआ ।
2010 में ए बी एटकिंसन और थामस पिकेटी
के संपादन में ‘टाप
इनकम्स: ए
ग्लोबल पर्सपेक्टिव’ का प्रकाशन हुआ । इस किताब में तेरह लेख संकलित हैं
जिनमें संपादकों के लेख अधिक हैं ।
2010 में स्प्रिंगेर से रोलैंड बेरगेर, डेविड ग्रुस्की, तोबियास राफ़ेल, जियोफ़्री सैमुएल्स और क्रिस्टोफर
वाइमर की किताब ‘द
इनइक्वलिटी पज़ल: यूरोपियन
ऐंड यू एस लीडर्स डिसकस राइजिंग इनकम इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ। किताब में चार खंड
हैं । पहला खंड पुस्तक परिचय का है जिसे लेखकों ने संयुक्त रूप से लिखा है । दूसरे
खंड में इस सिलसिले में विभिन्न उद्योगपतियों के साक्षात्कार हैं । तीसरे खंड में
लेखकों ने साररूप से साक्षात्कारों में व्यक्त प्रवृत्तियों का जिक्र करते हुए
विषमता के प्रति इनके रुख का विश्लेषण किया गया है । चौथे खंड में लेखकों की
टिप्पणियों को प्रस्तुत किया गया है । इसमें आगे के रास्ते और विषमता घटाने में
बाजार की उपयोगिता का विवेचन किया गया है । इस विषय पर छपी अन्य किताबों से इसकी
भिन्नता ऊपर के लोगों के रुख पर केंद्रित करने में निहित है ।
माइकेल परेन्ती की किताब ‘डेमोक्रेसी फ़ार द फ़्यू’ का प्रकाशन वैड्सवर्थ से लगातार हुआ
।
2002 और 2008 के बाद 2011 में इसका नवां संस्करण छपा है ।
2011 में रटलेज से एरिक ए शुट्ज़ की किताब ‘इनइक्वलिटी ऐंड पावर: द इकोनामिक्स आफ़ क्लास’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है
कि अमेरिका में बढ़ती विषमता अब सर्वस्वीकृत तथ्य है । उदारपंथी लोग इसे अन्याय
समझते हैं और लोकतंत्र के लिए खतरनाक मानते हैं जबकि उनके विरोधी इसे कोई गंभीर
सवाल भी नहीं मानते । दोनों ही इस मामले में वर्ग की बात करने से परहेज करते हैं ।
किताब में विकसित देशों की आर्थिक विषमता के कारणों और परिणामों का विवेचन किया गया
है ।
2011 में एडवर्ड एल्गर और इंटरनेशनल लेबर आफ़िस से डैनि एल वागन-ह्वाइटहेड के संपादन में ‘वर्क इनइक्वलिटीज इन द क्राइसिस: एविडेन्स फ़्राम यूरोप’ का प्रकाशन हुआ । किताब में शामिल
तेरह लेखों के अतिरिक्त तीन विद्वानों ने इसकी प्रस्तावना लिखी है ।
2011 में ब्लूम्सबरी प्रेस से रिचर्ड विलकिन्सन और केट पिकेट की किताब ‘द स्पिरिट लेवेल: ह्वाइ ग्रेटर इक्वलिटी मेक्स
सोसाइटीज स्ट्रांगर’ का प्रकाशन हुआ ।
2011 में मेट्रोपोलिटन बुक्स से ग्लेन ग्रीनवाल्ड की किताब ‘विथ लिबर्टी ऐंड जस्टिस फ़ार सम: हाउ द लाइज यूज्ड टु डेस्ट्राय
इक्वलिटी ऐंड प्रोटेक्ट द पावरफ़ुल’ का प्रकाशन हुआ ।
2011 में मंथली रिव्यू प्रेस से जान मार्श की किताब ‘क्लास डिसमिस्ड: ह्वाई वी कैन नाट टीच आर लर्न आवर वेआउट
आफ़ इनइक्वलिटी’ का
प्रकाशन हुआ । लेखक ने शिक्षा के मामले में विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों और नगर
के साधारण जनसमुदाय के बीच मौजूद विषमता को दीक्षान्त समारोहों के जरिए समझाने की कोशिश
की है । जो अध्यापक विश्वविद्यालय परिसर तक ही सिमटे रहते हैं वे नागरिकों से कभी नहीं
मिलते इसलिए उनकी आर्थिक स्थिति के बारे में भी नहीं जानते । इस दीवार को तोड़ने के
लिए लेखक ने विश्वविद्यालय के अध्यापकों द्वारा नगर में रात्रि कक्षाओं का आयोजन शुरू
किया । इन कक्षाओं में सब कुछ मुफ़्त था । अठारह से पैंतालिस साल की उम्र के गरीब इनमें
आते थे । उनमें आम तौर पर स्त्रियों की संख्या अधिक होती थी और वे अल्पसंख्यक समुदायों
की होती थीं ।
2011 में बेसिक बुक्स से ब्रांको मिलानोविक की किताब ‘द हैव्स ऐंड द हैव-नाट्स: ए ब्रीफ़ ऐंड इडियोसिंक्रेटिक हिस्ट्री
आफ़ ग्लोबल इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के अनुसार किताब में इतिहास और
वर्तमान में आय और संपत्ति संबंधी विषमता का विवेचन किया गया है ।
उनका कहना है कि सत्ता और संपत्ति का भेद सभी मानव समाजों में पाया जाता है । विषमता
सामाजिक परिघटना है । यह सापेक्षिक होती है । इसका अस्तित्व मनुष्यों के ऐसे समूह में
होता है जिनके बीच सरकार, भाषा, धर्म या स्मृतियों की साझेदारी हो । किताब में मनोरंजक
तरीके से बताया गया है कि हमारे दैनंदिन जीवन के कई क्षेत्रों में आय और संपत्ति संबंधी
विषमता मौजूद है । अपने सुपरिचित प्रसंगों को भी दूसरे कोण से देखने पर विषमता नजर
आ सकती है । मकसद यह दिखाना है कि अमीरी और गरीबी हमारे जीवन में मौजूद रहे हैं ।
किताब में तीन तरह की विषमताओं को उजागर किया गया है । एक तो वह जो किसी एक ही
समुदाय के विभिन्न व्यक्तियों के बीच होती है । इसे हम बहुत आसानी से पहचान सकते हैं
क्योंकि यह शब्द सुनते ही सबसे पहले हमारे दिमाग में इसी किस्म की विषमता का ध्यान
आता है । दूसरी वह जो विभिन्न देशों के बीच मौजूद होती है । जब भी हम किसी अन्य देश
की यात्रा पर जाते हैं या अंतर्राष्ट्रीय समाचार देखते हैं तो इस प्रकार की विषमता
नजर आती है । कुछ देशों में अधिकांश लोग गरीब नजर आते हैं जबकि कुछ अन्य देशों में
अधिकतर लोग अमीर नजर आते हैं । देशों के बीच की यह विषमता प्रवास में भी झलकती है जिसके
तहत गरीब देशों के कामगार संपन्न देशों में बेशी कमाई के लिए जाते हैं । तीसरा प्रकार
वैश्विक विषमता का है जो ऊपर बताई गई दोनों प्रकार की विषमता का जमाजोड़ है । यह चीज
वैश्वीकरण के बाद उभरी है क्योंकि उसके बाद ही हम अपनी हालत की तुलना दूसरे देश के
लोगों के साथ करने के आदी हुए हैं । जैसे जैसे वैश्वीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी इस
तरह की विषमता का प्रसार होगा ।
इन विषमताओं को स्पष्ट करने के लिए किस्सों का सहारा लिया गया है । तीनों खंडों
के शुरू में संबंधित विषमता के बारे में अर्थशास्त्रियों के लेख दिए गए हैं । किस्सों
के मुकाबले लेख थोड़ा अधिक ध्यान की मांग करते हैं । किताब के अंत में आगे के अध्ययन
के लिए एक पुस्तक सूची भी दी गई है । लेखक पिछले पचीस सालों से विषमता का अध्ययन कर
रहे थे जिसके चलते उनके पास आंकड़ों, सूचनाओं और किस्सों का भंडार जमा हो गया था इसलिए लिखते
समय विशेष असुविधा नहीं हुई । साफ है कि किताब के लेखन में लेखक को संख्याओं और इतिहास
से अपने लगाव से भारी मदद मिली । इसके जरिए जो लक्ष्य वे पाना चाहते थे वे थे- रोचक तरीके से किस्से पढ़ते हुए पाठक
का कुछ नए तथ्यों से परिचय कराना, संपत्ति और आमदनी के मामले में विषमता के दबा दिए गए मुद्दे
को चर्चा में ले आना और पुराने किस्म की सामाजिक सक्रियता को प्रेरित करने के लिए खासकर
संकट के समय अमीरी गरीबी के सवाल को बहस के केंद्र में स्थापित करना । वे चाहते हैं
कि लोग अश्लील किस्म की अमीरी के औचित्य पर सवाल खड़ा करें । वे यह भी चाहते हैं कि
देशों के भीतर और देशों के बीच मौजूद भारी विषमता को भी स्वीकार न कर लिया जाए ।
ये ऐसे सवाल हैं जिनकी उपेक्षा आसानी से जनमत के तमाम निर्माता कर बैठते हैं ।
उनका तर्क होता है कि सभी विषमताओं का जन्म बाजार से होता है और इस पर बहस करने से
कोई लाभ नहीं है । लेकिन लेखक का कहना है कि इनका जन्म बाजार से न होकर राजनीतिक शक्ति
की सापेक्षिकता से होता है और बाजार का नाम लेकर इन पर बात करने से बचना मुश्किल है
। बाजार आधारित अर्थतंत्र भी समाज की रचना है और इसका निर्माण जनता की सुविधा के लिए
हुआ है । इसलिए किसी भी लोकतांत्रिक समाज में जनता के पास इसके संचालन के बारे में
सवाल करने का अधिकार होगा । अंत में लेखक ने कहा है कि उनके तमाम निष्कर्ष विश्व बैंक
के सर्वेक्षणों पर आधारित गणना से हासिल है ।
2011 में पोलिटी से ज़िगमुंत बौमान की किताब ‘कोलेटरल डैमेज: सोशल इक्वलिटीज इन ए ग्लोबल एज’ का प्रकाशन हुआ ।
2011 में वेस्टव्यू प्रेस से डेविड बी ग्रुस्की और
ज़ोन्जा ज़ेलेन्यी के संपादन में ‘द इनइक्वलिटी रीडर: कनटेम्पोरेरी ऐंड फ़ाउंडेशनल
रीडिंग्स इन रेस, क्लास, ऐंड जेंडर’ का प्रकाशन हुआ । इसका दूसरा संस्करण 2018 में
रटलेज से छपा है । पहले भाग में ग्रुस्की की भूमिका के अतिरिक्त किताब के नौ भागों
में लगभग सतहत्तर लेख संकलित हैं । दूसरे भाग में विषमता के लाभों के बारे में तीन
लेख हैं । तीसरे भाग में सामाजिक विषमता के तहत सामाजिक वर्ग, हैसियत और आमदनी पर
विचार करने वाले लेख हैं । चौथे भाग में विषमता के ध्रुवांत का विवेचन है जिसमें
शासक वर्गों और दरिद्र निम्न वर्गों के बारे में विचार किया गया है । पांचवें भाग
के लेखों का विषय नस्ली और नृजातीय विषमता है । इसमें नस्ली कोटियों की रचना,
समाहित करने के तरीकों, भेदभाव, पूर्वाग्रह और छवि निर्माण तथा नस्ली और नृजातीय
विषमता का भविष्य आदि पर विचार किया गया है । छठवें भाग में लैंगिक विषमता का
विश्लेषण करते हुए कोटियों की रचना, श्रमिकों की भागीदारी, भेदभाव, सेक्स आधारित
अलगाव, मजदूरी में लिंग आधारित अंतर तथा वैश्वीकरण और लिंग पर विचार किया गया है ।
सातवें भाग में विषमता के लैंगिक पहलू को उठाया गया है और इसके तहत गतिशीलता के
अनुभव, शैक्षिक और समाजार्थिक गतिशीलता की संरचना, हैसियत और आमदनी की उपलब्धि तथा
सामाजिक पूंजी, सम्पर्क और उपलब्धि की छानबीन की गई है । आठवें भाग के लेखों में
विषमता के परिणम पर बात की गई है । नवें भाग में वैश्वीकरण और विषमता की चर्चा है
। आखिरी दसवें भाग के लेखों में कर्तव्य का निर्धारण करते हुए आर्थिक प्रेरणा और
रोजगार, किशोर शिक्षा, पड़ोस और दरिद्रता, रोजगार और बेरोजगारी, संपत्ति और बचत,
कराधान और पुनर्वितरण तथा अधिकारियों की क्षतिपूर्ति के साथ सावधानियों के बारे
में बताया गया है ।
2012 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से सैमुअल बोल्सकी क्रिस्टीना फ़ांग, हर्बर्ट गिन्टिस, अर्जुन जयदेव और उगो पगानो के साथ
मिलकर लिखी किताब ‘द न्यू इकोनामिक्स आफ़ इनइक्वलिटी ऐंड रीडिस्ट्रीब्यूशन’ का प्रकाशन हुआ ।
2012 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से सैमुएल बोल्स की किताब ‘द न्यू इकोनामिक्स आफ़ इनइक्वलिटी ऐंड
रीडिस्ट्रीब्यूशन’ का प्रकाशन हुआ ।
2012 में बेरेट-कोएहलर
पब्लिशर्स से चक कोलिन्स की किताब ’99 टु 1: हाउ वेल्थ इनइक्वलिटी इज रेकिंग द वर्ल्ड ऐंड ह्वाट वी
कैन डू एबाउट इट’ का प्रकाशन हुआ ।
2012 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से जेम्स के गालब्रेथ की किताब ‘इनइक्वलिटी ऐंड इनस्टैबिलिटी: ए स्टडी आफ़ द वर्ल्ड इकोनामी जस्ट
बिफ़ोर द ग्रेट क्राइसिस’ का प्रकाशन हुआ ।
2012 में ब्लूम्सबरी से टिमोथी नोआ की किताब ‘अमेरिका’ज ग्रोइंग इनइक्वलिटी क्राइसिस ऐंड
ह्वाट वी कैन डू एबाउट इट’ का प्रकाशन हुआ । किताब में चित्र कैथरीन मुलब्रैंडन
के बनाए हुए हैं । भूमिका में लेखक ने बात इस तथ्य से शुरू की है कि पिछले तैंतीस
सालों के दौरान अमेरिका के धनिकों और मध्यवर्ग के बीच दूरी बढ़ी है । देश की कुल
आमदनी में अमीरों का हिस्सा बढ़ता गया है जबकि मध्यवर्ग का हिस्सा कम होता गया है । इस तथ्य पर आम लोगों और पत्रकारों का
ध्यान नहीं गया क्योंकि तीन दशकों में ऐसा होने के कारण बदलाव की रफ़्तार धीमी थी ।
इसके पहले के पांच दशकों में इसका उलटा घटित हुआ था । अमीरों के हाथ लगनेवाला देश
की आय का हिस्सा या तो कम होता गया था या स्थिर रहा था । 1980 दशक के पूर्वार्ध में जब अमीरों का
हिस्सा बढ़ने के शुरुआती संकेत मिले तो अर्थशास्त्रियों को महसूस हुआ कि यह
प्रवृत्ति अस्थायी है या गिनती में गड़बड़ी हो रही है । अमेरिकी लोग आमदनी के
लोकतंत्रीकरण को अपनी जीवन स्थिति का अनुभव मानते थे और यही झूठ साबित हो रहा था ।
आमदनी की विषमता इतनी धीमी रफ़्तार से बढ़ती गई कि लोग चौंके नहीं । यह उदासीनता 2011 में अकुपाई वाल स्ट्रीट के रूप में
खत्म हुई ।
अमेरिकी लोग अपने देश को क्रमश: समता की ओर बढ़ता हुआ देश समझने के आदी हो गए थे । एक
हद तक यह सही भी था । जब अमेरिका की स्थापना हुई उसके बाद दो सदियों में नागरिक
अधिकार का क्रमश: विस्तार हुआ । संपत्तिहीनों, अश्वेतों, स्त्रियों और मूलवासियों को ये
अधिकार मिलते गए । हाल में समलिंगी विवाह के लिए लड़ाई के परिणामस्वरूप इसे छह
राज्यों में मान्यता भी मिल गई । लगता था कि बस कुछ दिनों में ही समूचे देश में
इसे जायज मान लिया जाएगा । कानूनी दृष्टि से भी समता का विस्तार हो रहा था । लग
रहा था कि यही प्रक्रिया आर्थिक जीवन में भी चलेगी । अर्थशास्त्रियों को लगता था
कि विकसित औद्योगिक लोकतंत्र की निशानी आमदनी में समानता की बढ़ोत्तरी है ।
2012 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से पाब्लो बेरामेन्दी की किताब ‘द पोलिटिकल जियोग्राफी आफ़
इनइक्वलिटी: रीजन्स
ऐंड रीडिस्ट्रीब्यूशन’ का प्रकाशन हुआ ।
2012 में द पेंग्विन प्रेस से क्रिस्टिया फ़्रीलैन्ड की किताब ‘प्लूटोक्रैट्स: द राइज आफ़ द न्यू ग्लोबल सुपर-रिच ऐंड द फ़ाल आफ़ एवरीवन एल्स’ का प्रकाशन हुआ ।
2012 में कोलम्बिया यूनिवर्सिटी प्रेस से माइकेल जे थाम्पसन की किताब 'द पोलिटिक्स आफ़ इनइक्वलिटी: ए
पोलिटिकल हिस्ट्री आफ़ द आइडिया आफ़ इकोनामिक इनइक्वलिटी इन अमेरिका' का लेखक की नई भूमिका के साथ
पेपरबैक संस्करण प्रकाशित हुआ । इससे पहले 2007 में यह किताब छपी थी ।
2012 में पालिसी प्रेस से हेलेन राबर्ट्स की किताब ‘ह्वाट वर्क्स इन रिड्यूसिंग इनइक्वलिटीज
इन चाइल्ड हेल्थ’ का दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ । इससे पहले 2000 में यह किताब छपी थी ।
2012 में पालग्रेव मैकमिलन से पियरे डब्ल्यू ओरेलुस और करी एस मेलाट की किताब ‘रैडिकल वायसेज फ़ार डेमोक्रेटिक
स्कूलिंग: एक्सपोजिंग नियोलिबरल इनइक्वलिटीज’ का प्रकाशन हुआ ।
2012 में बीकन प्रेस से लिंडा मैकक्वेग और नील
ब्रूक्स की किताब ‘बिलिनेयर्स’ बाल: ग्लुटनी ऐंड ह्यूब्रिस इन ऐन एज आफ़ एपिक
इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2013 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस
से आंगुस डीटन की किताब ‘द ग्रेट एस्केप: हेल्थ, वेल्थ ऐंड द ओरिजिन्स आफ़
इनइक्वलिटी’ का
प्रकाशन हुआ । किताब का
शीर्षक जेल से बच निकलने की कोशिशों पर बनी एक फ़िल्म से लिया गया है लेकिन किताब
में इसका अर्थ अभाव और अकाल मृत्यु से बच निकलने की कोशिश है । ऐसे लोगों ने अपने
जीवन को बेहतर बनाने के लिए हाड़तोड़ परिश्रम किया और दूसरों के लिए अनुकरणीय उदाहरण
भी बने । लेखक के पिता ऐसे ही लोगों में से थे ।
2013 में पोलिटी से गोरान थेर्बार्न की किताब ‘द
किलिंग फ़ील्ड्स आफ़ इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2014
में प्रकाशित फ़्रांसिसी अर्थशास्त्री थामस पिकेटी की किताब ‘कैपिटल इन द ट्वेंटी फ़र्स्ट सेंचुरी’ की चर्चा सबसे अधिक हो रही है । पिकेटी का आँकड़ों से लगाव इस बात से
जाहिर होता है कि असमानता के इस अध्ययन में बीस से अधिक देशों के पिछले दो सौ सालों
से ज्यादा समय के आँकड़ों का विश्लेषण किया गया है । इस आधार पर उन्हें विषमता में बढ़ोत्तरी
दिखाई पड़ती है । वे ‘सह-संबंध’ तो स्थापित करते हैं लेकिन ‘कारणों’ पर विचार नहीं करते । कुछ हद तक इसके
चलते भी यह किताब इसी विषय पर लिखी अन्य पूर्ववर्ती किताबों से अलग है । मुख्य रूप
से वे विकसित देशों को अपने अध्ययन का विषय बनाते हैं । चूँकि विकसित देशों में 99% बनाम 1% का संघर्ष अकुपाई आंदोलनों और कटौती
विरोधी आंदोलनों के रूप में सामने आया इसीलिए इस किताब को लोकप्रियता भी उन्हीं देशों
में हासिल हुई है । अमेरिकी समाज में हाल के दिनों में विषमता में आई वृद्धि के प्रति
विक्षोभ का एक कारण यह है कि बीसवीं सदी के ज्यादातर समय वहां विषमता यूरोप के मुकाबले
कम रही है जबकि इस सदी में वह यूरोप से अधिक हो गई है । आंकड़ों के सहारे पिकेटी ने
साबित किया है कि विकसित देशों में पिछले ढाई सौ सालों में विषमता अबाध गति से बढ़ती
रही है, केवल
दोनों विश्वयुद्धों के बीच का समय ऐसा रहा जब इसमें गिरावट देखी गई । दोनों महायुद्धों
में संसाधनों की जिस पैमाने पर बर्बादी हुई उसने सब पर असर डाला इसीलिए यह गिरावट नजर
आती है । विकसित देशों में संपदा
के मामले में बढ़ती
विषमता का उनका अध्ययन
एक खास सूत्र पर टिका
हुआ है । वे कहते हैं कि पूँजी पर मुनाफे
की दर अर्थतंत्र में वृद्धि
की दर से अधिक
बनी हुई है इसलिए
इस विषमता के कम होने के कोई
आसार नहीं हैं । वे यह भी कहते हैं कि इसके चलते किरायाभोगी (रेंटियर) पूँजी
की बाढ़ आई हुई
है जो मुख्य रूप से सट्टा बाजार में लगी
हुई है और उसी
के मुनाफ़े पर टिकी
हुई है । पिकेटी
का कहना है कि इसके चलते लोकतांत्रिक
व्यवस्था को खतरा पैदा
हो गया है । इसके समाधान के बतौर
वे प्रगतिशील आय-कर, विरासत कर आदि
से अलग वैश्विक संपदा कर भी लादने का प्रस्ताव
कर रहे हैं । फ़्रांस के रहनेवाले
पिकेटी के लिए संपदा
कर कोई नई बात
नहीं है क्योंकि राजनीतिक क्रांतियों के इस देश में विषमता
को बढ़ने से रोकने
के लिए इसका प्रावधान
लंबे दिनों से है । किताब की
लोकप्रियता का कारण है कि अमेरिकी लोग असमानता को समझना चाहते हैं क्योंकि यह उनका प्रतिदिन का अनुभव हो
चुका है । सबसे धनी 1% लोगों के पास
सबसे गरीब 90% लोगों से अधिक
संपत्ति जमा हो गई है । दुनिया के सबसे धनी
85 लोगों के पास सारी संपत्ति का आधा हिस्सा है ।
2010 में अमेरिका में होनेवाली कुल आमदनी का
93% सबसे अमीर 1% लोगों के
हिस्से आया । यह विषमता आर्थिक वृद्धि के लिए बाधा बन गई है । सही बात है कि
असमानता कम होने से आर्थिक वृद्धि तेज होती है । इसका उदाहरण दूसरे विश्वयुद्ध के
बाद के दशक हैं । अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के एक शोधपत्र में भी माना गया है कि
समतापरक समाजों में तीव्र आर्थिक वृद्धि देखी गई है । विषमता के चलते सामाजिक
अस्थिरता पैदा होती है । समाज में दरारें पैदा होती हैं और नीचे पड़े लोग अपने आपको
अधिकारविहीन समझने लगते हैं । बाजार पर से भरोसा उठने लगता है और लगता है कि लोगों
की संपत्ति उठाकर धनियों को सौंप दी जा रही है । संपत्ति का स्रोत जोड़तोड़ नजर आने
लगता है । मसलन धनी लोगों को फायदा पहुंचानेवाले टैक्स के कानून बनाए जाते हैं ।
दवा कंपनियों के मालिकान ने दवाओं के कम दामवाले चिकित्सा कार्यक्रम को अमेरिकी कांग्रेस में रुकवाने के लिए
राजनेताओं की गोलबंदी की और 50 बिलियन डालर
का सालाना मुनाफा कमाया ।
नोबेल पुरस्कार से समानित अर्थशास्त्री जोसेफ स्तिगलित्ज की किताब ‘द प्राइस आफ़ इन-इक्वलिटी’ की भी चर्चा हो रही है जो डब्ल्यू डब्ल्यू नार्टन ऐंड कंपनी
द्वारा 2012 में न्यूयार्क और लंदन से
एक साथ प्रकाशित हुई थी । इस किताब का उप-शीर्षक है ‘हाउ टुडे’ज सोसाइटी
एनडैंजर्स आवर फ़्यूचर’ । लेखक ने बताया है कि रोजगार और
घरों की समस्या से आगे जल्दी ही आंदोलन में अमेरिकी समाज की तमाम विषमताओं पर
चर्चा होने लगी । आंदोलनकारियों ने खुद को 99% घोषित किया । इन आंदोलनों में तीन
बातें दिखाई पड़ीं । एक कि बाजार को जिस तरह काम करना चाहिए था उस तरह उसने काम
नहीं किया क्योंकि वह सक्षम और स्थिर नहीं साबित हुआ; दूसरे कि राजनीतिक तंत्र ने
बाजार की विफलता में सुधार नहीं किया और; तीसरे कि आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था
बुनियादी रूप से अन्यायी है । राजनीतिक व्यवस्था की विफलता का कारण और परिणाम
विषमता है । उस विफलता से अर्थतंत्र में अस्थिरता पैदा होती है और फिर इससे विषमता
में इजाफ़ा होता है । इस दुष्चक्र से बाहर निकलने के लिए कारगर नीतियां भी इस किताब
में सुझाई गई हैं ।
2014 में वर्सो से डैनी डोरलिंग की किताब ‘इनइक्वलिटी ऐंड द 1%’ का प्रकाशन हुआ ।
2014 में स्प्रिंगेर से जेन डी मैकलियाड, एडवार्ड जे लालर और माइकेल श्वाल्बे के संपादन में ‘हैन्डबुक आफ़ द सोशल साइकोलाजी आफ़ इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । किताब में संकलित
अठाइस लेखों को पांच हिस्सों में संयोजित किया गया है । पहला हिस्सा परिप्रेक्ष्य और
धारणाओं से जुड़े पांच लेखों का है । दूसरे हिस्से में नौ लेख हैं जिनमें विषमता के
सृजन, पुनरुत्पादन
और प्रतिरोध के बारे में विचार किया गया है । तीसरा हिस्सा विषमता के संदर्भों के बारे
में है और इसमें चार लेखों में परिवार, स्कूल, कार्यक्षेत्र और पड़ोस को देखा गया है । चौथा हिस्सा विषमता
के विभिन्न आयामों पर छह लेखों का संकलन है । आखिरी पांचवां हिस्सा विषमता के परिणामों
के बारे में लिखे तीन लेखों का है । संपादकों ने अपनी भूमिका में किताब की विषयवस्तु
और योजना के बारे में विस्तार से बताया है । उनका कहना है कि समाजशास्त्र के लिए विषमता
के कारण और उसके परिणामों का अध्ययन बुनियादी बात है । इस अनुशासन के विद्वान विषमता
की प्रकृति, इसके
जन्म और स्थायित्व तथा व्यक्ति, समूह और समाज पर इसके प्रभाव के बारे में विचार करते रहे
हैं । इसका अध्ययन विभिन्न संदर्भों में हुआ है मसलन राष्ट्रों के बीच विषमता, उसके भीतर के समूहों के बीच विषमता
तथा व्यक्तियों और समूहों के बीच विषमता आदि ।
2014 में एंथम प्रेस से जान एफ़ वीक्स की किताब ‘इकोनामिक्स आफ़ द 1%: हाउ मेनस्ट्रीम इकोनामिक्स सर्व्स
द रिच, आब्सक्योर्स
रियलिटी ऐंड डिस्टार्ट्स पालिसी’ का प्रकाशन हुआ । स्पष्ट है कि ‘अकुपाई वाल स्ट्रीट’ आंदोलन के इस नारे ने विषमता के
मौजूदा स्तर को सही अभिव्यक्ति दी और किताब पर उसका असर प्रत्यक्ष है । लेखक का
कहना है कि मुख्यधारा के अर्थशास्त्रियों ने काफी दिनों से यह धारणा बरकरार रखने
में सफलता पाई है कि अर्थतंत्र की जटिल कार्यपद्धति की समझदारी विशेषज्ञों को ही
हो सकती है । इसके लिए उन्होंने तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया । किताब इस झूठ
के विरोधी अर्थशास्त्रियों को समर्पित है जिन्हें मुख्यधारा के लोग विधर्मी और
अयोग्य कहकर बहिष्कृत कर देते हैं । जिस तरह ज्योतिषी और कीमियागर प्राकृतिक
दुनिया की सही समझदारी में बाधा बने हुए हैं उसी तरह मुख्यधारा का अर्थशास्त्र ढेर
सारी विसंगतियों के भारी बोझ को सिद्धांत ठहराता है । वे ऐसी बेवकूफी भरी बातें
करते हैं कि आमदनी के मामले में लिंग और नस्ल आधारित भेदभाव भ्रम है और बेरोजगारी
स्वैच्छिक होती है ।
2014 में उल्स्टर इंस्टीच्यूट फ़ार सोशल रिसर्च से तातूवानहानेन की किताब ‘ग्लोबल इनइक्वलिटी ऐज ए
कन्सीक्वेन्स आफ़ ह्यूमन डायवर्सिटी: ए न्यू थियरी टेस्टेड बाइ एम्पीरिकल एविडेन्स’ का प्रकाशन हुआ।
2014 में ज़ेड बुक्स से लेता हांग फ़िंचर की किताब ‘लेफ़्टओवर वीमेन: द रिसर्जेन्स आफ़
जेंडर इनइक्वलिटी इन चाइना’ का प्रकाशन हुआ ।
2014 में द न्यू प्रेस से डेविड के जान्सटन के संपादन में ‘डिवाइडेड: द पेरिल्स आफ़ आवर
ग्रोइंग इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । संपादक की भूमिका के अतिरिक्त किताब
में आर्थिक विषमता, शैक्षिक विषमता, चिकित्सा संबंधी विषमता, कर्ज और गरीबी, नीतियों में भेदभाव और परिवार के
भीतर की विषमता आदि पर विचार करने वाले लेख संकलित हैं । शुरू में समस्या को
समग्रता में देखने के लिए ओबामा का एक लेख, मध्यवर्ग की समाप्ति और स्मिथ का
एक लेख भी रखे गए हैं । अंत में आगे के अध्ययन हेतु एक पुस्तक सूची भी दी गयी है ।
2015 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से एंथनी बी एटकिंसन की किताब ‘इनइक्वलिटी: ह्वाट कैन बी डन?’ का प्रकाशन हुआ है । ध्यातव्य है
कि पिकेटी की किताब के प्रकाशन के बाद से विषमता पर गंभीरता से विचार विमर्श शुरू हो
गया है । कदाचित इसीलिए इस किताब की समीक्षा भी पिकेटी ने की है ।
2015 में डब्ल्यू डब्ल्यू नार्टन कंपनी से जोसेफ ई स्तिग्लित्ज़ की किताब ‘द ग्रेट डिवाइड: अनइक्वल सोसाइटीज ऐंड ह्वाट वी कैन
डू एबाउट देम’ का
प्रकाशन हुआ । लेखक के मुताबिक इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि अमेरिका के
सबसे धनी और शेष लोगों के बीच भारी भेद है । उनकी चिंताएं, आकांक्षाएं और जीवन
शैली बहुत भिन्न हैं । आम लोग अपने बच्चों की फ़ीस, परिवार की हारी बीमारी और अवकाश
प्राप्ति के बाद के जीवन के बारे में सोचते हैं । हाल की मंदी के बाद घर बचाने की
चिंता भी व्यापक हो चली थी । इसके विपरीत धनी लोग हवाई जहाज की नई किस्म की
खरीदारी या टैक्स बचाने के उपाय के बारे में सोचते हैं । लेखक को किसी अनौपचारिक
जुटान में कुछ खरबपतियों से मिलने का अवसर मिला । वे लगातार गरीबों में मुफ़्तखोरी
की शिकायत कर रहे थे । कुछ देर बाद वे लोग टैक्स बचाने के उपायों की चर्चा में
मशगूल हो गए और उन्हें इसमें कोई शर्म नहीं महसूस हुई कि यह भी मुफ़्तखोरी है
।
2015 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से हैरी जी फ़्रैंकफ़ुर्त की किताब ‘आन इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के दार्शनिक
होने के चलते किताब विषमता के बारे में नैतिकता के पहलू से विचार करती है ।
2015 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस
से फ़्रांसुआ बूर्गियों की 2012 में फ़्रांसिसी में छपी किताब का अंग्रेजी अनुवाद ‘द ग्लोबलाइजेशन आफ़ इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । अनुवाद थामस
स्काट रैलटन ने किया है ।
2015 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से कार्लेस बोइ की किताब ‘पोलिटिकल आर्डर ऐंड इनइक्वलिटी: देयर फ़ाउंडेशंस ऐंड देयर
कंसीक्वेन्सेज फ़ार ह्यूमन वेलफ़ेयर’ का प्रकाशन हुआ ।
2015 में येल यूनिवर्सिटी प्रेस से मैथ्यू पी ड्रेनान की किताब ‘इनकम इनइक्वलिटी: ह्वाइ इट मैटर्स ऐंड ह्वाइ मोस्ट
इकोनामिस्ट्स डिड नाट नोटिस’ का प्रकाशन हुआ ।
2015 में पालिसी प्रेस से डैनी डोरलिंग की किताब ‘इनजस्टिस: ह्वाइ सोशल इनइक्वलिटी स्टिल
परसिस्ट्स’ का
संशोधित संस्करण प्रकाशित हुआ । पांच साल पहले इस किताब का पहला संस्करण छपा था ।
उसमें अन्याय के पांच सूत्र लेखक ने गिनाए थे- 1) कुलीनता से क्षमता पैदा होती है, 2) बहिष्कार आवश्यक है, 3) पूर्वाग्रह स्वाभाविक है, 4) लालच अच्छी चीज है, और 5) निराशा अपरिहार्य है ।
2015 में ज़ेड बुक्स से टिम डि मुज़ियो की किताब ‘द 1 % ऐंड द रेस्ट आफ़ अस: ए पोलिटिकल इकोनामी आफ़ डामिनेन्ट
ओनरशिप’ का
प्रकाशन हुआ ।
2015 में द बेल्कनैप प्रेस आफ़ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से थामस पिकेटी की
फ़्रांसिसी किताब का अंग्रेजी अनुवाद ‘द इकोनामिक्स आफ़ इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । अनुवाद आर्थर
गोल्डहैमर ने किया है । पाठकों के लिए लिखी टिप्पणी में बताया गया है कि किताब
पहली बार 1997 में छपी थी । इसके बाद ढेर सारे नए संस्करण होते रहे । इन सबमें इसे नवीकृत
किया गया । सबसे हाल में 2014 में इसका नवीकरण हुआ है । लेकिन मूल ढांचे में बहुत
हेरफेर नहीं किया गया है । उनका यह भी कहना है कि विषमता और आमदनी के पुनर्वितरण
का सवाल राजनीतिक टकराव के केंद्र में रहा है । मुक्त बाजार के समर्थक दक्षिणपंथी
लोगों का कहना है कि दीर्घकाल में बाजार की ताकतें, निजी पहल और उत्पादकता में वृद्धि
से आमदनी का वितरण और जीवन स्तर निर्धारित होता है । सरकार को इस मोर्चे पर कोई
दखल नहीं देना चाहिए । इसके विपरीत वामपंथी लोगों की राय उन्नीसवीं सदी के
समाजवादी सिद्धांत और ट्रेड यूनियनों के व्यवहार से प्रभावित है । उनका कहना है कि
पूंजीवादी समाज में सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष के जरिए गरीबी दूर की जा सकती है
और सरकार को उत्पादक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करके आय के पुनर्वितरण का दायित्व
निभाना चाहिए । उनके मुताबिक पूंजीपतियों के लिए मुनाफ़ा और मजदूरों के लिए बेहद कम
मजदूरी निर्धारित करनेवाली बाजार की ताकतों को काबू करने के लिए उत्पादन के साधनों
के राष्ट्रीकरण और कठोरता से मजदूरी तय करने का तरीका अपनाना होगा।
2015 में सेज से शेली के ह्वाइट, जोनाथन एम ह्वाइट और कैथलीन ओडेल कोरगेन के संपादन
में ‘सोशलिस्ट्स
इन ऐक्शन आन इनइक्वलिटीज: रेस, क्लास, जेंडर, ऐंड सेक्सुअलिटी’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की
प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब में पांच अध्याय बनाकर प्रत्येक अध्याय में विचारणीय
विषय पर तमाम लेखकों के लेख संग्रहित हैं । ये अध्याय नस्ल, वर्ग, लिंग, यौनिकता और इनकी आपसदारी के बारे
में हैं । प्रस्तावना में समाजशास्त्र की क्षमता का वर्णन है । इसके तहत समस्याओं
की पहचान तो की ही जाती है, उनके समाधान का रास्ता भी सुझाया जाता है ।
2015 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से एलन फ़ेल्सटेड, डंकन गेली और फ़्रांसिस ग्रीन के
संपादन में ‘अनइक्वल
ब्रिटेन ऐट वर्क’ का प्रकाशन हुआ । किताब में दस लेख शामिल किए गए हैं
। इनमें से अनेक संपादकों के लिखे या उनके साथ मिलकर किसी और के लिखे लेख हैं
।
2015 में पालिसी प्रेस से स्टीफेन जीवराज और लुदी सिम्पसन के संपादन में
‘एथनिक आइडेन्टिटी ऐंड इनइक्वलिटीज इन ब्रिटेन: द डायनामिक्स आफ़ डाइवर्सिटी’ का
प्रकाशन हुआ । संपादकों की भूमिका और उपसंहार के अतिरिक्त किताब में बारह लेख
संकलित हैं । इन्हें दो हिस्सों में रखा गया है । पहले हिस्से में नृजातीय विविधता
और अस्मिता से जुड़े लेख हैं तो दूसरे हिस्से में नृजातीय विषमता की छानबीन की गई है
।
2015 में फ़रानक मिराफ़ताब, डेविड विल्सन और केन ई सालो
के संपादन में ‘सिटीज ऐंद इनइक्वलिटीज इन ए ग्लोबल ऐंड नियोलिबरल वर्ल्ड’ का
प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब के दो हिस्सों में कुल
बारह लेख संकलित हैं । इस किताब के पहले हिस्से के लेखों में दुनिया भर के नगरों
में विषमता की शिनाख्त की गयी है तो दूसरे हिस्से में नगरों के प्रतिरोध और विद्रोह का विवेचन करने वाले
लेख शामिल हैं ।
2016 में द बेल्कनैप प्रेस आफ़ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी
प्रेस से ब्रांको मिलानोविक की किताब ‘ग्लोबल इनइक्वलिटी: ए न्यू अप्रोच फ़ार द एज आफ़ ग्लोबलाइजेशन’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि
उनकी यह किताब आम तौर पर आय संबंधी विषमता और खासकर वैश्विक विषमता के बारे में वर्षों
के शोध का परिणाम है । किताब में वैश्विक परिप्रेक्ष्य से आय संबंधी विषमता के साथ
ही असमानता से जुड़े राजनीतिक मुद्दों पर भी ध्यान दिया गया है । बहरहाल चूंकि सारी
दुनिया में एक ही सरकार का शासन नहीं है इसलिए विभिन्न राष्ट्र-राज्यों पर भी ध्यान देना पड़ा । देखने
में यह आया कि ढेर सारे वैश्विक सवालों पर राजनीति राष्ट्र-राज्य की सीमाओं में होती है । इसीलिए
मुक्त व्यापार का प्रभाव किसी काल्पनिक वैश्विक स्तर पर नहीं, बल्कि अलग अलग देशों में रह रहे वास्तविक
मनुष्यों पर पड़ता है । उदाहरण के लिए वैश्वीकरण के फलस्वरूप चीन के मजदूर अपनी सरकार
से मुक्त व्यापार के अधिकार की मांग कर सकते हैं जबकि अमेरिकी मजदूर अपनी सरकार से
संरक्षात्मक शुल्क लगाने की मांग कर सकते हैं ।
हालांकि विभिन्न देशों के अर्थतंत्रों का स्वतंत्र महत्व
है और निर्णायक राजनीति भी उसी स्तर पर होती है फिर भी वैश्वीकरण इतनी मजबूत ताकत बन
चुका है कि इससे हमारी आमदनी, रोजगार, ज्ञान और सूचना, खरीद फ़रोख्त और ताजे फलों और सब्जियों
की उपलब्धता पर प्रभाव पड़ा है । विश्व व्यापार संगठन की शर्तों, कार्बन उत्सर्जन की सीमा तथा अंतर्राष्ट्रीय
करचोरी पर रोकथाम जैसी चीजों के जरिए वैश्विक प्रशासन की नवजात प्रक्रिया का भी थोड़ा
बहुत अनुभव हो रहा है । लेखक के अनुसार ऐसी हालत में आय की विषमता को भी महज राष्ट्रीय
परिघटना मानने की जगह वैश्विक परिघटना मानकर विचार करना उचित प्रतीत होता है । इसकी
वजह हमसे जुड़े अन्य देशों के मनुष्यों की हालत में रुचि के अतिरिक्त खरीद बिक्री की
योजना बनाने में सुविधा भी है।इससे प्रवास के लिए अच्छी जगह का चुनाव करने में सहूलियत
होगी। अगर हमें यह पता होगा कि दुनिया के बाकी देशों में क्या चलन है तो हम नियोक्ता
सेअधिक वेतन की भी मांग कर सकते हैं ।
वैश्विक विषमता का अध्ययन करने पर जोर देने का कारण यह
भी है कि इसके लिए आवश्यक जानकारी मानव इतिहास में पहली बार सुलभ हुई है । लेकिन लेखक
के अनुसार इस अध्ययन का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि अगर हम पिछली दो सदियों या खासकर
पिछले पचीस सालों की वैश्विक विषमता के बारे में जानेंगे तो दुनिया में होनेवाले बुनियादी
बदलावों को देख सकेंगे । वैश्विक विषमता में आए बदलाव विभिन्न देशों की आर्थिक-राजनीतिक उन्नति, ठहराव और पतन का प्रतिबिम्ब होते हैं
। इनसे देशों के भीतर विषमता के स्तर में आनेवालों बदलावों का भी पता चलता है और सामाजिक
व्यवस्थाओं या राजनीतिक सत्ता के संक्रमण का भी अनुमान हो सकता है । औद्योगिक क्रांति
के बाद पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका की आर्थिक उन्नति हुई और वैश्विक विषमता में
बढ़ोत्तरी आई। इसी तरह हाल के दिनों में अनेक एशियाई देशों की तीव्र उन्नति से इस विषमता
में कमी आई है । यही बात विषमता के राष्ट्रीय स्तर के बारे में भी सही है । इंग्लैंड
में उद्योगीकरण के आरम्भ में या हाल के दशकों में चीन अथवा अमेरिका में विषमता में
बढ़ोत्तरी का वैश्विक प्रभाव पड़ा है । वैश्विक विषमता का अध्ययन संसार के आर्थिक इतिहास
के बारे में भी जानना है ।
2016 में रटलेज से माइकेल डी येट्स की किताब ‘द ग्रेट इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । भूमिका हेनरी ए गीरू
ने लिखी है । सात्विक क्रोध से भरी इस भूमिका में गीरू बताते हैं कि अमेरिकी समाज नैतिक
रूप से दिवालिया और राजनीतिक रूप से ध्वस्त हो चुका है । अतल गहराइयों की ओर पतित होते
हुए इस देश में अकल्पनीय भी संभव हो चला है । संवैधानिक लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों
का जनाजा निकल चुका है । अमेरिकी सांस्कृतिक उपकरणों में आतंक की राजनीति, भय की संस्कृति और हिंसा के प्रदर्शन
का दबदबा है और इसके सहारे अमेरिकी समाज और सार्वजनिक जीवन के सैनिकीकरण को वैध ठहराया
जाता है । अमेरिकी समाज में अधिनायकवाद का प्रसार मुट्ठीभर कारपोरेट घरानों की अबाध
सत्ता, समाज
के बड़े पैमाने पर उपभोक्ताकरण और राजनीतिक जीवन से सार की समाप्ति के साथ साथ हो रहा
है । इन सबका कारण कुछ हद तक आधुनिक निर्मम पूंजीवाद या नवउदारवाद का उभार है । इस
किस्म के पूंजीवाद में बर्बरता, क्रूरता तथा शोषक उत्पीड़न इतना अधिक है कि न केवल सामाजिक
समझौता, नागरिक
अधिकार और आम जन की धारणा पर खतरा है बल्कि अगर धरती नहीं तो कम से कम राजनीतिक समाज
की धारणा को चुनौती मिल रही है । इस हालत को फ़्रेडरिक जेमेसन ने बहुत अच्छी तरह से
व्यक्त किया जब उन्होंने कहा कि संसार के खात्मे के बारे में सोचना पूंजीवाद के खात्मे
की बात सोचने से अधिक आसान हो गया है । पूंजीवाद ने स्वार्थ और भौतिक संपदा के संग्रह
को गुण में बदल दिया है और टूटे सपनों की संस्कृति को जन्म दिया है । समूचा भूदृश्य
टूटी सड़कों, दिवालिया
नगरों, ढहते
पुलों, बंद
होते स्कूलों और बेरोजगारों से भरा हुआ है । इच्छाशक्ति की सामूहिक विफलता ही आज का
सच है । अब तो उनमें सुधार की उम्मीद नहीं रह गई है । लोग यह भी मानने लगे हैं कि वर्तमान
जुआरी पूंजीवाद जिस पागल हिंसा और आत्मघाती प्रवृत्ति से संचालित हो रहा है उसके चलते
अगर इसका अंत नहीं हुआ तो शायद मानव जीवन और धरती का ही नाश हो जाएगा । बाजार संचालित
विमर्श ने ऐसे समाज को जन्म दिया है जिसने लोकतांत्रिक स्वप्न और सामाजिक मकसद से तौबा
कर लिया है और राजकीय आतंकवाद, सामाजिक समस्याओं के अपराधीकरण तथा क्रूरता की संस्कृति
की गोद में जा बैठा है । जो संस्थाएं पहले मानव जीवन की रक्षा और प्रोत्साहन का काम
करती थीं अब बहुत हद तक दंड देने और जुबान पर ताला लगाने में व्यस्त हैं । पूंजीवाद
किसी भी तरह की सामाजिक जवाबदेही से मुक्त हो चुका है और किसी भी कीमत पर पूंजी संचय
की अबाध इच्छा से संचालित हो रहा है । चूंकि पूंजी की सत्ता वैश्विक हो गई है और राजनीति
स्थानीय है इसलिए शासक समूह मजदूरों या किसी भी समूह को कोई रियायत नहीं दे रहे हैं
। सुरक्षा और संकट का हल्ला पैदा करके भय की संस्कृति थोपी जा रही है । पुलिस को अधिकाधिक
हथियारबंद करने, नागरिक
अधिकारों में कटौती करने, सरकार की दंडात्मक शक्तियों में इजाफ़ा करने, सामान्य आचरण के अपराधीकरण और विक्षोभ
का दमन करने के लिए निरंतर संकट के हालात बरकरार रखे जा रहे हैं । भय के आख्यानों की
गिरफ़्त में समूचा अमेरिका है और इसके सहारे सत्ता के ऐसे रूप जन्म ले रहे हैं जो जवाबदेही
तो छोड़िए किसी भी किस्म की नैतिक और राजनीतिक निष्ठा से शून्य हैं । इसी दु:स्वप्न के भीतर विषमता की लगातार गहराती
हुई खाई है जो अमीर और गरीब को तो बांटती ही है, मध्यवर्ग और कामगार तबकों को भी सर्वहारा
की कतार में धकेल रही है । संपत्ति और आय के संकेंद्रण के चलते मुट्ठीभर वित्तीय कुलीनों
के लिए सारी सत्ता और अधिकांश जनता के लिए अपार कष्ट की स्थिति का जन्म होता है, भय/सुरक्षा उद्योग की प्रेरणा मिलती है
और ढेर सारी सामाजिक बुराइयां पैदा होती हैं ।
2016 में रटलेज से सेबास्तियानो फ़द्दा
और पास्कुआले त्रिदिको के संपादन में ‘वेराइटीज आफ़ इकोनामिक इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2016 में न्यू इंटरनेशनल से बाब ह्यूज की
किताब ‘द
ब्लीडिंग एज: ह्वाइ
टेकनोलाजी टर्न्स टाक्सिक इन ऐन अनइक्वल वर्ल्ड’ का प्रकाशन हुआ ।
2016 में मेट्रोपोलिटन बुक्स से वाल्टर बेन
माइकेल्स की किताब ‘द ट्रबल विथ डायवर्सिटी: हाउ वी लर्न्ड टु लव आइडेन्टिटी ऐंड
इगनोर इनइक्वलिटी’ के दशकीय संस्करण का प्रकाशन हुआ । इस संस्करण के लिए
लेखक ने नया पश्चलेख लिखा है । 2006 में पहली बार यह किताब छपी थी ।
2016 में क्राउन से काठी ओ’नील की किताब ‘वेपन्स आफ़
मैथ डिस्ट्रक्शन: हाउ बिग डाटा इनक्रीजेज इनइक्वलिटी ऐंड थ्रिटेन्स डेमोक्रेसी’ का
प्रकाशन हुआ ।
2016 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से
डैनिएल क्यू गिलियन की किताब ‘गवर्निंग विथ वर्ड्स: द पोलिटिकल डायलाग आन रेस, पब्लिक पालिसी, ऐंड इनइक्वलिटी इन अमेरिका’ का प्रकाशन हुआ ।
2016 में यूनिवर्सिटी आफ़ इलिनोइस प्रेस से
रूथ मिल्कमैन की किताब ‘आन जेंडर, लेबर, ऐंड इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । उनका कहना है कि बीसवीं
सदी के उत्तरार्ध में अमेरिका में लैंगिक विषमता में काफी कमी आयी । इसका कारण साठ
और सत्तर के नारीवादी आंदोलन तो थे ही, उत्तर-औद्योगिक अर्थतंत्र के चलते ऐसा फोकट में भी हुआ । स्त्री
और पुरुष कामगार के वेतन में अंतर घटता गया क्योंकि एक ओर स्त्रियों की पहुंच ऊंचे
पदों तक हुई और दूसरी ओर पुरुष कामगारों के वेतन में अनुद्योगीकरण और यूनियनों की समाप्ति
के चलते ठहराव आया । उत्पादन क्षेत्र में घटोत्तरी और सेवा क्षेत्र के विस्तार के कारण
स्त्री कामगारों की तादाद में इजाफ़ा होता गया । इनमें विवाहिताओं के साथ माताओं की
संख्या भी पर्याप्त थी । पुरुषों पर उनकी निर्भरता अपनी पुरखिनों के मुकाबले घटती गयी
। उनकी कानूनी और सामाजिक हैसियत में भी बदलाव आया ।
2016 में चेल्सिया ग्रीन पब्लिशिंग से चक कोलिन्स की
किताब ‘बार्न आन थर्ड बेस: ए वन परसेन्टर मेक्स द केस फ़ार टैकलिंग इनइक्वलिटी,
ब्रिंगिंग वेल्थ होम, ऐंड कमिटिंग टु द कामन गुड’ का प्रकाशन हुआ ।
2017 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस
से वाल्टर श्चाइडेल की किताब ‘द ग्रेट लेवेलर: वायलेन्स ऐंड द हिस्ट्री आफ़
इनइक्वलिटी फ़्राम द स्टोन एज टु द ट्वेन्टी-फ़र्स्ट सेन्चुरी’ का प्रकाशन हुआ ।
2017 में वर्सो से जेरेमी गान्ज़ के संपादन में ‘द एज आफ़ इनइक्वलिटी: कारपोरेट
अमेरिका’ज
वार आन वर्किंग पीपुल’ का प्रकाशन हुआ । किताब इन दीज टाइम्स नामक पत्रिका
में प्रकाशित प्रचुर सामग्री का संपादित रूप है । उक्त पत्रिका के एक सह संपादक ने
इसका संपादन किया है । इसके लिए इस पत्रिका में पिछले चालीस सालों में छपी सामग्री
की छानबीन की गई है ।
2017 में वाइकिंग से कीथ पेन की किताब ‘द ब्रोकेन लैडर: हाउ इनइक्वलिटी
अफ़ेक्ट्स द वे वी थिंक, लिव, ऐंड डाइ’ का प्रकाशन हुआ ।
2017 में सेंट मार्टिन’स प्रेस से वर्जीनिया यूबैंक्स की
किताब ‘आटोमेटिंग
इनइक्वलिटी: हाउ हाइ-टेक टूल्स प्रोफ़ाइल, पुलिस, ऐंड पनिश द पूअर’ का प्रकाशन हुआ । किताब में निजी
अनुभवों के आधार पर अमेरिका में गरीबों के साथ व्यवस्था के व्यवहार की परीक्षा की
गई है ।
2017 में रैंडम हाउस से जेसन हिकेल की किताब ‘द डिवाइड: ए ब्रीफ़ गाइड टु ग्लोबल
इनइक्वलिटी ऐंड इट्स सोल्यूशंस’ का प्रकाशन हुआ । भूमिका में लेखक ने विषमता के बारे
में अपनी जागरूकता का इतिहास बताया है । जन्म स्वाज़ीलैंड में हुआ था । बचपन मस्ती
में बीता । थोड़ा उम्र बढ़ने पर जानलेवा संक्रामक बीमारियों के बारे में पता चला
जिनमें एड्स सबसे भयप्रद थी । ये बीमारियां दुनिया के विकसित देशों में जानलेवा
नहीं होती थीं, हमारे
इलाके में वे महामारी की शक्ल धारण कर लेती थीं । इससे आगे गरीबी की चेतना पैदा
हुई । आज तो दुनिया की आधी से अधिक आबादी प्रचंड गरीबी से जूझ रही है और दो वक्त
का निवाला भी उनके लिए मुश्किल हो चला है । दूसरी ओर धनी देशों की सम्पदा में अकूत
बढ़ोत्तरी हो रही है । इस समय दुनिया के सबसे अमीर आठ लोगों की सम्पत्ति दुनिया के
आधे गरीब लोगों की सम्पत्ति के बराबर हो गई है ।
2017 में रटलेज से राबर्ट बी विलियम्स की किताब ‘द
प्रिविलेजेज आफ़ वेल्थ: राइजिंग इनइक्वलिटी ऐंड द ग्रोइंग रेशियल डिवाइड’ का
प्रकाशन हुआ । इस किताब को तैयार करने में लेखक को अमेरिका के केंद्रीय बैंक की ओर
से अमेरिकी परिवारों की संपत्ति संबंधी आंकड़ों से बहुत मदद मिली है । लेखक का मनना
है कि अमेरिका में लगभग सभी लोग अमेरिकी सपने के आकर्षण में बंधे रहते हैं । देश
के संस्थापकों ने सभी मनुष्यों की समानता को स्वयं सिद्ध माना था । उन्होंने सबको
जीने, स्वतंत्र रहने और खुशी तलाशने का अनुल्लंघनीय अधिकार प्रदान किया गया था ।
इन सबके चलते अमेरिका को अवसरों का मुल्क होने की ख्याति प्राप्त हुई और बेहतर
जीवन की खोज में लाखों लोग चुम्बक की तरह इस देश में खिंचे चले आये । पहली बार
यहां आये लोगों के वंशजों में आज भी उस अमेरिकी सपने का आकर्षण बना हुआ है । इसमें
माना गया था कि जन्म या हैसियत का ध्यान दिये बिना व्यक्ति की क्षमता के अनुरूप
उसे जीवन को बेहतर बनाने का अवसर मिलेगा । इसमें ऊपर की ओर गतिशीलता बने रहने का
वादा था । शिक्षा या व्यवसाय के सहारे यह गतिशीलता बनी रहनी थी । यह सुविधा सभी
अमेरिका वासियों को सुलभ होनी थी । जहां तक आम सुधार की बात है तो यह गतिशीलता आज
भी बनी हुई है लेकिन कुछ लोगों को इससे बाहर रखा गया है । मूलवासियों, अफ़्रीकी
अमेरिकी समुदाय और एशियाइयों तथा लातिनी लोगों को अवसर की इस समानता से बाहर रखा
गया है । कुल मिलाकर ये अवसर गोरों को ही अधिक प्राप्त रहे हैं । इस समय आर्थिक
विषमता इस अमेरिकी सपने के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है । अधिकाधिक मध्यवर्गीय
परिवार नीचे की ओर खिसकते जा रहे हैं । सेहत, घर और शिक्षा का खर्च बढ़ते जाना इसकी
सबसे बड़ी वजह है । महामंदी की आशंका में डूबे हुए अमेरिकी जनता को उस सपने की
मौजूदगी पर भरोसा नहीं रह गया है । आर्थिक विषमता का नस्ली आयाम बहुत प्रत्यक्ष है
।
2017 में पेंग्विन बुक्स से जान फ़्रीमैन के संपादन
में ‘टेल्स आफ़ टू अमेरिकाज: स्टोरीज आफ़ इनइक्वलिटी इन ए डिवाइडेड नेशन’ का प्रकाशन
हुआ ।
2018 में ब्रिल से लारेन लांगमैन और डेविड ए स्मिथ के
संपादन में ‘ट्वेन्टी-फ़र्स्ट
सेन्चुरी इनइक्वलिटी & कैपिटलिज्म: पिकेटी, मार्क्स ऐंड बीयान्ड’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की
प्रस्तावना और उपसंहार के अतिरिक्त किताब में उन्नीस लेख शामिल हैं । इन्हें
संपादकों ने तीन भागों में संयोजित किया है । पहले भाग के आठ लेखों में पुस्तक की
विषय वस्तु की व्यापक समीक्षा और आलोचना को समेटा गया है । दूसरे भाग के तीन लेख
विषमता पर केंद्रित हैं । तीसरे भाग के आठ लेखों में वैश्विक विषमता का विवेचन
किया गया है । किताब के सभी लेखों में पिकेटी और मार्क्स के बीच संवाद देखने की
कोशिश की गई है ।
2018 में पोलिटी से चक कोलिन्स की किताब ‘इज इनइक्वलिटी इन अमेरिका इर्रिवर्सिबुल?’ का प्रकाशन हुआ ।
2018 में नेशन बुक्स से पीटर
मस्कोविट्ज़ की किताब ‘हाउ टु किल ए सिटी: जेंट्रिफ़िकेशन, इनइक्वलिटी, ऐंड द फ़ाइट
फ़ार द नेबरहुड’ का प्रकाशन हुआ ।
2018 में पालग्रेव मैकमिलन से आदम
यावुज़ एलवेरेन की किताब ‘ब्रेन ड्रेन ऐंड जेंडर इनइक्वलिटी इन तुर्की’ का प्रकाशन
हुआ ।
2018 में पालग्रेव मैकमिलन से
मिकायला नोवाक की किताब ‘इनइक्वलिटी: ऐन एनटैंगल्ड पोलिटिकल इकोनामी पर्सपेक्टिव’
का प्रकाशन हुआ ।
2018 में बेसिक बुक्स से थामस
सोवेल की किताब ‘डिसक्रिमिनेशन ऐंड डिसपैरिटीज’ का प्रकाशन हुआ ।
2018 में द बेल्कनैप प्रेस आफ़
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से थामस पिकेटी की फ़्रांसिसी किताब का अंग्रेजी अनुवाद
‘टाप इनकम्स इन फ़्रांस इन द ट्वेन्टीएथ सेन्चुरी: इनइक्वलिटी ऐंड
रीडिस्ट्रिब्यूशन, 1901-1998’ का प्रकाशन हुआ । पहले यह किताब 2001 में छपी थी ।
उसी समय पिकेटी के शोध की शुरुआत हुई जिसका नतीजा बारह साल बाद छपी उनकी किताब
कैपिटल इन द ट्वेन्टी-फ़र्स्ट सेन्चुरी’ में निकला । इस संस्करण में लेखक ने कोई
संशोधन नहीं किया है । नयी भूमिका में बीच की यात्रा का बयान किया है ।
2019 में पोलिटी से लुसिन्दा प्लात की किताब ‘अंडरस्टैंडिंग इनइक्वलिटीज’ के दूसरे संस्करण का प्रकाशन हुआ ।
पहली बार यह किताब 2011 में छपी थी । नया संस्करण पहले से काफी अलग है । इसके
संशोधन में उन्हें अध्यापन के अनुभव का लाभ मिला है । देशों के भीतर और वैश्विक स्तर
पर विषमता आमदनी और वर्ग, सेहत और जीवन प्रत्याशा तथा शिक्षा, आवास, आराम और अधिकार तक पहुंच के मामले में
नजर आती है । इसके आधार पर हैसियत, कौशल तथा क्षमता का अंतर पैदा हो जाता है ।
2019 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी
प्रेस से कैथरीना पिस्टर की किताब ‘द कोड आफ़ कैपिटल: हाउ द ला क्रिएट्स वेल्थ ऐंड
इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । इस किताब को लिखने का विचार लेखक के मन में 2007 के
वित्तीय संकट के समय उपजा । उस समय घटना प्रवाह इतना तेज था कि सोचने की फ़ुर्सत
नहीं मिल रही थी लेकिन गर्दो गुबार बैठ जाने के बाद वित्त के हालिया प्रसार और
उसके भहराने के कारणों की खोज में जुट । अनेक अनुशासनों के विद्वानों के साथ मिलकर
वित्त बाजार के विभिन्न अंगों की सांस्थानिक संरचना को खोलना शुरू किया । इस दौरान
हैरानी उन्हें यह देखकर हुई कि तमाम जटिलता के बावजूद वित्त व्यवस्था के बुनियादी
कील कांटे बहुत आसान हैं । उनकी खोज थोड़ी भी गहराई में उतरने पर कानूनी संस्थाओं
पर जा पहुंचती थी । इन्हीं चीजों ने वित्त संपदा के बाजार को विस्तारित करने में
मदद की थी लेकिन इन्हीं चीजों ने उसे जमीन पर भी ला पटका था ।
2019 में पालग्रेव मैकमिलन से
क्रिश्चियन ओलफ़ क्रिश्चियानसेन और स्टीवेउ एल बी जानसेन के संपादन में ‘हिस्ट्रीज
आफ़ ग्लोबल इनइक्वलिटी: न्यू पर्सपेक्टिव्स’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की
प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब में अलग अलग भागों में विभिन्न विद्वानों के लेखों
का संकलन किया गया है । पहले भाग में आर्थिक और राजनीतिक चिंतन के इतिहास में
विषमता पर विचार किया गया है । दूसरे भाग में विषमता, भेदभाव और मानवाधिकार संबंधी
लेख हैं । तीसरे भाग के लेखों में विश्व पूंजीवाद के युग में विषमता की छनबीन की
गई है ।
2019 में पालग्रेव मैकमिलन से पीटर
मिहाल्यी और इवान स्येलेन्यी के संपादन में ‘रेन्ट-सीकर्स, प्रोफ़िट्स, वेजेज ऐंड
इनइक्वलिटी: द टाप 20%’ का प्रकाशन हुआ । यह किताब पिकेटी की किताब के मूल्यांकन
के क्रम में लिखी गई है । किताब का मकसद दो सौ साल पहले रिकार्डो की किराया संबंधी
धारणा पर ध्यान देते हुए यह बताना है कि किराया की धारणा के बिना केवल मुनाफ़ा और
मजदूरी के विश्लेषण से विषमता की पूर्ण व्याख्या नहीं की जा सकती ।
2019 में स्प्रिंगेर से एस
सुब्रमणियन की किताब ‘इनइक्वलिटी ऐंड पावर्टी: ए शार्ट क्रिटिकल इंट्रोडक्शन’ का
प्रकाशन हुआ ।
2019 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी
प्रेस से हीथर बुशी की किताब ‘अनबाउंड: हाउ इनइक्वलिटी कनस्ट्रिक्ट्स आवर इकोनामी
ऐंड ह्वाट वी कैन डू एबाउट इट’ का प्रकाशन हुआ ।
2019 में प्लूटो प्रेस से ली हम्बर
की किताब ‘वाइटल साइन्स: द डेडली कास्ट्स आफ़ हेल्थ इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2020 में पालग्रेव मैकमिलन से लुकास श्लोग्ल
और एन्डी समनेर के संपादन में ‘डिसरप्टेड डेवपमेन्ट ऐंड द फ़्यूचर आफ़ इनइक्वलिटी इन द
एज आफ़ आटोमेशन’ का
प्रकाशन हुआ । संपादक की भूमिका और उपसंहार समेत इस किताब में कुल सात लेख हैं । इनके
अतिरिक्त दो भाग हैं । पहले भाग के दो लेख विकासशील दुनिया में आर्थिक विकास के समकालीन
संदर्भों पर केंद्रित हैं । दूसरे भाग के तीन लेख विकासशील दुनिया में आर्थिक विकास, काम और मजदूरी के भविष्य पर विचार करते
हुए लिखे गए हैं ।
2020 में येल यूनिवर्सिटी प्रेस से
मैथ्यू सी क्लीन और माइकेल पेटिस की किताब ‘ट्रेड वार्स आर क्लास वार्स: हाउ
राइजिंग इनइक्वलिटी डिसटार्ट्स द ग्लोबल इकोनामी ऐंड थ्रीटेन्स इंटरनेशनल पीस’ का
प्रकाशन हुआ । हाल के दिनों में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध की खबरें खूब
छपी थीं । इस किताब के दोनों लेखक इन्हीं दोनों देशों के रहने वाले हैं । मैथ्यू
अमेरिकी हैं तो माइकेल चीनी हैं । मैथ्यू आर्थिक विषयों के पत्रकार हैं और माइकेल
का संबंध चीन के आर्थिक जगत के विश्वविद्यालयी अध्यापक समूह से है । लेखकों का
मानना है कि दुनिया का लगभग प्रत्येक व्यक्ति विश्व व्यापार और वित्त प्रणाली से
जुड़ा हुआ है । जब भी हम कुछ खरीदते, काम पर जाते या बचत करते हैं तो हमारी
गतिविधियों से हजारों मील दूर के लाखों लोग प्रभावित होते हैं । ठीक इसी तरह अन्य
लोगों के रोजमर्रा के फैसलों से हम भी अनजाने प्रभावित होते हैं । इन आर्थिक
सम्पर्कों से लाभ तो होते ही हैं कभी कभी इनके चलते एक समाज की समस्या दूसरे समाज
तक भी पहुंच जाती है । किसी एक देश के लोग अक्सर दूसरे देश के महंगे आवास, कर्ज
संकट, बेरोजगारी और प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होते हैं । चीन की सरकार मजदूर
संगठनों को दबाती तथा मकान बनाने वाली संस्थाओं को सस्ता कर्ज देती है और अमेरिका
के कारीगरों का रोजगार छिन जाता है । जर्मनी की कंपनियां मजदूरों के वेतन में कमी
करती हैं क्योंकि सरकार कल्याणकारी खर्चों में घटोत्तरी करती है और स्पेन में घरों
की कीमत आसमान छूने लगती है । किताब का कथन है कि देशों के बीच विषमता बढ़ने के
चलते उनके बीच व्यापार युद्ध भी तेज होता है ।
2019 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से जान ब्रेमान
की किताब ‘कैपिटलिज्म, इनइक्वलिटी ऐंड लेबर इन इंडिया’ का प्रकाशन हुआ ।
2020 में ज़ेड बुक्स से इमोजेन टाइलर की किताब
‘स्टिग्मा: द मशीनरी आफ़ इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2020 में लिवराइट पब्लिशिंग से जैकब एस हैकर और पाल
पियर्सन की किताब ‘लेट देम ईट ट्वीट्स: हाउ द राइट रूल्स इन ऐन एज आफ़ एक्सट्रीम
इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि किताब ट्रम्प नामक तात्कालिक
परिघटना के बारे में न होकर उस राजनीतिक बदलाव के बारे में है जिसके चलते ट्रम्प
का जन्म हुआ । उनका यह भी मानना है कि यह बदलाव ट्रम्प की विदाई के बाद भी बना
रहेगा । यह बदलाव समूची राजनीति का धन्नासेठों के हाथ में सिमट जाना है ।
2020 में पालग्रेव मैकमिलन से मार्ता स्मागाज़-पोज़िएम्सका, एम विक्टोरिया गोमेज़, पेट्रीशिया परेरा, लौरा गुआरिनो, सेबास्तियन कुर्तेनबाख और जुआन जोसे
विलालोन के संपादन में ‘इनइक्वलिटी ऐंड अनसर्टेनिटी: करेन्ट चैलेंजेज फ़ार सिटीज’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना
समेत किताब में शामिल सोलह लेख पांच भागों में हैं ।
2020 में बेल्कनैप प्रेस आफ़ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी
प्रेस से लुकास चान्सेल की 2017 में फ़्रांसिसी में छपी किताब का अंग्रेजी अनुवाद
‘अनसस्टेनेबुल इनइक्वलिटीज: सोशल जस्टिस ऐंड द एनवायरनमेन्ट’ प्रकाशित हुआ । अनुवाद
मैल्कम डिबेवे ने किया है ।
2020 में पालिसी प्रेस से ब्रिजेट बिर्नी, क्लेयर
अलेक्जांडर, ओमर खान, जेम्स नज़रू और विलियम शांकले के संपादन में ‘एथनिसिटी, रेस
ऐंड इनइक्वलिटी इन द यूके: स्टेट आफ़ द नेशन’ का प्रकाशन हुआ ।
2020 में वर्सो से टाम हाज़ेल्डीन की किताब ‘द
नार्दर्न क्वेश्चन: ए हिस्ट्री आफ़ ए डिवाइडेड कंट्री’ का प्रकाशन हुआ ।
2020 में पोलिटी से जान वान डिज्क की किताब ‘द डिजिटल
डिवाइड’ का प्रकाशन हुआ । लेखक और उनके सहयोगियों के पचीस साल की मेहनत का फल यह
किताब है ।
2020 में वर्सो से गोरान थेर्बार्न की किताब
‘इनइक्वलिटी ऐंड द लैबीरिन्थ्स आफ़ डेमोक्रेसी’ का प्रकाशन हुआ ।
2020 में रौमान & लिटिलफ़ील्ड से वेन्डी बोतेरो की किताब ‘ए सेन्स आफ़
इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2020 में लुआथ प्रेस लिमिटेड से
गिल ह्विटी-कोलिन्स की किताब ‘ह्वाइ मेन विन ऐट वर्क---ऐंड हाउ वी कैन मेक
इनइक्वलिटी हिस्ट्री’ का प्रकाशन हुआ ।
2021 में आइ बी तौरिस से डिएगो
सान्चेज़-अंकोचिया की किताब ‘द कास्ट्स आफ़ इनइक्वलिटी इन लैटिन अमेरिका: लेसंस ऐंड
वार्निंग्स फ़ार द रेस्ट आफ़ द वर्ल्ड’ का प्रकाशन हुआ ।
2021 में स्टेट यूनिवर्सिटी आफ़
न्यू यार्क प्रेस से लोरी लेट्रिस मार्टिन की किताब ‘अमेरिका इन डिनायल: हाउ
रेस-फ़ेयर पालिसीज रीएनफ़ोर्स रेशियल इनइक्वलिटी इन अमेरिका’ का प्रकाशन हुआ ।
2021 में स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से नैन्सी
लियांग की किताब ‘आइडेन्टिटी कैपिटलिस्ट्स: द पावरफ़ुल इनसाइडर्स हू एक्सप्लायट
डाइवर्सिटी टु मेन्टेन इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
2021 में पालिसी से क्लेयर बाम्ब्रा, जूलिया लिंच और
कैथरीन ई स्मिथ की किताब ‘द अनइक्वल पैंडेमिक: कोविड-19 ऐंड हेल्थ इनइक्वलिटीज’ का
प्रकाशन प्रोफ़ेसर केट पिकेट की प्रस्तावना के साथ हुआ ।
2021 में सिमोन & शूस्टर से माइकेल मेकानिक की
किताब ‘जैक पाट: हाउ द सुपर-रिच रियली लिव- ऐंड हाउ देयर वेल्थ हार्म्स अस आल’ का
प्रकाशन हुआ ।
2021 में एडवर्ड एल्गर से थामस आइ पेले की किताब
‘नियोलिबरलिज्म ऐंड द रोड टु इनइक्वलिटी ऐंड स्टैगनेशन: ए क्रानिकल फ़ोरटोल्ड’ का
प्रकाशन हुआ । किताब में विगत सताइस साल में लिखे लेख शामिल किये गये हैं । तभी
अंदाजा लग गया था कि इस प्रक्रिया में विषमता और आर्थिक ठहराव का आगमन लाजिमी है ।
अर्थनीति को प्रभावित करने की स्थिति में न होने के बावजूद लेखक को नवउदारवाद के
फलस्वरूप होने वाली बातों का बहुत हद तक सही अनुमान हो गया था जिसमें मुख्य धारा
के अर्थशास्त्री चूक रहे थे । नतीजे का ही सही अनुमान अर्थशास्त्र के लिए जरूरी
नहीं होता बल्कि उसकी सटीक कहानी सुनने का भी काफी महत्व होता है ।
2021 में एंथम प्रेस से एनकार्नेशियोन गुतिरेज़
रोड्रिगुएज़ और रोडा रेडक के संपादन में ‘डीकोलोनियल पर्सपेक्टिव्स आन एनटैंगल्ड
इनइक्वलिटीज: यूरोप ऐंड द कैरीबियन’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना के
अतिरिक्त किताब के चौदह अध्याय चार हिस्सों में हैं । संपादकों के मुताबिक किताब
में जिन सवालों का जवाब खोजने की कोशिश है उनमें पहला कि स्थानीय विषमता का इसकी
वैश्विक प्रक्रिया से क्या रिश्ता बनता है । दूसरा कि वैश्विक सांस्कृतिक बदलाव का
आर्थिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं से क्या संबंध है । तीसरा कि सांस्कृतिक और आर्थिक
तथा राजनीतिक प्रक्रिया स्थानीय और वैश्विक स्तर पर किन सामाजिक बदलावों को जन्म
दे रही है । इन सवालों पर बातचीत के लिए 2017 और 2018 में दो
कार्यशालाओं का आयोजन हुआ । इनमें आस्ट्रेलिया और जमैका से भी भागीदारी हुई थी ।
किताब में माना गया है कि समाज आपस में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं । राष्ट्रवादी
संकीर्णता को चुनौती पेश करते हुए इसमें शामिल लेखों में यूरोपीय और कैरीबियन
देशों को आपस में जोड़कर विश्लेषित किया गया है । देखरेख से लेकर वित्तीकरण तक और
शरणार्थी समस्या से लेकर संघर्षों की एकजुटता तक तमाम ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें यह
जुड़ाव दिखायी देता है । नस्लभेद की राजनीति, राजकीय अन्याय और कानून, उच्च शिक्षा
संस्थानों में बदलाव तथा प्रतिरोध के मामलों में भी यह साझापन नजर आता है ।
2021 में हर्स्ट & कंपनी से
टोबी ग्रीन की किताब ‘द कोविड कानसेन्सस: द न्यू पोलिटिक्स आफ़ ग्लोबल इनइक्वलिटी’
का प्रकाशन
हुआ ।
2022 में रटलेज से जे माइकेल रयान और सेरेना नंदा की
किताब ‘कोविड-19: सोशल इनइक्वलिटीज ऐंड ह्यूमन पासिबिलिटीज’ का प्रकाशन हुआ ।
2022 में रटलेज से बेनेडिक्ट एटकिंसन की किताब
‘एक्सप्लेनिंग वेल्थ इनइक्वलिटी: प्रापर्टी, पजेशन ऐंड पालिसी रिफ़ार्म’ का प्रकाशन
हुआ ।
2022 में ट्रेपीज से मैट नाट की किताब ‘ए क्लास आफ़
देयर ओन: एडवेंचर्स इन ट्यूटरिंग द सुपर-रिच’ का प्रकाशन हुआ ।
2022 में यूनिवर्सिटी आफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस से मेगन
तोबियास नीली की किताब ‘हेज्ड आउट: इनइक्वलिटी ऐंड इनसिक्योरिटी आन वाल स्ट्रीट’
का प्रकाशन हुआ ।
2022 में डट्टन से ओडेड गेलोर की किताब ‘द जर्नी आफ़
ह्यूमनिटी: द ओरीजिन्स आफ़ वेल्थ ऐंड इनइक्वलिटी’ का प्रकाशन हुआ ।
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