tag:blogger.com,1999:blog-4325961764913778009.post4297425877819137341..comments2023-12-25T19:53:44.760-08:00Comments on ज़माने की रफ़्तार: ज्ञान का समाजीकरणgopal pradhanhttp://www.blogger.com/profile/15365125111310550491noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-4325961764913778009.post-5167248717434422042012-03-20T00:46:37.062-07:002012-03-20T00:46:37.062-07:00बहुत अच्छा आलेख. लेकिन धर्म का जन्म भले ही मानवीय ...बहुत अच्छा आलेख. लेकिन धर्म का जन्म भले ही मानवीय सदेच्छा का परिणाम रहा हो, सत्ता वर्ग द्वारा उनका निरंतर दुरुपयोग किया जाता रहा है. धर्म समाजीकरण का आरंभिक औजार था. तत्कालीन सामंतों द्वारा उसका उपयोग अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए किया..आज सामंतों का स्थान पूंजीपतियों ने लिया है. धर्म फिर उनकी स्वार्थसिद्धि में सहायक है. प्रकटत: कमी धर्म की भले न लगे, लेकिन इसके बहाने शीर्षस्थ लोग लोगों का ध्यान आसानी से उस दिशा की ओर मोड़ देते हैं, जिसका उसके वास्तविक विकास से कोई संबंध नहीं होता.ओमप्रकाश कश्यपhttps://www.blogger.com/profile/15528163513667115228noreply@blogger.com