हम सभी जानते हैं कि भूमंडल का सत्तर
फ़ीसदी पानी है । इस पानी का सबसे बड़ा हिस्सा समुद्र है । इसके बावजूद बोध के स्तर
पर उसके साथ हमारा आंगिक जुड़ाव नहीं होता । हिंदी भाषी इलाके समुद्र से बहुत दूर
अवस्थित हैं इसलिए समुद्र के बारे में हमारी अनुभूति का स्रोत साहित्य ही होता है
। बहुत हुआ तो कुछेक लोग व्यापारिक नौ परिवहन से जुड़े होते हैं तो उनके जरिये
किस्से सुनाई देते रहते हैं । किन्हीं परिवारों के युवा नौ सेना में भी होते हैं ।
इन सबके बावजूद समुद्र हमारी प्रत्यक्ष अनुभूति का विषय नहीं बन पाता । फिर भी सच
यही है कि हमारे जीवन के साथ समुद्र का बहुत गहरा रिश्ता है । खानपान में मछलियों
और विदेश गमन के सस्ते साधन पानी के जहाज से लेकर फसलों लायक मौसम तक बहुत कुछ ऐसा
है जिसके प्रसंग में समुद्र की उपस्थिति हमारे जीवन में होती है । तेल और गैस जैसे
जीवाश्म ईंधन की प्राप्ति के साथ भी समुद्र जुड़ा हुआ है । मैदान से होकर बहने वाली
नदियों का जल भी समुद्र में ही मिलता है । इन शाश्वत प्रसंगों के अतिरिक्त भी
समुद्र हाल के दिनों में भी प्रासंगिक हुआ है । हाल ही में पांच
अरबपतियों के समुद्र में दफ़न हो जाने की त्रासद खबर आयी जो एक डूब चुके जहाज के
ध्वंसावशेष देखने समुद्र की तलहटी में पनडुब्बी से गये थे ।
उदारीकरण की लहर के साथ वैश्वीकरण का
जो नया दौर शुरू हुआ उसमें भी समुद्र की भारी भूमिका है । इससे पहले के वैश्वीकरण
अर्थात उपनिवेशीकरण के साथ भी समुद्र का गहरा रिश्ता था । यूरोप की व्यापारिक
समुद्री यात्रा के लिए उत्तमाशा अंतरीप की राह ने एशियाई भूखंड तक पहुंच आसान बना
दी थी । अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में माल ढुलाई का प्रचुर हिस्सा समुद्र की राह से
होता है । वस्तुओं के अतिरिक्त मनुष्यों की अंतर्राष्ट्रीय आवाजाही का भी सस्ता
साधन समुद्र ही है । अमीर लोग तो वायुमार्ग पकड़ते हैं लेकिन गरीबों के लिए यही राह
आसान होती है । अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के वर्तमान माहौल में अवैध प्रवेश का बहुत
छोटा हिस्सा वायुमार्ग से होता है, बड़ा भाग खतरनाक समुद्री राह ही है । समुद्र के
साथ मानव समाज के इस बहुआयामी सम्पर्क से जुड़ी किताबों को देखने से हमें पृथ्वी के
जमीनी हिस्से, राष्ट्रवाद और मानव समाज तथा उसके इतिहास की सीमा का पता चलता है ।
जलवायु और उसी किस्म की बहुतेरी वैश्विक हलचलों के साथ समुद्र का बहुत घनिष्ठ नाता
है । सैनिक और व्यापारिक मकसद से मनुष्यों का एक बड़ा हिस्सा लगातार समुद्र में ही
रहता है । बंदरगाहों पर बड़ी आबादी तो रहती ही है जिनमें समुद्री सम्पर्क के कारण
भारी विविधता आ जाती है । इसके अतिरिक्त मुहाने पर भी व्यापार संबंधी ढेर सारे
कामों को अंजाम देने वाले कामगारों का एक बड़ा समूह लगभग स्थायी रूप से रहता है ।
समुद्र के भीतर जितनी अंतर्राष्ट्रीयता होती है उससे कम बंदरगाह और उसके निकट की
मानव बस्तियों में नहीं होती । एकाधिक प्रकरणों में समुद्र एक स्वायत्त अस्तित्व
भी नजर आता है ।
समुद्र अगर गुलामों को ढोकर अमेरिका ले आने का रास्ता था तो अमेरिकी गुलामी
से बचकर भाग निकलने का भी यही रास्ता था ।1997 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी
प्रेस से ब्रेंडा ई स्टीवेन्सन की किताब ‘लाइफ़ इन ब्लैक ऐंड ह्वाइट: फ़ेमिली ऐंड
कम्युनिटी इन द स्लेव साउथ’ के पेपरबैक संस्करण का प्रकाशन हुआ । पहली बार एक साल
पहले ही 1996 में यह छपी थी । किताब की शुरुआत एक विद्यार्थी को लिखे पिता के पत्र में
दर्ज ढेर सारे निर्देशों से होती है जिनमें वे पहनावे से लेकर बोलचाल तक के बारे
में सलाह देते हैं । पिता राबर्ट कोनराड दक्षिणी अमेरिका के युवा वकील थे और उनके
राजनीतिक सम्पर्क बहुत तगड़े थे । उनकी युवावस्था के समय बहुत सारे गुलाम अपनी
आजादी हासिल करके अफ़्रीका जाने के लिए समुद्री मार्ग पकड़ते थे । उन्हें वहां
अमेरिका के दक्षिणी हिस्से के प्रांतों के मुकाबले काफी बेहतर जिंदगी की उम्मीद होती
थी ।
1999 में प्लूटो प्रेस से विली थाम्पसन की किताब ‘ग्लोबल एक्सपैंशन: ब्रिटेन ऐंड इट्स एम्पायर, 1870-1914’ का प्रकाशन हुआ । किताब मूल रूप से साम्राज्य के प्रसार से ब्रिटेन के भीतर उपजी प्रक्रिया का अध्ययन है । उस समय ब्रिटेन सभी यूरोपीय
समुद्री साम्राज्यों में क्षेत्रफल और आबादी के मामले में अतुलनीय था । इन अन्य शक्तियों
की गतिविधियों के संदर्भ में ही तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं का अर्थ समझा जा सकता है
। ब्रिटेन का साम्राज्य शुरू से ही व्यापारिक साम्राज्य था । ब्रिटेन के औद्योगिक
शक्ति के रूप में उभार के लिए इसकी केंद्रीय भूमिका रही । लेकिन 1870 के बाद से
इसका रूप बदलने लगा । इस साम्राज्य को साम्राज्यवाद कहते हुए भी इसकी विशेषताओं को
नजर में रखना होगा । इसके आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सैनिक आयाम तो थे ही,
इन सभी मामलों में उपनिवेशित देश पर भी उतने ही प्रभाव पड़ते थे जितने प्रभु देश पर
।
2004 में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से जेम्स रिजवे की किताब ‘इट’स आल फ़ार सेल: द कंट्रोल आफ़ ग्लोबल रिसोर्सेज’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि विश्व राजनीति की व्याख्या के सिलसिले में वस्तुओं की बात नहीं की जाती लेकिन उपनिवेशवाद और साम्राज्य तथा छोटी बड़ी लड़ाइयों में इनकी भारी भूमिका रही है । लगभग सभी निर्णायक घटनाओं के पीछे इनकी मौजूदगी रही है । प्रवास, आप्रवास और गुलामी की प्रथा
के पीछे इनकी भूमिका रही है
। नयी वस्तुओं की प्राप्ति और उनके वहन के लिए ही दुनिया भर के आदिम व्यापार मार्ग
बने जिनसे फिर संस्कृतियों का आपसी सम्पर्क कायम हुआ । रेशम मार्ग की तरह ही काली
मिर्च के व्यापार हेतु भी रास्ता खोजा गया । मार्को पोलो और कोलम्बस खोजी नाविक के
साथ व्यापारी और व्यवसायी भी थे । औद्योगिक क्रांति के कच्चे माल के चक्कर में
उपनिवेशवाद का जन्म हुआ । उन्नीसवीं सदी में अंग्रेज सूती वस्त्र लादकर जहाज से
भारत लाते थे । इन सूती वस्त्रों के लिए कपास अमेरिका से आता था जिसके उत्पादन
हेतु अफ़्रीका से गुलाम लाये जाते थे । सूती वस्त्र उतारकर व्यापारी फिर उन्हीं
जहाजों में अफीम लादकर चीन ले जाते थे । अफीम बेचने से मिले धन से चाय खरीदी जाती
थी जिसे इंग्लैंड भेजा जाता था । चाय में मिलाने के लिए चीनी लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई
इलाके से लायी जाती थी । हाल हाल तक वस्तुओं के लोभ का सबूत यह है कि अलेंदे की
सरकार के विरोध में पिनोशे की अमेरिकी मदद का बड़ा कारण तांबे पर कब्जे की लड़ाई था
। शीतयुद्ध में अमेरिकी युद्ध प्रयासों का भारी कारण संसाधनों को हड़पने का लोभ भी
रहा । व्यापार के समुद्री मार्ग की रक्षा को देश की रक्षा के साथ जोड़कर देखा जाता
था क्योंकि इसी मार्ग से वस्तुओं की आपूर्ति होती थी । लेखक ने जिन वस्तुओं के बारे में विचार किया है वे हैं- पानी, ईंधन, धातु, जंगल, रेशा, खाद, भोजन, फूल, दवा, मनुष्य, आकाश, समुद्र और जैव विविधता ।
2005 में द बेल्कनैप प्रेस आफ़ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी
प्रेस से हेलेन एम रोज़वादोव्सकी की किताब ‘फ़ैदमिंग द ओशन: द डिसकवरी ऐंड
एक्सप्लोरेशन आफ़ द डीप सी’ का प्रकाशन हुआ । किताब की प्रस्तावना सिल्विया ए अर्ले
ने लिखी है । उनका कहना है कि मनुष्य स्वभाव से ही उत्सुक होता है । उसे धरती पर
फैले समुद्र की सतह के नीचे देखने की उत्कंठा हमेशा से रही है । नतीजे के बतौर
बर्फ जमे समुद्र से लेकर दहकते जल तक और सतह से लेकर अतल गहराई तक इसकी खोज हुई है
। इसकी थोड़ी सी भी गहराई में झांकने के लिए वायु आधारित थलवासी स्तनपायी मनुष्य को
तकनीक का सहारा लेना पड़ता रहा है । इस तकनीकी निर्भरता में दुर्घटना का ताजा सबूत
दुनिया के पांच अरबपतियों की हालिया जलसमाधि है ।
2008 में चेल्सी ग्रीन पब्लिशिंग से रिकी ओट की किताब ‘नाट वन ड्राप: बीट्रेयल ऐंड करेज इन द वेक आफ़ द एक्सान वाल्डेज़ आयल स्पिल’ का प्रकाशन हुआ । किताब की भूमिका जान पर्किन्स ने लिखी है । लेखक ने समुद्र में तेल के रिसाव संबंधी दुर्घटना की स्थिति में बचाव और राहत अभियानों का नेतृत्व किया है और उसी अनुभव के आधार पर यह किताब लिखी । आज के समय समुद्र के मानव जनित
प्रदूषण में प्लास्टिक जनित कचरे के अतिरिक्त तेल का रिसाव सबसे
अधिक योग देता है । इससे समुद्री जीवों के जीवन पर खतरा आ जाता है क्योंकि सतह पर
हवा की जगह तेल फैल जाने से उन्हें आक्सीजन नहीं मिल पाता । इसी सवाल पर 2023 में द यूनिवर्सिटी आफ़ शिकागो
प्रेस से क्रिस्टीना डनबर-हेस्टर की किताब ‘आयल बीच: हाउ टाक्सिक इनफ़्रास्ट्रक्चर
थ्रिटेन्स लाइफ़ इन द पोर्ट्स आफ़ लास एंजेल्स ऐंड बीयान्ड’ का प्रकाशन हुआ ।
2009 में नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी से
सिल्विया ए आरले की किताब ‘द वर्ल्ड इज ब्लू: हाउ आवर फ़ेट ऐंड द ओसन’स आर वन’ का प्रकाशन हुआ । मशहूर
पर्यावरणविज्ञानी बिल मैककिब्बेन ने इसकी प्रस्तावना लिखी है । उनका कहना है कि
जमीन पर घटनेवाली घटनाओं में हम इतना गाफ़िल रहते हैं कि समुद्र के बारे में सोचते ही नहीं और अगर सोचते भी हैं तो यही
कि वह अगाध है । इस किताब की लेखिका समुद्र को बहुत गहराई से जानती हैं । सबसे
पहले वे समुद्र के भीतर के जीवन से परिचय कराती हैं । वहां सजीव धड़कते अनंत
प्राचुर्य को वे प्रत्यक्ष कर देती हैं । जमीन पर रहने वाली बहुतेरी चीजों का
आविष्कार अभी नहीं हुआ है लेकिन उनकी प्रजाति के बारे में लोग जानते हैं लेकिन
पानी के भीतर तो ऐसी चीजें मौजूद हैं जिनके बारे में कल्पना भी नहीं की गयी है ।
इनकी विशालता का भी अनुमान लगभग असम्भव है । लेखिका हमारी भूमिबद्ध संवेदना को
समुद्र के रहस्यों तक विस्तारित करती हैं ।
2010 में पब्लिकअफ़ेयर्स से जान बावेरमास्टर के संपादन
में ‘ओशन्स: द थ्रेट्स टु आवर सीज ऐंड ह्वाट यू कैन डू टु टर्न द टाइड’ का प्रकाशन
हुआ । इस किताब की तो शुरुआत ही इस मान्यता से हुई है कि कहने को पांच समुद्र हैं लेकिन नक्शे को देखकर लगता है कि एक ही महासागर पृथ्वी के
सत्तर फ़ीसदी हिस्से को घेरे हुए है । संपादकीय प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब के
संकलित लेखों को तीन हिस्सों में रखा गया है । पहले में समुद्र से प्रेम, दूसरे
में उसकी हानि और तीसरे में उसे बचाने के सरोकार से जुड़े लेख हैं । पाठकों को सलाह
देने के साथ ही समुद्र को बचाने के लिए कार्यरत पर्यावरण संगठनों की सूची भी जोड़
दी गयी है । साफ है कि किताब का मकसद पाठकों को अपने लक्ष्य में भागीदार बनाना है
।
2010 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से डैनिएल आर
हेडरिक की किताब ‘पावर ओवर पीपुल्स: टेकनोलाजी, एनवायरनमेंट्स, ऐंड वेस्टर्न
इम्पीरियलिज्म, 1400 टु द प्रेजेन्ट’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि पांच सौ
साल तक यूरोपीय और समुद्र पार बसे उनके वंशज दुनिया की अधिकांश जमीन, उनके निवासी
और समुद्र पर काबिज रहे । इस दबदबे को बारम्बार चुनौती मिलती रही । आज वही
साम्राज्यवाद फिर से दुनिया को नियंत्रित कर रहा है इसलिए उसका प्रतिरोध फिर से हो
रहा है । ऐसे हालात में उसके इतिहास को जानना और उससे शिक्षा ग्रहण करना जरूरी हो
गया है । पश्चिमी देशों के विस्तार का इतिहास सोलहवीं सदी के पूर्वार्ध से शुरू होता
है जब स्पेन ने लैटिन अमेरिका पर हमला किया और पुर्तगाल ने हिंद महासागर में झंडा
गाड़ा । उन्नीसवीं सदी के आते आते इस विस्तार में गिरावट आने लगी थी । उसी समय नव
साम्राज्यवाद का दौर आया जिसे द्वितीय विश्वयुद्ध तक लगातार जारी देखा गया ।
2012 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से जोनाथन लेवी की किताब ‘फ़्रीक्स आफ़ फ़ार्चून: द इमर्जिंग वर्ल्ड आफ़ कैपिटलिज्म ऐंड रिस्क इन अमेरिका’ का प्रकाशन हुआ । किताब में समुद्री व्यापार, पूंजीवाद, जोखिम और बीमा उद्योग के आपसी
रिश्तों का विवेचन किया गया है । यह समूचा माहौल पूंजीवादी अस्थिरता से नजदीक से
जुड़ा हुआ है । जीवन से लेकर वस्तुओं तक सब कुछ के मामले में जोखिम की धारणा
व्याप्त हुई और इसके साथ ही बीमा उद्योग भी विस्तारित होता गया । पूंजीवाद के
प्रसार के साथ भूमि से लेकर समुद्र तक इस अस्थिरता का विशाल साम्राज्य फैलता गया
।
2013 में येल यूनिवर्सिटी प्रेस से राबर्ट हार्म्स,
बर्नार्ड के फ़्रीमोन और डेविड डब्ल्यू ब्लाइट के संपादन में ‘इंडियन ओशन स्लेवरी
इन द एज आफ़ एबोलीशन’ का प्रकाशन हुआ । राबर्ट हार्म्स की प्रस्तावना के अतिरिक्त
किताब में शामिल ग्यारह लेख पांच हिस्सों में बांटे गए हैं । पहले भाग में
उन्नीसवीं सदी में भारतीय महासागर की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है । दूसरे भाग
में गुलामी, मुक्ति और इस्लामी कानून का विवेचन है । तीसरे भाग में समुद्री रास्ते
से गुलाम व्यापार के प्रतिरोध का जिक्र है । चौथे हिस्से में गुलामों की
समाजार्थिक गतिशीलता का बयान है और आखिरी पांचवें हिस्से में गुलामी के बदलते
चेहरे को उजागर किया गया है ।
2014 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से
जानज़ला सिएविक्ज़ और मार्क विलियम्स की किताब ‘ओसन वर्ल्ड्स: द स्टोरी आफ़ सीज आन अर्थ ऐंड अदर
प्लैनेट्स’ का प्रकाशन हुआ । लेखक ने भूमिका में बताया है कि लगभग
डेढ़ सौ साल पहले मनुष्य ने गंभीरता के साथ समुद्र की गहराइयों को समझना शुरू किया
। पिछले एकाध दशकों में अंदाजा लगा है कि हमारे समुद्र के अलावे अन्य समुद्र भी
संभव हैं । इसके साथ ही धरती पर स्थित जीवन का समुद्र के साथ रिश्ता भी अधिक
स्पष्ट हुआ है । बारिश और खाद्य पदार्थों के पीछे समुद्र के अस्तित्व की मौजूदगी
समझ में आ रही है ।
2014 में हार्परवेव से एडम सोबेल की किताब ‘स्टार्म सर्ज: हरीकेन सैंडी, आवर चेंजिंग क्लाइमेट, ऐंड एक्सट्रीम वेदर आफ़ द पास्ट ऐंड फ़्यूचर’ का प्रकाशन हुआ । अक्सर हम भूल जाते हैं कि प्रकृति
का मूल स्वभाव भैरव होता है । समुद्र के साथ जुड़ी तूफान ऐसी परिघटना है जिसके
अस्तित्व को भुला देने की बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ती
है । इसके कारण होने वाली तबाही सबको समान रूप से प्रभावित नहीं करती । सभी आपदाओं
की तरह इसमें भी सामाजिक भेद प्रत्यक्ष हो जाते हैं । अमेरिका में आया सैंडी तूफान
ऐसा ही था । लेखक इस किताब में ऐसे तूफानों के आने की प्रमुख वजह मानवजन्य जलवायु
परिवर्तन मानते हैं । इसमें उनकी वैज्ञानिक विशेषता के साथ कर्तव्यनिष्ठ नागरिक भी
सक्रिय है । लेखक तटस्थता का दावा नहीं करते क्योंकि वैज्ञानिक लोगों के भी कुछ
मूल्य होते हैं जो सामाजिक समस्याओं पर विचार करते हुए प्रकट हो जाते हैं ।
2014 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से एमिली एरिकसन की किताब ‘बिट्वीन मोनोपोली ऐंड फ़्री ट्रेड: द इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी, 1600-1757’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि ईस्ट इंडिया कंपनी शुरुआती कंपनियों में से थी और आधुनिक दुनिया के उद्भव को समझने के लिए उसके बारे में जानना सबसे अधिक जरूरी है । वाणिज्य में ब्रिटेन की बरतरी स्थापित करने, ब्रिटिश साम्राज्य के निर्माण और विश्व बाजार के एकीकरण में इसकी केंद्रीय भूमिका रही है । 1600 के अंत में इसकी स्थापना हुई और ब्रिटेन की महारानी ने पूरब के साथ समस्त समुद्री व्यापार का एकाधिकार इस कंपनी को दे दिया ।
2014 में बीकन प्रेस से मार्कुस रेडिकर की किताब ‘आउटलाज आफ़ द अटलांटिक: सेलर्स, पाइरेट्स, ऐंड मोटली क्रूज इन द एज आफ़ सेल’ का प्रकाशन हुआ । अटलांटिक सागर में कानूनी रूप से
अपराधी घोषित किये गये लोगों के बारे में यह किताब लेखक के निजी जीवन से जुड़ी हुई
है । उनकी माता का जन्म केंटकी प्रांत के एक छोटे नगर में हुआ था । उस नगर की अधिकांश आबादी गरीबी में जिंदगी बिताती थी । उनके
पिता अर्थात लेखक के नाना कोयला खदान में काम करते थे । नानी का देहांत तभी हो गया
जब माता दो साल की थीं । माता के रिश्तेदारों का बड़ा जंजाल था । उनमें एक चित्रकार भी थे । इन्होंने ऐसे बैंक का चित्र बनाया
था जिसे उस जमाने के बेहद मशहूर बैंक लुटेरों ने सबसे पहले लूटा था । लुटेरे बदनाम
थे और अमेरिकी इतिहास के सबसे बड़े अपराधी माने जाते थे लेकिन माता उन्हें मुसीबत
का शिकार समझती थीं । गरीब लोगों के पास बैंक में रखने को धन ही नहीं होता था
इसलिए वे इन बैंक लुटेरों को उसी निगाह से नहीं देखते थे जैसे सत्ता देखती थी ।
ऐसे ही लोगों को हाब्सबाम ने सामाजिक डाकू कहा है । ऐसे छोटे अपराधियों के प्रति
गरीबों में सहानुभूति होती है । इसी सहानुभूति के साथ लेखक ने नाविकों,
विद्रोहियों और समुद्री लुटेरों के बारे में यह किताब लिखी है । यह किताब समुद्र
को मानव गतिविधि और ऐतिहासिक बदलाव के परिक्षेत्र के बतौर देखती है और उस दौर का
चित्रण करती है जब अटलांटिक सागर के साथ ही दुनिया भर में पूंजीवाद का उदय हो रहा
था । यह समुद्र साहसी यात्रियों को आमंत्रित करता था इसलिए उन्हें लेखक ने वैश्विक
संचार के धागे बुनने वाला बताया है । दर्शन, राजनीतिक चिंतन, नाटक, कविता और
साहित्य की दुनिया को इन्होंने समृद्ध किया है । इसके बाद ही समुद्र के भीतर
प्रतिरोध की कहानियों को दर्ज किया गया है । प्रतिरोध करने वालों में नाविक,
गिरमिटिया मजदूर, गुलाम अफ़्रीकी और भगोड़े तथा डाकू शामिल हैं । सत्रहवीं से
उन्नीसवीं सदी तक के इन बहादुरों का वर्णन विभिन्न लेखों में हुआ है । इन लोगों ने
समुद्र में वैकल्पिक समाज बनाने का सपना भी देखा । इस तरह इतिहास के एक दौर में समुद्र
ने क्रांतिकारी भावनाओं के प्रसार में मदद की । इन्हीं विद्रोहियों ने अमेरिकी
क्रांति की भी दागबेल डाली ।
2014 में कामन नोशंस से मारियारोसा डाला कोस्टा और
मोनिका चिलेसी की किताब का अंग्रेजी अनुवाद ‘आवर मदर ओशन: एनक्लोजर, कामन्स, ऐंड द
ग्लोबल फ़िशरमेन’स मूवमेंट’ प्रकाशित हुआ । अनुवाद सिल्विया फ़ेडरीची ने किया है ।
उनका कहना है कि लेखिकाओं में एक नारीवादी और दूसरी समाजशास्त्री हैं । वे
समुद्रों की तबाही के जरूरी सवाल को इस किताब में प्रस्तुत करती हैं । समुद्र
अनादि काल से धरती पर हमारे जीवन का स्रोत रहा है । आजीविका के अतिरिक्त ज्ञान, सौंदर्य
और आध्यात्मिक शक्ति भी उससे प्राप्त होती रही है । इन सब
पर फिलहाल खतरा है क्योंकि उन्हें जहरीला कचरा डालने का अड्डा बना दिया गया है ।
इस तबाही के प्रमुख पहलुओं की तलाश करते हुए लेखिका ने औद्योगिक पैमाने पर मछली
मारने, पानी में मछली की खेती और समुद्री प्रदूषण के खतरों से आगाह किया है तथा
पृथ्वी की पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए बेहद आवश्यक सांस्थानिक विफलता को उजागर
किया है । जहां एक ओर लेखिका ने समुद्र की अपार संपदा की लूट की खुली भर्त्सना की
है वहीं दूसरी ओर मानवता के इतिहास में साहित्य, मिथक, दर्शन और धर्म के जरिये
समुद्र की मौजूदगी को भी रेखांकित किया है । किताब में मछुआरों के प्रथम वैश्विक
आंदोलन का इतिहास बताते हुए भी लेखिका ने याद दिलाया है कि धरती का पानी न केवल
समाजार्थिक और राजनीतिक कारणों से महत्व का है बल्कि जमीन और जंगल के लिए भी उसकी
उपयोगिता असंदिग्ध है ।
2015 में चट्टो & विंडस से पीटर मूर की किताब ‘द वेदर एक्सपेरिमेन्ट: द पायनियर्स
हू साट टु सी द फ़्यूचर’ का प्रकाशन हुआ । किताब उन समुद्री नाविकों के बारे में
है जिन्होंने मौसम को ईश्वर की कृपा मानने की जगह उसके बारे में पता लगाने की
परंपरा शुरू की और इस अननुमेय परिघटना के बारे में अनुमान लगाया ताकि यात्रा की
योजना पहले से बनाई जा सके ।
2015 में लीट’स आइलैंड बुक्स से पीटर नील की किताब ‘द वन्स ऐंड फ़्यूचर ओसन: नोट्स टुवर्ड ए न्यू हाइड्रालिक सोसाइटी’ का प्रकाशन हुआ । किताब मूल तौर पर पर्यावरण के नुकसान को समझाने के लिहाज से लिखी हुई है । इसमें समुद्र को समझने की कोशिशों का संक्षिप्त इतिहास भी प्रस्तावना के बतौर वर्णित है । समुद्र के बारे में रोचक लेखन से होकर पर्यावरण के बतौर उसकी पढ़ाई तक लम्बे सफर का विवरण भी दर्ज किया गया है । इसके अतिरिक्त टेलीविजन पर प्रसारित फ़िल्मों और सीरियलों में समुद्र आम तौर पर मौजूद रहता है ।
2015 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से जूडिथ एस वेइस
की किताब ‘मरीन पोल्यूशन: ह्वाट एवरीवन नीड्स टु नो’ का प्रकाशन हुआ । इसी तरह 2017 में बीकन प्रेस से
मार्कुस एरिक्सेन की किताब ‘जंक रैफ़्ट: ऐन ओशन वोयेज ऐंड ए राइजिंग टाइड आफ़
ऐक्टिविज्म टु फ़ाइट प्लास्टिक पोल्यूशन’ का प्रकाशन हुआ ।
2015 में प्लूटो प्रेस से अलेस्तेयर कूपर, हांस डी स्मिथ और ब्रूनो सिकेरी की किताब ‘फ़िशर्स ऐंड प्लंडरर्स: थेफ़्ट, स्लेवरी ऐंड वायलेन्स ऐट सी’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि मछली उद्योग के बारे में तो प्रचुर लेखन हुआ है लेकिन मछुआरों के बारे में
कम ही लिखा गया है । तमाम स्त्री पुरुष दुनिया के इस सबसे खतरनाक पेशे में लगे हुए
हैं । जो व्यापारी दुनिया भर के उपभोक्ताओं के लिए सामानात और ऊर्जा का प्रबंध
करते हैं उनका भी शोषण होता है । भोजन की थाली में जिन मछुआरों की कृपा से मछली
आती है उनकी अवस्था तो बहुत ही खराब है । मछली खाने वालों को शायद ही उनके पास मछली पहुंचाने की
कीमत का पता होगा । इसलिए ही मछुआरों के अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने इस किताब को
छापने में मदद की ताकि समुद्री कामगारों के अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा हो ।
समुद्र में मछली मारने के पेशे में अकेलापन, असुरक्षा, दुर्घटना और हिंसा आम बात
है । मछुआरों को अक्सर बिना किसी लिखापढ़ी के और बहुत ही कम पगार पर ऐसी नावों के
सहारे अपना काम करना पड़ता है जो समुद्र लायक नहीं होतीं । विदेशी बंदरगाहों पर
उनके साथ मारपीट, धक्कामुक्की और यौन शोषण भी होता है । कभी कभी उनके काम के हालात
गुलामों जैसे होते हैं । जो मछुआरे अपने अधिकारों के लिए लड़ पड़ते हैं उनकी हत्या
करके लाश को समुद्र में डाल दिया जाता है । वे भी शोषकों के विरोध में हिंसा
अपनाते हैं । इस समूचे उद्यम में संगठित अपराधियों का तंत्र मौजूद रहता है इसलिए
मछुआरे भी भोलेपन में या आर्थिक मजबूरी में इस अपराध जगत में शरीक हो जाते हैं ।
2015 में रटलेज से जेरेमी ब्लैक की किताब ‘द अटलांटिक
स्लेव ट्रेड इन वर्ल्ड हिस्ट्री’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि आधुनिक
दुनिया के निर्माण में गुलाम व्यापार की भारी भूमिका रही है । अफ़्रीका से अमेरिका
की ओर गुलामों को लाने का काम अटलांटिक समुद्र के रास्ते होता था । पंद्रहवीं से
उन्नीसवीं सदी तक यह काम अबाध रूप से चलता रहा था । इसके साथ नस्लभेद का गहरा
रिश्ता था । इस व्यापार में अफ़्रीका की भूमिका भी किताब में वर्णित है । गुलामी के
विरोध और उन्मूलन की वजहों की तलाश भी इसमें की गयी है ।
2015 में पालग्रेव मैकमिलन से उल्बे बोस्मा और एंथनी
वेब्सटर के संपादन में ‘कमोडिटीज, पोर्ट्स ऐंड एशियन मेरीटाइम ट्रेड सिन्स 1750’
का प्रकाशन हुआ । इस किताब को भी व्यापार में समुद्र की अहमियत के सिलसिले
में देखना होगा । इसमें कुल चौदह लेख हैं जिनमें पहला संपादकों की लिखी प्रस्तावना
है । उनका कहना है कि 1980 के बाद से ही एशिया के आर्थिक इतिहास की व्याख्या में
भारी बदलाव आया जिसकी संगति एशियाई देशों के आर्थिक प्रदर्शन से थी । इससे पहले
एशियाई अर्थतंत्रों के विकास की बहस में पश्चिमी इतिहासकारों और अर्थशास्त्रियों
की मान्यताओं को प्रमुखता दी जाती थी । माना यह जाता था कि यूरोप और उत्तरी
अमेरिका के उद्योगीकरण की तर्ज पर ही सारे समाजों का विकास होना है और इसीलिए देखा
जाता था कि एशियाई अर्थतंत्र भी किस हद तक इस रास्ते पर बढ़े हैं । मार्क्स के आगमन
के बाद यह धारणा टूटी । यह खोज शुरू हुई कि पश्चिमी साम्राज्यवाद की दखलंदाजी से
पहले एशियाई अर्थतंत्र की क्या हालत थी और उनमें स्वतंत्र विकास की क्षमता थी या
नहीं । इसी के साथ साम्राज्यवादी दखल से इन देशों के आर्थिक विकास की गति पर
छानबीन भी शुरू हुई । इस क्रम में मार्क्स की धारणा पर भी सवाल उठे । बहस में
सहमति थी कि बदलाव का प्रमुख कारण यह पश्चिमी दखलंदाजी ही थी । इसी धारणा को
चुनौती मिलनी शुरू हुई और उपनिवेशवाद से पहले के एशियाई अर्थतंत्र के सिलसिले में
पाया गया कि इसमें प्रचुर समृद्धि और गतिशीलता थी । एशियाई स्थिरता की धारणा की
जगह पता चला कि ये एशियाई अर्थतंत्र उत्पादन, व्यापार और संपदा के मामले में यूरोप
से घटकर नहीं थे । भारत के दक्षिणी और पश्चिमी इलाकों की इसी समृद्धि के कारण वहां
के शासकों ने मुगलिया सत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया । इस समृद्धि के मूल में इन
इलाकों के समुद्री बंदरगाहों से होने वाला व्यापार था ।
2016 में ज़ेड बुक्स से नताशा किंग की किताब ‘नो बार्डर्स: द पोलिटिक्स आफ़ इमिग्रेशन कंट्रोल ऐंड रेजिस्टेन्स’ का प्रकाशन हुआ ।
लेखिका ने किताब की शुरुआत उस दिन की जिस दिन लीबिया से लोगों को ला रही नाव
भूमध्य सागर में पलट गयी और सात सौ लोगों के डूब जाने की खबर मिली । यह एकमात्र
दुर्घटना नहीं थी । 2015 में ही मई अंत तक इस तरह जान गंवाने वालों की तादाद 1800
तक पहुंच गयी थी । एक साल बाद हालत इतनी खराब हुई कि यह आंकड़ा शुरू के ही महीनों
में पार हो गया । इनमें से बहुतेरे लोग अवैध रूप से सीमा पार कर रहे थे । यह
समस्या हाल की नहीं थी । 1990 दशक के पूर्वार्ध से ही उत्तरी अफ़्रीका या तुर्की से
इस तरह भूमध्य सागर पार करने का सिलसिला चल रहा है ।
2017 में प्लूटो प्रेस से फ़ियोना मैककोर्माक की किताब
‘प्राइवेट ओशन्स: द एनक्लोजर ऐंड मार्केटाइजेशन आफ़ द सीज’ का प्रकाशन हुआ । समुद्र
के पर्यावरण को दुरुस्त रखने के लिए तमाम उपायों की चर्चा से
किताब की शुरुआत होती है । इसके तहत विभिन्न देश समुद्री मछली मारने के अधिकार आपस
में ही बांट लेते हैं । इससे पर्यावरण के प्रबंधन में निजी संपत्ति की वरीयता
स्थापित होती है और बाजार की क्षमता में यकीन पुख्ता होता है । मछली मारने के
मामले में इस व्यवस्था को जायज ठहराने के लिए इसे व्यावहारिक बताया जाता है । यह
तर्क दिया जाता है कि इससे सबके लिए पर्याप्त मछली बची रहेगी और कोई एक देश अपने
हिस्से से अधिक का इस्तेमाल नहीं करेगा । इसके पीछे मान्यता है कि मनुष्य का
स्वभाव अपनी जरूरत से अधिक संसाधन एकत्र कर लेने का होता है । माना जाता है कि अगर
किसी देश को अधिक की जरूरत महसूस होगी तो वह अपने सीमित क्षेत्र से अधिकाधिक हासिल
करने के लिए तकनीकी प्रगति को अंजाम देगा जिससे बाद में सबको ही लाभ होगा । इस
मान्यता के विपरीत लेखक का मानना है कि इन उपायों से इस उद्यम में पूंजी की पकड़ मजबूत
होगी और लागत तथा मुनाफ़े के मामले में असंतुलन पैदा होगा ।
2017 में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से निकोलस डि जेनोवा
के संपादन में ‘द बार्डर्स आफ़ “यूरोप”: आटोनामी आफ़ माइग्रेशन, टैक्टिक्स
आफ़ बार्डरिंग’ का प्रकाशन हुआ । संपादक की भूमिका के अतिरिक्त किताब में ग्यारह
लेख शामिल हैं । किताब प्रवास संबंधी यूरोपीय संकट को लेकर चली बहसों से उपजी है ।
इस संकट को नजदीक से तब देखा गया जब 19 अप्रैल 2015 को 850 शरणार्थियों को ढो रही
नाव समुद्र में पलट गई । उस दुर्घटना में केवल 28 लोग बच सके । शेष मृतकों के शव
भूमध्य सागर के किनारे बहकर आ लगे । लगा कि यह साल यूरोप की सीमाओं में घुसकर
शरणार्थी का दर्जा चाहने वालों के लिए सबसे अधिक मृतकों का साल साबित होगा । ढेर
सारी शरणार्थी नौकाओं के डूबने से यह आशंका सच साबित होने लगी । इसके चलते यूरोप
की समुद्री सीमा कत्लगाह में बदल गई ।
2018 में वर्सो से जोएल वेनराइट और ज्योफ़ मान की किताब ‘क्लाइमेट लेवियाथन: ए पोलिटिकल थियरी
आफ़ आवर प्लैनेटरी फ़्यूचर’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के अनुसार हम सोचते रहे कि जलवायु
परिवर्तन की चुनौती का जल्दी ही सामना करना पड़ेगा लेकिन अब वह सम्भावना मूर्त हो चुकी
है । प्रत्येक महाद्वीप में तापमान बढ़ रहा है । जीव इतनी तेजी से लुप्त हो रहे हैं
कि पहले कभी इसकी मिसाल नहीं मिलती । समुद्र के भीतर के कोरल रीफ़ बदल नहीं सकते
इसलिए पूरी तरह गायब हो रहे हैं । समुद्र की सतह उठ रही है, जंगल जल रहे हैं, बर्फ के ग्लेशियर पिघल रहे हैं और
तूफानों की तादाद बढ़ रही है ।
2018 में रीऐक्शन बुक्स से हेलेन एम रोज़वादोव्सकी की
किताब ‘वास्ट एक्सपैन्सेज:ए हिस्ट्री आफ़ द ओशन्स’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना
है कि हमारे इस ग्रह में अपार विस्तार वाला समुद्र इतिहास लेखन में हाशिये पर रहा
है । ऐसा न चाहते हुए भी अतीत की लगभग प्रत्येक कहानी में इतिहासकारों का ध्यान
भूमि पर ही केंद्रित रहा है । उसमें भी सूखी जमीन अधिक पसंद की जाती रही है ।
कछारों और तटवासियों को भी अपवाद के रूप में ही दाखिला मिल सका है । अधिकांश दलदली
इलाकों को भी भारी उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है । समुद्री मुहाना जमीनी राज्यों
और गतिविधियों का परिशिष्ट रहा है । समुद्र के इतिहास को भी अपनी जगह मिलनी चाहिए
। इससे जमीनी इतिहास समृद्ध ही होगा । इससे इतिहास के साथ वर्तमान के भी कुछ जरूरी
आयाम खुलेंगे ।
जिन दिनों समुद्र ही आवागमन और व्यापार का प्रमुख जरिया
थे उस समय युद्ध का शिकार भी उनसे जुड़े तमाम तत्व हुआ करते थे । द्वितीय
विश्वयुद्ध में अमेरिकी बंदरगाह पर्ल हार्बर पर जापानी हमले की कथा सभी जानते हैं । बंदरगाह ही नहीं
समुद्र के भीतर भी यह लड़ाई लड़ी गयी । इसी प्रसंग में 2018 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से क्रेग एल
सिमोंड्स की किताब ‘वर्ल्ड वार ॥ ऐट सी: ए ग्लोबल हिस्ट्री’ का प्रकाशन हुआ ।
युद्ध के अतिरिक्त क्रांतियों के साथ भी समुद्री तत्व का गहरा संबंध है । रूसी
क्रांति में नौसैनिकों की भूमिका के अतिरिक्त अपने देश में घटित नाविक विद्रोह को
भी याद किया जा सकता है । भारत की आजादी के आंदोलन के साथ कोमागाटा मारू नामक पानी
के जहाज के जुड़ाव को भी याद रखा जाना चाहिए । कनाडा से देश की आजादी के
लिए चले उस जहाज के प्रसंग में 2017 में रटलेज से अंजली गेरा राय और अजय के साहू के
संपादन में ‘डायस्पोराज ऐंड ट्रांसनेशनलिज्म्स: द जर्नी आफ़ द कोमागाटा मारू’ का
प्रकाशन हुआ । किताब में कुल दस लेख शामिल किये गये हैं । उसी घटना के
बारे में 2018 में ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस से रेनिसा मवानी की किताब ‘एक्रास ओशन्स आफ़ ला: द कोमागाटा मारू ऐंड ज्यूरिसडिक्शन इन द टाइम आफ़ एम्पायर’ का प्रकाशन हुआ । 2018 में ही तूलिका बुक्स से सुचेतना चट्टोपाध्याय की
किताब ‘वायसेज आफ़ कोमागाटा मारू: इम्पीरियल सर्विलान्स ऐंड वर्कर्स फ़्राम पंजाब इन
बंगाल’ का प्रकाशन हुआ । हम भले ही उस घटना को भूल गये हों लेकिन कनाडा में उसकी
याद कायम है । इसीलिए 2019 में वहां के यूबीसी प्रेस से रीता कौर धमून, दाविना
भांदर, रेनिसा मवानी और सतविंदर कौर बैन्स के संपादन में ‘अनमूरिंग द कोमागाटा
मारू: चार्टिंग कोलोनियल ट्रैजेक्टरीज’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना
के अतिरिक्त किताब के तीन हिस्सों में कुल चौदह लेख संकलित हैं ।
2019 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से क्रिस अलेक्जेंडरसन की किताब ‘सबवर्सिव सीज: एन्टीकोलोनियल नेटवर्क्स एक्रास द ट्वेन्टीएथ-सेन्चुरी डच एम्पायर’ का प्रकाशन हुआ । लेखक इस किताब पर दस साल से काम कर रहे थे । इसके लिए उन्होंने हालैंड के तमाम संग्रहालयों और पुस्तकालयों की खाक छानी । लेखक ने इस किताब को हालैंड के सामुद्रिक साम्राज्य के क्षेत्र में नयी दिशा को खोलने वाला मानते हैं । 1920 और 1930 के दशक में हालैंड के समुद्री जहाज एशिया, मध्य पूर्व, यूरोप, आस्ट्रेलिया और उत्तरी तथा लैटिन अमेरिका के तमाम बंदरगाहों से होते हुए लगभग सभी महासागरों में तैरते थे ।
2019 में एलेन लेन और आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से
क्रमश: ब्रिटेन और अमेरिका में डेविड अबूलाफ़िया की किताब ‘द बाउंडलेस सी : ए
ह्यूमन हिस्ट्री आफ़ द ओशंस’ प्रकाशित हुई । लेखक का कहना है कि मानव समाजों के
आपसी सम्पर्क में समुद्र की भूमिका बेहद रुचिकर दास्तान
प्रस्तुत करती है । आबादियों, धर्मों और संस्कृतियों की घुलावट में इन सम्पर्कों
का योगदान रहा है । इसका माध्यम तीर्थयात्री और व्यापारी भी रहे हैं जो पराये
वातावरण में घुले मिले । कभी कभी बड़े पैमाने के प्रवासों के कारण भी कुछ इलाकों
में ऐसा हुआ । मनुष्यों के अलावे सामानों की आमदरफ़्त ने भी यही भूमिका निभायी ।
दूसरी जगहों से आने वाले सामानों को देखकर स्थानीय लोगों ने नकल की और नया चलन
निकल पड़ा । अद्भुत और बहुमूल्य वस्तुओं को सराहा और इस्तेमाल लायक बनाया । ये
सम्पर्क जमीन और नदी के अतिरिक्त समुद्र के रास्ते भी हुआ । समुद्र के रास्ते जो
सम्पर्क बने उनकी खासियत यह थी कि उन्होंने बहुत दूर दूर की जगहों को भी आपस में
जोड़ दिया ।
2020
में वर्सो से लाले खलीली की किताब ‘सिन्यूज आफ़ वार ऐंड
ट्रेड: शिपिंग ऐंड कैपिटलिज्म इन अरबियन पेनिन्सुला’ का
प्रकाशन हुआ । पूंजीवाद और व्यापार के सिलसिले में नौपरिवहन के आंकड़े बहुत उपयोगी
होते हैं । नब्बे प्रतिशत सामान की ढुलाई पानी के जहाजों से होती है । कुल ढुलाई
का तीस प्रतिशत तेल की ढुलाई है । तेल के समूचे आवागमन का साठ प्रतिशत समुद्र के
रास्ते होता है । फिर भी इन आंकड़ों से बंदरगाहों, समुद्रों और
नौपरिवहन के समूचे विस्तार का अनुमान नहीं किया जा सकता । उनमें बदलाव भी बहुत आया
है । पहले की तरह अब समुद्र के किनारे के नगरों से बंदरगाहों का जीवंत रिश्ता नहीं
रह गया है । अब उन्हें कंटीले तार लगाकर नगरों से अलगा दिया गया है ।
2020
में विलियम कोलिन्स से सुजीत शिवसुंदरम की किताब ‘वेव्स
एक्रास द साउथ: ए न्यू हिस्ट्री आफ़ रेवोल्यूशन ऐंड एम्पायर’ का
प्रकाशन हुआ । लेखक ने इस किताब को विश्व इतिहास के एक भूले अध्याय के इतिहास लेखन
की कोशिश कहा है । इस धरती का चौथाई हिस्सा भारतीय और प्रशांत महासागर का है
जिसमें अनेकानेक छोटे समुद्र और खाड़ियों का जाल है । इस हिस्से के इतिहास को कभी
पश्चिमी देशों में बताया नहीं जाता है । दक्षिणी गोलार्ध के पानी के इस विशाल
प्रसार में जमीन के तमाम छोटे बड़े टुकड़े मौजूद हैं । इस क्षेत्र के अठारहवीं सदी
के उत्तरार्ध और उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध को इस किताब में क्रांतियों के युग के
बतौर लेखक ने दर्ज किया है ।
2020
में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से जेप मुलिच की किताब ‘इन
ए सी आफ़ एम्पायर्स: नेटवर्क्स ऐंड क्रासिंग्स इन द रेवोल्यूशनरी कैरीबियन’ का
प्रकाशन हुआ । किताब की शुरुआत लेखक के शोध प्रबंध से हुई । लेखक का कहना है कि उन्नीसवीं
सदी के मोड़ पर अटलांटिक सागर से जुड़ी हूई दुनिया क्रांतिकारी जोश और राजनीतिक
उलटफेर से ग्रस्त थी । इसके कारण अप्रत्याशित मौके भी पैदा हुए । मुनाफ़ा, आजादी,
यश और अन्य तमाम महत्वाकांक्षाओं के शिकार नौसेना के अधिकारी और ठेकेदार, तस्कर और
व्यापारी, भगोड़े गुलाम और भांति भांति के अश्वेत नागरिक कैरीबियन के व्यस्त
बंदरगाहों से होकर आवाजाही करते रहते थे । एक द्वीप समूह तो खासकर ऐसे लोगों को
प्रिय था जिसके द्वीपों में अलग अलग यूरोपीय ताकतों का कब्जा था । इसके चलते कानूनों और अधिकारों का ऐसा घालमेल हो गया था जिसमें औपचारिक निकायों
के साथ ही अनौपचारिक रास्ते भी खुले हुए थे ।
2020
में यूनिवर्सिटी आफ़ पेनसिल्वानिया प्रेस से लारेन बेंटन और नथान पर्ल-रोजेन्थाल के
संपादन में ‘ए वर्ल्ड ऐट सी: मेरीटाइम प्रैक्टिसेज ऐंड ग्लोबल हिस्ट्री’ का
प्रकाशन हुआ । संपादकों की लिखी प्रस्त्तवना और पश्चलेख के अतिरिक्त किताब के नौ
अध्याय तीन हिस्सों में संयोजित हैं । उनका कहना है कि मनुष्यों के लिए समुद्र
खतरनाक रहे हैं । जमीनी स्तनपायी अस्तित्व हमें तैराकी में महारत हासिल नहीं करने
देता । समुद्री नाविकों के साथ तरह तरह के विषाणु आते हैं । इन तमाम खतरों के
बावजूद वे मानव जीवन हेतु आवश्यक रहे हैं । भोजन के स्रोत, समाचार और व्यापार का
जरिया तथा गतिशीलता का माध्यम वह अनादि काल से बना हुआ है । खतरे और निर्भरता का
यह अंतर्विरोधी रिश्ता वैश्वीकरण के पहले दौर से ही बना हुआ है । 1400 से 1900 तक
के उस दौर में जहाजों और नाविकों ने सारी दुनिया को आपस में गूंथ दिया था । लोगों,
विचारों, विषाणुओं और सामानों की अभूतपूर्व आवाजाही ने नयी संपदा को जन्म दिया और विभिन्न
इलाकों के बीच क्रय विक्रय के जाल या तो निर्मित किये या मजबूत बनाये । सम्पर्क और
आवाजाही के साथ ही समुद्र पार विजयों, बीमारियों के प्रसार और जबरिया प्रवास की
शक्ल में नयी मुसीबतें भी मनुष्यता के सामने प्रकट हुईं ।
अमेरिका के नेतृत्व में इस्लाम के दानवीकरण का जो अभियान
चला उसमें अक्सर लोग भूल जाते हैं कि इस्लाम एक वैश्विक
परिघटना रहा है । उसके प्रसार का समुद्र से संबंध घनिष्ठ है । इसी तथ्य को
रेखांकित करते हुए 2020 में ब्लूम्सबरी इंडिया से सुगत बोस और आयेशा जलाल के संपादन में
‘ओशनिक इस्लाम: मुस्लिम यूनिवर्सलिज्म ऐंड यूरोपीयन इम्पीरियलिज्म’ का प्रकाशन हुआ । संपादकों
की प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब में आठ लेख संकलित हैं । संपादकों के मुताबिक
हिंद महासागर का अंतरक्षेत्रीय विस्तार पूंजी और श्रम, कौशल और सेवा तथा विचार और संस्कृति के प्रवाह का गवाह रहा है । इस पूरे इलाके में
एक जमाने में इस्लाम की छवि महानगरीय
जैसी थी । जिस तरह महानगर विभिन्न किस्म के लोगों को अपने भीतर समाए रहते हैं उसी
तरह इस्लाम के भीतर भांति भांति के इलाकों के लोगों के आने से भरपूर विविधता मौजूद
थी । इस्लाम की हाल में निर्मित छवि से उसकी यह ऐतिहासिक सचाई पूरी तरह अलग है
।
2021
में वर्सो से लियाम कैम्पलिंग और अलेजांद्रो कोलास की किताब ‘कैपिटलिज्म
ऐंड द सी: द मेरीटाइम फ़ैक्टर इन द मेकिंग आफ़ द माडर्न वर्ल्ड’ का
प्रकाशन हुआ । लेखकों को समुद्र के राजनीतिक अर्थशास्त्र और ऐतिहासिक समाजशास्त्र
में गहरी रुचि है । किताब के विभिन्न हिस्सों को बिर्बेक कालेज के समुद्र से जुड़े
अध्ययन चक्र में भी प्रस्तुत किया गया । इसमें हुई बहसों से विषय को समझने और
विस्तारित करने में इन लेखकों को मदद मिली है । लेखकों का मानना है कि विश्व
पूंजीवाद समुद्र से उपजी परिघटना है । आज भी समुद्र व्यापार का बड़ा रास्ता है ।
उससे होकर व्यापारी आवागमन तो करते ही हैं उसमें व्यापार हेतु मछली जैसी तमाम
वस्तुएं भी प्रभूत मात्रा में पायी जाती हैं । समुद्र की सतह को खोदकर जीवाश्म
ईंधन और खनिज निकाला जाता है । समुद्र के किनारे भवन बनाने की भूसंपत्ति और
अय्याशी की तमाम सुविधाओं का विकास किया जाता है । बंदरगाह पर नौ परिवहन के लिए
सुरक्षित कंटेनरों का उपयोग सामान ढोने तथा इस क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न आर्थिक गतिविधियों
के साथ होता है । इसमें जलपोत निर्माण से लेकर बीमा तक विश्व अर्थतंत्र के तमाम
काम शामिल हैं । गुलामी और उसके प्रतिरोध की भी कहानियां समुद्री रास्तों से जुड़ी
हैं ।
2021
में ब्रिल से होल्गर वेइस की किताब ‘ए ग्लोबल रैडिकल
वाटरफ़्रंट: द इंटरनेशनल प्रोपैगैन्डा कमेटी आफ़ ट्रांसपोर्ट वर्कर्स ऐंड द
इंटरनेशनल आफ़ सीमेन ऐंड हार्बर वर्कर्स, 1921-1937’ का
प्रकाशन हुआ । दोनों विश्वयुद्धों के बीच समुद्र के मालवाही जुझारू कामगारों की
क्रांतिकारी एकजुटता की महत्वाकांक्षी योजना का विश्लेषण इस किताब का मकसद है । दो
संगठनों के ढांचों और कार्यवाहियों की छानबीन के जरिये इसे किया गया है । दोनों
संगठनों के स्थानीय निकायों और राष्ट्रीय प्रभागों के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय
मुख्यालय भी थे । ये संगठन कोमिंटर्न के साथ जुड़े हुए थे । ये संगठन सभी समुद्रों
के कामगारों को रंगभेद और राष्ट्रीयता को दरकिनार करके एकजुट करते थे । इनका
नजरिया वैश्विक था ।
2021
में द यूनिवर्सिटी आफ़ शिकागो प्रेस से नाओमी ओरेस्केस की किताब ‘साइंस आन ए मिशन:
हाउ मिलिटरी फ़ंडिंग शेप्ड ह्वाट वी डू ऐंड डोन’ट नो एबाउट द ओशन’ का प्रकाशन हुआ ।
लेखिका ने इस विडम्बना से बात शुरू की है कि विज्ञान हेतु धन की आमद के बारे में
कोई भी नैतिकता का सवाल नहीं उठाता । आम तौर पर वैज्ञानिक समुदाय में अपने शोध के
लिए उपलब्ध धन के स्रोत की कोई भी खोज नहीं करता । लेकिन लेखिका का कहना है कि
इसके स्रोत का असर पड़ता है । विज्ञान में धन लगाने वालों में से शायद ही कोई ज्ञान
के प्रति श्रद्धा की वजह से ऐसा करता होगा । इसके पीछे कोई न कोई स्वार्थ होता है ।
प्रतिष्ठा, शक्ति या किसी व्यावहारिक समस्या के समाधान हेतु ही धन लगाया जाता है ।
इससे एक लाभ जरूर होता है कि धन लगाने वाले अदृश्य की ओर देखने की प्रेरणा
वैज्ञानिकों को देते हैं, नये कोणों और नये परिप्रेक्ष्य से चीजों को देखने का
साहस प्रदान करते हैं । चिकित्सा विज्ञान
और
तकनीक
के
क्षेत्र
में
इस
पहलू
से
नयी
खोजें
होते
देखी
गयी
हैं
।
बहरहाल
इसका
नकारात्मक
पक्ष
यह
है
कि
तात्कालिकता
का
दबाव
बहुतेरी
बुनियादी
समस्याओं
को
देखने
में
बाधा
डालता
है
।
शीतयुद्ध
के
दौरान
यह
भय
समुद्र
वैज्ञानिकों
में
व्याप्त
था
।
परिणाम
जल्दी
देने
के
दबाव
की
वजह
से
वैज्ञानिकों
ने
अक्सर
गलतियां
की
हैं
।
धन
मुहैया
कराने
वालों
के
पूर्वाग्रहों
से
शोध
के
निष्कर्ष
को
प्रभावित
किया
है
।
लेखक
का
मानना
है
कि
समुद्र
विज्ञान
के
क्षेत्र
में
भी
यह
नकारात्मक
दुर्घटना
घटी
।
2022
में येल यूनिवर्सिटी प्रेस से क्रिस आर्मस्ट्रांग की किताब ‘ए
ब्लू न्यू डील: ह्वाइ वी नीड ए न्यू पोलिटिक्स फ़ार द ओशन’ का
प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि पृथ्वी के दस में सात भाग पानी में डूबे हैं ।
इस समुद्री दुनिया का हमारे जीवन से गहरा रिश्ता है । इसके भीतर असंख्य प्रजातियों
का निवास है जिनमें से बहुतेरी का पता विज्ञान को भी नहीं है । इसके बावजूद
समकालीन विश्व राजनीति के जानकार इसके जिक्र के बिना भी बात कर लेते हैं । कुछ ही
देशों की सरकारों में समुद्र मंत्रालय है । समुद्र से जुड़े मुद्दों पर नेताओं को
बातचीत करते भी नहीं सुना जाता । समुद्र संबंधी अंतर्राष्ट्रीय कानून की जटिलता
सामान्य नागरिक को समझ नहीं आती । इसकी मौजूदगी तो है लेकिन हमारी जानकारी की
जरूरत इसे नहीं महसूस होती । इसकी विराटता और स्थायित्व के चलते हम इसको विनाश के
परे मानते हैं । ऐसी मान्यता काफी भ्रामक है । हम यह मानकर नहीं चल सकते कि समुद्र
धरती पर मौजूद जीवन का समर्थन करता ही रहेगा या अपने प्रचुर संसाधन मुहैया कराता
रहेगा । वह कहीं जायेगा तो नहीं लेकिन उसका जीवन संकट में है । विगत तीस सालों में
समुद्र की पारिस्थितिकी में इतने बड़े बदलाव आये हैं जितने आज तक के मानव इतिहास
में शायद ही आये थे ।
2022
में वर्सो से बेन टर्नआफ़ की किताब ‘इंटरनेट फ़ार द पीपुल:
द फ़ाइट फ़ार आवर डिजिटल फ़्यूचर’ का प्रकाशन हुआ ।
किताब की शुरुआत समुद्र की अतल गहराई के वर्णन से होती है । वहां जीवन मुश्किल ही
है । वहां के पेड़ पौधों के बारे में कोई नहीं जानता । मछलियों की आंखें बड़ी और
चमकदार होती हैं । इन जीवों को एक दूसरे का ही भक्षण करना होता है । समुद्र की सतह
पर भी कुछ पोषक तत्व मिल जाते हैं । सतह के मीलों नीचे कठिन हालात में भी इनकी
दुनिया आबाद है । उनकी दुनिया विचित्र हो सकती है लेकिन हमारी दुनिया से इसका नाता
है । यह नाता इंटरनेट का है । दुनिया भर में उसके संचालन का भौतिक तंत्र समुद्र के
रास्ते ही गुजरता है । इसमें बाधा आने से पूरे के पूरे महाद्वीप सचमुच एक दूसरे से
कट जाते हैं । उसकी अतल गहराइयों में इंटरनेट की सारी सामग्री से भरा हुआ शीशे का
विशाल बक्सा सुरक्षित रखा हुआ है ।
2022 में स्टैनफ़ोर्ड
यूनिवर्सिटी प्रेस से पीटर थिली की किताब ‘द
ओपियम बिजनेस: ए हिस्ट्री आफ़ क्राइम ऐंड
कैपिटलिज्म इन मेरिटाइम चाइना’ का प्रकाशन हुआ ।
चीन और इंग्लैंड के बीच के इस व्यापार को समझने के लिहाज से लेखक ने सबसे पहले
मुद्रा और माप संबंधी उस समय प्रचलित शब्दावली का अर्थ स्पष्ट किया है । 1840 में
चीन और इंग्लैंड के बीच जो टकराव हुआ उसे अफीम युद्ध कहा जाता है । इस अफीम का
उत्पादन औपनिवेशिक भारत में होता था । ब्रिटेन के जलपोत उसे समुद्र के रास्ते चीन
लेकर आते ।
2022
में मानचेस्टर यूनिवर्सिटी प्रेस से बेंजामिन द कारवालहो और हलवार्द लीरा के
संपादन में ‘द सी ऐंड इंटरनेशनल रिलेशंस’ का
प्रकाशन हुआ । संपादकों की प्रस्तावना तथा जेवियर गुइलामे और जूलिया कोस्टा लोपेज़
के उपसंहार के अतिरिक्त किताब में नौ लेख शामिल किये गये हैं ।
2022
में स्प्रिंगेर से नियान पेंग और चाओ-बिंग न्गेव के संपादन में ‘पापुलिज्म, नेशनलिज्म
ऐंड साउथ चाइना सी डिस्प्यूट: चाइनीज ऐंड साउथईस्ट एशियन पर्सपेक्टिव्स’ का
प्रकाशन हुआ । समुद्र आज की राजनीति में भी कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है
इसके लिए यही जानना पर्याप्त है कि अमेरिका और चीन के बीच जारी टकराव में समुद्र
रणक्षेत्र की तरह हो गया है । इस इलाके में जारी टकराव के भीतर
फिलीपीन्स, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर और कंबोडिया जैसे देश भी शामिल
हैं । इस टकराव का बड़ा कारण इन सभी देशों में राष्ट्रवाद और पापुलिज्म का उभार है
। इस इलाके में अपना अधिकार जताने का हालिया उत्साह इस उभार से ही आया है । इस
टकराव के साथ ही एशियान के रूप में उनका साझा मंच भी कायम है । समुद्री इलाके में
अधिकारों के दावे के साथ देश के भीतर राष्ट्रवादी लहर का घनिष्ठ रिश्ता बन गया है
। एशिया की राजनीति में इस होड़ का दखल बढ़ता जा रहा है । सभी देशों में यह टकराव और
इससे उत्पन्न राष्ट्रवादी उभार अलग अलग भूमिका निभा रहा है ।
2022
में रटलेज से पाल जी हैरिस के संपादन में ‘रटलेज
हैंडबुक आफ़ मरीन गवर्नेन्स ऐंड ग्लोबल एनवायरनमेंटल चेन्ज’ का
प्रकाशन हुआ । किताब में शामिल सताइस लेख छह भागों में हैं । पहला और अंतिम भाग संपादक
की प्रस्तावना और उपसंहार हैं । शेष पचीस लेख क्रमश: समुद्री पर्यावरण प्रशासन के
मामले में कानून, शासन और नेतृत्व; समुद्री पर्यावरण
प्रशासन में राज्येतर ताकतों;
समुद्री पर्यावरण और क्षेत्रों के
प्रशासन तथा पर्यावरणिक तौर पर टिकाऊ समुद्री प्रशासन के नये मुद्दों पर केंद्रित
हिस्सों में संयोजित हैं ।
2022 में पेंग्विन बुक्स से गाइ स्टैंडिंग की किताब ‘द
ब्ल्यू कामन्स: रेस्क्यूइंग द इकोनामी आफ़ द सी’ का प्रकाशन हुआ । उनका कहना है कि मानव संस्कृति में समुद्र का विशेष स्थान है
। इतिहास के शुरू से ही मानव नियति को आकार देने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा
है । प्राचीन काल के मिथकों के काल्पनिक समुद्री जीवों से लेकर आधुनिक विज्ञान
कथाओं में पानी के भीतर की सभ्यताओं तक उन्होंने मानव कल्पना को हमेशा उत्तेजित
किया है । साहित्यिक रचनाओं से लेकर सिनेमा तक
उसकी मौजूदगी बनी रही है । समुद्र के सिलसिले
में तमाम समुद्री लुटेरों और महान समुद्री युद्धों के साथ ही हम साहसी नाविकों और
उनकी खोजों की कहानियां भी सुनते रहे हैं । व्यापार और मनुष्यों के आवागमन के साथ
ही नयी नयी जगहों की खोज भी होती रही है । मछुआरे ऐसे नायकों के रूप में लोगों की चेतना में बैठे हुए हैं जो तमाम विपरीत
परिस्थितियों का मुकाबला करते रहते हैं । धरती पर चरवाहे और समुद्र में मछुआरे सामाजिक
चेतना का विस्तार करते हैं । यही कारण था कि ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच बातचीत
मछली मारने के अधिकार पर टूट गयी । समुद्र की अपार शक्ति ने मनुष्य के मन में भय
के साथ श्रद्धा को भी जन्म दिया है ।
2023
में द यूनिवर्सिटी आफ़ शिकागो प्रेस से समान्था मुका की किताब ‘ओशंस
अंडर ग्लास: टैंक क्राफ़्ट ऐंड द साइंसेज आफ़ द सी’ का
प्रकाशन हुआ । लेखिका के मुताबिक समुद्र बहुत विशाल है । मनुष्य इसके समूचे खजाने
के बारे में बहुत कम जानते हैं । वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी उसके पांचवें
हिस्से की ही छानबीन की जा सकी है । उसके जटिल पर्यावरण की जानकारी तो अत्यल्प है
। समुद्र की जैव विविधता के अन्वेषण के लिए वैज्ञानिक समुदाय विराट अंतर्राष्ट्रीय
सहकार कायम करता है ।
2023
में अर्थस्कैन से अना के स्पाल्डिंग और डैनिएल ओ सुमन के संपादन में ‘ओशन्स
ऐंड सोसाइटी: ऐन इंट्रोडक्शन टु मरीन स्टडीज’ का
प्रकाशन हुआ । ट्रेसी डाल्टन ने इसकी प्रस्तावना लिखी है । उनके मुताबिक मनुष्य और
समुद्र का रिश्ता जटिल है । मनुष्य उन पर निर्भर और उनसे प्रभावित हैं । संपादकों
की भूमिका के अतिरिक्त तीन हिस्सों में सत्रह लेख शामिल किये गये हैं ।
2023
में फ़रार, स्त्रास
&
गीरू से डेविड ग्रेबर की 2019 में छपी फ़्रांसिसी किताब का अंग्रेजी अनुवाद ‘पाइरेट
एनलाइटेनमेन्ट, आर द रीयल लिबरतालिया’ प्रकाशित
हुआ । लेखक के मुताबिक समुद्री लुटेरों के बारे में वस्तुनिष्ठ तरीके से लिखा नहीं
जाता । कुछ लोग उन्हें सर्वहारा की तरह देखते हैं तो अधिकांश उन्हें हत्यारे, बलात्कारी
और चोर समझते हैं । असल में वे सभी एक समान नहीं होते । उनमें भी सामान्य मनुष्यों
की तरह ही तमाम भेद पाये जाते हैं ।
2023
में स्प्रिंगेर से फ़रह ओबैदुल्ला के संपादन में ‘द
ओशन ऐंड अस’ का प्रकाशन हुआ । इजाबेला लोविन ने इसकी प्रस्तावना लिखी है ।
किताब में कुल बत्तीस लेख शामिल हैं । इन्हें आठ हिस्सों में संयोजित किया गया है
। पहले में जलवायु परिवर्तन और समुद्र, दूसरे में समुद्र
से प्राप्य मछली और अन्य भोज्य पदार्थ, तीसरे में समुद्र
के प्रदूषण, चौथे में समुद्री रहवास पर खतरे, पांचवें
में दुनिया के सारे समुद्रों के प्रबंधन, छठवें में मनुष्य
और समुद्र, सातवें में समुद्र में विविधता और समेकन से जुड़े लेख रखे गये
हैं । तदुपरांत आठवें हिस्से का एकमात्र लेख इस हाल में कुछ प्रेरणादायी आवाजों के
बारे में है जिसे जो विंक के साथ संपादक ने लिखा है ।
समुद्र
से धरती के रिश्ते के धागे बहुत मजबूत हैं । यातायात के संजाल के पीछे समुद्र बहुत बड़ी
ताकत है । 2023 में स्प्रिंगेर से दिदाक कुबेरो रोड्रिगुएज़ की किताब ‘द
पर्ल आफ़ द ईस्ट: द इकोनामिक इम्पैक्ट आफ़ कोलोनियल रेलवेज इन साउथईस्ट एशिया’ का
प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि उन्नीसवीं सदी को इंजीनियरों का युग कहा जा सकता
है क्योंकि जहाजों के लिए प्रकाश स्तम्भ, बंदरगाह, रेलवे, सड़क, भंडार, रेडियो, फोन
और तार जैसे संरचनात्मक सुविधाओं का निर्माण इन्होंने किया । इन सभी सुविधाओं का
एक सिरा समुद्र से जुड़ता है ।