मार्क्स के साथी एंगेल्स उनसे दो साल छोटे
थे।सूती कपड़ों का पारिवारिक व्यवसाय था। व्यावसायिक समुदाय के जीवन पर व्यंग्य
लिखना बचपन में ही शुरू कर दिया था। पढ़ने के लिए गये तो विद्रोही विद्यार्थियों
के साथ लग लिये। पारिवारिक वातावरण के चलते आर्थिक मामलों की गहरी समझ थी। मार्क्स
के संपादन में प्रकाशित पत्रिका में इन मामलों पर लेख लिखा। व्यवसाय की देखरेख के
लिए मांचेस्टर में रहते हुए मजदूरों की दशा पर किताब लिखी। मार्क्स से पेरिस में
मुलाकात होने पर साझी रुचि का पता चला तो जीवन भर की यारी कर ली और मरते दम तक निभाया।
इस क्रम में दोनों ने ढेर सारी किताबें मिलकर लिखीं। तमाम प्रतिभा के बावजूद अपना
लिखना रोककर मार्क्स के लिए कारखाने में काम करते रहे ताकि उन्हें कोई दिक्कत न
हो। मार्क्स के निधन के बाद भी मार्क्स के ग्रंथ 'पूंजी' की
पांडुलिपियों के आधार पर उसके शेष दो खंडों को पूरा करने और छपाने के काम में झोंक
दिया। इन दोनों की मित्रता को लेनिन ने दोस्ती की कहानियों से भी ऊपर की कहानी
बताया। न केवल लेखन बल्कि आंदोलनों में भी दोनों सक्रिय रहे। मार्क्स के निधन के
बाद उनकी पारिवारिक परिचारिका एंगेल्स के साथ रहीं। मार्क्स की सबसे छोटी पुत्री
एलीनोर भी इनके साथ रहीं। इन सबके अतिरिक्त कुछ विषय ऐसे थे जिनमें उनकी
विशेषज्ञता थी। कारखाने के मालिक होने के कारण आर्थिक मामलों का उन्हें प्रत्यक्ष
ज्ञान था। फौजी मामलों की उनकी जानकारी के चलते मार्क्स के घर में उन्हें जनरल कहा
जाता था। आशा है इस संग्रह से उनकी क्षमता का अनुभव पाठकों को होगा। मार्क्स के
बाद दुनिया भर के मजदूरों के हित में नेताओं को सलाह देने की जिम्मेदारी भी उनको
निभानी पड़ी। मार्क्स के सिद्धांत को सुबोध तरीके से पेश करने के कारण उन्हें
मार्क्सवाद का संस्थापक भी माना जाता है।
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