Thursday, May 21, 2015

ग्रीस के प्रधानमंत्री सिप्रास का भाषण

            
देवियों और सज्जनों
सम्मेलन के आयोजकों को मैं उनके निमंत्रण के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं ।
अर्थशास्त्रियों के इस सालाना वित्तीय जलसे में शरीक होना मेरे लिए खुशी की बात है । यह ऐसा आर्थिक मंच है जो प्रत्येक साल तमाम अलग अलग राजनीतिक और आर्थिक धारणाओं को सुनने और गुनने का मौका मुहैया कराता है । दुनिया और यूरोप में सार्वजनिक बातचीत की दिशा इन्हीं धारणाओं से परिभाषित होती है ।
हम उन राजनीतिक और आर्थिक धारणाओं की बात कर रहे हैं जो अर्थशास्त्रियों की प्रयोगशाला में किए प्रयोगों से नहीं पैदा होतीं, बल्कि सभी आधुनिक यूरोपीय समाजों में अंतर्निहित वैधानिक सामाजिक अंतर्विरोधों से परिभाषित होती हैं ।
असल में ये राजनीतिक और आर्थिक धारणाएं ऐसे वैचारिक मान्यताओं पर निर्भर हैं जो, पारिभाषिक तौर पर, आपस में विरोधी हैं ।
इसीलिए नीति निर्माताओं और संगठित राज्य का यह कर्तव्य है कि वह इस विरोधाभास को हरेक बार सक्षम तरीके से हल करे ।
क्योंकि अंतत: नीति से ही तय होगा कि क्या उचित है और क्या अनुचित, क्या सही है और क्या गलत, क्या संभव है और क्या असंभव है ।
ग्रीस में पिछले पांच सालों से जो पार्टियां शासन चला रही थीं, उनकी नीतियां बुरी तरह से असफल हुईं ।
वे सामाजिक न्याय की लचीली धारणा बनाने और देश की आगामी दिशा के लिए टिकाउ योजक तय करने के मकसद से ग्रीस के समाज के सभी तबकों की अलग अलग सामाजिक अपेक्षाओं को आपस में जोड़ने और उनमें संगति बिठाने में नाकाम रहीं ।  
इसकी बजाए इन पार्टियों ने दुनिया और यूरोप के सर्वाधिक अतिवादी और पूर्वाग्रही विचारों और ताकतों का पक्ष लेना तथा सामाजिक बहुसंख्या के विरुद्ध तकलीफदेह कटौती की नीतियों को लागू करना पसंद किया
यह सोच कि ग्रीस में संकट मजदूरों और पेंशनभोगियों के सामाजिक लाभों, विशाल सार्वजनिक क्षेत्र, संरक्षणवादी नीतियों से जुड़ाव के चलते आया है, राजनीतिक कुलीनों के भीतर मजबूत है और इसे आर्थिक रूप से ताकतवर लोगों का समर्थन हासिल है ।
और इसी आधार पर ग्रीस के समाज और अर्थतंत्र के समूचे ढांचे को पुनर्संयोजित किया गया- इसे मेमोरेंडम का नाम दिया गया ।
देवियों और सज्जनों
मेमेरेंडम न केवल आर्थिक भूल था, एक भद्दा कार्यक्रम, एक अनदेखी था ।
जो आर्थिक संकट वित्तीय व्यवस्था के असतुलन से पैदा हुआ और ग्रीस की सरकार और अर्थतंत्र की अंतर्निहित बीमारियों के चलते गहराया उसके बोझ को कामगारों, पेंशनभोगियों, स्वरोजगारी मध्यवर्ग और छोटे उद्यमियों की पीठ पर लाद देने की सचेत चाहत था ।
असल में मेमोरेंडम और कुछ नहीं, बल्कि अधिकारों और व्यवसायों के अभूतपूर्व सफाए के जरिए संकट पर विजय पाने की कोशिश था जिससे सामाजिक बहुसंख्या के लिए बेहद बदतरीन शर्तों पर पूंजी संचय का नया आधार तैयार होता ।
असल में यह तय था कि इस नीति से मंदी और समय तक जारी रहेगी जिसे मेमोरेंडम के निर्माताओं ने शुरू में वांछनीय सोचा था ।
वे अच्छी तरह से जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं और इस तथ्य के बावजूद वे आगे बढ़ते रहे ।
उनकी संपूर्ण सनक का यही सूत्र है ।
मेमोरेंडम के सालों में ग्रीस में सामाजिक विषमता ने आसमान छू लिया- यूरोप के सामाजिक विषमता सूचकांक पर ग्रीस पहले स्थान पर है- बेरोजगारी तिगुनी हुई, मजदूरी घटी, पेंशनों में भारी कटौती हुई और कल्याणकारी राज्य शब्दश: ढह गया ।
इस पांच साल की अवधि में केवल ग्रीस के धनी लोगों को नुकसान नहीं उठाना पड़ा । केडिट सुइस के अध्ययन के मुताबिक ग्रीस के सबसे धनी 10% लोग फिलहाल राष्ट्रीय संपदा के कम से कम 56% हिस्से के मालिक हैं ।
इस राजनीतिक और आर्थिक तूफान ने केवल एक चीज को कायम रखा है: आश्रित और भ्रष्ट सरकार को जो देश के राजनीतिक और आर्थिक कुलीनों का समर्थन करती है ।
या ठीक ठीक कहें तो न केवल इसे कायम रखा गया, बल्कि इसमें और भी बुरे कामों को जड़ जमाने की इजाजत दी गई ।
किसी भी तथाकथित मेमोरेंडम के सुधार से टैक्स संग्रह के ढांचे में सुधार नहीं हुआ । अब तो कुछ प्रतिभाशाली और उचित ही स्नायविक तौर पर उत्तेजित कर्मचारियों की उत्सुकता के बावजूद यह ढह रहा है ।
कोई भी तथाकथित सुधार राजनीतिक कुलीनों, मीडिया मालिकों और बैंकों की तिकड़ी के भ्रष्टाचार से लड़ नहीं सका ।
कोई भी सुधार उस सरकार के कामकाज और सक्षमता को ठीक नहीं कर सका जो साझा कल्याण की जगह विशेष हितों की सेवा से काम चलाना सीख गई थी ।
ठीक ठीक इसी हालत ने यानी इस अतिवादी नीति को सही ठहराने की विफलता ने, कुलीनों के निजी हितों को समूचे समाज के हितों में बदल देने के विश्वसनीय विमर्श को प्रस्तुत करने की विफलता ने सीरिजा और मेमोरेंडम विरोधी खेमे को सत्ता तक पहुंचा दिया ।
क्योंकि बहुत लोगों को आप कुछ समय तक बेवकूफ बना सकते हैं और कुछ लोगों को काफी दिनों तक, लेकिन तमाम लोगों को आप बहुत दिनों तक बेवकूफ नहीं बना सकते हैं ।
देवियों और सज्जनों,
25 जनवरी के चुनावों ने इस सरकार को सामाजिक मुक्ति और आर्थिक पुनर्निर्माण का स्पष्ट जनादेश दिया है: ग्रीस के समाज को बरबाद करने वाली और उसे निराशा के मुहाने पर ले आने वाली मेमोरेंडम की नीति को बदल डालने का ।
ग्रीस के अर्थतंत्र और समाज को कैसे संगठित किया जाए इसके बारे में नई सरकार का नजरिया पूरी तरह से अलहदा है ।
विषमता को बढ़ाने की जगह उसे घटाने लायक टिकाउ विकास हासिल करने के लिए आवश्यक पूर्वशर्तों की उसकी समझ पूरी तरह से अलग है ।
क्योंकि अगर वृद्धि महज मौजूदा सूरते हाल को जारी रखना है, सामाजिक बंटवारे को बनाए रखना या उसे और बढ़ाना है तो “यूरोप की बादशाहत” में कोई बुनियादी खामी है ।
इसीलिए हम सरकार के पहले सौ दिनों के दौरान यही जनादेश लागू कर रहे हैं और समूचे बुजुर्ग यूरोप की तमाम सार्वजनिक बहसों में इसी नये दृष्टिकोण को सामने रख रहे हैं ।
हम समर्थन देने वाली विराट सामाजिक बहुसंख्या के नाम पर तथा सामाजिक न्याय, वृद्धि और समता को आगे बढ़ाने के नाम पर कानून बना रहे हैं और वार्ताएं कर रहे हैं ।
क्योंकि संयुक्त यूरोप का एक बुनियादी खम्भा समता है और इसे उन लोगों द्वारा खत्म नहीं करने दिया जा सकता जो केवल स्वतंत्रता के नाम पर बोलने की बात करते हैं और उसी शर्त को भूल जाते हैं जिससे स्वतंत्रता संभव होती है:
और समता के अलावा यह पूर्वशर्त और क्या हो सकती है?
इसीलिए हम इस सामाजिक बहुसंख्या के हितों और आकांक्षाओं के दिशा-सूचक से निर्देशित होकर कानून बना रहे और वार्ताएं कर रहे हैं: वे कामगार और मध्यवर्ग जो मेमोरेंडम के चार साला हमले में सामाजिक और नैतिक रूप से कुचल दिए गए ।
और हमारा लक्ष्य है एक बार फिर सामाजिक न्याय का ऐसा रूप तैयार करना जो ग्रीस और यूरोपीय समाज को व्यक्तियों के झुंड से वास्तविक समुदाय में बदल दे ।
हमारा लक्ष्य है राजनीति के सही मतलब की वापसी ताकि हम अपना अंतिम उद्देश्य हासिल कर सकें, जिसमें हम सबका साझा होगा:
सामाजिक हित का ऐसा टिकाउ संस्करण जो तनाव नहीं पैदा करेगा, बल्कि लोगों को सुखी जीवन का मौका मुहैया कराकर उनकी क्षमता को बढ़ाएगा ।
बहरहाल हम अभूतपूर्व कठिन आर्थिक वातावरण में कानून बना रहे हैं और वार्ताएं चला रहे हैं ।
पिछली सरकार के मेमोरेंडम समर्थक लोगों द्वारा तैयार बारूदी सुरंगों से भरी जमीन पर हमें चलना पड़ रहा है ।
जिन्हें वोट से सत्ता हासिल होती है वे आम तौर पर कहते हैं कि उन्हेंखाली खजानामिला है ।
लेकिन हमारे मामले में यह कहना बढ़ा चढ़ाकर बोलना न होगा, बल्कि थोड़ा कमतर बयान होगा ।    
हमें केवल खाली खजाना ही नहीं मिला ।
हमें ऐसा देश विरासत में मिला जो चलने फिरने में पूरी तरह अक्षम था ।
हमें ऐसा देश विरासत में मिला जिसमें चुनावों के महज एक महीने बाद यानी फ़रवरी 2015 तक मजदूरी और पेंशन चुकाने का माद्दा था और ऐसा पिछली सरकार की वजह से था ।
इसके बावजूद हम देश को चलाते रहने में कामयाब रहे ।
हम सरकार की जिम्मेदारियों को पूरी तरह से अंजाम देने में कामयाब रहे, साथ ही कठिन वार्ताओं में भी लगे रहे ।
और वित्तीय दबावों के बावजूद हमारे नागरिकों के आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी हुई जिसके चलते सार्वजनिक कोश में उल्लेखनीय राजस्व वृद्धि दर्ज की गई ।
जिन चार महीनों से हमारी सरकार की सत्ता रही उन महीनों में प्राथमिक अधिशेष 2014 में इसी अवधि के अधिशेष 1.046 मिलियन यूरो के मुकाबले 2.146 मिलियन यूरो रहा जबकि भविष्यवाणी 287 मिलियन यूरो के प्राथमिक घाटे की थी ।
अप्रैल महीने में ही हमने मासिक लक्ष्य के मुकाबले साधारण बजट के कुल राजस्व में 15.3% की वृद्धि हासिल की ।
ऐसा करके हम न केवल उस “भहराने” को टाल सके जिसे पिछली सरकार ने जानबूझकर फ़रवरी के लिए तय कर रखा था, बल्कि हम देश की सभी आंतरिक और बाहरी देनदारियों को बिना किसी खतरे के चुकाते रहे, इस तथ्य के बावजूद कि अगस्त 2014 के बाद से कर्ज़ की कोई किश्त अदा नहीं की गई थी ।
और मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि वेतन और पेंशन के लिए कोई खतरा नहीं है ।
बहरहाल एक बड़ा मुद्दा दरपेश है जिसे मैं नैतिक मुद्दा कहता हूं ।
समझौते को अंतिम रूप दिया जाना है और इसे ईमानदार तथा सबके लिए फायदेमंद होना चाहिए ।
इसे समझना कुछ लोगों के लिए मुश्किल है कि समय गुजरने के साथ ग्रीस के धीरज की परीक्षा ली जा रही है और धीरे धीरे लाल निशान धुंधला होता जाएगा ।
अगर उनके दिमाग में ऐसी बात है तो इसे भूल जाना बेहतर होगा और इसके उलटी बात सच होगी ।
अगस्त 2014 के बाद से हमें मौजूदा उधारी कार्यक्रम के मुताबिक देनदारों से प्राप्य 7.2 बिलियन की कोई किश्त नहीं मिली है ।
इसमें 1.9 बिलियन यूरो का केंद्रीय बैंकों का वह मुनाफ़ा भी शामिल है जो ग्रीक बांडों से अर्जित हुआ है ।
और 1.2 बिलियन यूरो उन बांडों में है जिनका भुगतान हमारे बजट से हुआ है और जिन्हे एफ़ एस एफ़ से ई एस एम में स्थानांतरित किया गया है ।
बहरहाल इसी दौरान जो धन हमें मिलना चाहिए था उसके न मिलने के बावजूद हमने उन्हीं संस्थाओं को 17.5 बिलियन की किश्त अदा की है ।
अगर इसे कुछ लोग कानूनी रूप से सही मानते हैं तो मैं उनके दृष्टिकोण को समझ सकता हूं ।
वे कहेंगे कि कानून देनदारों (सूदखोरों) के पक्ष में होता है ।
लेकिन जो भी इसे नैतिक मानता है वह निष्पक्ष तो नहीं ही है ।
देवियों और सज्जनों,
विपक्ष के अनेक सदस्य बेहद कुंठित हैं क्योंकि वे पर्याप्त राजनीतिक आलोचना नहीं कर पा रहे, निंदा नहीं कर पा रहे कि हम चुनावों से पहले के वायदों को तथाकथित रूप से भूल गए हैं और कि हम थेसालोनिकी कार्यक्रम की कार्यसूची से पीछे हट गए हैं ।
उनका जवाब देने की जगह मैं संक्षेप में बताना चाहता हूं कि पहले सौ दिनों में सरकार ने क्या किया है और तथ्य तो सुनना होगा:
इसीलिए अधिक तथ्यगत तौर पर:
पहले सौ दिनों में सरकार ने:
·         नई संसद द्वारा पारित पहले अध्यादेश के जरिए मानवीय संकट को दूर करने के लिए पहले कदम उठाए: इस कार्यक्रम को दैनिक आधार पर लागू किया जा रहा है और इसके तहत भोजन, मकान और बिजली की सुविधा को लाया जा रहा है ।
·         अर्थतंत्र को दुबारा पटरी पर लाने और टैक्स न्याय के लिए तात्कालिक उपाय किए: नागरिकों के टैक्स और सामाजिक सुरक्षा संबंधी भुगतान देनदारियों की एक सौ किश्तों का भुगतान हो रहा है, इससे लाखों व्यवसायियों को अपने कर्ज़ समायोजित करने तथा टैक्स और सामाजिक सुरक्षा की छूट मिलेगी तथा लाखों घरों को अति-कर्ज़खोरी के फंदे से मुक्ति मिलेगी । इस कदम से सार्वजनिक खजाने में जरूरी नकदी भी आएगी । 11 मई तक यानी अध्यादेश लागू होने के चौबीस दिनों के भीतर ही लगभग 3 लाख 80 हजार लेनदारों ने देश के टैक्स अधिकारियों से समायोजन की गुजारिश की । कुल समायोजित कर्ज़ की राशि 2.8 बिलियन यूरो थी । इसी अवधि के दौरान यानी 12 मई तक 1 लाख 44 हजार सामाजिक सुरक्षा कोश को देय बीमाकृत कर्ज़ों का समायोजन हुआ, कुल समायोजित कर्ज़ की राशि लगभग 3.4 बिलियन थी । हमारे अध्यादेश के तहत यानी करदाताओं और बीमितों की भागीदारी से समायोजित राशि की तुलना पिछली सरकार के तहत सीमित नागरिक भागीदारी से समायोजित राशि से करना उचित होगी ताकि लफ़्फ़ाजी और सच्चाई में अंतर का पता चले ।   
·         इसके अलावे हमने प्रावधान पारित किया और मंत्रिमंडल ने निर्णय किया कि तिहरे व्यापार से लड़ा जाए, इससे टैक्स चोरी के सबसे प्रचलित तरीके को खत्म कर दिया गया ।
·         इसके अतिरिक्त नागरिक प्रशासन के लोकतंत्रीकरण के लिए पहला कानून पारित किया गया जिसके जरिए मेमोरेंडम युग के कुछ प्रत्यक्ष अन्यायों, मसलन वित्त मंत्रालय से सफाई कर्मचारियों, स्कूल गार्डों और दीगर लोकसेवकों की बर्खास्तगी, को रद्द किया गया ।
·         रोजगार वापसी संबंधी कार्यक्रम के पहलुओं को चालू किया गया, और मौजूदा कार्यक्रमों के लिए कुल कोश (2 बिलियन यूरो) के आवंटन संबंधी राष्ट्रपति जुंकर की पहल के जरिए भी इसे जारी रखा गया । निश्चय ही हमें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है खासकर ऐसे अप्रभावी कार्यक्रमों के चलते जिन्हें पिछली सरकार ने शुरू किया था और हमें उन्हें जारी रखना होगा । बहरहाल हमने योजना बनाई है कि 2015 के उत्तरार्ध से इन कार्यक्रमों को हम अपनी कार्यसूची के मुताबिक बदल और सुधार लेंगे ।
·         सरकारी प्रसारक ई आर टी (रेडियो सेवा) को बहाल करने का अध्यादेश पारित किया गया जो प्रतीकात्मक मील का पत्थर था । हमने निष्पक्ष, राजनीतिक दखल से मुक्त और अतीत के बरबादी भरे व्यवहार से भिन्न नये सरकारी प्रसारक बनाने के हालात पैदा किए । ऐसा सार्वजनिक सूचना का निकाय जो हमारी सरकार की नयी जन भावना और लोकतांत्रिक राजनीतिक संस्कृति को व्यक्त करेगा ।
·         योजना के मुताबिक हमने टेलीविजन स्टेशनों से संचालन की बकाया फ़ीस की वसूली का काम आगे बढ़ाया, खासकर वर्षों से जिन कर्ज़ों की वसूली हुई ही नहीं थी जबकि स्टेशनों को लाइसेंस जारी करने का मसौदा कानून अंतिम चरण में ला दिया गया ।
·         आगामी महीनों में पारित करने के लिए एक अध्यादेश के सिलसिले में हम अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन से सलाह कर रहे हैं जिसमें श्रम संबंधों में यूरोपीय लाभों की बहाली, सामूहिक सौदेबाजी की बहाली, बर्खास्तगी के बाद के प्रभावों पर विचार तथा क्र्मश: न्यूनतम वेतन को 751 यूरो तक ले जाना शामिल होंगे । और यह अत्यंत सकारात्मक बात है कि आज ही हमारे रोजगार मंत्री और श्रम संगठन के महानिदेशक की बैठक के बाद श्रम संगठन ने वक्तव्य जारी करके सामूहिक सौदेबाजी तथा ग्रीस के श्रम बाजार में सुधार के लिए ग्रीस की सरकार और सामाजिक सहभागियों का स्वागत किया है ।
·         मेमोरेंडम की समीक्षा के लिए गठित कमेटी ने अपनी जिम्मेदारियों को निभाना शुरू कर दिया है ।
·         पहली बार संभव सर्वोच्च स्तर पर आधिकारिक रूप से जर्मनी से क्षतिपूर्ति की राष्ट्रीय मांग को व्यक्त किया गया है ।
·         लेगार्ड की सूची के संदिग्ध टैक्स चोरों को पहली बार टैक्स अदा करने और बकाया टैक्स सलटाने को कहा गया है और अन्य मामलों पर निगरानी जारी है ।
·         विशेष कार्य समूह पुराने संदिग्ध समझौतों, मसलन जिम्मन्स और ग्रीक सरकार के बीच अदालत के बाहर का निहायत अनुचित समझौता, की छानबीन कर रहे हैं ।
देवियों और सज्जनों,
अतीत के नकारात्मक व्यवहार से भिन्न कार्य संस्कृति को जन्म देने और संसाधनों तथा सत्ता को भ्रष्ट और टैक्स चोर वित्तीय अल्पतंत्र की जगह उस विशाल सामाजिक बहुसंख्या को फिर से देने की हमारी शुरुआती कोशिशों के ये कुछ नमूने हैं जिन्होंने हममें विश्वास जताया है और जिन्हें हमसे अपेक्षाएं हैं ।
बहरहाल हमने महज शुरुआत की है ।
हम यह नहीं भूल सकते कि अतीत की नकारात्मक ताकतों- भ्रष्टाचार, गरीबी और निर्भरता- को एक ही झटके में साफ नहीं किया जा सकता है ।
बहरहाल साथ ही साथ हम देनदारों से जनता, देश और यूरोप के नाम पर कठिन वार्ता भी चला रहे हैं ।
वार्ता के शुरुआती दिनों में हमें मेमोरेंडम की विरासत का सामना करना पड़ा ।
हमें पांचवें मूल्यांकन को पूरा करने की जरूरत पड़ी और पिछली सरकार द्वारा किए गए वादों को पूरा करना पड़ा जैसा कि बहु उद्धृत हार्डुवेलिस की ईमेल में बताया गया था ।
हमने अपने सहभागियों से सम्मान की मांग की; यूरोप के नियम कायदों के प्रति तथा जनता की प्रभुसत्ता के प्रति सम्मान की मांग की जो यूरोपीय संघ के लोकतांत्रिक संगठन की आधार भित्ति है ।
इसके लिए हम लड़े और 20 फ़रवरी के यूरोग्रुप के फैसले के जरिए हमने अपने देनदारों के रुख में बदलाव हासिल किया- मेमोरेंडम को शब्दश: मानने की जगह हमारी प्राथमिकताओं के आधार पर साझा जमीन तलाश की गई ।
इस फैसले का हमें सम्मान करना चाहिए ।
लेकिन आपसी फायदेमंद समाधान के लिए कोई समझौता करना होगा- और ऐसा समझौता नहीं जो उन्हीं रुकावटों की ओर ले जाए- सभी शामिल पक्षों को यह बात दिमाग में रखनी होगी ।
पिछली सरकार के साथ जो सहमति बनी थी  उससे भागने के लगातार आरोप के साथ मेमोरेंडम के अनुसार उपायों पर बल देने से चल रही समझौता वार्ता की प्रक्रिया में मदद नहीं मिलेगी ।
ग्रीक सरकार अपने भागीदारों के साथ समुचित, आर्थिक और सामाजिक रूप से कारगर समझौता करने के लिए वार्ता जारी रखेगी ।
ऐसा समझौता जो कटौती को खत्म करे, असली अर्थतंत्र में नकदी ले आए और देश के विकास की संभावनाएं पैदा करे ।
इसके लिए जरूरी है:
·         कम प्राथमिक अधिशेष, खासकर इस साल और 2016 के लिए ताकि कटौती को बढ़ावा देने वाला ढांचा खत्म हो तथा आवश्यक वित्तीय अवकाश हासिल हो ।
·         वेतन और पेंशनों में कोई नई कटौती, यानी वे उपाय नहीं जो सामाजिक विषमता को तेज करें ।
·         सरकारी कर्ज़ का पुनर्समायोजन ताकि पिछले पांच सालों का यह दुष्चक्र टूटे जिसमें मौजूदा कर्ज़ चुकाने के लिए नया कर्ज़ लेना पड़ता था ।
·         मजबूत निवेश कार्यक्रम, जिसमें खासकर अधिरचना और नयी तकनीकों में निवेश के लिए वित्त जुटाने का काम हो ।
इस समय ऐसा लग रहा है कि अनेक मुद्दों पर देनदार संस्थाओं के साथ साझा जमीन तलाश कर ली गई है और हम समझौते के बेहद करीब हैं ।
वित्तीय लक्ष्य, निम्न वर्गों के पक्ष में बंटवारा करने के मकसद से वैट में मामूली बदलाव और टैक्स संग्रह के प्रशासन को मजबूत करने के लिए सांस्थानिक बदलाव जैसे मुद्दों पर साझा जमीन तलाश ली गई है ।
कुछ मुद्दों पर अब भी बात चल रही है: पहले से ही नियम विहीन श्रम बाजार के संचालन को परिभाषित करने वाले सांस्थानिक ढांचे को बदलने के लिए कुछ लोग अनेक प्रस्तावों पर जोर दे रहे हैं ।
ये बदलाव मंजूर नहीं किए जा सकते ।
विरोधाभास यह है कि जो लोग पेंशन प्रणाली के कारगर होने पर सवाल उठा रहे हैं वे ही कटौती को जारी रखने वाले मेमोरेंडम पर जोर दे रहे हैं ।
बहरहाल आगामी दिनों में हमें सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की वास्तविक राशि के मामले में आवश्यक साझा समझ बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी और गारंटी करनी होगी कि कोई भी प्रस्ताव और अनुमान सामाजिक सुरक्षा कोश की झूठी तसवीर पर आधारित न हो ।
साफ तौर पर मैं ग्रीस की जनता से वादा करता हूं कि वेतन और पेंशन के सवाल पर ग्रीक सरकार के पीछे हटने की कोई भी संभावना नहीं है ।
कर्मचारियों और पेंशनभोगियों ने बहुत कष्ट उठा लिया ।
दुबारा बंटवारे का और बोझ को सबके हिस्से डालने का समय आ गया है ।
देवियों और सज्जनों,
हम धीरज और निश्चय के साथ समान पूर्वावश्यकताओं वाले एकल समझौते के लिए बातचीत कर रहे हैं जो वृद्धि की गारंटी करे और कम समय में ही बाजारों तक ग्रीस की पहुंच बन जाए ।
इसी योजना पर हम बातचीत कर रहे हैं ।
इसके अतिरिक्त कुछ भी और करना, असफल प्रयासों को दुहराना होगा और सामाजिक तनाव कम करने की कोशिश में अतीत की संस्थाओं ने जिन भूलों को करने का जुर्म कबूल किया है उन्हीं की राह पर चलना होगा ।
लेकिन इन सार्वजनिक कबूलनामों की विश्वसनीयता के लिए उन्हें व्यवहार में प्रतिबिम्बित होना होगा ।
हमारे सरकार की वार्ता योजना न तो क्रांतिकारी है, न बहादुराना, न ही आक्रामक ।
हमारे सरकार की वार्ता योजना यथार्थ पर आधारित और कारगर है ।
हम दूसरे पक्ष का आवाहन करते हैं कि लगातार पांच सालों तक अयथार्थ लक्ष्यों और लगातार असफलताओं के बाद वह यथार्थ पर टिके ।
अंतत: जिस विशाल सामाजिक बहुसंख्या ने हम पर विश्वास जताया है और रोज जिसके हितों तथा अपेक्षाओं की हम रक्षा करते हैं उससे हम अपने साथ काम करने की अपील करते हैं ।
साथ मिलकर हम अपने देश द्वारा समझौते की कोशिशों का समर्थन कर सकते हैं । साथ मिलकर हम भविष्य की योजना बना सकते हैं- ऐसा भविष्य जिसमें न्यायोचित समाज और विकासमान अर्थतंत्र शामिल है ।
धन्यवाद ।
  
   
           



        

3 comments:

  1. जनमत में जेम्स पेत्रास वाला लेख पढ़ा आैर अब ये..हमेशा की तरह समृद्ध करने वाला

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