Sunday, May 22, 2011

मोबाइल महिमा


मेरे कुछ मित्र आजकल मोबाइल से त्रस्त होने का सुख उठा रहे हैं । उनका कहना है कि मोबाइल उन्हें चैन नहीं लेने देता । जो चैन नहीं लेने देता अर्थात सरकार उसकी तो चाकरी में कोई दिक्कत नहीं । मोबाइल ने मनुष्यों को उनकी जिंदगी में दाखिल कर दिया है और इससे उन्हें कठिनाई हो रही है । सोचता रहा कि आखिर तब वे मोबाइल फेंक क्यों नहीं देते लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि ब्लैकबेरी का मोबाइल स्टेटस बनाने के भी काम आता है । वे इससे त्रस्त होने का रोना रोते रहेंगे बस । यह उदारीकरण से पैदा हुए उपभोक्तावादी मध्यवर्ग में बुद्धिजीवियों के भी शामिल हो जाने का संकेत है ।

ये लोग अपने लिए तो सारी सुविधा और ध्यान की अपेक्षा करते हैं लेकिन लोगों से थोड़ी दूरी बनाकर रखना चाहते हैं । वे चाहेंगे कि उनकी बात फ़ोन, टी वी, अखबार सबके जरिए सुनी जाय लेकिन उन्हें किसी और की बात न सुननी पड़े । चिंताजनक है इस बुद्धिजीवी वर्ग का विकास क्योंकि इतना मानवद्रोह और अहंकार उन्हें कल लोगों से दूर कर देगा तो फिर इस शिकायत का वक्त भी नहीं रह जायेगा कि लोग उनकी बात नहीं सुन रहे हैं ।

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