कार्ल मार्क्स के अनन्य साथी एंगेल्स के इस संचयन को उनके जन्म की दूसरी शताब्दी में ही छापने का इरादा था लेकिन एक वैश्विक महामारी ने दुनिया भर की घड़ियों को दो साल के लिए रोक दिया । इस अकाल वेला ने भी उन्नीसवीं सदी के इन भविष्यदर्शियों की एकाधिक आशंकाओं को सच ही साबित किया । कामगार दरिद्र होते रहे लेकिन अरबपतियों की संपत्ति में अकूत बढ़ोत्तरी हुई । इसके राजनीतिक अनुवाद की तरह लोकतंत्र कमजोर हुआ और तमाम देशों में तानाशाहों की चांदी हो आयी । इसका गहरा रिश्ता मजदूर आंदोलन की गिरावट से है । दूसरी ओर थोड़ा पहले से ही जारी इस प्रवृत्ति के विरोध में सड़क पर उतरकर संघर्षरत अवाम ने लोकतंत्र को अपनी आकांक्षाओं का जामा पहनाया । इन संघर्षों में गाहे ब गाहे मार्क्स के साथ एंगेल्स का भी नाम सुनायी देता रहा । इस अवसर पर यह देखना रोचक है कि उनके बारे में बौद्धिक जगत में क्या रुख अपनाया गया ।
टेरेल कारवेर लिखित ‘एंगेल्स: ए वेरी शार्ट इंट्रोडक्शन’ का प्रकाशन आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से 1981 में पहली बार हुआ था लेकिन फिर ‘ए वेरी
शार्ट इंट्रोडक्शन’ नामक पुस्तक श्रृंखला के तहत 2003 में उसे फिर से जारी किया गया । उनका कहना
है कि अब तक के सबसे मशहूर बौद्धिक सहकार में एंगेल्स खुद को कनिष्ठ सहयोगी मानते
थे । इसके बावजूद अपने वरिष्ठ सहयोगी मार्क्स के विचारों को लोकप्रिय बनाने में
उनके योगदान को भुलाना असम्भव है । उनके जीवन के बारे में तो काफी कुछ लिखा गया है
लेकिन उनके विचारों के बारे में बहुत कम लिखा गया है । एंगेल्स केवल मार्क्स के
अनुकर्ता ही नहीं थे, उनके स्वतंत्र विचार भी थे जिन्हें कारवेर ने दर्ज करने की
कोशिश इस किताब में की है । खुद मार्क्स ने भी दोनों के संयुक्त लेखन में एंगेल्स
के योगदान का उल्लेख किया है । संयुक्त लेखन के अतिरिक्त कुछ किताबें एंगेल्स ने
अपने नाम से भी छपवायी हैं । इनके लेखन के साथ दिक्कत यह है कि इनको किस हद तक
उनका अपना काम माना जाये और किस हद तक मार्क्स का प्रभाव समझा जाये । उन दोनों के
लेखन को अलगाने में बहुत सी मुश्किलें हैं । लेखक ने एंगेल्स के विचारों को जहां
तक संभव था उनके ही शब्दों में प्रस्तुत किया है ।
एंगेल्स की प्रतिभा
के सिलसिले में जानना जरूरी है कि सत्रह साल की उम्र में एंगेल्स की कविता छपने
लगी थी । अठारह साल की उम्र तक वे पत्रकारिता में अपने पांव जमा चुके थे । उनका
परिवार प्रतिष्ठित था इसलिए कुलीनों के पाखंड को उजागर करने वाले लेख वे छद्म नाम
से लिखते थे । इनका संग्रह बाद में ‘लेटर्स फ़्राम वुपरताल’ शीर्षक से छपा । उनका
कहना था कि जो भी उन्होंने लिखा वह उनका खुद का देखा या सुना था । इस प्रामाणिक
अनुभव का इस्तेमाल उन्होंने छोटे औद्योगिक समुदाय के सामाजिक जीवन के वर्णन में
अच्छी तरह से किया । पड़ोस में बहने वाली वुपर नदी का पानी रंगसाजी के चलते और
कस्बे के निवासियों का जीवन शराब के चलते जिस तरह प्रदूषित हो रहा था उसका जीवंत
चित्रण इन लेखों में हुआ है । बाद के दिनों तक उनके लेखन की यह विशेषता कायम रही ।
प्रत्यक्ष अनुभव की जीवंत प्रस्तुति उनके लेखन की खास पहचान थी । औद्योगिक नगरों
का उनका पर्यवेक्षण अत्यंत सूक्ष्म था ।
एंगेल्स के बारे में ही इस साल पालग्रेव मैकमिलन से प्रकाशित एक पुस्तक ‘एंगेल्स बीफ़ोर मार्क्स’ में लेखक का मानना है कि एंगेल्स निश्चय ही मार्क्स के दीर्घकालीन दोस्त, राजनीतिक सहयोगी और बौद्धिक सहभागी थे । इसके बावजूद उन्होंने खुद को संगतकार ही माना । दोनों के जीवन संबंधी तथ्य मार्क्स के देहांत के बाद खुद एंगेल्स ने ही प्रचारित और स्थिर किये । उनके जीवित रहते दोनों के आपसी रिश्तों का पता तो तमाम लोगों को रहा होगा लेकिन उनके बारे में विरोधियों की भी टिप्पणियां देखने में नहीं आतीं । एंगेल्स के देहांत के बाद मार्क्स के लेखन का रखवाला कोई नहीं रह गया । जीवित रहते उन्होंने संपादित करके उनका लिखा तो छपाया ही, उनकी टिप्पणियों के आधार पर किताब तैयार की और आपसी चिट्ठी-पत्री तक छपायी ।
टेरेल कारवेर ने बताया है कि धार्मिक उत्पीड़न और तानाशाही शासन के उस युग में एंगेल्स ने वैविध्य भरे गुमनाम लेखन के जरिए प्रगतिशील और उदारपंथी राजनीति के साथ सम्पर्क बनाया था । इस लेखन में कूट शैली अपनाना उस समय की मजबूरी भी थी । सामाजिक बदलाव के संदेशों को कविता, संगीत, कला और कथा कहानी के बहाने ही प्रचारित किया जाता था । इस तरह का लेखन ब्रेमेन में पारिवारिक व्यवसाय के लिए काम करते हुए भी जारी रहा । इसमें उन्हें काफी शोहरत मिली । संकीर्ण विचारों वाले पिता ने विश्वविद्यालय भेजने से मना कर दिया तो एंगेल्स ने समान विचार वाले अपने दोस्तों के साथ सृजन का एक मुक्त विश्वविद्यालय कायम कर लिया था । इस दौर के उनके लेखन से उनकी कल्पनाशक्ति का पता चलता है । इतिहास के आख्यानों का सहारा लेकर गद्य और काव्य में उनके विचार व्यक्त होते । इन आख्यानों में कथातत्व पैदा करने के लिए वे कल्पना का उपयोग करते थे । रचनात्मक लेखन की उदार परम्परा में दीक्षित आज के पाठकों को यह बात कुछ खास नहीं लगेगी लेकिन उस समय के लिहाज से निश्चय ही इसे उनकी आगामी प्रतिभा का निशान मानना होगा ।
असल में मार्क्सवाद के बारे में रुचि पैदा होने के साथ एंगेल्स के
बारे में भी सोच विचार होने लगा था । 1996 में मैकमिलन और सेंट मार्टिन’स प्रेस से क्रमश: ब्रिटेन और अमेरिका में क्रिस्टोफर जे आर्थर
के संपादन में ‘एंगेल्स टुडे: ए सेन्टेनरी अप्रीसिएशन’ का प्रकाशन हुआ था । संपादक की प्रस्तावना के अतिरिक्त किताब
में आठ लेख संग्रहित हैं जिन्हें एंगेल्स के चिंतन के विभिन्न आयामों के आधिकारिक विद्वानों
ने लिखा है । संपादक का कहना है कि मार्क्स के मुकाबले अपने लिए अपेक्षाकृत गौण भूमिका
का चुनाव करने के बावजूद एंगेल्स कई मामलों में स्वतंत्र योगदान के अधिकारी हैं । फ़्रांसिसी
मार्क्स विशेषज्ञ मैक्समीलिएन रूबेल तो उन्हें मार्क्सवाद की स्थापना का श्रेय ही देते
हैं । बहुत शुरू से ही एंगेल्स लेख लिखने लगे थे और व्यवसाय का प्रत्यक्ष अनुभव
होने से उनके लेखन में खास प्रामाणिकता होती थी । मार्क्स जब राइनिशे ज़ाइटुंग के
संपादक थे तो उन्होंने भी एंगेल्स के लेख छापे थे । एक बार कोलोन में संक्षिप्त मुलाकात
भी हुई थी लेकिन पेरिस की दूसरी मुलाकात से आपसी सहमतियों के काफी व्यापक दायरे का
पता चला । सही बात यह है कि वर्ग संघर्ष का महत्व और राजनीतिक अर्थशास्त्र की
आलोचना की जरूरत उन्हें मार्क्स से पहले महसूस हुई थी । एंगेल्स का आरम्भिक लेखन भी
इसका प्रमाण है । मार्क्स इससे प्रभावित थे और अक्सर इसका जिक्र करते थे । ‘पवित्र परिवार’ और ‘जर्मन विचारधारा’ की लिखाई संयुक्त रूप से हुई थी । ‘कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र’ के लिए एंगेल्स ने कच्चा मसौदा मुहैया
कराया था । 1848 की क्रांति में हिस्सा लेने के लिए दोनों जर्मनी आये । क्रांति
में लड़े और न्यू राइनिशे ज़ाइटुंग की स्थापना में मार्क्स की मदद की । जब विद्रोह
कुचल दिया गया तो वे स्विट्ज़रलैंड भाग गये । आखिरकार दोनों ही इंग्लैंड पहुंचे ।
मार्क्स अपने अर्थशास्त्र संबंधी काम में लगे लेकिन एंगेल्स उनके काम में सहायता करने हेतु पारिवारिक व्यवसाय में मुब्तिला रहे
। इसके बावजूद सेना संबंधी उनके लेखन और विस्तृत ज्ञान के चलते मार्क्स के घर में
उन्हें ‘जनरल’ कहा जाता था । व्यवसाय से सेवामुक्ति के बाद ही लंदन में रहकर
राजनीतिक काम और लेखन का अवसर उन्हें मिला था ।
हाल में आये वित्तीय संकट के बाद मार्क्स के जीवन और लेखन में बहुतों
की रुचि जागी । स्वाभाविक था कि इस रुचि के दायरे में एंगेल्स भी आयें । 2009 में हेनरी कोल्ट ऐंड कंपनी से एंगेल्स पर त्रिस्त्रम
हंट की लिखी एक किताब ‘मार्क्स’ जनरल: द रेवोल्यूशनरी लाइफ़ आफ़ फ़्रेडेरिक एंगेल्स’ का प्रकाशन हुआ । यही किताब ‘द फ़्राक कोटेड कम्युनिस्ट: द लाइफ़ ऐंड टाइम्स आफ़ द ओरिजिनल शैम्पेन सोशलिस्ट’ शीर्षक से पेंग्विन बुक्स से प्रकाशित हुई
। इसमें हंट ने अपनी बात की शुरुआत करते हुए कहा है कि सामान्य धारणा के मुताबिक मार्क्स
खुले और एंगेल्स यांत्रिक चिंतक थे लेकिन एंगेल्स के जीवन का आरम्भ रोमांटिकता से उनके
गहरे लगाव का परिचय देता है । यही भावावेग उन्होंने मार्क्स की बेटी एलिनोर को भी सौंपा
जब वह उनके साथ रही । अंग्रेज कवि शेली के वे दीवाने थे । घर व्यवसायियों का था जहां
उनकी पढ़ाई छुड़ाकर पारिवारिक पेशे में डालने की जल्दी थी । रुचि और दबाव के बीच के इस
संघर्ष में ही उन्होंने छद्मनाम से अखबारों में लिखना शुरू किया । नास्तिक होने का
मानसिक संघर्ष अधिक तकलीफदेह था । आखिरकार इस चक्कर में ही स्ट्रास की ईसा मसीह पर
लिखी किताब के जरिये वे हेगेल तक पहुंचे । मार्क्स और उनके बीच साझी बात हेगेल के
प्रति उन दोनों का प्रेम भी था ।
ऊपर जिक्र हुआ है कि राजनीतिक अर्थशास्त्र में मार्क्स की रुचि पैदा
होने का बड़ा कारण एंगेल्स का लेखन था । आम तौर पर मार्क्स के राजनीतिक अर्थशास्त्र
की इतनी चर्चा होती है कि एंगेल्स के इस पक्ष की अनदेखी हो जाती है । 2011 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से सैमुएल
होलैंडर की किताब ‘फ़्रेडरिक एंगेल्स ऐंड मार्क्सियन पोलिटिकल इकोनामी’ का प्रकाशन हुआ । हाल में मार्क्सवाद की प्रसिद्धि
के साथ विद्वानों में से कुछ ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने मार्क्स के राजनीतिक अर्थशास्त्र
के संपादन/प्रकाशन के एंगेल्स के काम को अहितकर बताया है । ऐसी स्थिति के कारण ही
लेखक को यह किताब लिखनी पड़ी है । उनका कहना है कि इतिहास और प्रकृति विज्ञान
संबंधी उनके विचारों पर तो ध्यान दिया जाता है लेकिन उनकी पत्रकारिता या
मानवशास्त्र, कानून, साहित्य, धर्म, समाजशास्त्र, भाषा और सैनिक मामलों में उनके दखल
की बात नहीं होती । इसके बावजूद होलैंडर ने उनके अर्थशास्त्र संबंधी योगदान को
उजागर करने के मकसद से यह किताब लिखी है । सबसे पहले उन्होंने एंगेल्स की उन
उपलब्धियों का जिक्र किया है जो मार्क्स से पहले उन्होंने हासिल कर ली थीं । फिर
तो मार्क्स के साथ जो किया उसको अलगाना बहुत मुश्किल था इसलिए उनके निधन के बाद
एंगेल्स ने राजनीतिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र में जो काम किया उसका विवेचन हुआ है
।
एंगेल्स के लेखन के महत्व को उजागर करते
हुए 2019 में स्टेट यूनिवर्सिटी आफ़ न्यू यार्क प्रेस से पाल ब्लैकलेज की किताब ‘फ़्रेडरिक एंगेल्स ऐंड माडर्न सोशल ऐंड
पोलिटिकल थियरी’ का प्रकाशन हुआ । लेखक का कहना है कि आंग्ल बौद्धिक दुनिया में जन्म
के दो सौवें साल में मौलिक चिंतक के रूप में एंगेल्स की ख्याति निम्नतम स्तर पर है
। एंगेल्स की इस उपेक्षा का कारण राजनीतिक है । हालिया वैश्विक आर्थिक संकट और
चिंताजनक विषमता की वृद्धि से मार्क्स एंगेल्स के विश्लेषण की पुष्टि तो हुई है
लेकिन इसके बावजूद मजदूर वर्ग आंदोलन में उतार की ही स्थिति बनी हुई है । ऐसे में
ठीक ही लोगों में मार्क्सवाद के प्रति भरोसा नहीं पैदा हो रहा । असल में एंगेल्स
की आलोचना एक और कारण से की जाती रही है । समूची बीसवीं सदी में व्यवस्थित प्रचार
चलाया गया कि एंगेल्स ने मार्क्स के विचारों को तोड़ा मरोड़ा है । रूस के विरोध में
पश्चिमी विचारकों के जिस नव वामपंथी समुदाय ने मार्क्सवाद में रुचि जागृत की
उन्होंने मार्क्सवाद के मुकाबले मार्क्स के मानवीय पहलू को खड़ा करना चाहा । उन सभी
लोगों ने एंगेल्स पर मार्क्स को विकृत करने का आरोप लगाया । इससे आम धारणा बन गई
कि मार्क्स की सबसे बड़ी भूल एंगेल्स थे । बहुत लोग तो उन पर मार्क्सवाद को
प्रत्यक्षवादी भौतिकवाद में पतित कर देने का आरोप लगाते हैं । लेनिन
और स्तालिन के प्रति पश्चिमी मार्क्सवाद की चिढ़ के चलते उन्हें लेनिन और स्तालिन
का जनक भी साबित करने की कोशिश हुई है ।
एंगेल्स की एक और भारी गलती थी । उनकी किताब ‘एन्टी-ड्यूहरिंग’
ने जर्मनी के भीतर मार्क्सवाद के पक्ष में वैचारिक लड़ाई जीती और उसे मार्क्स के
विचारों की सबसे लोकप्रिय व्याख्या माना जाता है । आश्चर्य की बात कि तत्कालीन वैचारिक गोलबंदियों का असर आज तक उन बुद्धिजीवियों पर बना हुआ है जो समय के बदल जाने का दावा सबसे अधिक जोर शोर से करते हैं । इनमें मार्क्सवाद को केवल मार्क्स तक और उनमें भी मानवतावादी यानी आरम्भिक मार्क्स तक ही सीमित समझने और बताने वाले पश्चिमी मार्क्सवादी बौद्धिक भी शामिल हैं । एंगेल्स पर पुस्तक लिखने वाले टेरेल कारवेर ने अनुमान लगाया है कि एंगेल्स के विचारों से अपनी असहमति को मार्क्स ने आपसी दोस्ती और आर्थिक मदद के चक्कर में सार्वजनिक तौर पर जाहिर नहीं किया । उनकी इस चुप्पी के चलते एंगेल्स न केवल तत्कालीन यूरोपीय आंदोलन के बल्कि रूसी क्रांति और सोवियत संघ के लिए आधिकारिक दार्शनिक चिंतक बन गये ।
लेखक का मानना है कि इस किताब पर प्रत्यक्षवाद का स्रोत होने का आरोप सही नहीं है क्योंकि एंगेल्स की यह मशहूर किताब ड्यूहरिंग के नैतिक सुधारवाद के विरोध में क्रांतिकारी राजनीतिक व्यवहार का पक्ष लेते हुए लिखी गयी थी । इसीलिए प्रचंड हस्तक्षेपकारी मार्क्सवादी लेनिन ने इसे प्रत्येक वर्ग सचेत मजदूर की सुबोधिनी कहा था । ड्यूहरिंग ने मार्क्स पर हेगेल की दुर्बोध धारणाओं का शिकार रहने का आरोप लगाया था । उत्तर में एंगेल्स ने बताया कि मार्क्स ने भौतिकवाद और भाववाद के पुराने रूपों के आंशिक सत्य का अपने चिंतन में समाहार कर लिया था । इस किताब को मार्क्स के सिद्धांत को भ्रष्ट करनेवाली पुस्तक कहना उसी तरह सही नहीं है जिस तरह मार्क्स और एंगेल्स के चिंतन की बुनियादी एकता को न पहचान पाना । कारवेर कहते हैं कि इस एकता की कहानी एंगेल्स ने ही मार्क्स के देहांत के बाद गढ़ी ताकि अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी आंदोलन में उनकी साख बनी रहे । उनके अनुसार उनका संयुक्त लेखन बेहद कम है ।
कारवेर के इस रुख का विरोध करनेवालों का कहना है कि एंगेल्स को बदनाम करके मार्क्स को बचा लेनेवालों को आखिरकार मार्क्स के भी लेखन में ढेर सारा एंगेल्सवाद मिलना शुरू हो जाता है । एंगेल्स की कथित सैद्धांतिक भूलों के स्रोत मार्क्स के चिंतन में प्रचुरता से मिलते हैं । उन दोनों चिंतकों
की आपसी वैचारिक एकता पर सवाल उठाने की कोशिश भी उनके बीच के सघन पत्राचार के सबूत
के समक्ष भहरा जाती है । उन दोनों मित्रों के बीच अनबन के जितने प्रमाण एकत्र किए गये
हैं उनके उत्तर में केवल यही याद रखना काफी होगा कि दोनों ने मिलकर भारी मात्रा में
लेखन किया । मार्क्स ने हजारों मौकों पर दोनों को साथ समझते हुए ‘हम’ या ‘हमारा’ जैसे पदों का
प्रयोग किया है । ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र
की आलोचना में एक योगदान’ की भूमिका में मार्क्स
ने एंगेल्स के साथ अपने वैचारिक सहयोग को रेखांकित भी किया है ।
मार्क्स की पुत्री
एलीनोर ने उनके बारे में लिखा है कि एंगेल्स के पत्रों को पढ़ते हुए मार्क्स को लगता
था कि वे सामने बैठे हैं । कभी सहमति जताते, कभी असहमत होते
और कभी ठठाकर हंसने लगते । इसी तरह उनके दामाद पाल लाफ़ार्ग ने भी बताया कि एंगेल्स
को मार्क्स यूरोप का सबसे ज्ञानी मनुष्य मानते थे । वे उनके बहुमुखी ज्ञान और प्रकांड
मस्तिष्क की प्रशंसा करते थकते नहीं थे । जहां तक आर्थिक मदद के चलते जुबान बंद रखने
की बात है तो उसकी अवधि चालीस साल होना मुश्किल है । मार्क्स पर एंगेल्स के असर को
कम करके समझने से दोनों का नुकसान होगा । उन दोनों को एक समझना अगर भूल होगी तो उनको
भिन्न समझना उससे बड़ी भूल होगी ।
2020 में पालग्रेव मैकमिलन से कान कंगल की किताब ‘फ़्रेडेरिक एंगेल्स ऐंड द डायलेक्टिक्स आफ़ नेचर’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के अनुसार अगर किसी किताब के पाठक एकमत न हों तो उसकी नई नई व्याख्या की गुंजाइश बनी रहती है । एंगेल्स की यह किताब उसी तरह की है । कुछ लोग एंगेल्स को मार्क्स का सच्चा मित्र मानते हैं तो कुछ लोगों के मुताबिक उन्होंने मार्क्सवाद का नुकसान किया । इस किताब की वजह से उन पर अधिभूतवादी, जड़, सार-संग्रहवादी, प्रत्यक्षवादी आदि होने का आरोप लगाया जाता है । ऐसे लोग कहते हैं कि इस किताब को मार्क्स की सामाजिक आलोचना की परियोजना से अलगाकर देखना चाहिए । इनके विरोधियों का कहना है कि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद मार्क्स और एंगेल्स का संयुक्त उपक्रम था । उन दोनों के चिंतन में विरोधिता की जगह पूरकता नजर आती है । मार्क्सवादी विश्वदृष्टि का साकार रूप यह पुस्तक लिखी एंगेल्स की कलम से गई लेकिन इस काम में उन्हें मार्क्स का बौद्धिक समर्थन हासिल था । इसी वजह से जो लोग एंगेल्स की इस किताब का मार्क्स के नाम पर विरोध करते हैं उनके विरोध के पीछे मार्क्सवाद का विरोध रहता है ।
मार्क्सवाद के इतिहास में अक्सर बौद्धिक बहस लड़ाई झगड़े में बदलती रही है लेकिन किसी अन्य मुद्दे पर बात इस हद तक नहीं गई । इससे अधिक टकराव उनकी शायद ही किसी और किताब पर हुआ होगा । इस बहस के चलते मार्क्सवादी लोग ‘पश्चिमी’ और ‘सोवियत’ खेमों में विभाजित हो गए । एंगेल्स के अंध समर्थक पूरबी हुए और उनके विरोधी समझदार पश्चिमी । एंगेल्स के विरोधियों ने हारकर उनके प्राकृतिक द्वंद्ववाद को पूरी तरह से भूल जाने की सिफारिश की । इसके विपरीत उनके समर्थकों ने इस प्रवृत्ति का विरोध किया । बहस इस हद तक पहुंची कि एंगेल्स को मार्क्सवाद के भीतर शामिल करना चाहिए या नहीं । दो सौवीं सालगिरह के मौके पर थोड़ा विचित्र है कि आधुनिक समाजवाद के अग्रदूतों में से एक को लेकर संदेह का वातावरण है । इसलिए इस किताब में एंगेल्स को समझने की इतनी अलग अलग दृष्टियों का कारण तलाशने के साथ इस विवादित किताब में आज के लिए कुछ काम का देखने की कोशिश है । इस लिहाज से जो सवाल उठना चाहिए वह यह कि एंगेल्स के द्वंद्ववाद को उनकी इस किताब के आधार पर किस तरह समझा जाए या उनकी उपलब्धि और सीमा क्या है । इन सवालों के लिहाज से एंगेल्स की इस किताब का महत्व असंदिग्ध है ।
चूंकि इस किताब के बारे में काफी विवाद हुआ इसलिए इस किताब में जो नहीं है उसे भी बहस की तेजी में खोज निकाला गया था । असल में बहस एंगेल्स की वैज्ञानिक समझ के बारे में थी भी नहीं, उनकी बौद्धिक प्रतिष्ठा और राजनीतिक हैसियत को सवालों के घेरे में लाना था । उनका विरोध और समर्थन पहले की तरह आज भी वैचारिक चुनाव बना हुआ है । अलग बात है कि वाद विवाद के इस क्रम में बहुत कुछ स्पष्ट भी हुआ है । इसके अलावे 1925 से 1985 के बीच इस किताब का प्रकाशन होता रहा । इन प्रकाशनों का संपादन अलग अलग तरीकों से हुआ और उनके चलते पाठकों को भांति भांति के एंगेल्स का साक्षात्कार होता रहा ।
2020 में ब्यूखनेर-फ़ेर्लाग से फ़्रैंक जैकब के संपादन में
‘एंगेल्स@200: रीडिंग फ़्रेडरिक एंगेल्स इन द 21स्ट सेन्चुरी’ का
प्रकाशन हुआ । उनका कहना है कि मार्क्स के साथ एंगेल्स का नाम हमेशा लिया तो जाता
है लेकिन उनके योगदान को दोयम दर्जे का ही माना जाता है । सच यह है कि एंगेल्स
प्रकांड बौद्धिक थे । उनका व्यक्तित्व बहुमुखी था । उनकी जीवनियों को वह सम्मान
नहीं मिला जो उनके मित्र मार्क्स की जीवनियों को मिला इसके बावजूद उनके लेखन में
मार्क्स के मुकाबले विविधता अधिक है । एक दार्शनिक और समाज विज्ञानी होने के
अतिरिक्त सैन्य विज्ञान में उनका गहरा दखल था । उद्योग के साथ सैन्य गतिविधियों की
एकता को उन्होंने देख लिया था । सिद्ध है कि मार्क्स के साथ मित्रता के अतिरिक्त
भी एंगेल्स के लेखन में देखने लायक ढेर सारी चीजें हैं । उनकी रुचि का विस्तार
नाना अनुशासनों को छूता था ।
2021 में पालग्रेव मैकमिलन से टेरेल
कारवेर की किताब ‘द लाइफ़ ऐंड थाट आफ़ फ़्रेडरिक एंगेल्स’ का तीसवीं सालगिरह पर विशेष
संस्करण प्रकाशित हुआ । इस संस्करण के लिए लेखक ने नयी भूमिका लिखी है । पहली बार
यह किताब 1990 में छपी थी । इसके नये संस्करण का प्रकाशन एंगेल्स की दो सौवीं सालगिरह
के मौके पर हुआ । लेखक के मुताबिक पिछले दस साल में राजनीतिक बौद्धिक वातावरण में
आये बदलावों के चलते एंगेल्स की चर्चा शुरू हुई है ।
2021 में पालग्रेव मैकमिलन से कोहेइ सैतो के संपादन में ‘रीएक्जामिनिंग एंगेल्स’ लीगेसी इन द 21स्ट सेन्चुरी’ का प्रकाशन हुआ । किताब में संपादक की भूमिका और पश्चलेख के अतिरिक्त चार हिस्सों में ग्यारह लेख संकलित हैं । पहले हिस्से में एंगेल्स और वर्ग, दूसरे में एंगेल्स और दर्शन, तीसरे में एंगेल्स और आर्थिक संकट तथा चौथे हिस्से में एंगेल्स और हाशिये से जुड़े लेख संकलित हैं । संपादक का कहना है कि एंगेल्स के जन्म की
इस दो सौवीं सालगिरह के समय हम पारम्परिक मार्क्सवाद और पश्चिमी मार्क्सवाद की
आपसी विरोधिता से हटकर एंगेल्स के योगदान को देख सकते हैं । टेरेल कारवेर का तो
कहना है कि मार्क्स की ‘पूंजी’ से भी मशहूर किताब एंगेल्स की ‘समाजवाद: काल्पनिक
और वैज्ञानिक’ रही है । इसमें कोई दो राय नहीं कि मार्क्सवाद के इतिहास में
मार्क्स के बाद सैद्धांतिक नजर से एंगेल्स का ही नाम लिया जा सकता है । मार्क्स के
निधन के बाद मार्क्सवाद का जो भी विकास हुआ उस पर एंगेल्स का गहरा असर रहा । ऐसा
रूसी मार्क्सवाद के ही साथ दूसरे इंटरनेशनल के बारे में भी कहा जा सकता है ।
मार्क्स के बाद उनके लेखन को संपादित करके प्रकाशित कराने में एंगेल्स ने खुद को
लगा दिया था । ऐसा करते हुए उन्होंने मार्क्स के लेखन में कुछ जोड़ा-घटाया भी । इस
तरह उन्होंने मार्क्स के लेखन को सुबोध बनाया । वे समझते थे कि मार्क्स के लेखन का
मजदूर वर्ग के तात्कालिक संघर्षों के परे भी ऐतिहासिक महत्व है ।
अब कहा जा सकता है कि जिस तरह के उत्तर पूंजीवादी समाज की कल्पना
मार्क्स ने की थी उसकी पूर्वशर्तें उस समय या बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में भी नहीं
थीं । ऐसी स्थिति में एंगेल्स ने पूंजीवादी विचारधारा का मुकाबला करने लायक
विचारधारा निर्मित करने की भरपूर कोशिश की । इसके लिए उन्होंने मार्क्स के
सिद्धांत के कुछ पहलुओं पर विशेष बल दिया । उनकी इस रणनीति से मार्क्सवाद को अपार
सफलता मिली । एंगेल्स की इस कोशिश के बिना बीसवीं सदी में मार्क्सवाद को उतनी
सफलता हासिल होना मुश्किल था । लेकिन इसके चलते पूंजीवादी आधुनिकता का अतिक्रमण
करने लायक सैद्धांतिकी का विकास न हो सका । पूंजीवादी विश्व-व्यवस्था के केंद्रों
में सुधारों की मांग तक सीमित सामाजिक जनवाद की राजनीतिक धारा पैदा हुई । हाशिये
या अर्ध हाशिये के जिन भी मुल्कों में क्रांति संपन्न हुई वहां राजकीय पूंजीवाद के
तहत उद्योगीकरण और आधुनिकीकरण की विचारधारा को ही मान्यता मिली । एंगेल्स की
कोशिशों के इस फलितार्थ की आलोचना लुकाच और कार्ल कोर्श ने 1920 दशक में ही की थी
। मार्क्स की समस्त पांडुलिपियों के प्रकाश में आ जाने से बहुतेरे विद्वान एंगेल्स
की भूमिका की आलोचना कर रहे हैं । कुछ ऐसे विद्वान भी सामने आये हैं जो एंगेल्स के
लेखन के नये पहलुओं को उजागर कर रहे हैं ।
इस संदर्भ में 2021 में स्प्रिंगेर से रोलैन्ड बोअर की किताब ‘फ़्रेडरिक
एंगेल्स ऐंड द फ़ाउंडेशंस आफ़ सोशलिस्ट गवर्नेन्स’ का प्रकाशन हुआ । लेखक के अनुसार
हालिया कोरोना महामारी के दौरान समाजवादी व्यवस्था वाले देशों ने स्थिति को सबसे
अच्छी तरह संभाला । इससे साबित हुआ कि उनकी राजनीतिक व्यवस्था में तेज निर्णय
लेने, विशेषज्ञों को जरूरी जगहों पर तैनात करने, उद्योगों से आवश्यक उपकरण बनवाने
और सामाजिक सहयोग तथा समर्थन हासिल करने की परिपक्वता थी । इसके विपरीत पूंजीवादी
व्यवस्था वाले देशों में बिना किसी अपवाद के निजी मुनाफ़े को वरीयता देने के चलते
इस महामारी ने भीषण रूप धारण किया । किताब में इसी रहस्य का उत्तर देने की कोशिश
की गयी है । लेखक का कहना है कि समाजवादी प्रशासन की सफलता को समझने के लिए मूल
मार्क्सवादी परम्परा को देखना होगा । इस मामले में एंगेल्स का योगदान बेहद
महत्वपूर्ण है । वे खुद को मार्क्स का सहायक ही मानते रहे लेकिन समाजवादी प्रशासन
के क्षेत्र में उनके योगदान को समझना अत्यंत लाभकर है ।
2022 में पालग्रेव मैकमिलन से टेरेल कारवेर और स्मेल रैपिक के
संपादन में ‘फ़्रेडरिक एंगेल्स फ़ार द 21स्ट सेन्चुरी
: रिफ़्लेक्शंस ऐंड रीइवैल्यूएशंस’ का
प्रकाशन हुआ । स्मेल रैपिक की प्रस्तावना और टेरेल कारवेर के पश्चलेख के अतिरिक्त
किताब के सत्रह लेख छह हिस्सों में संयोजित हैं ।
पहले हिस्से में एंगेल्स की किताब प्रकृति का द्वंद्ववाद से जुड़े लेख,
दूसरे में राजनीतिक अर्थशास्त्र संबंधी उनके लेखन से जुड़े लेख, तीसरे में मजदूर
वर्ग की स्थिति पर एंगेल्स की किताब से जुड़े लेख, चौथे हिस्से में सत्ता संबंधी
उनके विवेचन से जुड़े लेख, पांचवें में एंगेल्स के साहित्य संबंधी विवेचन पर तो
छठवें हिस्से में मुक्ति और क्रांति तथा कम्युनिज्म के उनके विचारों पर लिखे लेख
किताब में संकलित हैं ।
2022 में स्प्रिंगेर से यूर्गेन गेओर्ग बैकहाउज, गुंथर
चालोपेक और हांज ए फ़्रामबाख के संपादन में ‘200 ईयर्स आफ़ फ़्रेडरिक एंगेल्स: ए
क्रिटिकल असेसमेन्ट आफ़ हिज लाइफ़ ऐंड स्कालरशिप’ का प्रकाशन हुआ । उनका कहना है कि एंगेल्स का नाम मार्क्स के ही प्रसंग में आता है लेकिन पूंजीवाद की सैद्धांतिक समझदारी और अनेक समाजार्थिक मुद्दों पर उनका योगदान अविस्मरणीय है ।
सभी जानते हैं कि एंगेल्स ने कभी अपने लेखन को मार्क्स के लेखन से अलगाने की कोशिश नहीं की इसलिए उनके लेखन का संग्रह तैयार करना बेहद मुश्किल काम है । इस संग्रह में कालानुक्रम की जगह दूसरे किस्म का अनुक्रम अपनाया गया है । कोशिश रही कि मार्क्स के अभिन्न होने के साथ उनका स्वतंत्र व्यक्तित्व भी पाठक के सामने आये । चूंकि मार्क्स के साथ उनका जुड़ाव अभिन्न रहा था इसलिए मार्क्स के जीवित रहते ही एक तरह की उनकी जो जीवनी एंगेल्स ने लिखी उसे सबसे पहले शामिल किया गया है । मार्क्स के देहांत पर उनका लिखा इसके बाद रखा गया है । इन दोनों की लिखी जो पहली किताब चर्चित हुई वह ‘कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र’ थी । घोषणापत्र के लेखन में मार्क्स ने एंगेल्स की एक प्रश्नावली से बहुत मदद ली थी । उसे शामिल करने का लोभ संवरण करना कठिन है । प्रश्नावली और घोषणापत्र जिस संगठन के लिए लिखे गए थे उसका रोचक इतिहास एंगेल्स ने लिखा है । इसमें यूरोप को अखंड इकाई की तरह मजदूर आंदोलन के लिए देखा गया है । इसी नजरिये की अनुगूंज ग्रीस के पूर्व वित्तमंत्री के उस संकल्प में सुनी जा सकती है जिसमें यूरोपीय संघ की तानाशाही के विरोध में वे यूरोपव्यापी लोकतांत्रिक आंदोलन की जरूरत बताते हैं । मार्क्स के निधन के बाद घोषणापत्र के जो संस्करण छपे
उनकी भूमिका एंगेल्स को अकेले ही लिखनी पड़ी थी । मार्क्स के सबसे विशाल ग्रंथ ‘पूंजी’के पहले खंड का प्रकाशन होने पर उस समय के बौद्धिक समुदाय ने अपनी चुप्पी के जरिये उसे मार देना चाहा । इसके विरोध में एंगेल्स ने उस महाग्रंथ पर समीक्षा लिखी । इसी ग्रंथ के दूसरे और तीसरे खंड को संपादित करके उन्होंने छ्पवाया ।
इसी के कारण दूसरे खंड की भूमिका का अंश देना जरूरी लगा । एंगेल्स
की सबसे मशहूर किताब ‘परिवार, निजी संपत्ति और राज्य का उदय’ है । इसे उन्होंने मार्क्स के मरणोपरांत मिली उनकी टीपों के सहारे लिखा । इस किताब में एंगेल्स ने मातृसत्ता शब्द का
इस्तेमाल किसी उपयुक्त शब्द के अभाव में किया है । इससे उनका आशय आम तौर पर
मातृवंशीयता है । इस
किताब के अतिरिक्त उनके बौद्धिक प्रसार को समझने के लिए दर्शन के बारे में ‘लुडविग फ़ायरबाख और क्लासिकल जर्मन दर्शन का अंत’ उनकी सर्वोत्तम रचना है । इससे भौतिकवाद तक उनके पहुंचने की उस राह का पता चलता है जिसे युवा हेगेलपंथियों ने अपनाया था । इसी तरह ‘समाजवाद: काल्पनिक और वैज्ञानिक’ भी उनकी वैचारिक विरासत को अच्छी तरह से पेश करती है । ‘वानर से नर बनने की प्रक्रिया में श्रम की भूमिका’ वैसे तो पतली सी पुस्तिका है लेकिन महत्व की लगी । इसी तरह आवास प्रश्न पर उनकी लेखमाला भी
प्रासंगिक और बहुत जरूरी महसूस हुई । कामगारों के लिए आवास की
व्यवस्था हाल के दिनों तक नियोक्ता ही किया करते थे । इससे उन्हें ही लाभ होता था
लेकिन वित्तीकरण का बोलबाला होते ही आवास की जिम्मेदारी से नियोक्ताओं ने पीछा
छुड़ाया और इसके लिए कर्ज देना शुरू किया । फिर तो सीधे सीधे वित्तीय पूंजी की
दखलंदाजी इस क्षेत्र में हो गयी । इससे मजदूर आंदोलन के जुझारूपन में कमी आयी ।
कर्ज की किस्त चुकाने के दबाव से हड़ताल करने के उनके साहस पर असर पड़ा । संयोग की बात कि
हाल फिलहाल के वित्तीय झटकों में आवास के अर्थतंत्र की प्रमुख भूमिका बतायी जा रही है । मार्क्स
के ही समान एंगेल्स ने भी समसामयिक राजनीतिक घटनाक्रम का भी वर्गीय दृष्टि से
विश्लेषण किया । एंगेल्स ने जर्मनी के क्रांतिकारी उभार और उसके पटाक्षेप को ध्यान
में रखते हुए कुछ लेख लिखे जो ‘जर्मनी में क्रांति और प्रतिक्रांति’ में संग्रहित
हैं । ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझने के लिए इसका विशेष महत्व है ।