इस समूचे घटनाक्रम की शुरुआत तकरीबन एक माह पहले हुई थी जब मैं केंद्रीय हिंदी संस्थान के निमंत्रण पर अगस्त ’07 के आरंभ में दीमापुर गया था ।
जाते हुए तो बहुत पता नहीं चला लेकिन आते हुए लाडरिमबाई से लेकर कलाइन तक रास्ते भर
तकरीबन बीस जगह पहाड़ गर्भवती स्त्रियों के पेट की तरह जगह जगह से फूले मिले और सड़क
के किनारे पत्थरों के छोटे छोटे टीले । पूरे रास्ते एक ओर बांग्लादेश की सरहद । तकरीबन
दो घंटे तक बस मानो एक विशाल जलाशय की परिक्रमा करती रही । एक फ़ौज़ी ने खिड़की से बाहर
के दृश्य को देखकर कहा कि यह तो लोकतक जैसा है । पहले सिर्फ़ सोनापुर का भय रहता था
। इस बार हालत यह थी कि एक लैंडस्लाइड पार हुए नहीं कि पंद्रह मिनट बाद दूसरी लैंडस्लाइड
। पेशाब और साँस रोके रोके यह रास्ता पार हुआ ।
कुछ ही दिनों बाद सहकर्मी कृष्णमोहन झा को शिलांग जाना था । रास्ता खुला है
कि नहीं ? रोज पता लगाते रहे । जाने के दिन खुला होने से निकल
गए । शिलांग में ही पिता की मृत्यु का समाचार मिला । पत्नी और बच्ची सिलचर । पत्नी
ने सुबह की बस पकड़ी । रात साढ़े दस बजे दो सौ किलोमीटर दूर शिलांग पहुँच सकीं । वहाँ
से वे लोग 14 अगस्त की रात डेढ़ बजे गुवाहाटी उतर सके ।
14 अगस्त की रात का अर्थ पूर्वोत्तर के बाशिंदे ही समझ सकते हैं ।
रास्ता खुला है कि बंद है का अर्थ एक व्यापक संदर्भ में समझ में आएगा । बारिश
के दिनों में इसका कारण भूस्खलन होता है । भूस्खलन का कारण मेघालय के प्रति भारत सरकार
का नजरिया है । अत्यंत अस्थिर पर्वत मालाओं का यह प्रदेश औपनिवेशिक काल से ही प्राकृतिक
संसाधनों के अंधाधुंध दोहन का शिकार है । चीड़ की लकड़ी, कोयला
उत्खनन, और हाल के दिनों में सीमेंट के लिए डोलोमाइट चट्टानों
के उत्खनन से निरंतर पहाड़ नंगे हो रहे हैं । सिलचर की सीमा से लगे हुए ही तीन सीमेंट
कारखाने खुल गए हैं । जरा सी बारिश हुई और भूस्खलन से रास्ता बंद । अन्य दिनों में
बंद यानी हड़तालों के कारण आवागमन ठप हो जाता है । एक जमाने में रजनीतिक विक्षोभ प्रदर्शन
की दुनिया में यह शब्द इतना लोकप्रिय था कि ‘भारत बंद’
से कई लोग राजनीति में आते थे । अब इसका अस्तित्व महज पूर्वोत्तर में
है । भारत सरकार यहाँ के लोगों को ठेंगे पर रखती है बदले में लोग भी यही रवैया अपनाते
हैं । सुप्रीम कोर्ट का आदेश हुआ करे अगर कोई मुद्दा है तो बंद होगा । न्यायमूर्तियों
की आँखों के सामने सेना जो चाहे करती है तो लोग भी उनकी बंदिशों की परवाह क्यों करें
? बंद भी मामूली नहीं । जिस दिन बंद हो उस दिन आप सड़क पर क्रिकेट खेल
सकते हैं ।
बहरहाल अगस्त अंत में कृष्णमोहन को आना था तो कलकत्ते से सपरिवार हवाई मार्ग
से आए । पूर्वोत्तर में यह एक अच्छी बात है । सड़क बंद हो, रेल
बंद हो हवाई मार्ग चालू रहता है । इसी कारण फ़ोन के जरिए आपस में संपर्क भी बना रहता
है ।
सुना था यहाँ ऐसी बारिश होती है कि दसियों दिन सूरज नहीं दिखाई पड़ता । जनवरी
2005 में आया था तो अक्टूबर 2004 की बाढ़ के किस्से
थे । लगातार दो सालों तक बारिश अच्छी नहीं हुई सो सुनी सुनाई बातों पर यकीन नहीं होता
था । इसलिए इस बार गर्मी की छुट्टी में घर नहीं गया । यकीन नहीं होगा पर 20
मई से जो बारिश शुरू हुई तो 20 जून तक जैसे बादल
को लगातार पसीना आता रहा । इसी बीच यहाँ की बाढ़ का हल्का सा स्वाद मिला । मेरे एक प्रेमी
छात्र मुझे प्रेमवश अपने घर पैलापुल ले गए । पूरा परिवार सेवा में हाजिर । रात में
जब सोया तो रात भर बारिश की आवाज सुनाई देती रही । सुबह घर के सामने से जाँघ भर पानी
में लुंगी पहनकर पैंट झोले में लिए बाहर निकले । सड़क पर आकर पैंट पहनी और बस पकड़ी ।
यह तो ट्रेलर था असली पिक्चर तो सितंबर में देखी ।
संकट आ रहा था धीरे धीरे । अगर आपने साँप को शिकार करते देखा हो तो इस धीरे
धीरे का मतलब समझ सकते हैं । कहीं कहीं वह झपट्टा मारकर आता है पर सिलचर में आहिस्ता
आहिस्ता । पानी आ रहा है । कहाँ तक आया रोज देखिए । अभी पहला मकान घिरा । शाम को तीसरे
मकान तक आया । दूसरी सुबह अपने घर की चहारदीवारी के बाहर । रात बारह बजे कमरे के सामने
एक इंच । अब घर में बैठे देखते रहिए । साँप मेढक को घेर लेता है । पूँछ के इस घेरे
से बाहर अगर मेढक उछला तो बिजली की गति से घूमकर साँप उसका मुँह पकड़ लेता है । इस घातक
चुंबन से मेढक का दम घुट जाता है और फेफड़े फूल जाते हैं । फिर अनायास, बगैर किसी अतिरिक्त कोशिश के साँप का मुँह फैलता जाता है और एक गरम आवरण से
मेढक ढँकता जाता है । इसी तरह सिलचर की आबादी घिरी रही और संकट के मुँह में धीरे धीरे
प्रविष्ट हो गई ।
पहली
सूचना अखबारों से मिली । यह नहीं कि संकट की खबरें अखबार में पढ़ने को मिल रही थीं ।
वैसे भी अगर आपको बांग्ला के अतिरिक्त अन्य भाषा के अखबार पढ़ने हों तो सुबह के अखबार
शाम को बस से आते हैं । दो दो, तीन तीन दिनों के अखबार एक साथ मिलने शुरू हुए । उनके
मिलने न मिलने से रास्ते के खुलने बंद होने का पता चलता है । इस पर झुँझलाहट हो तो
हो लेकिन यह भी एक तरह की खबर ही होती है । दो दिन के अखबार मिलने का मतलब रास्ता कल
बंद था आज खुला है । तीन दिन का मतलब परसों से बंद होने के बाद आज खुला है । रास्ते
का खुलना (और उसी तरह बंद होना) मामूली न समझा जाए । दक्षिणी असम के तीन जिलों और मिज़ोरम
तथा त्रिपुरा तक सब कुछ इसी सड़क से जाता है । इसलिए एक दिन की बंदी भी हाहाकार मचा
देती है । खैर इसी तरह पहले हफ़्ते सड़क खुलती बंद होती रही । इस दौरान एक बस निकल गई
तो गारंटी नहीं कि दूसरी भी निकल जाए । दीमापुर से एक विद्यार्थी आ रहे थे । पूरी रात
बस रास्ते में रुकी रही । सुबह नौ बजे रास्ता खुला । मुख्य रास्ते पर पानी था । बस
ने दूसरा रास्ता पकड़ा । चारों ओर जल का प्रवाह । स्थानीय लोग बताते रहे कि बीच में
सड़क दो फ़ुट नीचे कहाँ है । सारे दरवाजे खिड़कियों को खोलकर रखा गया था ताकि संकट आने
पर कूदा जा सके । वे नौ सितंबर को सिलचर पहुँचे । उस दिन तक जिन्हें बाहर जाना था चले
गए जिन्हें अंदर आना था चले आए । जो जहाँ गया वहीं रह गया । चिट्ठियों का आना जाना
पहले ही बंद हो चुका था ।
दूसरा
संकेत बिल्लियों ने दिया । स्वभाव से ही ये रहस्यप्रेमी होती हैं । कोने अँतरे उनके
रहने की जगहों में पानी आने वाला था । रोती हुई वे इधर उधर घूमती रहीं । नौ सितंबर
को विश्वविद्यालय में तीन दिनों के अवकाश की घोषणा हुई । पता चला विश्वविद्यालय पहुँचने
के लिए नाव चल रही है । इस बीच मिज़ोरम से एक शोधार्थी ने तीन बार बाहर निकलने की कोशिश
की । पता चला कि बराक में यह पानी मणिपुर में भीषण बारिश के कारण नीचे आया है । इंफाल
में तीन फ़ीट, चार फ़ीट पानी शहर की सड़कों पर है । फिर खबर आई कि बराक को छोड़िए करीमगंज
में कुशियारा ने तबाही मचा दी है । बराक को जल प्रदान करने वाली मधुरा में पानी बढ़
रहा है । कभी एक चाय बगान से बहती हुई इस पतली सी नदी को पैदल पार किया था । फिर एक
बार स्टीमर से बराक को मधुरा के पूर्व-संगम (इसे मधुरा घाट कहते हैं) पर पार किया था
। गुवहाटी शहर में आधा चक्का डूबा हुआ रिक्शा चलने का चित्र भी अखबार में देखा । सिलचर
शहर में बराक का नहीं बल्कि घाघरा का पानी घुसा है । ये छिनाल (सौजन्य-वीरेन डंगवाल)
नदियाँ थोड़ा जल का आदर पाते ही इतरा उठी थीं । विश्वविद्यालय फिर तीन दिनों के लिए
बंद हो गया । गायें पानी में गिरकर मर रही थीं । मछलियों के लिए बिछाए जालों में साँप
फँस रहे थे ।
सिलचर
में घरों में खाना बनाने के लिए बांग्लादेश से भागकर आई महिलाएँ काफी सस्ते में मिल
जाती हैं । इनमें अधिकांश विधवाएँ हैं क्योंकि पुरुषों को यहाँ का वातावरण अर्थात पानी
रुचता नहीं । शहर में सबसे अधिक जूतों और दवाओं तथा शराब की दूकानें हैं । कभी यह शहर
दुर्घटना का शिकार होकर पृथ्वी के नीचे चला गया और सु दो सौ साल बाद खुदाई में बाहर
आया तो यह देखकर लोगों को अचरज होगा कि इतने सारे मेडिकल रिसर्च सेंटर यहाँ क्यों थे
। दरिद्रों की बहुसंख्या वाले इस शहर में प्रत्येक नर्सिंग होम रिसर्च सेंटर भी है
। इन सबके मालिक राजनेता हैं । कारण यह कि शोध केंद्र के नाम पर जमीन बिजली आदि सस्ते
मिल जाते हैं । बहरहाल घरों में काम करने वाली इन महिलाओं को यहाँ मासी बोलते हैं ।
मेरी मासी के घर में पानी घुसा तो वह अपनी लड़की के साथ दुछत्ती पर चली गई । तीन चार
दिन बाद वहाँ से बाँस की नाव बनाकर खिड़की के रास्ते लेटकर घर से निकली और राहत शिविर
में चली आई ।
बाढ़ आते
ही यहाँ के गरीब लोग बगैर किसी अनुमति के बंद हो चुके स्कूलों में चले आते हैं । स्कूल
में एक कमरे में पाँच परिवार । किसी की बकरी, किसी की मुर्गी, किसी के हंस, किसी की
बिल्ली साथ में । कालोनियों के लोग ट्रकों और बसों की ट्यूबें खरीद लाए ताकि उन पर
बैठकर सड़क तक आ सकें । गैस के सिलिंडर ब्लैक में हजार रुपए में मिलने लगे । बाढ़ में
बहुत समताकारी शक्ति होती है । पैसे आपके पास हैं लेकिन खाएँगे क्या । बाज़ार से सब्जियाँ
गायब, चावल गायब । राहत सामग्री कुछ जनता को मिलती अधिकांश ब्लैक मार्केट चली जाती
। सिगरेट, माचिस, मोमबत्ती सबकी लूट हो गई । नेता लोग, मंत्री, राज्यपाल हवाई जहाज़
से आते उड़कर देखते जायजा लेते और चले जाते । एक हेलीकाप्टर हैलाकांदी में राहत सामग्री
लेकर उतरा तो उसके डैनों से 44 घर टूटकर उखड़ गए । दो लोग बाँस की नाव से अपने घर जा
रहे थे बिजली का तार छू जाने से वहीं उनकी समाधि बन गई । मासी जहाँ आई थी वहाँ एक दिन
देखा राहत सामग्री का वितरण कर रहे छुटभैये एन जी ओ मालिकान चीजें कम बाँट रहे थे वीडियोग्राफ़ी
अधिक करवा रहे थे ।
विश्वविद्यालय
में 30 परिवार टापू की तरह गिरफ़्तार थे । पानी की राशनिंग शुरू हो गई और सभी शाहजहाँ
की तरह जीने का अभ्यास करने लगे । इसमें भी टेलीफ़ोन और मोबाइल का बिल जमा करने की व्यवस्था
चाक चौबंद रही । आखिर सरकार ने आपसी संपर्क का यह जो साधन उपलब्ध करवाया है उसकी कीमत
क्यों न वसूले । ‘इंडियन आइडल’ और ‘डांस प्रतियोगिता’ टी वी में आती रहीं और उनके लिए
एस एम एस वोट भी पड़ते रहे । रिंगटोन डाउनलोड कराए जाते रहे और ‘वर्ल्ड 20-20’ में भारत
की टीम खेलती रही । मुनाफ़े का कारोबार कैसे बंद हो सकता था !
विद्वानों
ने इस विषय पर काफी विचार किया है कि अनुपस्थिति भी मौजूद होती है, अभाव की भी सत्ता
होती है और जो दिखाई नहीं देता वह भी सक्रिय होता है । सोचता रहा कि सेना कहाँ है ।
अखबारों में पढ़ा कहीं सी आई एस एफ़ का ट्रक फँस गया था, आगे जाने के लिए नाव की जरूरत
थी । नाव एक ही मालिक कहीं गया था । घर में सिर्फ़ पत्नी थी । जवान घुस पड़े । जबर्दस्ती
की । तभी रोजा खुला और लोग मस्जिद से नमाज पढ़कर निकले । बात फैल गई । भीड़ पर काबू पाने
के लिए रणबाँकुरों ने गोलियाँ चलाईं जिससे एक आदमी मारा गया । कुछ मित्रों ने सोचा
कि सरकार के पास आपदा प्रबंधन का कोई विभाग अवश्य होगा । चलो वहाँ देखते हैं । पता
चला उस विभाग की विशेषज्ञता भूकंप के प्रबंधन में है, बाढ़ उनके कार्यक्षेत्र से बाहर
है । स्थानीय विधायक स्थानीय सांसद की पत्नी हैं । उनकी पुत्री पिता के साथ हवाई सर्वेक्षण
के लिए आई और दयार्द्र भाव से एन जी ओ मार्का सेवा में जुट पड़ी । विधायक महोदया ने
कहा कि पानी अगर घट नहीं रहा तो मैं क्या करूँ, । जब उनसे मँहगाई की
शिकायत की गई तो उन्होंने ज्ञान दिया कि बाज़ार में वस्तुएँ नहीं हैं तो उनकी कीमत बढ़ेगी
ही ।
घर के भीतर धरती के आदि बाशिंदे (तिलचट्टे और मकड़े)
घूमते रहे । घर के बाहर गलियों में बाँस की नाव पर लोगों का आवागमन जारी रहा । हम तिथियों
पर विश्वास करके बारिश के बंद होने की प्रतीक्षा करते रहे । विश्वविद्यालय फिर तीन
दिनों के लिए बंद हुआ । तीन दिन की सीमा इसलिए कि जो नदियाँ बाढ़ लाती हैं वे ही परेशान
करने के बाद बड़ी तेजी से नम्र भी हो जाती हैं । अमावस्या आई और चली गई बारिश बंद नहीं
हुई । आज उनकी पूजा हो रही है जो संसार के समस्त स्थापत्य के शिल्पी थे । संभव है जगत
की मान्यता से तुष्ट होकर वे बारिश रोक लें । सुबह धूप तो निकली है । बहरहाल मैं कमरे
में पानी घुसने की प्रतीक्षा करते हुए न भेजने के लिए यह पत्र लिख रहा हूँ ।
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