Thursday, May 19, 2011

लोकतंत्र के नये पहरुए


पहले लोकतंत्र विशेष्य हुआ करता था और इसके पहले कोई विशेषण लगाया जाता था । आजकल विशेषण विहीन होकर यही विशेषण बन गया है । बुर्जुआ बुद्धिजीवी इसके पहले संसदीय तो वामपंथी पूँजीवादी का विशेषण लगाया करते थे । अब पूँजीवाद और संसद दोनो पर्यायवाची हो गये हैं और एक के अदृश्य होते ही दूसरा भी अदृश्य हो गया है । अब लोकतंत्र के विशेषण होने से लोकतांत्रिक राजनीति आदि की चर्चा और चिंता की जाती है ।
इसके एक पहरेदार तेल के कारण इसे पसंद करते हैं । तेल का एक पर्यायवाची स्नेह भी है इसलिए कह सकते हैं उन्हें लोकतंत्र से स्नेह है । स्नेहवश वे लोकतंत्र फैला रहे हैं । वे पहले एक दूसरे नाम से इराक में लोकतंत्र फैला रहे थे । आजकल लीबिया पर उनकी कृपा है । पहले वे बुश के नाम से जाने जाते थे आजकल ओबामा कहे जाते हैं ।
दूसरे लोग माओवाद का विरोधी होने से लोकतंत्र के मुरीद हुए थे । इसका अंदाजा 'नया पथ' का माओवाद विरोधी अंक पढ़कर लगा । तीसरे प्रकार की जनता अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद लोकतंत्र प्रेमी हुई है । इन्हें नंदन नीलकेनी का सरकार के एक प्रोजेक्ट का प्रमुख होना खतरा नहीं लगता लेकिन लोकपाल विधेयक बनाने वालो की कमेटी में प्रशांत भूषण का होना लोकतंत्र के लिए खतरा लगता है ।

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