Saturday, July 4, 2015

उनको प्रणाम! @ नागार्जुन


          
जो नहीं हो सके पूर्ण-काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम।
कुछ कुंठित औ' कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए!
उनको प्रणाम!
जो छोटी-सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि-पार,
मन की मन में ही रही, स्वयं
हो गए उसी में निराकार!
उनको प्रणाम!
जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह-रह नव-नव उत्साह भरे,
पर कुछ ने ले ली हिम-समाधि
कुछ असफल ही नीचे उतरे!
उनको प्रणाम
एकाकी और अकिंचन हो
जो भू-परिक्रमा को निकले,
हो गए पंगु, प्रति-पद जिनके
इतने अदृष्ट के दांव चले!
उनको प्रणाम
कृत-कृत्य नहीं जो हो पाए,
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं, फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल!
उनको प्रणाम!
थी उम्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दु:खांत हुआ,
या जन्म-काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहांत हुआ!
उनको प्रणाम
दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति-मंत?
पर निरवधि बंदी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अंत!
उनको प्रणाम!
जिनकी सेवाएँ अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर-चूर!
उनको प्रणाम!
शब्दार्थ : पूर्ण-काम- जिनकी इच्छा पूरी हो गई हो; कुंठित- भोंथरे; लक्ष्य-भ्रष्ट- निशाना चूक गए; अभिमंत्रित- मंत्रसिद्ध; रण- युद्ध; तूणीर- तरकस; नैया- नाव; उदधि- समुद्र; अकिंचन- दरिद्र; पंगु- लंगड़ा; अदृष्ट- भाग्य; प्रत्युत- बल्कि; मूर्ति-मंत- साक्षात; निरवधि- अनंत ।
यह कविता परिणामवाद के विरुद्ध तो है ही, स्वाधीनता आंदोलन की आंच भी इसमें मौजूद है भारतीय समाज के हिंदू बौद्धिक समुदाय के लिए सुपरिचित प्रसंगों का जिस तरह क्रांतिकारी उपयोग किया गया है वह बहुत हद तक फ़ैज़ केहम देखेंगेकी रणनीति से तुलनीय प्रतीत होता है धनुर्धर अर्जुन या राम के मिथकीय चरित्र से लेकर भगत सिंह की ऐतिहासिक शहादत तक की पृष्ठभूमि इसमें गूंजती रहती है सिम्बोर्स्का की कविताखोजकी अमूर्त दार्शनिकता से इसकी ठोस ऐतिहासिकता ही इसे नागार्जुनी महत्व देती है । मिथक और इतिहास से लेकर ज्योतिष और आयुर्वेद तक की शब्दावली का यह औघड़ उपयोग दुर्लभ है । 

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