वर्सो से गेआर्ग एडलर, पीटर हुदिस और अनेलीस लाज़ित्सा के
संपादन में ‘द लेटर्स आफ़ रोजा लक्जेमबर्ग’ का प्रकाशन पहली बार 2011 में, फिर
दूसरी बार 2013 में हुआ । पत्रों का अंग्रेजी अनुवाद जार्ज श्राइवेर ने किया है ।
पीटर हुदिस ने अंग्रेजी संस्करण की और अनेलीस लाज़ित्सा ने जर्मन संस्करण की भूमिका
लिखी है । इन भूमिकाओं के बाद छियालीस लोगों को लिखे रोजा के 230 पत्र संकलित हैं
। ये पत्र 1891 से 1919 के बीच लिखे गए थे और तीन खंडों में प्रकाशित संपूर्ण
पत्रों से चुने हुए हैं । किताब में अनुवादक ने भी अपनी बात कही है । उन्होंने
रोजा के लंबे पैराग्राफों को अनुवाद में जस का तस रहने दिया है । पीटर हुदिस ने
अपनी भूमिका में बताया है कि जब रोजा ने राजनीति शुरू की तो उस समय वाम राजनीति तो
छोड़िए आम राजनीति या सामाजिक जीवन में भी गिनी चुनी स्त्रियां रही होंगी । रोजा ने
पूंजी के वैश्वीकरण की उस परिघटना के बारे में गहराई से विचार किया जो हमारे समय
की सबसे प्रमुख परिघटना बन गई है । रोजा ने बताया कि पूंजीवाद का प्रसार ऐसे
सामाजिक संबंधों को समाहित कर लेने और बरबाद करने पर निर्भर है जो माल व्यवस्था से
बाहर होते हैं । उनकी यह मान्यता रोजमर्रा के हरेक कोने अंतरे में पूंजी की अबाध
घुसपैठ के मद्देनजर अत्यंत प्रासंगिक हो जाती है । पूंजी के तर्क के विरुद्ध उनकी
आवेगभरी वाणी हमारे समय के लिए ज्यादा जरूरी है । वे केवल पूंजीवाद की आलोचना तक
सीमित नहीं रहतीं, उसके विकल्प की तलाश के लिए भी प्रेरित करती हैं । उन्होंने
राजनीतिक सुधारवादियों के विरुद्ध तो संघर्ष किया ही, वाम कतारों की पहलकदमी और
स्वत:स्फूर्तता पर रोक लगाने वाले पदानुक्रमिक नेतृत्व के ढांचे के मुकाबले कतारों
की सृजनात्मक पहल का पक्ष लिया । सबसे आगे बढ़कर उन्होंने समाजवाद और लोकतंत्र के
बीच अभिन्न रिश्ता स्थापित करने की लड़ाई लड़ी । ऊपर से समाजवाद थोपने के प्रयोगों
की विफलता के बाद रोजा के चिंतन के इस पहलू पर ध्यान देना जरूरी हो गया है । असल
में रोजा का ज्यादातर लेखन आंग्लभाषी दुनिया को उपलब्ध ही नहीं है । उनके कुल लेखन
का एक चौथाई ही अंग्रेजी में अनूदित और प्रकाशित हो सका है । इस अभाव को दूर करने
के लिए चौदह खंडों में रोजा समग्र को प्रकाशित करने की योजना बनी है । यह पत्र
संग्रह उसी आगामी प्रकाशन का सहायक पाठ है । उस आगामी समग्र में दो खंडों में रोजा
का समस्त अर्थशास्त्र संबंधी लेखन होगा । इसमें आर्थिक सवाल पर समस्त प्रकाशित या
अप्रकाशित किताबों, लेखों और पांडुलिपियों को एकत्र किया जाएगा । इसके बाद सात
खंडों में कालक्रमिक रूप से उनका समस्त राजनीतिक लेखन होगा । शेष पांच खंडों में
उनके सारे पत्र होंगे । उनका स्त्री होना, पोलिश होना और यहूदी होना उनके संघर्ष
को अतिरिक्त महत्व प्रदान करता है । ज्ञातव्य है कि रोजा अपने समय की सबसे बड़ी
कम्यूनिस्ट पार्टी की अग्रणी सिद्धांतकार थीं । उस समय के सामाजिक राजनीतिक हालात
को देखते हुए यह स्थिति प्राप्त करना बेहद कठिन था । उन्हें पार्टी के भीतर और
बाहर लगातार जूझना पड़ा । इन लड़ाइयों के संदर्भ से अगर उनके लेखन को अलगा दिया जाए
तो उसका अर्थ काफी कुछ गुम हो जाएगा । वे अत्यंत विश्लेषणात्मक चिंतक थीं ।
उन्होंने अपनी पीढ़ी के मार्क्सवादियों से आगे बढ़कर आर्थिक सिद्धांत की भाषा पर
अधिकार हासिल किया । तात्कालिक राजनीतिक आर्थिक सरोकारों में व्यस्त साथियों के
मुकाबले इन सरोकारों के पार मुक्ति संघर्ष के अंतिम लक्ष्य से उनका लगाव अधिक गहरा
था । इन पत्रों से रोजा के बहुआयामी व्यक्तित्व के कई पहलू उजागर होते हैं । वे एक
चिंतक, एक राजनेता और एक व्यक्ति के रूप में सामने आती हैं जिन्हें पारंपरिक
राजनीतिक या मनोवैज्ञानिक खांचों में बांटकर नहीं समझा जा सकता है । रोजा के चिंतन
को समझने का मतलब है दुनिया को देखने के उनके नजरिए को समझना और यह काम उनके
पत्रों को पढ़े बिना संभव नहीं है । इसीलिए इस पत्र संग्रह को उनके समग्र लेखन के
सहायक पाठ के रूप में पहले जारी किया गया है । मूल जर्मन किताब के संपादक ने जो भूमिका
लिखी है उसमें बताया है कि ये पत्र समाजवादी आंदोलन के उनके साथियों, उनकी स्त्री
साथियों और उनके प्रेमियों को संबोधित हैं । इनमें उनके विद्यार्थी, सिद्धांतकार, पत्रकार, शिक्षक,
राजनेता और क्रांतिकारी के रूप दिखाई देते हैं । इनमें से दो तिहाई पत्र
अंग्रेजी में पहली बार सामने आ रहे हैं । उनके कुल 2800 पत्रों
में से इन्हें चुना गया है । उनके पत्रों में एक ओर तो दुनिया भर की चीजों में उनकी
रुचि तथा किसी कलाकार जैसी परिष्कृत संवेदनशीलता है तो दूसरी ओर उनकी राजनीतिक और सांस्कृतिक
आकांक्षाओं की खुरदुरी तथा अजेय अभिव्यक्ति है । इनमें बाहरी दुनिया के बारे में भरपूर
सूचनाओं के साथ ही अधिकतम आत्म विश्लेषण भी है । लगभग प्रतिदिन वे पत्र लिखती थीं ।
सूचना, विचारों का आदान प्रदान, संगठन,
स्पष्टता, निजी संपर्क, दोस्तों
की मदद, विवाद में मुद्दों की सफाई और अनहल सवालों के जवाब-
इन पत्रों से ये सभी काम वे लेती थीं । जेल की घुटन से मुक्ति का रास्ता
भी ये पत्र थे । कई बार तो एक ही दिन वे कई पत्र लिखतीं । ये पत्र जर्मन, पोलिश, रूसी और फ़्रांसिसी भाषाओं में लिखे हुए हैं ।
सौभाग्य से उनके इतने पत्र बचे रह गए क्योंकि उनके पत्रों को दो विश्व युद्ध झेलने
पड़े थे, उनकी हत्या के समय उनकी रिहाइश को फ़ासिस्ट सिपाहियों
ने तहस नहस कर दिया था, उनके साथियों को दसियों साल तक भगोड़ों
का जीवन बिताना पड़ा था । मसलन लुइस काउत्सकी ने बताया कि 1918 के अगस्त से अक्टूबर तक के पत्र गुम हो गए । काउत्सकी दंपति को एक देश से दूसरे
देश भागते रहना पड़ा था इसलिए ढेर सारे पत्र गुम हो गए । जर्मनी की एक और दोस्त को लिखे
पत्र हिटलरी निजाम के शिकार होने को आए तो उन्हें किसी तरह अमेरिका पहुंचाया गया हालांकि
दोस्त जर्मनी के बाहर न निकल सकीं । नाज़ी यातना शिविर में उनकी जीवन लीला समाप्त हो
गई । इन पत्रों के संग्रह और प्रकाशन की प्रक्रिया भी पत्रों जितना ही रोमांचक है ।
यह प्रयास सबसे पहले सोफी लीबक्नेख्त ने किया । उन्होंने रोजा के बाईस पत्रों के साथ
एक पुस्तिका लिखी जो 1920 में छपी थी । प्रकाशन के बाद इन पत्रों
ने उनका ध्यान भी खींचा जो कम्यूनिस्ट या समाजवादी आंदोलन के अंग नहीं थे । इन पत्रों
ने उस खतरनाक मानी जाने वाली स्त्री की एक दूसरी तस्वीर प्रस्तुत की । जो लोग उन्हें
महज राजनीतिक मानते थे वे भी इन पत्रों से उभरती मानवीय रोजा से प्रभावित हुए । हिटलर
की हार के बाद फिर से ये पत्र छपे । इनके साथ जेल से लिखे और भी पत्र शामिल किए गए
थे । युद्ध और किसी भी किस्म के अन्याय की मुखालफ़त में जूझती रोजा ने साठ के दशक के
नव-वाम के लपेटे में आए युवकों पर गहरा असर डाला । उनकी भूमिका
और विरासत के सवाल पर लगातार चलने वाली बहसों से उनके पत्रों के प्रकाशन का गहरा रिश्ता
रहा है । 1919 में उनकी हत्या के बाद से ही उनके साथियों ने उनके
पत्रों को सहेजने का प्रयास शुरू कर दिया था । क्लारा जेटकिन ने सबसे आगे बढ़कर यह काम
किया लेकिन रूसी क्रांति के बारे में रोजा की टिप्पणियों के चलते रूसी पार्टी का पर्याप्त
सहयोग नहीं मिल सका । सोफी के बाद लुइस काउत्सकी ने पत्रों के प्रकाशन का अगला दौर
शुरू किया । सोफी और लुइस के इन पत्र संग्रहों ने रोजा की छवि को बहुमुखी साबित किया
। 1930 दशक में उनकी एक दोस्त ने उनकी जीवनी के परिशिष्ट के बतौर
पांच लंबे पत्र प्रकाशित किए । उनकी जन्मशती के करीब फिर से उनके पत्रों के प्रकाशन
में तेजी आई ।
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