मार्क्स के बारे में पैदा हुई हालिया रुचि की नवीनता का एक नमूना
उनकी एक नई जीवनी है । सितंबर 2011 में लिटिल ब्राउन एंड कंपनी से न्यूयार्क
बोस्टन और लंदन में एक साथ प्रकाशित मेरी गैब्रियल लिखित ‘लव
एंड कैपिटल: कार्ल एंड जेनी मार्क्स एंड द बर्थ आफ़ ए रेवोल्यूशन’
शीर्षक जीवनी आई है और फ़्रांसिस ह्वीन लिखित मार्क्स की जीवनी की तरह
ही व्यक्ति मार्क्स पर अपेक्षाकृत अधिक केंद्रित है । भूमिका में ही लेखिका बताती हैं
कि उन्हें जब पता चला कि मार्क्स की सात संतानों में से जीवित बची तीन बेटियों में
से दो ने आत्महत्या की थी तभी से उन्हें इस बात में रुचि पैदा हुई कि व्यक्ति मार्क्स
के जीवन की गहराई से छानबीन की जाय । जीवनी थोड़ा औपन्यासिक शिल्प में लिखी हुई है ताकि
इसे पढ़ने में पाठकों को बोझ महसूस होने की बजाए आनंद आए इसलिए आनंद उत्पन्न करने के
सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही उपादान इसमें अपनाए गए हैं । इस जीवनी की सबसे बड़ी
विशेषता यह है कि इसमें जेनी मार्क्स का व्यक्तित्व स्वतंत्र रूप से उभरकर सामने आया
है । लेखिका का कहना है कि दिमागी मामलों में मार्क्स बेहद निर्मम थे । बुद्धि और तर्क
के मामले में वे किसी को छूट नहीं देते थे इसीलिए यदि वे भी जेनी के बौद्धिक व्यक्तित्व
का सम्मान करते थे तो इसका अर्थ है कि वे निश्चय ही मार्क्स के बौद्धिक प्रयासों में
बराबर की भागीदार रही होंगी । यहां तक कि लेखिका द्वारा जुटाए गए सबूतों से जाहिर होता
है कि जेनी कम्युनिस्ट आंदोलन के व्यावहारिक कामों में भी साझेदारी निभाती थीं । दूसरी
विशेषता यह है कि लेखिका ने व्यक्ति मार्क्स के उद्घाटन के नाम पर शुरू तो थोड़ा मसालेदार
तरीके से किया है लेकिन क्रमश: गहराई के साथ उस दुनिया के वर्णन
में उतरती गई हैं जो बहुत कुछ मार्क्स के विचारों की पृष्ठभूमि का निर्माण करती है
। इसमें मार्क्स के चुभते हुए कथनों को उनके संदर्भ के साथ प्रस्तुत किया गया है ।
उदाहरण के लिए मुक्त व्यापार के सवाल पर मौजूद भ्रम के बीच उनका कहना कि मुक्त व्यापार
का सीधा मतलब ‘मजदूर को कुचलने की पूंजी की आजादी है’
।
इसी जीवनी में पहले इंटरनेशनल के एक दस्तावेज का जिक्र है जो
आश्चर्यजनक रूप से पुराना होने के बावजूद वर्तमान परिस्थिति को दर्शाता है : ‘भाइयो
! हम एक महान, एक अद्भुत उद्देश्य का प्रतिनिधित्व
करते हैं । हम अब तक दुनिया में घोषित सबसे महान क्रांति की घोषणा करते हैं,
ऐसी क्रांति जिसकी गहनता और परिणामों की समृद्धि की दुनिया के इतिहास
में कोई मिसाल नहीं । हम नहीं जानते कि इस क्रांति के परिणामों में हमें हिस्सा लेने
की किस हद तक इजाजत मिलेगी । लेकिन हम यह जानते हैं कि यह क्रांति अपनी पूरी ताकत के
साथ निकट आती जा रही है ; हम यह देख रहे हैं कि हर जगह,
फ़्रांस में और जर्मनी में, इंग्लैंड में और अमेरिका
में सर्वहारा के क्रुद्ध जनगण पूंजी के शासन की जंजीरों से, बुर्जुआजी
की बेड़ियों से आजादी के लिए आंदोलनरत हैं और इसकी मांग कर रहे हैं, उनकी आवाज में अक्सर अब भी भ्रम है लेकिन वह अभूतपूर्व रूप से दमदार और साफ
होती जा रही है । हम देख रहे हैं कि बुर्जुआ वर्ग अब तक की सबसे अधिक समृद्धि की ओर
है, कि मध्य वर्ग अधिकाधिक बरबाद हो रहा है और कि इस तरह खुद
ऐतिहासिक विकास ही जनगण की तकलीफ और धनी लोगों की स्वेच्छाचारिता के जरिए एक महान क्रांति
की ओर बढ़ रहा है जो एक दिन फूट पड़ेगी ।’ कहीं कहीं तो सचमुच यह
दस्तावेज राजनीतिक घटनाक्रम को ऐतिहासिक नाटक की तरह प्रस्तुत करता है ।
1848 की क्रांति के समय का समूचा यूरोप कल्पना की आंखों के सामने प्रत्यक्ष
हो जाता है और राजाओं, कुलीनों तथा राजनेताओं के साथ ही साधारण
शहरी मजदूर और विद्रोही चिंतक परदे के पीछे से निकलकर अचानक प्रमुख भूमिकाएं निभाने
लगते हैं ।
इन्हीं साधारण लोगों में ये विद्रोही अर्थात मार्क्स दंपति और
उनके सदा के साथी एंगेल्स भी शामिल थे । किताब शुरू तो चटखारे लेने के टोन में हुई
थी लेकिन धीरे धीरे उस समय की परिस्थितियों से विद्रोहियों के 1848 के
सपनीले युद्धों के वर्णन के बाद एक ऐसे अध्याय पर आती है जो क्रांतिकारी पत्रकारिता
के इतिहास में बेमिसाल लगता है । न्यू राइनिशे जाइटुंग का संपादन मार्क्स के जीवन का
चमकता हुआ पन्ना है जिसमें वे बिना डरे तमाम कानूनी-गैर कानूनी
लड़ाइयां तो लड़ते ही रहते हैं, जनता की नब्ज पर उनका हाथ रहता
है और खासकर अंतिम अंक का लाल स्याही में प्रकाशन समर्पण के समय की गरिमा का उदाहरण
बन जाता है । मजबूरी में ही सही मार्क्स जीवन भर रहे तो पत्रकार ही और इस पेशे के लिए
अनुकरणीय साहस बनाए रखा । दुखद है कि शायद ही किसी पत्रकारिता के संस्थान में मार्क्स
के इस पहलू पर ध्यान दिया जाता हो ।
लंदन के आरंभिक दिनों का वर्णन तो इतना दिल दहलाने वाला है कि
इसे पढ़कर आश्चर्य होता है कि मार्क्स पागल क्यों नहीं हो गए । इस जीवनी के राजनीतिक
होने के बारे में सिर्फ़ एक उदाहरण काफी होगा । 1850 तक मार्क्स को लगने लगा
कि क्रांतिकारी ज्वार उतर चुका है । ऐसे में उनके कुछ साथी उतावले हो रहे थे । इस प्रसंग
में लेखिका ने बताया है कि मार्क्स के मुताबिक क्रांति के लिए दो पूर्वावश्यकताएं होती
हैं । क्रांति केवल कुछ खास ऐतिहासिक प्रक्रियाओं का नतीजा होती है और इच्छा से बलपूर्वक
अपरिपक्व हालात में नहीं संपन्न की जा सकती । एक तो यह कि जनता की वर्गीय चेतना बढ़ी
हुई होनी चाहिए और टेड यूनियनों के जरिए तथा अभिव्यक्ति, संगठन
और प्रेस की आजादी के उपभोग के जरिए सामाजिक-राजनीतिक प्रक्रियाओं
में उनकी भागीदारी भी बढ़ी हुई होनी चाहिए । दूसरी यह कि सर्वहारा द्वारा वर्गविहीन
समाज अर्थात साम्यवादी समाज के निर्माण के पहले निम्न-पूंजीवादी
शासन का दौर आता है । लेखिका का कहना है कि विचारों में तो वे क्रांतिकारी थे लेकिन
व्यावहारिक राजनीति में परिस्थिति के परिपक्व होने से पहले कोई साहसिक कदम उठाने का
विरोध करते थे । मार्क्स के लंदन वाले घर में गरीबी और अभाव जनित मौतों के क्रम में
‘कर्नल मुश’ की मौत इतना धक्का पहुंचाने वाली घटना
थी कि इसके कारण मार्क्स के बाल एक दोस्त के मुताबिक रात भर में सफेद हो गए । उनको
मुश की मौत नुकसान नहीं, चोरी महसूस हुई थी । किसी की सहानुभूति
उन्हें मंजूर न थी । घर अचानक खाली हो गया था । मार्क्स इस निजी क्षति से पूरी तरह
टूटा हुआ महसूस करने लगे ।
घर बदल दिया गया ताकि मुश की यादें पीछा न करें । नए घर में
एक साल के भीतर एक और संतान हुई लेकिन एक घंटे के भीतर ही उसने दम तोड़ दिया । अब
तक चार संतानों की मौत हो चुकी थी । 1857 के आते आते आधुनिक किस्म के पहले संकट के
लक्षण दिखाई देने लगे । आश्चर्यजनक रूप से उसका वर्णन वर्तमान संकट से मिलता जुलता
है । वह भी अमेरिका से ही शुरू हुआ लेकिन अर्थव्यवस्था की घनिष्ठता के चलते यूरोप
भी इसके लपेटे में आ गया । सदा की तरह बाहरी दुनिया की हलचलों ने आखिरकार परिवार का
ध्यान निजी कष्टों से हटाया ।
किताब में न केवल मार्क्स की पत्नी जेनी का स्वतंत्र व्यक्तित्व
उभरकर आया है, बल्कि इसी नाम की उनकी सबसे बड़ी बिटिया भी इंटरनेशनल के कामों
में मार्क्स की सहायक के बतौर सामने आती है । उसकी सक्रियता का यह आलम था कि आयरलैंड
के साथ ब्रिटेन द्वारा किए जा रहे अन्याय के विरोध में लिखी उसकी रपटों के चलते इंग्लैंड
की संसद में प्रधानमंत्री को कुछ हद तक अपने कदम वापस खींचने पड़े थे । एक प्रसंग हमारे
देश के हालात से भी थोड़ा मेल खाता है । जब इंग्लैंड की रानी विक्टोरिया की पुत्री की
शादी जर्मनी के बादशाह के पुत्र से तय हुई तो जर्मनों के स्वभाव की जानकारी के लिए
उसने एक ब्रिटिश सांसद से मार्क्स से मिलकर इसका पता लगाने की प्रार्थना की । सांसद
से मार्क्स ने जर्मनी में क्रांति की निकट संभावना व्यक्त की । जब सांसद ने जानना चाहा
कि जर्मन सेना आखिर क्यों अपने ही शासकों के विरुद्ध खड़ी होगी तो जवाब में मार्क्स
ने सेना में आत्महत्या की बढ़ती दर का हवाला दिया और कहा कि सैनिकों द्वारा अपने को
मारने से आगे बढ़कर शासन करने वाले को खत्म करने में ज्यादा देर नहीं लगेगी ।
जेनी को अंतिम दिनों में कैंसर हो गया और इसी बीमारी से जूझते
हुए आखिरकार 67 साल की उम्र में उनका निधन हुआ । मौत के दो दिन पहले उन्होंने
तमाम तकलीफ और गरीबी के बीच किए गए लेकिन अब तक गुमनाम रचना कैपिटल की अंग्रेजी में
प्रकाशित प्रशंसा सुनी जिसमें लेखक ने कहा था कि अर्थशास्त्र के लिए इस किताब का वैसा
ही क्रांतिकारी महत्व है जो खगोलशास्त्र में कोपर्निकस की खोज का या भौतिकी में गुरुत्वाकर्षण
अथवा यांत्रिकी का है । जेनी की मृत्यु के बाद मार्क्स के लिए जीना असंभव सा हो गया
था । उसी में बड़ी बेटी की भी मृत्यु का समाचार सुनना पड़ा । इसके बाद उनके लिए जीवन
भार हो गया । तीन महीने के भीतर ही मार्च में 64 साल की उम्र
में मार्क्स भी नहीं रहे । उनकी मृत्यु जेनी के मरने के पंद्रह महीने के भीतर ही हो
गई । एंगेल्स को दो साल में मार्क्स के परिवार के तीन सदस्यों के शोक संदेश लिखने पड़े
। उनकी मृत्यु के बाद एंगेल्स और बची हुई दोनों बेटियों की कोशिशों ने उनके विचारों
की कौंध बुझने नहीं दी ।
इस जीवनी की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि मार्क्स की मृत्यु
के साथ ही यह समाप्त नहीं होती, बल्कि नौ अध्यायों का पूरा एक खंड ‘आफ़्टर मार्क्स’ के नाम से है । मार्क्स के देहांत के
बाद एंगेल्स और सबसे छोटी बेटी एलिनोर पर यह जिम्मेदारी आ गई कि मार्क्स का लिखा सब
कुछ ठीक ढंग से प्रकाशित हो जाए । सामग्री में पांडुलिपियों के अलावे नोट, चिट्ठियों के साथ अखबार और किताबों के हाशियों पर दर्ज टीकाएं थी । कैपिटल
के दूसरे भाग के भी तमाम रूप थे । एंगेल्स ने मार्क्स की अनुपस्थिति में दुनिया भर
से सलाह मशविरे के लिए आने वाली चिट्ठियों को संभालने के अलावा मार्क्स की इस निधि
के उद्धार का संकल्प लिया । जीवन भर जिस एंगेल्स ने आंदोलनों से नाता रखा था उसे अब
मार्क्स के लेखन और संपादन-प्रकाशन से जूझना पड़ रहा था क्योंकि
आंदोलन के लिए सबसे जरूरी काम फिलहाल उन्हें यही महसूस हो रहा था । 1885 के शुरू में आखिरकार कैपिटल का दूसरा भाग प्रकाशक के पास भेजा गया । डेढ़ साल
के इस काम से एंगेल्स थक तो गए थे लेकिन तीसरे भाग को भी अंतिम रूप देने में जुट गए
क्योंकि कोई और शायद न तो मार्क्स की लिखावट पढ़ पाता और न मार्क्स के लिखे का अर्थ
समझ पाता । इन दो पांडुलिपियों के अतिरिक्त गणना के ढेर सारे कागज थे । इनके अलावे
एक हजार पन्ने चौथे भाग के थे लेकिन एंगेल्स ने तय किया कि सारा लिखा व्यवस्थित कर
लेने के बाद इसमें हाथ लगाएंगे क्योंकि उन पन्नों में बिखराव बहुत था ।
बहरहाल मार्क्स की मृत्यु के एक साल के भीतर ही इंग्लैंड और
फ़्रांस में मजदूर वर्ग में समाजवादी विचारों और साहित्य का तेजी से प्रसार हुआ । नतीजा
कि जहां मार्क्स की मृत्यु के समय उनकी कब्र पर एक दर्जन लोग रहे होंगे वहीं पहली बरसी
पर 6 हजार की भीड़ जुटी । हाइगेट कब्रगाह में लोगों को घुसने से रोकने के लिए पुलिस
के पांच सौ सिपाही थे । फूल रखने के लिए औरतों को भी नहीं घुसने दिया गया । लोगों ने
बगल के पार्क में सभा करके श्रद्धांजलि दी । इनमें फ़्रांसिसी और जर्मन लोगों से ज्यादा
अंग्रेज थे जो इंग्लैंड में मार्क्स की लोकप्रियता में इजाफ़े का प्रमाण था ।
1885 में जर्मनी में चुनाव हुए जिसमें समाजवादी प्रत्याशी भी चुनाव
लड़े । समाजवाद विरोधी कानूनों के चलते इन प्रत्याशियों को राहत संगठनों के लबादे में
चंदा वसूलना पड़ता, प्रचार सामग्री छिपाकर वितरित करनी पड़ती और
प्रत्याशी भी नकली संगठनों की ओर से घोषित किए गए थे । इसके बावजूद पार्टी के चौबीस
प्रत्याशी विजयी हुए । इससे पार्टी को विभिन्न कमेटियों में भागीदारी करने और कानून
बनाने का मौका मिला । यह जीत सर्वहारा आंदोलन के लिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि पहली बार
जर्मनी की आबादी में किसानों के मुकाबले मजदूर बहुमत में आए थे और उद्योगों पर मुट्ठी
भर पूंजीपतियों का कब्जा था । क्रांति न होने की स्थिति में सर्वहारा के लिए यही रास्ता
सबसे मुफ़ीद था । इंग्लैंड में भी पहले से दोगुना संख्या में मताधिकार प्राप्त मतदाताओं
के साथ चुनाव हुए । समाजवादियों ने तीन प्रत्यशी खड़े किए और तीनों हार गए लेकिन नेता
पर आरोप लगा कि लिबरल पार्टी से पैसा लेकर उसने ऐसी जगहों से समाजवादी प्रत्याशी खड़े
किए जहां कंजर्वेटिव पार्टी के समर्थक अधिक थे । पार्टी की बदनामी हुई लेकिन असली तमाशा
उस साल की अभूतपूर्व ठंड में गरीब बस्तियों में गर्मी का कोई बंदोबस्त न करने के विरोध
में प्रदर्शन के दौरान हुआ । इस प्रदर्शन के समय जान बूझकर पुलिस की तैनाती कम की
गई थी ताकि हिंसा होने से मजदूरों के दमन का बहाना मिल सके । हिंसा हुई और भीड़ ने
आलीशान घरों को तोड़कर लूटपाट की । हिंसा का सबसे अधिक खतरा फ़्रांस में था । वहां चुनाव
में वामपंथ विजयी हुआ था लेकिन संसद के भीतर उनमें कुर्सी की छीना झपटी ऐसी थी कि वे
जनता की समस्याओं से आंखें मूंदे अपने शगल में लगे रहे । इसी समय एमिली जोला का कोयला
खदान मजदूरों पर लिखे मशहूर उपन्यास ‘जर्मिनाल’ का प्रकाशन हुआ जिसमें मजदूरों ने एक खदान के मैनेजर को जान से मार डाला था
। एक ऐसी घटना हुई भी जिसका प्रभाव यह पड़ा कि संसद के अतिवादी समूह खामोश हो गए । एंगेल्स
ने इसे ‘काल्पनिक समजवाद’ की मौत कहा ।
इसके कारण मजदूरों की समस्याओं पर तेजी से सरकारों और पूंजीपतियों का ध्यान गया जो
शांतिपूर्ण हड़ातालों से आकर्षित नहीं हो रहा था । कुल तीन मजदूर सांसदों के शोर के
चलते सरकार ने खान मजदूरों के हालात में सुधार की बात की । इसे एंगेल्स ने मजदूर अधिकारों
की मान्यता का पहला प्रमाण माना । उधर अमेरिका में 1886 में आठ
शहरों में काम के घंटे आठ करने के लिए प्रदर्शन हुए । यह तो शुरुआत थी । इन्हीं प्रदर्शनों
के क्रम में 1 मई को आगे चलकर मजदूर दिवस की मान्यता मिली । ऐसी
स्थिति में मार्क्सी समाजवाद भी अनजाना नहीं रह गया ।
कैपिटल के दूसरे भाग में पूंजीवाद के केंद्र से आगे के विस्तार
का विश्लेषण किया गया था । इसमें जहां बाजार नहीं था वहां बाजार के निर्माण की प्रक्रिया
का बयान है जो उपभोक्ता के न चाहने पर भी उसके सिर पर थोप देने वाली वस्तुओं का परिचालन
करता है । जीवनीकार ने इसके लिए गृह निर्माण उद्योग का हवाला दिया है जो संयोगवश इस
समय की स्थिति से बहुत मिलता जुलता है । इसमें बिल्डर जो घर बनाते हैं उसके लिए धन
संभावित खरीदारों की ओर से नहीं प्रदान किया जाता, बल्कि सट्टा पर घर रख लिया
जाता है जिसे अगला सट्टेबाज और भी ऊँची कीमत अदा करके रख लेता है । निर्माण के लिए
बिल्डर कर्ज पर धन लेता है इस आश्वासन के साथ कि घर की बिक्री पर लौटा देगा । नतीजा
कि घर अधबने हाल में आर्थिक हालत में सुधार की आशा में पड़े रहते हैं या कभी कभी नीलामी
में लागत के आधे दामों पर बिकते हैं । इस तरह पूंजीवादी अतिउत्पादन एक और उद्योग को
मंदी तेजी की अस्थिरता के हवाले कर देता है । मार्क्स ने कृषि में इस प्रक्रिया के
प्रवेश को ऐसे पशुओं की प्रजाति के प्रचलन में देखा जो हलाल होने के लिए जल्दी तैयार
किए जाते हैं । इसके कारण किसान खेती से ज्यादा फ़ायदा इसमें देखकर अनाज की खेती से
किनारा करने लगते हैं । इसके चलते कहीं अधिकाई तो कहीं अभाव पैदा होता है और अनाज का
भाव बेहद बढ़ जाता है ।
इधर 1889 में इंग्लैंड में एक के बाद एक हड़तालें
शुरू हुईं जिनमें मार्क्स की आखिरी बेटी एलिनोर और उसके पति एवेलिंग नेतृत्वकारी भूमिका
में रहे । इसके पहले ये लोग अमेरिका में समाजवाद के प्रचार के लिए भाषण देते घूमते
रहे थे । सबसे पहले गैस मजदूरों की सफल हड़ताल हुई जिसके नेता आगे चलकर ब्रिटेन के सांसद
भी बने । दूसरी हड़ताल गोदी मजदूरों की हुई जिसका प्रभाव लंदन शहर पर बहुत गहरा पड़ा
। उनके चंदे के बावजूद हड़ताली मजदूर टूटने की कगार पर पहुँच गए लेकिन तभी आस्ट्रेलिया
के गोदी मजदूरों द्वारा एकत्र की हुई तीस हजार पौंड की सहायता आ गई । जहाज कंपनियों
की हालत खराब होने लगी और इस व्यापक एकजुटता से डरकर उन्होंने मजदूरों की मांगें मान
लीं । यह जीत समाजवादियों की भी थी । अब वे गरीबी से निजात दिलाने का रास्ता बताने
वाले माने जाने लगे । एंगेल्स को लगा काश ! मार्क्स जीत का यह
दिन देखने के लिए जीवित होते । इसी साल 14 जुलाई को मार्क्स की
बेटी लारा के पति लाफार्ग ने बास्तील के पतन की सौवीं जयंती पर दूसरे इंटरनेशनल के
गठन के लिए पेरिस में सोशलिस्ट कांग्रेस का आयोजन किया । यह घटना ऐतिहासिक रही क्योंकि
उसी समय विश्व प्रदर्शनी के मौके पर एफ़िल टावर का भी उद्घाटन हुआ । एंगेल्स तो नहीं
गए लेकिन एलिनोर और एवेलिंग ब्रिटेन के प्रतिनिधिमंडल में मौजूद थे । बीस देशों से
391 प्रतिनिधि एकत्र हुए थे । 6 दिनों की कार्यवाही
के बाद कांग्रेस ने आठ घंटे काम के दिन, बाल श्रम पर प्रतिबंध
और महिला तथा किशोर श्रमिकों के लिए नियम-कानून के समर्थन में
प्रस्ताव पारित किए । उन्होंने मजदूरों के राजनीतिक संगठन की जरूरत और नियमित सेना
के खात्मे और उसकी जगह जन-मिलिशिया की स्थापना से सहमति जताई
। 1 मई को 1890 से प्रति वर्ष अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर काम के आठ घंटे और मजदूरों के अधिकारों के लिए प्रदर्शन करने का फैसला किया
गया । अब एंगेल्स ने कैपिटल के तीसरे भाग पर हाथ लगाने का इरादा बनाया । उम्र भी सत्तर
हो चली थी । 1890 की फ़रवरी में जर्मनी में हुए चुनावों में समाजवादियों
को पिछले चुनाव के दोगुने वोट मिले और नई संसद में उनके 35 प्रतिनिधि
निर्वाचित घोषित हुए । उस साल मई दिवस के प्रदर्शनों में पेरिस में एक लाख और लंदन
में तीन लाख स्त्री-पुरुष मजदूर जमा हुए ।
1891 में ब्रसेल्स में दूसरे इंटरनेशनल की कांग्रेस में मार्क्स
के विचारों का अनुमोदन किया गया । यह महसूस होने लगा कि समाजवादी आंदोलन, ट्रेड यूनियनें और मजदूर हितों की बात करने वाले ढेर सारे दल अब परिपक्वता
की ओर हैं, लगने लगा कि दशकों की मेहनत और संघर्ष से जो लाभ हुए
हैं उन्हें किसी राजा की मर्जी या सेना के दमन से पलटा नहीं जा सकता है । ब्रसेल्स
कांग्रेस ने यूनियनों पर बल दिया और मजदूरों का मुकाबला करने के लिए विश्व स्तर पर
संगठित हो रही पूंजी के विरोध के लिए मजदूरों की अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता की बात की
। कांग्रेस ने मजदूर हितों के लिए चुनावों का इस्तेमाल करने की बात भी स्वीकार की ।
युद्ध को पूंजीवाद का उत्पाद मानने और शांति के लिए काम करने का भी विवादास्पद प्रस्ताव
पारित हुआ । 1892 में आंदोलन और आगे बढ़ा । फ़्रांस में वर्कर्स
पार्टी को बाईस स्थानीय सरकारों का नियंत्रण मिला और नगर पालिकाओं में 635 सीटें मिलीं । जर्मनी में भी ताकत मजबूत हो रही थी लेकिन लंदन की मई दिवस का
प्रदर्शन ऐतिहासिक था । 6 लाख मजदूर जमा हुए और एंगेल्स को अंतिम
युद्ध की आहट सुनाई पड़ने लगी । जुलाई में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के तीन मजदूर प्रतिनिधि
संसद में पहुंचे । इस जीत से उत्साहित होकर 1893 में
120 प्रतिनिधियों ने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की । चार दिन
बाद पार्टी का जो घोषणापत्र निकला वह पूरी तरह मार्क्स का लिखा लग रहा था । जो अध्यक्ष
बने वे बाद में लेबर पार्टी के बड़े नेता साबित हुए । इसी साल जर्मनी में 44
सामाजिक जनवादी संसद में पहुंचे और पार्टी को सत्रह लाख वोट मिले । इसके
कुछ ही दिन बाद दूसरे इंटरनेशनल की तीसरी कांग्रेस जूरिख में हुई । एंगेल्स ने समापन
भाषण दिया । कांग्रेस में 18 देशों से चार सौ प्रतिनिधि आए थे
। केवल पचास साल पहले मार्क्स और एंगेल्स ने समाजवाद का प्रचार शुरू किया था
!
1894 में कैपिटल का तीसरा भाग एंगेल्स ने 74 साल की उम्र में पूरा कर लिया । इसमें एकाधिकारी पूंजी और विश्व बाजार के निर्माण
की कहानी थी । इसमें सट्टा बाजार और उसके परजीवी नियंताओं का इतिवृत्त था । इसमें कर्ज
प्रणाली की परीक्षा की गई थी और बताया गया था कि पगारजीवी मजदूर इस कर्जदाता का भी
गुलाम होता है । सबसे आगे बढ़कर मुनाफ़े की गिरती दर के चलते पूंजीवाद के विनाश की घोषणा
की गई थी । अब एंगेल्स ने मार्क्स की जीवनी लिखने का संकल्प किया । लेकिन
1895 के अगस्त माह के आरंभ में एंगेल्स का देहांत हो गया । इसके बाद
के अध्यायों में मार्क्स की जीवित दोनों बेटियों और उनके परिवारों की कथा है जिसमें
सबसे मार्मिक लारा और लाफ़ार्ग की है जिन्होंने आपसी सहमति से वृद्धावस्था की समस्याओं
के चलते आत्मघात किया और जिनकी शवयात्रा में लगभग दो लाख लोग शामिल हुए । श्रद्धांजलि
देने वालों में लेनिन भी थे ।
No comments:
Post a Comment