Monday, December 24, 2012

ब्लर्ब


       1857: एक महागाथा (स्वराज प्रकाशन से प्रकाश्य पुस्तक के लिए)            

1857 भारतीय इतिहास की ऐसी गुत्थी है जो औपनिवेशिक इतिहास दृष्टि से मुक्ति की मांग करती है आम तौर पर विजयी ही पराजित का भी इतिहास लिखता है इस दुर्घटना का शिकार भारत का यह पहला स्वतंत्रता संग्राम सबसे अधिक हुआ है दस्तावेजों और अभिलेखों पर उस समय के अंग्रेज शासकों के नजरिए की छाप है सही तस्वीर की तलाश में खोजी विद्वान मौखिक स्रोतों को छान रहे हैं ऐसी ही हालत में इस गाथा पर नजर पड़ी बिना किसी संदेह के कह सकता हूँ कि यह उस महान संग्राम की शोक गाथा है उस संग्राम में मिली पराजय के बाद ही 1859 में वे औपनिवेशिक कानून बने जिमें राज्य को हथियार रखने का एकाधिकार मिला जब छापे पड़ने लगे तो लोगों ने भविष्य की किसी लड़ाई में दुश्मन से लड़ने के लिए पारंपरिक असलहे दीवारों में छिपा दिए और जब भी दोबारा हिंदुस्तान को किसी दूरस्थ प्रभु मुल्क की खातिर दूहने की कोशिश होगी तो वे हथियार बाहर निकल आएंगे  उसी तरह उस टक्कर की यादें भी ज्यादा भरोसे के काबिल लोगों की सामूहिक स्मृति में बसी रहीं इसी स्मृति की एक गूंज इस महागाथा में है । शेष हिंदुस्तान की तरह ही इस गाथा में भी कमान स्त्रियों के हाथ में है और विद्रोही सिपाही हैं जो पराजय में भी वीरोचित गरिमा बनाए हुए हैं ।
       
      

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